चमोली: हिमालय की अधिष्टात्री देवी माँ नंदा की लोकजात यात्रायें धीरे-धीरे अपने-अपने अगले पड़ावों की ओर बढ़ रही है। चारों ओर नंदा के जयकारों से नंदा का लोक गुंजयमान है। वहीं दूसरी हिमालय से एक सुखद खबर मिली है। इस बार उच्च हिमालयी क्षेत्रों में माँ नंदा का प्रिय पुष्प प्रचुर मात्रा में खिला है।
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जानकारी के अनुसार, इस बार हिमालय परिक्षेत्र में बरसों बाद इतनी बड़ी संख्या में ब्रह्मकमल का खिलना वाकई सुखद है। चमोली, रूद्रप्रयाग से लेकर पिथौरागढ़ के उच्च हिमालयी क्षेत्रों रूपकुण्ड, भगुवासा से लेकर बद्रीनाथ-नीलकंठ, चिनाप फूलों की घाटी, हेमकुण्ड, नंदीकुड, सप्तकुंड, छिपलाकेदार में इस बार ब्रह्मकमल 3 हजार से लेकर 5 हजार फीट की ऊचाई पर खिला है, जिससे पर्यावरणविद और प्रकृति प्रेमी बेहद खुश नजर आ रहें हैं। लोगों का मानना है कि कोरोना काल में पर्यावरण की सेहत सुधरी है। बुग्यालों से लेकर ग्लेशियरों की स्थिति सुधरी है। स्थानीय भाषा में ब्रह्मकमल को कौंलु भी कहते हैं।
जन्माष्टमी से लेकर नंदाष्टमी के दौरान पहाड़ में मनाये जाने वाले सैलपाती कौथिग और नंदा अष्टमी कौथिग में माँ नंदा की पूजा इसी दिव्यपुष्प से की जाती है, जबकि पंचकेदारों में भी इन्हीं देवपुष्पों से भगवान शिव की पूजा होती है और श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में भी दिया जाता है। हिमालय की अधिष्टात्री देवी माँ नंदा का प्रिय पुष्प है ब्रह्मकमल। लोकजात में इस पुष्प का प्रसाद सबसे बड़ा प्रसाद माना जाता है।
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ये होता है ब्रह्मकमल!
ब्रह्मकमल उच्च हिमालय में 3000-5000 मीटर की ऊंचाई और काफी कम तापमान में में पाया जाता है। भारत में ब्रह्मकमल की लगभग 61 प्रजातियां पायी जाती हैं, जिनमें से लगभग 58 तो अकेले हिमालयी इलाकों में होती हैं। हिमालय के क्षेत्र को छोड़कर यह दूसरे स्थानों पर हो ही नहीं सकता। ब्रह्मकमल का वानस्पतिक नाम सोसेरिया ओबोवेलाटा है। यह एसटेरेसी वंश का पौधा है। इसका नाम स्वीडन के वैज्ञानिक डी सोसेरिया के नाम पर रखा गया था। ब्रह्मकमल एस्टेरेसी कुल का पौधा है। सूर्यमुखी, गेंदा, गोभी, डहलिया, कुसुम एवं भृंगराज जो इसी कुल के प्रमुख पौधे हैं। ब्रह्मकमल को अलग-अगल जगहों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे उत्तराखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधा-फूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस इसके नाम हैं।
यहाँ पाया जाता है ब्रह्मकमल!
ब्रह्मकमल भारत के हिमाचल, उत्तराखंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, कश्मीर में पाया जाता है। भारत के अलावा यह नेपाल, भूटान, म्यांमार, पाकिस्तान में भी पाया जाता है। हिमाचल में कुल्लू के कुछ इलाकों में उत्तराखंड में यह पिण्डारी, चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ आदि दुर्गम स्थानों पर ही मिलता है।
औषधीय गुणों का है खजाना!
इस फूल के कई औषधीय उपयोग भी किये जाते हैं। इसके राइज़ोम में एन्टिसेप्टिक होता है। जले-कटे में इसका उपयोग किया जाता है। यदि जानवरों को मूत्र संबंधी समस्या हो तो इसके फूल को जौ के आटे में मिलाकर उन्हें पिलाया जाता है। गर्म कपड़ों में डालकर रखने से यह कपड़ों में कीड़ों को नहीं लगने देता है। इस पुष्प का इस्तेमाल सर्दी-ज़ुकाम, हड्डी के दर्द आदि में भी किया जाता है। इस फूल की संगुध इतनी तीव्र होती है कि इल्का सा छू लेने भर से ही यह लम्बे समय तक महसूस की जा सकती है और कभी-कभी इस की महक से मदहोशी सी भी छाने लगती है। इसे सुखाकर कैंसर रोग की दवा के रुप में इस्तेमाल किया जाता है। इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है। साथ ही पुरानी खांसी भी काबू हो जाती है।
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ये है धार्मिक मान्यता!
देवपुष्प-ब्रह्मकमल अर्थात ब्रह्मा का कमल इस फूल की धार्मिक मान्यता भी बहुत हैं। ब्रह्मकमल का अर्थ है ‘ब्रह्मा का कमल’। यह मां नन्दा का प्रिय पुष्प है। इससे बुरी आत्माओं को भगाया जाता है। इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोड़ने के भी सख्त नियम होते हैं जिनका पालन किया जाना अनिवार्य होता है। यह फूल अगस्त के समय में खिलता है और सितंबर-अक्टूबर के समय में इसमें फल बनने लगते हैं। इसका जीवन 5-6 माह का होता है। इस पुष्प की मादक सुगंध का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है जिसने द्रौपदी को इसे पाने के लिए व्याकुल कर दिया था। किवदंति है कि जब भगवान विष्णु हिमालय क्षेत्र में आए तो उन्होंने भोलेनाथ को 1000 ब्रह्म कमल चढ़ाए, जिनमें से एक पुष्प कम हो गया था। तब विष्णु भगवान ने पुष्प के रुप में अपनी एक आंख भोलेनाथ को समर्पित कर दी थी।
तभी से भोलेनाथ का एक नाम कमलेश्वर और विष्णु भगवान का नाम कमल नयन पड़ा। पुष्प के पीछे हुआ था भीम का गर्व चूर जब द्रौपदी ने भीम से हिमालय क्षेत्र से ब्रह्म कमल लाने की जिद्द की तो भीम बदरीकाश्रम पहुंचे। लेकिन बदरीनाथ से तीन किमी पीछे हनुमान चट्टी में हनुमान जी ने भीम को आगे जाने से रोक दिया। हनुमानजी ने अपनी पूंछ को रास्ते में फैला दिया था। जिसे उठाने में भीम असमर्थ रहा। यहीं पर हनुमान ने भीम का गर्व चूर किया था। बाद में भीम हनुमान जी से आज्ञा लेकर ही बदरीकाश्रम से ब्रह्म कमल लेकर गए।
(दिनेश मानसेरा के साथ संजय चौहान की रिपोर्ट )
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