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संघ के विरुद्ध कुचक्र

देशसेवा में समर्पित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो दुष्प्रचार करने का काम योजनाबद्ध तरीके से किया जा रहा है। कुछ कुंठाग्रस्त लेखक और पत्रकार एवं राजनेता एक लंबे अरसे से इस तरह की साजिश में लिप्त हैं

by रमेश शर्मा
Sep 11, 2024, 01:04 pm IST
in मत अभिमत, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र
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प्रयागराज के मदरसे से एक पुस्तक मिली है जिसमें भारत की कुछ बड़ी आतंकवादी घटनाओं के लिये पाकिस्तान को ‘क्लीनचिट’ देकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कट्टर आतंकवादी संगठन बताकर आरोपी बताया गया है। रा. स्व. संघ को आतंकवादी बताने वाली यह पुस्तक पहली नहीं है। इससे पहले भी अनेक पुस्तकें आ चुकी हैं और कुछ नेताओं के बयान भी।

उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक सूचना के आधार पर 28 अगस्त को प्रयागराज को एक मदरसे में नकली नोट छापे जाने की शिकायत पर छापा मारा और वहां से एक लाख तीस हजार रुपए के नकली नोट जब्त किए। लेकिन मामला यहीं समाप्त नहीं हुआ। वहां पर आपत्तिजनक और भड़काऊ साहित्य भी मिला। इनमें एक पुस्तक ऐसी भी मिली जिसमें भारत में घटी कुछ बड़ी आतंकी घटनाओं के लिये पाकिस्तान को ‘क्लीनचिट’ दी गई थी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को आतंकवादी संगठन बताकर इनका जिम्मेदार बताया गया।

संघ पर लगाए अनर्गल आरोप

पुस्तक में मुंबई हमले, मालेगांव ब्लास्ट, समझौता एक्सप्रेस में विस्फोट जैसी बड़ी आतंकवादी घटनाओं सहित तेरह बड़ी आतंकी घटनाओं का उल्लेख है। सभी में पाकिस्तान को ‘क्लीनचिट’ दी गई है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर मिथ्या आरोप मढ़े गए हैं। पुस्तक पर लेखक के रूप में महाराष्ट्र के सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी एस एम मुशर्रफ का नाम अंकित है। पुस्तक अंग्रेजी में है और उसका उर्दू सहित कई अन्य भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है। पुस्तक की भाषा और प्रस्तुतीकरण कुछ ऐसा है जिससे पाठकों के मन में पाकिस्तान के प्रति सहानुभूति उपजे और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छवि खराब हो। लेखक एस.एम. मुशर्रफ की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को देश का नंबर एक आतंकी संगठन बताने वाली यह पहली पुस्तक नहीं है। उन्होंने ऐसी और भी पुस्तकें लिखी हैं। उनकी एक पुस्तक ‘हू किल्ड करकरे’ है जिसमें दावा किया गया है कि हेमंत करकरे की हत्या आतंकवादियों ने नहीं की, अपितु उनकी हत्या में खुफिया ब्यूरो (आईबी) का हाथ है। इस पुस्तक का मराठी और बांग्ला में भी अनुवाद हुआ है।

अदालत में मांगी जा चुकी है माफी

ऐसी ही एक पुस्तक उर्दू पत्रकार अजीज बर्नी की है। अजीज बर्नी दिल्ली के एक उर्दू समाचार पत्र के संपादक रहे हैं। उन्होंने अपने समाचार पत्र में एक लेखमाला चलाई थी जिसमें गोधरा कांड, मालेगांव ब्लास्ट, समझौता एक्सप्रेस विस्फोट, मुम्बई हमले सहित विभिन्न घटनाओं के लिए संघ पर आरोप लगाए गए थे। यह पुस्तक उनके इन्हीं आलेखों का संग्रह थी। इस पुस्तक का नाम ‘26/11 आरएसएस की साजिश’ था। इस पुस्तक के विमोचन के लिये दिल्ली और मुंबई दो स्थानों पर समारोह हुए थे। इसमें कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह सहित कुछ अन्य राजनेता भी शामिल हुए थे। बर्नी और उनकी पुस्तक के विरुद्ध मुंबई के एक सामाजिक कार्यकर्ता विनय जोशी ने संघ के खिलाफ झूठी साजिश फैलाने के आरोप में मामला दर्ज कराया था।

