पेरिस में चल रहे पैरालंपिक खेलों में भारत 5 स्वर्ण पदकों के साथ 25 पदक का आंकड़ा छू चुका है। भारतीय प्रदर्शन को 4 सितंबर को पैरालंपिक में उस समय चार चांद लग गए, जब ‘क्लब थ्रो’ इवेंट में भारत के पैरा-एथलीटों ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए स्वर्ण और रजत दोनों ही पदक अपने नाम किए। भारत को पांचवां स्वर्ण पदक दिलाया ‘पुरूष एफ 51 क्लब थ्रो’ स्पर्धा में हरियाणा के धर्मबीर ने, जिन्होंने एशियाई रिकॉर्ड को ध्वस्त करते हुए इस स्पर्धा का स्वर्ण पदक अपने नाम किया। धर्मबीर के स्वर्ण पदक के साथ ही भारत ने टोक्यो में हासिल किए गए अपने सर्वश्रेष्ठ पांच स्वर्ण पदकों की भी बराबरी कर ली। इसी स्पर्धा में भारत के ही प्रणव सूरमा ने रजत पदक हासिल करते हुए पैरालंपिक की इस स्पर्धा में भारत का दबदबा बरकरार रखा। पैरालंपिक में एफ 51 क्लब थ्रो स्पर्धा उन खिलाड़ियों के लिए है, जिनके धड़, पैर और हाथों में मूवमेंट बहुत ज्यादा प्रभावित होती है। इस स्पर्धा में सभी प्रतियोगी बैठे-बैठे प्रतिस्पर्धा करते हैं और शक्ति उत्पन्न करने के लिए अपने कंधों और बांहों पर ही निर्भर रहते हैं।
‘क्लब थ्रो’ एक ऐसा इवेंट है, जो ‘हैमर थ्रो’ का पैरा-समतुल्य है। इसमें लकड़ी के क्लब को जितना संभव हो सके, उतना दूर फैंकना होता है। विश्व चैंपियनशिप के कांस्य पदक विजेता धर्मबीर के शुरुआती चार प्रयास हालांकि फाउल रहे थे लेकिन अपने पांचवें प्रयास में उन्होंने क्लब को 34.92 मीटर की दूरी तक फैंककर मौजूदा विश्व चैंपियन और दो बार के पैरालंपिक स्वर्ण पदक विजेता सर्बिया के फिलिप ग्राओवाक को पछाड़ते हुए गोल्ड पर कब्जा किया। फिलिप ग्राओवाक क्लब को 34.18 मीटर दूर फैंककर कांस्य ही जीत सके जबकि अपने पहले ही प्रयास में 34.59 मीटर का थ्रो करते हुए रजत जीता हरियाणा के ही 29 वर्षीय प्रणव सूरमा ने, यानी इस स्पर्धा में शीर्ष दोनों स्थानों पर भारत का ही कब्जा रहा और भारत ने इस स्पर्धा में एक नया इतिहास रच दिया। पदक जीतने के साथ धर्मबीर पेरिस पैरालंपिक में गोल्ड जीतने वाले पांचवें भारतीय पैरा-एथलीट जबकि प्रणव सूरमा पेरिस में भारत के नौवें रजत पदक विजेता बन गए।
धर्मबीर ने 2014 में अमित कुमार सरोहा के मार्गदर्शन में इस खेल को अपनाया था। हालांकि 39 वर्षीय अमित कुमार सरोहा भी पेरिस में पुरुषों की क्लब थ्रो एफ 51 स्पर्धा में भाग ले रहे थे लेकिन वह केवल 23.96 मीटर का सर्वश्रेष्ठ थ्रो ही कर पाए और 10 प्रतिभागियों में अंतिम स्थान पर रहे। अमित ने पहली बार 2012 में लंदन में पुरुषों की डिस्कस थ्रो एफ 51 स्पर्धा में पैरालंपिक में पदार्पण किया था, उसके बाद उन्होंने 2016 में रियो और 2021 में टोक्यो पैरालंपिक में पुरुषों की क्लब थ्रो एफ 51 स्पर्धा में देश का प्रतिनिधित्व किया। धर्मबीर भी रियो तथा टोक्यो पैरालंपिक में हिस्सा ले चुके हैं किन्तु वे उनमें से किसी भी पैरालंपिक में कोई पदक नहीं जीत सके थे लेकिन पेरिस में स्वर्ण पदक जीतने के साथ-साथ एशियाई रिकॉर्ड को भी तोड़कर उन्होंने एक अविस्मरणीय इतिहास रच डाला।
हरियाणा के सोनीपत के एक गांव के रहने वाले 35 साल के धर्मबीर को वैसे तो बचपन से ही खेलने का शौक था लेकिन तीन बहनों का इकलौता भाई होने के कारण परिवार ने उन्हें घर से बाहर जाकर खेलने की अनुमति कभी नहीं दी। एमए की पढ़ाई कर रहे धर्मबीर 6 जून 2012 को अपने कुछ दोस्तों के साथ गांव में ही नहर में नहाने के लिए गए और जैसे ही उन्होंने नहाने के लिए नहर में छलांग लगाई, जलस्तर कम होने से उनकी गर्दन सीधी जमीन से जा टकराई। उस भयानक हादसे में उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई और कमर के नीचे शरीर ने काम करना बंद कर दिया। उसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और दिल्ली में इलाज कराने के बाद 6 महीने गुरुग्राम में आत्मनिर्भर बनने का प्रशिक्षण लिया। परिवार वाले उन्हें खेल से दूर रखना चाहते थे लेकिन उस हादसे के बाद भी धर्मबीर का मोह खेलों के प्रति रत्ती भर भी कम नहीं हुआ बल्कि उन्होंने स्वयं को मानसिक रूप से इस कदर तैयार किया कि आज हर कोई उनकी काबिलियत का लोहा मान रहा है।
