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गणेशोत्सव पर विशेष : 10 दिनों तक ही क्यों मनाया जाता है गणेश उत्सव..?

पृथ्वी पर भगवान गणेश की दिव्य उपस्थिति का प्रतीक है गणेश उत्सव

by श्वेता गोयल
Sep 9, 2024, 07:00 am IST
in भारत, संस्कृति
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गणेश उत्सव का सनातन धर्म के लोगों के लिए बहुत खास महत्व है। वैसे तो यह उत्सव पूरे भारत में मनाया जाता है लेकिन विशेष रूप से महाराष्ट्र में मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण हिंदू उत्सवों में से यह एक है। गणेश चतुर्थी, जिसे विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है, बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता भगवान गणेश के जन्म के प्रतीक के रूप में मनाई जाती है। भगवान गणेश को सभी देवी-देवताओं में उच्च स्थान प्राप्त है, इसीलिए किसी भी भगवान अथवा देवी-देवता की पूजा से पहले गणेश जी की उपासना की जाती है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यदि कोई साधक नियमित रूप से गणेश जी की आराधना करता है तो उसके घर-परिवार में सदा सकारात्मकता बनी रहती है और धन की देवी माता लक्ष्मी की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है। गणेश चतुर्थी के दिन लोग भगवान गणेश की मूर्ति को अपने घर में लेकर आते हैं और 10 दिनों तक पूरी श्रद्धा से विधिवत गणपति की पूजा करने के बाद अनंत चतुर्दशी के दिन उनका विसर्जन करके बप्पा को विदा करते हैं। गणेश उत्सव हिंदू चंद्र माह भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी यानी गणेश चतुर्थी के दिन से शुरू होकर शुक्ल पक्ष के 14वें दिन यानी अनंत चतुर्दशी तक मनाया जाता है अर्थात् गणेशोत्सव 10 दिनों तक चलता है। ऐसे में यह जानना दिलचस्प है कि गणेश उत्सव 10 दिनों तक ही क्यों मनाया जाता है?

पौराणिक कथाओं के अनुसार मान्यता है कि वेदव्यास जी ने भगवान गणेश से महाभारत ग्रंथ लिखने की प्रार्थना की थी। वेदव्यास जी के आग्रह पर भगवान गणेश ने बिना रुके लगातार 10 दिनों तक महाभारत ग्रंथ लिखा। 10वें दिन अनंत चतुर्दशी तिथि पर गणेश जी ने महाभारत को लिखकर पूरा किया। इन 10 दिनों में एक ही स्थान पर बैठकर निरंतर लेखन करने के दौरान गणेश जी ने न तो कुछ खाया-पिया और न ही उस जगह से हिले। ऐसे में उनके शरीर पर धूल-मिट्टी जमा हो गई, उनके कपड़े गंदे हो गए। 10वें दिन जब वेदव्यास जी ने देखा तो उन्होंने पाया कि गणेश जी के शरीर का तापमान भी बहुत बढ़ा हुआ था। उसके बाद उन्होंने गणेश जी को सरस्वती नदी में स्नान करवाया और इस तरह पूरी महाभारत लिखने के बाद भगवान गणेश ने 10वें दिन नदी में स्नान किया था। उसी के बाद से गणेश उत्सव का पर्व गणेश चतुर्थी से शुरू होने के बाद लगातार 10 दिनों तक मनाया जाता है और 10वें दिन अनंत चतुर्दशी के अवसर पर गणपति बप्पा की मूर्ति के विसर्जन के साथ ही गणेशोत्सव का समापन होता है।

माना जाता है कि गणेश उत्सव के 10 दिनों के दौरान भगवान गणेश हर साल स्वयं पृथ्वी पर भ्रमण करने के लिए आते हैं। इसी कारण गणेश उत्सव के दौरान अपने घर में भगवान गणेश की मूर्ति को लाना और उसकी विधिपूर्वक पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है। वैसे तो गणेशोत्सव को लगातार 10 दिनों तक मनाए जाने की परंपरा है और अनंत चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है लेकिन ज्योतिषाचार्यों के अनुसार श्रद्धालु केवल एक-डेढ़ दिन से लेकर 3, 5, 7 अथवा 10 दिनों तक के लिए भी बप्पा को घर ला सकते हैं और इसका भी उतना ही शुभ फल प्राप्त होता है, जितना कि अनंत चतुर्थी के दिन बप्पा का विसर्जन करने से मिलता है। एक ओर जहां गणेश चतुर्थी लोगों को एक साथ लाती है, उनमें एकता और भक्ति की भावना को बढ़ावा देती है, वहीं 10 दिनों तक चलने वाला गणेश उत्सव विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को उत्सव में भाग लेने, भगवान गणेश की कहानियों को साझा करने और एकजुटता का जश्न मनाने का अवसर देता है।

गणेशोत्सव के दस दिन आध्यात्मिक विकास की यात्रा का प्रतिनिधित्व करते हैं, जहां लोग अपने मन एवं आत्मा को शुद्ध करने के लिए भक्ति, अनुष्ठान और प्रार्थना में संलग्न होते हैं। इस अवधि को क्रोध, लालच या ईर्ष्या जैसी आंतरिक बाधाओं को दूर करने और ज्ञान एवं शांति को आमंत्रित करने के अवसर के रूप में देखा जाता है। गणेश उत्सव के 10वें दिन यानी अनंत चतुर्दशी को भगवान गणेश की मूर्ति को जल निकाय में विसर्जित किया जाता है। गणपति विसर्जन जन्म और मृत्यु के चक्र को दर्शाता है, जो हमें यह भी स्मरण कराता है कि सभी रूप, चाहे वे कितने भी दिव्य हों, उन्हें उन तत्वों में वापस लौटना ही होगा, जिनसे वे आए थे। वास्तव में गणेश उत्सव कोई सामान्य उत्सव नहीं है बल्कि यह भक्ति, शिक्षा और समुदाय की यात्रा है। गणेश उत्सव के दस दिन हमें आध्यात्मिक विकास के महत्व की याद दिलाते हैं जबकि भगवान गणेश की शिक्षाएं हमें ज्ञान, धैर्य और दृढ़ता से भरा जीवन जीने के लिए प्रेरित करती हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान गणेश ने अधर्म का नाश करने के लिए हर युग में समय-समय पर अवतार लिए, उन्हीं अवतारों के अनुसार उनकी पूजा की जाती है। पुराणों के अनुसार हर युग में असुरी शक्तियों को खत्म करने के लिए गणेश जी ने वक्रतुंड, एकदंत, महोदर, विकट, गजानन, लंबोदर, विघ्नराज, धूम्रवर्ण इत्यादि आठ अलग-अलग नामों के अवतार लिए हैं। उनके ये सभी आठों अवतार मनुष्य के आठ तरह के दोषों (काम, क्रोध, मद, लोभ, ईर्ष्या, मोह, अहंकार और अज्ञान) को दूर करते हैं। कुल मिलाकर, ज्ञान और समृद्धि के हाथी के सिर वाले देवता भगवान गणेश को समर्पित गणेश उत्सव का भारत की सनातन संस्कृति में गहरा सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है। यह दस दिवसीय उत्सव पौराणिक कथाओं, संस्कृति और आध्यात्मिकता से भरपूर है, जो बप्पा के भक्तों के जीवन में उनके आगमन का प्रतीक है, जो उन्हें ज्ञान, समृद्धि और आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

(लेखिका शिक्षिका हैं)

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