याचिका में कहा गया था कि बर्नी को इस तथ्य की जानकारी थी कि 26 नवंबर, 2008 को मुंबई की सड़कों पर हुए आतंकी हमलों में पाकिस्तान और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों का हाथ था, फिर भी झूठ फैलाया गया। बाद में बर्नी ने अपने लेखन को लेकर अदालत में माफी भी मांगी थी। हालांकि माफी से विनय जोशी संतुष्ट नहीं थे लेकिन पुस्तक को जितना भ्रम फैलाना था वह उतना फैला चुकी थी। बर्नी को तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने 2007 में उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए सम्मानित भी किया था। 2009 में अजीज बर्नी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ फ्रांस और मिस्र की विदेश यात्रा भी की थी।

कुचक्र को प्रोत्साहन या संरक्षण?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छवि धूमिल करने और भ्रम फैलाने का यह अभियान केवल एस. एम मुशर्रफ और अजीज बर्नी के लेखन तक सीमित नहीं है। ऐसे अनेक प्रशासनिक कुचक्र रचे गए हैं। प्रयागराज मामले में उत्तर प्रदेश के एक राजनेता और मजहबी उस्ताद तौकीर रजा का बयान आया जिसमें उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक आतंकवादी संगठन है और इस पर प्रतिबंध लगना चाहिए।’’ बर्नी की पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में दिग्विजय सिंह ने कहा था, ‘‘महाराष्ट्र एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे ने मुंबई में 26/11 हमले से दो घंटे पहले उन्हें फोन करके कहा था कि 2008 के मालेगांव विस्फोट में एटीएस की जांच का विरोध करने वालों से उन्हें लगातार धमकियां मिल रही हैं।’’

तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदम्बरम ने 25 अगस्त, 2010 को डीजीपी और आईजी के वार्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुये कहा था, ‘‘हाल में ‘भगवा आतंकवाद’ सामने आया है, जो अतीत में कई बम धमाकों में पाया गया है।’’ जिस समय यह बयान आया था, तब आतंकवाद के आरोप में झूठे फंसाए गए असीमानंद जी और साध्वी प्रज्ञा सहित अन्य निर्दोष पुलिस प्रताड़नाओं से तड़प रहे थे। वहीं मुख्य आरोपियों को बच निकलने का मार्ग मिल रहा था। इन घटनाओं में 2006 में मालेगांव विस्फोट, समझौता एक्सप्रेस में विस्फोट, हैदराबाद में मक्का मस्जिद विस्फोट और 2007 में अजमेर शरीफ दरगाह बम विस्फोट जैसी दिल दहला देने वाली घटनाएं शामिल हैं।

20 जनवरी, 2013 को जयपुर कांग्रेस सम्मेलन में कांग्रेस नेता सुशील कुमार शिन्दे ने भाजपा और रा. स्व. संघ पर ‘भगवा आतंकवाद फैलाने’ के लिए ‘आतंकी प्रशिक्षण’ शिविर चलाने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था, ‘‘जांच के दौरान रिपोर्ट आई है कि भाजपा और रा. स्व. संघ आतंकवाद फैलाने के लिए आतंकी प्रशिक्षण शिविर चलाते हैं…समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद में बम लगाए गए थे और मालेगांव में भी एक विस्फोट किया गया था।’’

आरोप लगाने के महीने भर बाद उन्होंने इस पर खेद भी व्यक्त कर दिया था। कुछ राजनेताओं के वक्तव्य और इन दोनों पुस्तकों के लेखकों के चेहरों से एक सीधा-सीधा त्रिकोण उभरता है। इसमें एस. एम. मुशर्रफ जैसे अधिकारी हैं, अजीज बर्नी जैसे पत्रकार हैं और तौकीर रजा जैसे मजहबी उस्ताद हैं जो आतंकवादी घटनाओं को लेकर पाकिस्तान को ‘क्लीन चिट’ देकर राष्ट्र और सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा के लिये समर्पित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विरूद्ध दुष्प्रचार करते हैं।

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