भारतीय पैरा-बैडमिंटन के चमकते सितारे सुहास यथिराज ने पेरिस पैरालिंपिक 2024 में अपनी अद्वितीय प्रतिभा और कड़ी मेहनत से भारत को गौरवान्वित किया है। उनकी यात्रा सिर्फ खेल के मैदान तक ही सीमित नहीं है, बल्कि प्रेरणा और समर्पण की कहानी भी है।कर्नाटक के शिमोगा में जन्मे सुहास का जीवन जन्म से ही एक शारीरिक चुनौती से भरा था, क्योंकि उन्हें जन्मजात पैर की समस्या थी। हालांकि, इन कठिनाइयों ने उन्हें कभी भी अपने सपनों को पूरा करने से नहीं रोका।
शिक्षा और प्रारंभिक संघर्ष
सुहास ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा के दौरान ही यह साबित कर दिया कि वह किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं। उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, जहां उनकी मेहनत और समर्पण ने उन्हें उत्कृष्टता की ओर अग्रसर किया। उनकी शिक्षा और खेल के प्रति प्रेम का आदान-प्रदान उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा था।
बैडमिंटन के प्रति प्रेम और परिवार का समर्थन
बचपन से ही सुहास बैडमिंटन के शौक़ीन थे और उनका परिवार हमेशा उनका समर्थन करता था। उनके परिवार ने कभी भी उन्हें किसी खेल को खेलने से नहीं रोका, बल्कि हमेशा उनके सपनों को साकार करने के लिए प्रेरित किया। यह समर्थन और प्रेम ही उनके खेल करियर की नींव बने।
सिविल सेवा और जीवन में मोड़
2005 में अपने पिता की मृत्यु के बाद, सुहास का जीवन एक नया मोड़ ले लिया। इस व्यक्तिगत दुख ने उन्हें सिविल सेवा की ओर प्रेरित किया, और उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास कर 2007 बैच के आईएएस अधिकारी के रूप में कार्यभार संभाला। आजमगढ़ में डीएम के रूप में कार्य करते हुए, उन्होंने बैडमिंटन को प्रोफेशनली खेलना शुरू किया, जहां उन्होंने अपनी मेहनत और समर्पण से खेल के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों को छुआ। सुहास पैरालिंपिक में दूसरी बार पदक जीतने में सफल रहे, और उन्हें 2021 में पैरा बैडमिंटन में उनके असाधारण योगदान के लिए अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
पैरालिंपिक में सफलता
उनकी अथक मेहनत और खेल के प्रति प्यार ने उन्हें दूसरी बार पैरालिंपिक में पदक जीतने में सफलता दिलाई। इस उपलब्धि ने न केवल उन्हें बल्कि पूरे देश को गर्वित किया। सुहास की यह सफलता इस बात का प्रमाण है कि अगर इरादा मजबूत हो और समर्पण सच्चा हो, तो किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है।
टिप्पणियाँ