देहरादून: गंगा नगरी हरिद्वार, हिंदुओं की धार्मिक आस्था के सबसे बड़े केंद्र के रूप में जाना जाता रहा है, गंगा किनारे ऋषि देव सन्यासियो मठों की इस पावन भूमि को योजनाबद्ध तरीके अब मुस्लिम आबादी ने घेर लिया है। खास बात ये कि सनातन धर्म की रक्षा के लिए यहां स्थापित अखाड़े मठ यहां है और वे भी इस बदलते डेमोग्रेफी चेंज पर मौन साधे हुए है।
हरिद्वार के ज्वालापुर में मस्जिद का निर्माण पिछले दो माह से चल रहा है, यहां कुंभ क्षेत्र में आधा दर्जन मजारें बना दी गई है जो कि धीरे-धीरे मस्जिद, नमाज स्थल का स्वरूप ले रही है। हरिद्वार कुंभ क्षेत्र को छोड़ कर मुस्लिम आबादी ने पूरे हरिद्वार जिले को अपनी चपेट में ले लिया है। खबर है कि मुस्लिम संगठन ये बड़ी योजना को अंजाम दे रहे हैं और इस गंगा सनातन नगरी को मुस्लिम आबादी की बसावट कराई जा रही है।
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मिली जानकारी के अनुसार, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, हरिद्वार की मुस्लिम आबादी हर दस साल में 40 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है। ये आंकड़े चौकाने वाले है और पूरे जिले की डेमोग्राफी का स्वरूप बदल गया है। हरिद्वार जिले की कुल आबादी में से 38 फीसदी के करीब मुस्लिम हो चुकी है। जो राज्य बनने से पूर्व दस फीसदी भी नहीं थी। यूपी से लगते इस जिले में यूपी के लोग उत्तराखंड में आकर बस गए है।
हरिद्वार हिन्दू सनातन धर्म का सबसे बड़े धार्मिक केंद्र के रूप में जाना जाता है। हिंदू धर्म के सभी मठ, सभी अखाड़े, आध्यात्मिक केंद्र हरिद्वार के कुंभ क्षेत्र में है जहां से सनातन धार्मिक गतिविधियों का संचालन होता आया है। पितृ अस्थियों के विसर्जन से लेकर जनेऊ संस्कार पावन गंगा नदी के किनारे होते है। सनातन धर्म की आस्था का प्रतीक कुंभ मेला जो कि दुनिया का सबसे बड़ा धर्म मेला यही होता है और हर साल चार करोड़ से ज्यादा कांवड़ श्रद्धालु यहां से गंगा जल लेने आते हैं। हिन्दू धर्म की आस्था और विश्वास की इस नगरी के आसपास मुस्लिम आबादी तेज़ी से बढ़ रही है। एक तरह से कहे कि पूरे हरिद्वार शहर को मुस्लिम आबादी ने घेर लिया है और अब अवैध रूप से गंगा किनारे वन विभाग और कैनाल की जमीन पर इनकी बसावट हो रही है।
क्या वजहें है कि हरिद्वार जिले में 2011 की जनसंख्या के मुताबिक, मुस्लिम आबादी 2001 में 478000 (अनुमानित) से बढ़ कर 648119 हो गयी थी, यानी जिले की आबादी पर 34.2 फीसदी का हिस्सा मुस्लिम आबादी का था। प्रदेश में मुस्लिम आबादी 11.19 प्रतिशत से बढ़ कर 13.9 प्रतिशत हो गयी थी। 2020 के अनुमान के अनुसार, हरिद्वार की मुस्लिम आबादी 38 प्रतिशत के आसपास हो गयी है। हरिद्वार की आबादी इस साल के अंत तक 22 लाख के करीब हो जाएगी। जिसमें मुस्लिम आबादी आठ लाख से ज्यादा होने की बात कही जा रही है, जिसकी वजह से सामाजिक राजनीतिक परिवर्तन होने शुरू हो गए है। सवाल ये है कि आखिर कार क्यों और कैसे ये आबादी बढ़ती जा रही है?
