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दिवालिया सरकार, ठप कारोबार

मुफ्त की रेवड़ी वाली संस्कृति हिमाचल प्रदेश पर भारी पड़ रही है। सरकार दिवालिया हो चुकी है। उसके पास कर्मचारियों को वेतन देने तक के पैसे नहीं बचे हैं। सरकार ने कर्मचारियों की भविष्यनिधि तक पर कर्ज लिया है

by आर.पी. सिंह
Sep 12, 2024, 08:48 am IST
in विश्लेषण, हिमाचल प्रदेश
सचिवालय के बाहर प्रदर्शन करते हिमाचल सरकार के कर्मचारी

सचिवालय के बाहर प्रदर्शन करते हिमाचल सरकार के कर्मचारी

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आत्मनिर्भर हिमाचल और व्यवस्था परिवर्तन की राह पर चल रहा हिमाचल आर्थिक तंगहाली की दहलीज पर पहुंच चुका है। व्यवस्था परिवर्तन का जोर-शोर से ढिंढोरा पीटने वाली प्रदेश की कांग्रेस सरकार के वित्तीय कुप्रबंधन का आलम यह है कि हिमाचल पर 87 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है। यदि प्रति व्यक्ति हिसाब निकाला जाए तो इस हिसाब से हिमाचल प्रदेश के हर व्यक्ति के ऊपर 1 लाख 17 हजार रुपए का कर्ज है। यह देश के 9 पहाड़ी राज्यों में सबसे अधिक है और अरुणाचल प्रदेश के बाद देशभर में सबसे ज्यादा है। डेढ़ वर्ष पहले सत्ता में आई कांग्रेस सरकार ने मात्र 20 माह में 21,366 करोड़ रुपए का कर्ज लेकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। इस भारी वित्तीय संकट को देखते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल ने आर्थिक स्थिति ठीक न होने का हवाला देकर दो माह देरी से वेतन लेने का ऐलान किया है। इसे लेकर भी उनका जमकर मजाक बनाया जा रहा है।

लचर वित्त प्रबंधन

हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री और नेता विपक्ष जयराम ठाकुर का कहना है, ‘‘प्रदेश के मुख्यमंत्री ने हास्यास्पद स्थिति बनाई हुई है। एक तरफ तो मुख्यमंत्री आर्थिक स्थिति ठीक न होने का हवाला देते हैं और दूसरी तरफ अपने चहेतों के वेतन को 30 हजार से 1 लाख 30 हजार रुपए कर दे रहे हैं। प्रदेश की इस वित्तीय हालत का जिम्मेदार सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार का वित्तीय प्रबंधन है। नियम विरुद्ध छह विधायकों को चीफ पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी (सीपीएस) का दर्जा दिया गया है। जैसे केंद्र में केंद्र्रीय मंत्री की मदद के लिए राज्य मंत्री बनाए जाते हैं, वैसे ही हिमाचल के मंत्रिमंडल में मंत्रियों की मदद के लिए इन विधायकों को सीपीसी का दर्जा दिया गया है। इनके वेतन व भत्ते मंत्रियों की तरह हैं। तमाम सुविधाएं भी मंत्रियों की तरह ही हैं। सचिवालय में कार्यालय भी दिया गया है। इन नियुक्तियों को न्यायालय में चुनौती दी गई थी। इसके लिए हिमाचल सरकार ने छह करोड़ रु. से अधिक राशि अधिवक्ताओं को दीं ताकि वह न्यायालय में सरकार का पक्ष रख सकें। यहां तक कि हिमाचल सरकार में ओएसडी और एडवाइजर को ‘कैबिनेट स्तर’ के साथ रखा गया है। उन्होंने कहा कि अभी तो कैबिनेट मंत्री और सीपीएस के वेतन को दो माह देरी से देने का फैसला लिया गया है, आगे चलकर सरकारी कर्मचारियों के वेतन, पेंशन भी देरी से देने को लेकर फैसला लिया जा सकता है।’’

कर्मचारी हुए लामबंद

हिमाचल प्रदेश में कर्मचारियों और सरकार के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है और सरकारी कर्मचारी 20 माह से लंबित पड़े बकाया डीए की मांग को लेकर कई बार लामबंद हो चुके हैं। प्रदेश सचिवालय जहां पर सरकार बैठती है और जहां से पूरे प्रदेश का काम देखा जाता है, वहां पर हाल ही में अगस्त माह के अंतिम सप्ताह में सचिवालय के कर्मचारियों ने सरकार से डीए और अपनी अन्य मांगों को लेकर बैठक की थी, लेकिन सरकार ने इन कर्मचारियों की बातों को सुनने के बजाए कई कर्मचारियों को ही नोटिस थमा दिए हैं। कर्मचारियों ने सरकार को मौजूदा विधानसभा सत्र के खत्म होने से एक दिन बाद यानी 10 सितंबर तक का समय दिया है। कर्मचारी नेता प्रकाश बादल का कहना है, ‘‘यह पहली बार है जब सरकारी कर्मचारियों को अपनी बात रखने के लिए नोटिस दिया गया है। उन्होंने कहा कि कर्मचारी अपनी समस्याएं सरकार के सामने रखना चाहते हैं लेकिन सरकार समय नहीं दे रही है।’’

