राहुल गांधी इस समय अमेरिका में हैं और वहां से वह विभाजनकारी बयान दे रहे हैं। चीन का समर्थन करने के बाद अब उन्होंने सिखों को लेकर भ्रम फैलाने और गलत दृष्टांत गढ़ने की कोशिश की है। राहुल गांधी ने कहा कि मैं चाहता हूं कि सिखों को पगड़ी पहकर, हाथ में कड़ा पहनकर गुरुद्वारे में जाने की अनुमति हो! लेकिन राहुल गांधी यह किस आधार पर कह रहे हैं। भारत में सिखों को कड़ा, कृपाण पहनने की पूरी छूट है। भारत में सिखों को ऐसा करने से कभी रोका नहीं गया और न ही कोई ऐसी बात सोच सकता है। राहुल गांधी का यह बयान विभाजनकारी है। राहुल गांधी यह भी अच्छी तरह जानते हैं कि सिख ही नहीं भारत की आम जनता भी 84 के दंगों को भूलेगी। कांग्रेस नेताओं ने 1984 में सिखों का नरसंहार किया था।
31 अक्तूबर, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़की हिंसा में केवल दिल्ली में 2,800 और देश के अन्य भागों में 3,350 सिख मारे गए थे। यह सरकारी आंकड़ा है। गैर—सरकारी आंकड़े तो बहुत ही डरावने हैं। जहां भी सिख मिले, वहीं उन्हें मार दिया गया। सैकड़ों घटनाओं की तो कहीं एफआईआर भी दर्ज नहीं हुई थी। इसलिए यह अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता है कि कितने सिख मारे गए थे।
1984 में नवम्बर की एक और दो तारीख को पूरे देश में सिखों का नरसंहार हुआ था। हालांकि इसके बाद भी कई दिनों तक सिख मारे जाते रहे। लेकिन एक और दो नवम्बर को तो एक तरह से सिखों का नरसंहार किया गया था। कांग्रेसी नेताओं के इशारे पर पूरे देश में सिखों को मौत के घाट उतारा गया। यही नहीं, उनके घरों और दुकानों को लूटकर उनमें आग लगा दी गई थी। इतने लोग मारे गए, लेकिन बरसों तक आरोपियों को पकड़ा तक नहीं गया। जब केंद्र में गैर—कांग्रेसी सरकारें बनने लगीं तब इस नरसंहार की जांच शुरू हुई। इस कारण आज सज्जन कुमार जैसे कुछ कांग्रेसी जेल के अंदर हैं। यदि कांग्रेस की ही सरकार रहती तो सज्जन भी जेल नहीं जाते। कुछ पीड़ितों को न्याय मिला है, पर आज भी ज्यादातर पीड़ित न्याय के लिए भटक रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि 31 अक्तूबर, 1984 को देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की दिल्ली स्थित उनके आवास पर हत्या कर दी गई। हत्या करने वाले उन्हीं के अंगरक्षक सतवंत सिंह और बेअंत सिंह थे। ये दोनों सिख समुदाय से थे। इंदिरा की हत्या ऑपरेशन ब्लू स्टार की प्रतिक्रिया में की गई थी, जिसका आदेश उस समय इंदिरा गांधी ने दिया था। ऑपरेशन ब्लू स्टार भारतीय सेना द्वारा 3 से 6 जून, 1984 को अमृतसर स्थित हरिमंदिर साहिब परिसर को खालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों से मुक्त करवाने के लिए चलाया गया था। दरअसल पंजाब में उस वक्त भिंडरावाले के नेतृत्व में अलगाववादी ताकतें सिर उठा रही थीं,जिन्हें पाकिस्तान से समर्थन मिल रहा था।
31 अक्तूबर, 1984 के बाद हालात कैसे थे, इसे बताने के लिए एक ही घटना काफी है। तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जब इंदिरा को देखने एम्स जा रहे थे, उस वक्त उनकी गाड़ी पर भी हमला हुआ। उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘मेमोरिज ऑफ ज्ञानी जैल सिंह’ में लिखा है, ‘… मैंने अस्पताल जाने का निर्णय लिया। मैंने रास्ते में देखा कि लोग आगजनी कर रहे हैं। कुछ लोग हाथों में जलते हुए बांस लेकर घूम रहे थे, लेकिन मैं आगे होने वाली घटनाओं के बारे में सोच नहीं सका।’
31 अक्तूबर को ही राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ तो ले ली, लेकिन फिर भी देशभर में सिखों के विरुद्ध हिंसा होती रही। इसका सबसे बड़ा कारण था, उनका एक बयान। इसमें उन्होंने कहा था, ”एक बड़ा पेड़ गिरता है, तो धरती थोड़ी हिलती है।” यानी उन्होंने सिखों के नरसंहार को एक तरह से उचित ठहराने का प्रयास किया था। इस कारण कांग्रेसी नेता और कार्यकर्ता खुलेआम हिंसा कर रहे थे।
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