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सालते सवाल, संभलता समाज

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WEB DESK

इस्लामवादी अब इस्लाम से तौबा कर रहे हैं! इसलिए क्योंकि अब बहुत से समझदार उम्र में कदम रख रहे मुस्लिम युवक-युवती वह सब पचा नहीं पा रहे हैं, जो मुल्ला-मौलवी समुदाय के गले उतारते आ रहे हैं। तकनीक और विज्ञान के इस युग में अब वे बातें नई सोच के मुस्लिमों को कुछ बेमानी लगती हैं जो सिर्फ एक किताब को सबकुछ मानने वाले समुदाय ने कई पीढ़ियों से रटी हैं। तथ्य और व्यावहारिकता से दूर-दूर तक भले उसका कोई वास्ता न हो। तिस पर तुर्रा यह कि एक हरफ भी बदला तो ‘इस्लाम खतरे में’ पड़ जाएगा।

किसी एक देश में नहीं दिख रहा है ‘इस्लाम से तौबा’ का यह चलन। और सिर्फ पश्चिमी सभ्यता, संस्कृति के देशों में नहीं दिख रहा है। ‘PEW रिसर्च सेंटर’ की 2020 की रिपोर्ट इस बात की तस्दीक करती है कि फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका जैसे देशों में अनेक ऐसे इस्लामवादी हैं जो कभी पांचों वक्त की नमाज पढ़ते थे, लेकिन जब समझ बढ़ी और तर्क की कसौटी पर चीजों को परखना आया तो उन्हें समझ आया कि उनके मुल्ला-मौलवी समुदाय को सिर्फ बरगलाने और एक तिलस्मी मजहबी भ्रम में भरमाने का ही काम करते आए हैं। उन्होंने जब विज्ञान और खगोल विज्ञान जैसे विषयों के संदर्भ में मजहब की स्पष्टता पर बात करनी चाही, तो धरती को गोल नहीं, चपटी बताने वाले मजहबी चिढ़ गए और उन्हें गुस्ताखी न करने की ‘हिदायतें’ देने लगे।

एक्स-मुस्लिम के मन में चला बवंडर समझा जा सकता है, क्योंकि कट्टरता की पराकाष्ठा करने वाले मजहबी आलिम न खुद को बदलने को तैयार हैं, न समुदाय को बढ़ती दुनिया के साथ बढ़ते देखने को राजी है! और यही वह मानसिकता है जो प्रयागराज में उस कई साल से अवैध रूप से चल रहे मदरसे में रची-बसी दिखी जहां पुलिस को रा.स्व.संघ जैसे राष्ट्रभक्त संगठन के प्रति नफरत उगलती किताब मिली है। यही मदरसा है जहां 100—100 के नकली नोटों की छपाई चल रही थी, क्योंकि हिन्दुओं के सबसे बड़े पर्व कुंभ में हिन्दू तीर्थयात्रियों के बीच उन्हें खपाकर देश को एक बड़ा आर्थिक आघात पहुंचाना था। पुलिस ने जब वहां के मौलवी से इस बारे में पूछा तो उसने ऐसा दिखाया मानो उसे पता ही नहीं था कि पहले तल पर ‘छापाखाना’ चल रहा था।

सोचिए, तालीम के नाम पर यहां बच्चों में देश-समाज के प्रति किस प्रकार का जहर घोला जा रहा होगा। यही वह जहर है जिसके असर से बड़ी संख्या में किशोर उम्र के मुस्लिम लड़के भारत का आघात पहुंचाने के लिए जहां जैसी जरूरत हो, तैयार रहते हैं। पिछले दिनों सोशल मीडिया पर ऐसा वीडियो खूब दिखे थे जिनमें आठ-दस साल के मुस्लिम लड़के रेल पटरियों की फिश प्लेटें उखाड़ते, उन पर कंक्रीट के बड़े ढेले, साइकिल, लोहे की छड़ें रखते दिखाई दिए थे। ये दृश्य हैरान करने वाले थे।