पैरालंपिक में मिली स्वर्णिम जीत पर धर्मबीर की मां और पत्नी का कहना है कि ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने के लिए धर्मवीर दिन-रात मेहनत कर रहा था और अपने गुरु अमित सरोहा से लगातार अभ्यास की ट्रेनिंग ले रहा था। 2018 के एशियाई खेलों में धर्मबीर ने रजत और उनके गुरू अमित ने स्वर्ण पदक जीता और अब धर्मवीर ने पैरालंपिक में गोल्ड जीतकर अपने गुरु अमित का ही सपना पूरा किया है।
दरअसल पैरा खिलाड़ी अमित कुमार सरोहा ने ही उन्हें पैरा खेलों से जोड़ा था, जिसके बाद इन खेलों ने उनके जीवन को एक नई दिशा प्रदान की। 2016 रियो पैरालंपिक के लिए क्वालीफाई करने के बाद से धर्मबीर भारत के लिए कई पदक जीत चुके हैं। उन्होंने 2022 की शुरुआत में हांग्जो में एशियाई पैरा खेलों में रजत पदक जीता था। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए 2022 में उन्हें हरियाणा सरकार द्वारा दिए जाने वाले सर्वोच्च खेल सम्मान ‘भीम पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया जा चुका है।
जहां तक रजत पदक जीतने वाले प्रणव सूरमा की बात है तो 1994 में हरियाणा की औद्योगिक नगरी फरीदाबाद में जन्मे प्रणव सीए बनना चाहते थे लेकिन नियति को शायद कुछ और ही मंजूर था। 16 वर्ष की आयु में वर्ष 2011 में एक दिन अचानक एक परिचित के घर का छज्जा उनके ऊपर गिर गया और उस घटना में उनकी रीढ़ की हड्डी पर इतनी गंभीर चोट पहुंची कि हाथ-पैरों ने काम करना बंद कर दिया। काफी समय तक चले इलाज के बाद उनकी हालत में कुछ सुधार हुआ और उनके शरीर ने कुछ काम करना शुरू किया। स्थिति थोड़ी बेहतर हुई तो जिंदगी को वापस पटरी पर लाने के उद्देश्य से प्रणव ने कुछ ऐसी करने की ठानी, जो पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन सके। आखिरकार परिवार के सहयोग से मानसिक दबाव से बाहर निकलते हुए उन्होंने अपने दृढ़ संकल्प व कड़ी मेहनत से विश्व में अपनी अलग पहचान बनाने में सफलता हासिल की और 4 सितंबर को वह मुकाम भी हासिल कर लिया, जो समस्त देशवासियों के लिए प्रेरणादायी बन गया।
हादसे के बाद के 14 वर्षों में प्रणव ने एक लंबा और प्रेरणादायी सफर तय किया। इस दौरान उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से एम.कॉम की और 2020 में बैंक ऑफ बड़ौदा में सहायक प्रबंधक के तौर पर नौकरी शुरू की। खेलों में क्लब थ्रो से पहले वह क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल और बास्केटबॉल इत्यादि में भी हाथ आजमा चुके थे लेकिन जब उन्हें 2018 में कॉलेज खत्म होने के बाद पैरा खेलों के बारे में पता चला तो उन्होंने क्लब थ्रो में ही कुछ विशेष कर गुजरने का निश्चय किया और अपने उपनाम ‘सूरमा’ के अनुरूप ही स्वयं में सूरमाओं जैसा जज्बा दिखाया। पैरालंपिक में मिला रजत प्रणव का पहला पैरालंपिक पदक है लेकिन इससे पहले भी वे कई अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं। उन्होंने इसके पहले 2023 में सर्बिया ओपन चैंपियनशिप में गोल्ड जीता था और वह 2023 के एशियन पैरा खेलों में भी चैंपियन रह चुके हैं। इसके अलावा ट्यूनिश ग्रैंड प्रिक्स में भी रजत पदक हासिल कर चुके हैं।
पैरालंपिक में रजत पदक जीतने के बाद प्रणव का देश के युवाओं से अपील करते हुए कहना था कि शारीरिक कमजोरियों को अपने विकास में बाधा नहीं बनने दें बल्कि उसे चुनौती मानकर अपने लक्ष्य को पाने की दिशा में जी-जान लगाकर कड़ी मेहनत करें। सफलता हासिल करने में थोड़ा समय अवश्य लगता है लेकिन एक दिन सफलता जरूर मिलती है। वहीं, स्वर्ण पदक जीतने के बाद धर्मबीर का कहना था कि वह बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं क्योंकि किसी भी खिलाड़ी के लिए पैरालंपिक में पदक जीतना एक सपना होता है और उनका सपना इस पदक के साथ ही सच हो गया। उनके मुताबिक उन्हें उम्मीद है कि अगली पीढ़ी उन्हें देखेगी और इस खेल में शामिल होगी। निश्चित रूप से धर्मबीर और प्रणव की जीत का सफर देश के तमाम युवाओं के लिए बहुत प्रेरणादायी है।
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