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इस्लामी कट्टरपंथियों को रोकने के लिए होगी बार्डर पर कड़ी चौकसी, Germany में भीषण उत्पात देख संभली सरकार

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WEB DESK

आव्रजन के विशेषज्ञों का कहना है कि 2015—2016 के शरणार्थी संकट के दौरान सीरिया जैसे युद्धग्रस्त देशों से भागकर आए दस लाख से अधिक लोगों को इस देश में ‘शरण’ दी गई थी। उसके बाद से ही ऐसे शरणार्थियों के प्रति जर्मनी में विरोध बढ़ रहा था।


जर्मनी की सरकार ने देश की सभी सड़क सीमाओं पर कड़ा नियंत्रण लगाने का नया आदेश जारी कर दिया है। यह कदम दरअसल इस्लामवादी कट्टरपंथियों की बेरोकटोक आवाजाही को काबू करने और देश में शांति—व्यवस्था बनाए रखने की गरज से उठाया गया है। जर्मनी में गत कुछ साल में बाहर से आने वाले ‘शरणार्थी’ कई शहरों में कानून को चुनौती देते आ रहे हैं, लूटमार, दंगे, आगजनी की घटनाएं वहां आम देखने में आती रही हैं।

जर्मनी की गृहमंत्री नैन्सी फेसर ने इस आदेश के बारे में बताते हुए स्वयं इस्लामवादी चरमपंथ जैसे खतरों से जनता को सुरक्षित रखने की बात की है। नैन्सी ने कहा कि सामान्य रूप से बेरोकटोक आवागमन के विस्तृत क्षेत्र-यूरोपीय शेंगेन क्षेत्र-के भीतर नए आदेश के तहत यह नियंत्रण 16 सितंबर से शुरू होगा। शुरू में यह कड़ाई छह महीने तक जारी रहेगी।

जर्मनी की गृहमंत्री नैन्सी फेसर

इसके अलावा सरकार की तरफ से एक योजना और तैयार की गई है। इसके अंतर्गत सीमा अधिकारी जर्मन सीमाओं पर अपनी तरफ से जरूरत से ज्यादा ‘प्रवासियों’ को अंदर आने देने से रोक सकेंगे। हालांकि कुछ लोगों को मानना है कि नैन्सी का यह कदम विवाद पैदा कर सकता है और यह कानूनी रूप से काफी जटिल भी होगा।

उल्लेखनीय है कि जर्मन सरकार द्वारा लगाया जा रहा यह प्रतिबंध एक कोशिश है जिससे जर्मनी को कट्अर इस्लामी तत्वों के उपद्रवों और गलत हरकतों से बचाया जा सके। जैसा पहले बताया, गत कुछ साल से उस देश में पड़ोसी देशों से प्रवासियों का अनियमित रूप से बेरोकटोक आना जारी रहा है। लेकिन अब इस प्रक्रिया पर जर्मन सरकार ने सख्ती बरती है।

जर्मनी की सरकार ने देश की सभी सड़क सीमाओं पर कड़ा नियंत्रण लगाने का नया आदेश जारी कर दिया है

सरकार के इस कदम पर अधिकांश जर्मनीवासी संतोष व्यक्त करते हुए कह रहे हैं कि यह जरूरी हो गया था, क्योंकि यहां कट्टर इस्लामी तत्व मानवीय मूल्यों की धज्जियां उड़ाते हुए ‘खुले वातावरण’ का गलत फायदा उठाकर वहां के मूल निवासियों का जीना हराम करते जा रहे थे।

जर्मनी में खासतौर पर मध्य पूर्व में ‘युद्ध और गरीबी से तंग’ आ चुके लोग आकर बसते रहे हैं। उस देश में इस दृष्टि से ‘मानवीयता’ दर्शाते हुए उन्हें आने भी दिया गया। लेकिन अब वहां के नागरिक इसे एक शैतानी चाल मानकर इससे चिढ़ने लगे हैं और चाहते हैं कि सरकार ऐसे तत्वों को काबू करे, क्योंकि उन्होंने उनकी रोजमर्रा जिंदगी दूभर बना दी है।

चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ की सरकार अब सार्वजनिक सेवाओं की उपलब्धता और आमजन की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। नैन्सी ने कहा भी कि “हम आंतरिक सुरक्षा को मजबूत कर रहे हैं और बेलगाम प्रवास के खिलाफ़ अपनी नीति सख्त बना रहे हैं।” जर्मनी क्योंकि यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बीचोंबीच स्थित है इसलिए सरकार ने यूरोपीय आयोग और पड़ोसी देशों को अपने इस नए कदम को लेकर सूचित कर दिया है। लेकिन, अभी देखना है कि यूरोपीय आयोग और सदस्य देश इस बारे में क्या फैसला लेते हैं। कारण? यूरोपीय संघ के चार्टर के अनुसार, संघ के किसी भी देश से तोग दूसरे सदस्य देश में जा सकते हैं।

जर्मनी में गत दिनों इस्लामी तत्वों की ओर से हिंसा करने की घटनाओं में एकाएक वृद्धि देखने में आई है। कई स्थानों पर चाकू से मासूम नागरिकों पर घातक हमले बोले गए, जिनमें आरोपी इस्लामी तत्व पाए गए। इससे आव्रजन को लेकर चिंताएं बढ़नी स्वाभाविक थीं।

जिहादी गुट इस्लामिक स्टेट ने गत अगस्त माह में जर्मनी के पश्चिमी शहर सोलिंगन में उस हिसंक हमले की जिम्मेदारी ली थी, जिसमें तीन लोग मारे गए थे। वहां की दक्षिणपंथी पार्टी ने बेलगाम प्रवास के मुद्दे को लेकर जनता को जागरूक करने की कोशिश की थी।

सर्वेक्षण बताते हैं कि ब्रांडेनबर्ग राज्य में लोगों में यह मुद्दा सबसे बड़ी चिंता बना हुआ है। वहां दो सप्ताह बाद चुनाव होने वाले हैं। स्कोल्ज़ और नैन्सी की मध्य-वाम पार्टी सोशल डेमोक्रेट्स पार्टी वहां सरकार पर नियंत्रण बनाए रखने की लड़ाई लड़ रही है। वहां आगामी चुनाव अगले साल के संघीय चुनाव से पहले इस पार्टी की ताकत का परीक्षण माना जा रहा है। जर्मन सेंटर फॉर इंटीग्रेशन एंड माइग्रेशन रिसर्च के मार्कस एंगलर का कहना है कि सरकार का इरादा जर्मनीवासियों और संभावित प्रवासियों को प्रतीकात्मक रूप से यह दिखाना है कि इस राज्य के लोग नहीं चाहते कि प्रवासी लोगों को बेलगाम आने दिया जाए।

आव्रजन के विशेषज्ञों का कहना है कि 2015—2016 के शरणार्थी संकट के दौरान सीरिया जैसे युद्धग्रस्त देशों से भागकर आए दस लाख से अधिक लोगों को इस देश में ‘शरण’ दी गई थी। उसके बाद से ही ऐसे शरणार्थियों के प्रति जर्मनी में विरोध बढ़ रहा था।

8.40 करोड़ की आबादी वाले देश में ‘शरणार्थियों’ का यह संकट अब बर्दाश्त से बाहर हो रहा है। जर्मनी ऊर्जा और आर्थिक संकट से जूझ रहा है। उधर रूस—यूक्रेन युद्ध की वजह से दस लाख से अधिक यूक्रेन शरणार्थियों को यहां शरण दे दी गई। तब से, जर्मन सरकार सख्त निर्वासन नियमों को लेकर विचार कर रही थी।

2021 में अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद आए अनेक अफगानी शरणार्थयों को उनके अपने देश में लौटाना शुरू कर दिया गया है। बर्लिन ने पिछले साल पोलैंड, चेक गणराज्य और स्विटजरलैंड के साथ अपनी सड़क सीमाओं पर सख्त नियंत्रण की घोषणा की थी।

जर्मन सरकार की ओर से बताया गया है कि उक्त देशों के अलावा ऑस्ट्रिया के साथ सटी सीमा पर नियंत्रण ने अक्तूबर 2023 से 30,000 प्रवासियों को वापस किया गया है। जर्मनी की गृहमंत्री का कहना है कि उनका यह नया कदम ‘शरणार्थियों’ के मुद्दे पर यूरोपीय एकजुटता की परीक्षा साबित हो सकता है।

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