पाकिस्तान के कट्टरपंथी मौलाना फरहतुल्लाह का पिछले दिनों सामने आया 12 मिनट का वीडियो भारत के मुस्लिमों को ‘मजहब की खातिर’ इसी काम को करने का फरमान दे रहा था ताकि रेलगाड़ियां पटरी से उतरें या आपस में टकराएं और बड़ी संख्या में आम लोग इसकी वजह से दुर्घटना के शिकार हों। जरा सोचकर देखिए, जिस देश में 22 हजार रेलगाड़ियों से रोजाना पोने तीन करोड़ लोग सफर करते हैं वहां ऐसी शरारत कितना विध्वंस मचाने की सामर्थ्य रखती थी। गनीमत यह है कि षड्यंत्र सामने आने पर सुरक्षा एजेंसियां और चौकन्नी होकर ऐसे साजिशी तत्वों से निपट रही हैं जो भारत के विकास को गहरी चोट पहुंचाने की फिराक में लगे रहते हैं।

एक विषय और है जो पिछले कुछ समय से देश में तेजी से चर्चा में उठा है और वह है भारत की स्थानीय भाषाओं में कानून की शिक्षा सुलभ होना। इसका आशय यह है कि सर्वोच्च न्यायालय सहित देश की अदालतों का कामकाज यानी मुकदमों की सुनवाई और निर्णय हिन्दी में होने चाहिए। इससे आमजन में न्याय की समझ बढ़ेगी और देश के ऐसे विभिन्न स्थानों से युवा न्यायपालिका के प्रति आकर्षित होंगे जिनका अंग्रेजी में सीमित पठन-पाठन रहा है। यानी अदालतें ‘इलीट’ वर्ग तक ही केन्द्रित न रहें।

न्याय की चर्चा के बाद, एक बात अन्याय और उसे बेशर्मी के साथ करने वालों की। दिसम्बर 1999 का चर्चित कंधार विमान अपहरण आज भी सिहरन पैदा कर देता है। उस कांड में भारत सरकार को जम्मू-कश्मीर से पकड़े तीन दुर्दान्त आतंकवादियों को रिहा करके अफगानिस्तान में कंधार ले जाकर छोड़ना पड़ा था। इस घटना को पिछले दिनों एक वेबसीरीज ‘आईसी 814:कंधार हाईजैक’ नाम से नेटफ्लिक्स ने प्रदर्शित किया। दर्शक यह देखकर ठगे रह गए कि उस कांड के असली इस्लामी आतंकवादियों के स्थान पर वेबसीरीज में हिन्दू दिखाया गया है।

इतना नहीं नहीं, उन्हें बड़ा ‘दयावान’ और ‘बड़े दिल वाला’ दिखाया गया है। यानी निर्देशक अनुभव सिन्हा ने उसे इस्लामी आतंक से दूर-दूर तक जुड़ा न दिखाकर तथ्यों को साजिश के तहत तोड़-मरोड़ दिया है। भारत सरकार ने नेटफ्लिक्स की अधिकारी को तलब करके आवश्यक सुधार के निर्देश दिए हैं। देखना है वे सुधार कहां तक किए जाते हैं। लेकिन इस प्रकरण ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि फिल्मजगत में ऐसे तत्व भरे पड़े हैं जो हिन्दुओं के मान-बिन्दुओं को चोट पहुंचाने में आनंद लेते हैं और नक्सली-जिहादी एजेंडे को मासूम दर्शकों के सामने बड़े छुपे तरीके से परोसते हैं।

गणेशोत्सव के उल्लास में डूबा देश ऐसे सब विषयों के प्रति भी सावधान रहते हुए उत्सवों को उत्साह से मनाए, इस दृष्टि से इस बार पाञ्चजन्य के अंक में उपरोक्त बिन्दुओं को समेटे तथ्यात्मक आलेख और रिपोर्ट समाहित हैं। —सम्पादक

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