मोदक भारतीय संस्कृति में सिर्फ एक मिठाई नहीं, बल्कि समृद्धि और सुख-शांति का प्रतीक है। खासकर गणेश चतुर्थी के अवसर पर भगवान गणेश को प्रिय माने जाने वाले मोदक का विशेष स्थान है। इसकी लोकप्रियता और महत्व भारतीय इतिहास और धार्मिक परंपराओं में गहराई से जुड़ी हुई है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान गणेश का प्रिय भोग मोदक है और इसे लेकर धर्म और आध्यात्म में कई प्रसिद्ध कथाएं प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक विशेष कथा है, जो भगवान गणेश की तृप्ति और मोदक से जुड़ी है। यह कथा ऋषि अत्रि और उनकी पत्नी देवी अनुसूया के आतिथ्य से संबंधित है, जिनके सत्कार ने मोदक को भगवान गणेश का अत्यंत प्रिय भोग बना दिया।
कथा के अनुसार, एक बार देवी अनुसूया ने सभी देवताओं को भोजन के लिए आमंत्रित किया। इस भोज में भगवान शिव अपने पूरे परिवार, अर्थात् माता पार्वती, भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय के साथ सम्मिलित हुए। देवी अनुसूया ने अपने घर में बड़े आदर-सत्कार से भोजन की व्यवस्था की। भोज के दौरान, जब देवी अनुसूया भगवान गणेश को भोजन परोसने लगीं, तो गणेश जी भोजन करते रहे, लेकिन उन्हें तृप्ति नहीं हो रही थी।
आखिरकार, जब भोजन की आखिरी थाली बची, तब देवी अनुसूया ने गणेश जी की थाली में भोजन के स्थान पर एक मोदक रखा। जैसे ही भगवान गणेश ने उस मोदक को ग्रहण किया, उन्हें जोर से डकार आ गई। यह डकार तृप्ति और संतुष्टि का प्रतीक थी। उनके संतुष्ट होने के तुरंत बाद, भगवान शिव ने भी 21 बार डकार ली, जो यह दर्शाता था कि सभी को तृप्ति मिल चुकी है।
माता पार्वती इस दृश्य को देखकर अत्यधिक प्रसन्न हुईं और देवी अनुसूया की भक्ति और आतिथ्य से प्रभावित होकर उन्होंने कहा, “जो भी भक्त गणेश जी को 21 मोदक का भोग अर्पित करेगा, उसे जीवन में सुख, समृद्धि और तृप्ति की प्राप्ति होगी।” इस आशीर्वाद से मोदक गणेश जी का प्रिय भोग बन गया और इसे धार्मिक अनुष्ठानों में विशेष स्थान प्राप्त हुआ।
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