सरकार कर रही फिजूलखर्जी

व्यवस्था परिवर्तन के दावे कर सत्ता में आने वाली कांग्रेस पर लगातार फिजूलखर्ची के आरोप लग रहे हैं। कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए धर्मशाला के विधायक सुधीर शर्मा का कहना है,‘‘यह मित्र मंडली की सरकार है और इसमें अपने चहेतों को लाभ पहुंचाया जा रहा है।’’ उन्होंने कहा कि सरकार ने अपने चहेतों को खुश करने के लिए कैबिनेट स्तर रेवड़ियों की तरह बांटे हैं। इसके अलावा नियमों के खिलाफ जाकर विधायकों को सीपीएस का दर्जा दिया है। अधिवक्ताओं और सलाहकारों की फौज भी खड़ी की है जिनपर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। वे कहते हैं, ‘‘एक तरफ तो सरकार कहती है कि स्थिति ठीक नहीं है मगर दूसरी तरफ मुख्यमंत्री और मंत्रियों के कार्यालयों और उनके मकानों को पांच सितारा होटल जैसा बनाया जा रहा है। यह सब फिजूलखर्ची नहीं है तो और क्या है?’’
सरकारी कर्मचारियों के साथ बेरोजगार युवाओं का भी सरकार के खिलाफ गुस्सा बढ़ता जा रहा है। शिमला के रहने वाले अजीत सकलानी का कहना है, ‘‘कांग्रेस सरकार ने सत्ता में आने के लिए बहुत लोक-लुभावन वायदे किए थे, जिन्हें पूरा करने में वह पूरी तरह विफल रही है। सरकारी नौकरी का वादा करने वाली कांग्रेस ठेके पर भर्तियां कर रही है। पूर्व सरकार में ली गई भर्ती परीक्षाओं में से जिनके परिणाम जारी किए गए हैं, उसमें उत्तीर्ण अभ्यार्थियों को अभी तक नियुक्ति नहीं मिली है।’’

भविष्य निधि पर लिया कर्ज

नेता विपक्ष जयराम ठाकुर कहते हैं, ‘‘कांग्रेस सरकार अपने आप को कर्मचारी हितैषी सरकार बताती है, लेकिन आज कर्मचारी सड़कों पर हैं और कर्मचारियों तथा सरकार के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई है। इस सरकार की ‘कर्मचारी हितैषी’ नीतियों का पता इस बात से चलता है कि सरकार ने कर्मचारियों की भविष्य निधि के ऊपर भी 2810 करोड़ रुपए का कर्ज ले लिया है। सरकार को वित्तीय प्रबन्धन सही ढंग से करना चाहिए। सरकार के संसाधनों की लूट बंद कर उन्हें प्रदेश के हितों में लगाया जाए। उद्योगों को प्रोत्साहित करें जिससे प्रदेश में निवेश आए।’’

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एनके शारदा का कहना है, ‘‘हिमाचल की अर्थव्यवस्था में आधुनिकीकरण नहीं हैं। हमारे यहां जनसंख्या का मुख्य भाग कृषि पर आधारित है। यहां औद्योगिकीकरण बेहद कम और धीमा है। सरकार की आय के साधन बहुत सीमित हैं। राज्य की आय और व्यय को देखें तो 70 फीसदी से अधिक व्यय वेतन व भत्ते, ब्याज और सब्सिडी पर खर्च करना पड़ता है। सरकार को मुफ्तखोरी पर अंकुश लगाने की जरूरत है। केवल उन्हीं लोगों को बिजली, पानी या अन्य अनुदान देने चाहिए जिन्हें वास्तव में इनकी जरूरत है। इसके अलावा सरकार को अपने खर्चों में कटौती करनी चाहिए और निगमों और बोर्डोें के राजस्व घाटे को कम करने की दिशा में कड़े कदम उठाने चाहिए। स्थानीय निकायों से बकाया टैक्स की वसूली के लिए भी कड़े कदम उठाए जाने चाहिए। अपने संसाधनों का उचित दोहन कर खनन क्षेत्र में और बेहतरी से काम करना चाहिए।’’

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