एक महिला हैं। अमेरिका में रहती हैं। छुट्टियों में घर आई हुई थीं। बातों-बातों में बताने लगीं कि अमेरिका में गरीब मजदूर वर्ग मैकडोनाल्ड, केएफसी, और पिज्जा हट का बर्गर, पिज्जा और चिकेन खता है।
अमेरिका और यूरोप के रईस और करोड़पति ताजी सब्जियां उबाल कर खाते हैं। ताजे गुंथे आटे की गर्मागर्म रोटी खाना तो लग्जरी माना जाता है। ताजे फलों और सब्जियों का सलाद तो वहां भाग्यशाली लोगों को ही नसीब होता है। ताजी हरी पत्तेदार सब्जियां अमीर लोग ही खरीद पाते हैं।
गरीब डिब्बाबंद खाना खाते हैं। वे हफ्ते भर का राशन अपने तहखानों में रखे फ्रीजर में रख लेते हैं और उसी को माइक्रोवेव ओवन में गर्म कर-कर के खाते रहते हैं।
आजकल भारतीय शहरों के नवधनाढ्य अपने बच्चों का जन्मदिन मैकडोनाल्ड में मनाते हैं। उधर, अमेरिका में ठीक-ठाक सा कोई भी मध्यम वर्गीय व्यक्ति मैकडोनाल्ड में अपने बच्चे का जन्मदिन मनाने के बारे में सोच भी नहीं सकता। वे सोचते हैं, लोग क्या सोचेंगे? इतने बुरे दिन आ गए? इतनी गरीबी आ गई कि अब बच्चों का जन्मदिन मैकडोनाल्ड में मनाना पड़ रहा है!
दूसरी ओर, भारत का गरीब से गरीब आदमी भी ताजी सब्जी, ताजी उबली हुई दाल-भात खाता है। ताजा खीरा-ककड़ी खाता है। लेकिन हमारे दिलों-दिमाग पर गुलामी की मानसिकता किस कदर तारी है, इसी से समझ लीजिए कि यूरोप और अमेरिका हमारी तरह भोजन खाने के लिए तरस रहे हैं। और हम हैं कि फ्रिज में रखे बासी डिब्बाबंद खाद्य खाने के लिए तरस रहे हैं।
अमेरिका में जो विलासिता की वस्तु मानी जाती है, वह हमें सहज उपलब्ध है। लेकिन उसे छोड़कर हम उनकी दरिद्रता अपनाने के लिए मरे जा रहे हैं। ताजे फलों-सब्जियों के भाव फसल चक्र और मौसम के हिसाब से बढ़ते-घटते बढ़ते रहते हैं। इसके विपरीत डिब्बाबंद खाद्य के दाम न केवल साल भर स्थिर रहते हैं, बल्कि समय के साथ इनके दाम भी कम होते जाते हैं। जैसे-जैसे इनकी एक्सपायरी डेट नजदीक आती है, डिब्बाबंद भोजन इतना सस्ता होता जाता है कि एक समय ऐसा भी आता है कि इसे स्टोर के बाहर रख दिया जाता है। लो भाई ले जाओ, मुफ्त में। इसलिए अमेरिका में ऐसे स्टोर के बाहर हर रात 11 बजे सैकड़ों लोग एक्सपायरी डेट वाले भोजन के इंतजार में खड़े रहते हैं।
लेकिन 140 करोड़ लोगों की विशाल जनसंख्या वाले हमारे देश के लोग आज तक किसी तरह ताजी फल-सब्जी और भोजन ही खाते आए हैं।
ताजे भोजन की उपलब्धता का भी एक चक्र होता है। ताजा भोजन भी समय के साथ महंगा और सस्ता होता रहता है। आजकल समाचार माध्यमों में टमाटर और हरी सब्जियों की कीमतों को लेकर जो चिल्ल-पों मची हुई है, वह एक गुलाम कौम का विलाप है। जो अपनी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक विरासत को भूल कर अपनी गुलामी पर विलाप कर रही है।
भारत के लोग बहुत तेजी से ताजे भोजन की समृद्ध परंपरा को त्याग कर डिब्बाबंद भोजन की दरिद्रता की ओर अग्रसर हैं।
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