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हरिद्वार जिले के साथ यूपी के बिजनौर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, सहारनपुर जिला लगते हैं इन जिलों में मुस्लिम आबादी बड़ी संख्या में है, उत्तराखंड बनते ही हरिद्वार जिले में उद्योगों का जाल बिछा जिसमें लेबर सप्लाई करने वाले ठेकेदारों ने काम की तलाश में आये यूपी के जिलों के मुस्लिमों की भर्ती बड़े पैमाने में कर दी। बताया जाता है कि इसके पीछे जमीयत उलेमा ए हिंद और उसकी सहायक दारुल उलूम देवबंद, मुस्लिम सेवा संगठन योजनाबद्ध तरीके से काम कर रहा है। जब राज्य बना पहले चुनाव के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी सरकार ने यहां के उद्योगों में सत्तर फीसदी रोजगार स्थानीय लोगों को दिए जाने का फैसला कैबिनेट और विधान सभा में लिया था, उद्योगों के लेबर ठेकेदारों ने जो कि ज्यादातर मुस्लिम थे। उन्होंने योजना बद्ध तरीके से अपनी मुस्लिम लेबर को स्थानीय निवासी बना दिया और सरकारी आदेशों की खाना पूर्ति कर दी।
इसके अलावा गंगा और उसकी सहायक नदियों में खनन के काम में पश्चिम यूपी, बिहार, असम से आये मुस्लिम मजदूर यहां आकर नदी किनारे अवैध रूप बसते चले गए जो कि अब यहां की वोटर लिस्ट में दर्ज हो गए, स्थानीय कांग्रेसी नेताओं विधायको ने इस काम को बखूबी अंजाम दिया। हरिद्वार में हर साल करोड़ों लोग कांवड़ लेने आते हैं। कांवड़ की सामानों का उत्पादन में पहले पड़ोसी राज्य यूपी के जिलो का दबदबा था, अब इन्हें बनाने वाले यहां शिफ्ट हो गये। हरिद्वार से लेकर देहरादून ऋषिकेश में पिछले बीस सालों में आबादी का विस्तार हुआ। इमारतें बनाने वाले मजदूर बढ़ई फिटर का धंधा करने वाले कुम्भ क्षेत्र के बाहर आकर बसने लगे।
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हरिद्वार के ज्वालापुर क्षेत्र के बीजेपी विधायक रहे सुरेश राठौर ने अक्टूबर 2019 में सार्वजनिक रूप से ये बयान दिया था कि हरिद्वार गंगा किनारे 67 किमी तक मुस्लिम आबादी बढ़ती जारही है जिसकी पड़ताल होनी चाहिए कि कौन लोग यहां आकर बस गए? पिछले साल विश्व हिंदू परिषद ने भी उत्तराखंड सरकार का ध्यान इस ओर दिलाया था, विहिप कहती है कि हरिद्वार को एक साजिश के तहत घेरा जा रहा है, अवैध बस्तियों को क्यों पनपने दिया जा रहा है?
पिछले साल विधान सभा चुनाव में बीजेपी के कट्टर हिंदू प्रत्याशी स्वामी यतिश्वेरा नंद जी चुनाव हार कैसे गए? हरिद्वार जिले में बीजेपी के प्रत्याशी सुरेश राठौर ज्वालापुर से, संजय गुप्ता लक्सर से कांग्रेस प्रत्याशियों से हार गए थे। जबकि, खानपुर में भी बीजेपी हार गई और यहां निर्दलीय उमेश कुमार चुनाव जीते और विश्लेषक यहीं मानते है कि बीजेपी यहां अंदरूनी कलह से नहीं बल्कि, बढ़ती मुस्लिम वोटर संख्या से हारी। रुड़की विधायक प्रदीप बत्रा अपना 2018 चुनाव बारह हजार से ज्यादा वोट से जीते थे जबकि 2023 में वो 2200 से ही जीते, ऐसे ही अन्य विधान सभा क्षेत्रों में बीजेपी लगातार पिछड़ रही है और इसकी वजह यही है कि यहां मुस्लिम आबादी उनके वोट निर्णायक हो गए है।
हरिद्वार में मुस्लिम आबादी ज्यादातर शहर के बाहर गंगा किनारे, रेलवे की ज़मीन, एनपीआर अवैध कब्ज़ों में बसी हुई है। कांग्रेस के शासन काल में इसमें भारी वृद्वि होती रही, लेकिन बीजेपी की सरकार आने पर इसमें कोई कमी नहीं आई बल्कि इनके आने और बसने का सिलसिला जारी रहा, यहां तक कहा गया कि इनमें म्यमार से भगाए गए मुस्लिम रुहेलाओं ने भी कब्ज़े जमाये हुए है। कांग्रेस से जुड़े नेता इनका संरक्षण करते आये है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत हरिद्वार से सांसद का चुनाव लड़ते रहे है उनके दौर में अवैध बस्तियों को नियमित करने का खेल भी चला। कांग्रेस ने पंजाब और हरियाणा में अपने शासन में ऐसे जिले बनाये जो आज मुस्लिम बाहुल्य हो चुके हैं। वैसे ही हालात कुछ सालों बाद हिन्दू तीर्थ नगरी हरिद्वार जिले के भी हो जाएंगे और ये हालात चिंताजनक ही कहे जा सकते है।
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हरिद्वार के कुंभ क्षेत्र से बाहर आते ही राष्ट्रीय राजमार्ग से दोनों तरफ मस्जिदें ऊंची मीनारें दिखाई देने लगी है, जबकि कुछ साल पहले ऐसा नहीं था, कुंभ क्षेत्र में बाजार हाट लगाने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग कई बार खुले में नमाज पढ़ते दिखाए दिए जिन पर प्रशासन को कारवाई करनी पड़ी है।
हरिद्वार में सनातन धर्म रक्षक के अखाड़े और देश के सभी प्रमुख साधु संतों के बड़े-बड़े आश्रम है मठ है, इसके बावजूद हरिद्वार जिले में इस्लामिक हरी चादर कैसे बिछती चली गई? ये बड़ा सवाल है। साधु संत कभी-कभी इस बारे में बयान देकर चिंता तो करते है, लेकिन धरातल पर उनके द्वारा कार्य किए जाने पर खामोशी ही दिखलाई देती है।
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