पेरिस ओलंपिक में भारत भले ही इस बार एक भी स्वर्ण पदक जीतने में सफल नहीं हो पाया, लेकिन महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल शूटिंग में एसएच1 स्टैंडिंग में अवनि लेखरा द्वारा गोल्ड जीतने के बाद पेरिस पैरालंपिक में भारत के लिए दूसरा स्वर्ण पदक जीतकर बैडमिंटन खिलाड़ी नितेश कुमार ने देश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है। 2 सितम्बर को नितेश कुमार ने पेरिस पैरालिंपिक में इंग्लैंड के डेनियल बेथेल को हराकर पुरूष एकल एसएल3 बैडमिंटन स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतकर भारत को खुशियों के वो अनमोल पल प्रदान किए, जिनके लिए भारत ओलंपिक में तरसता रह गया था।
एसएल3 श्रेणी की स्पर्धा निचले अंग की गंभीर विकलांगता वाले उन खिलाड़ियों के लिए वर्गीकृत है, जिनके शरीर के एक तरफ, दोनों पैरों में या अंग की अनुपस्थिति के कारण मध्यम गतिशीलता की चुनौतियां होती हैं। ये एथलीट आधी चौड़ाई वाले कोर्ट पर खड़े होकर प्रतिस्पर्धा करते हैं, जहां उनकी हरकत सीमित हो सकती है लेकिन फिर भी उनके पास शॉट लगाने की पूरी क्षमता होती है। एसएल3 में आधी चौड़ाई वाले कोर्ट पर बैंडमिंटन खेला जाता है।
इसे भी पढ़ें: राष्ट्रीय ओपन एथलेटिक्स चैंपियनशिप: विथ्या रामराज ने पीटी उषा का 39 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ा
30 दिसंबर 1994 को राजस्थान के चूरू जिले की राजगढ़ तहसील के बास किरतन गांव में जन्मे हरियाणा के 29 वर्षीय बैंडमिंटन खिलाड़ी नितेश ने कमाल की प्रतिभा और अविश्वसनीय लचीलेपन का प्रदर्शन करते हुए टोक्यो पैरालंपिक के रजत पदक विजेता बेथेल को एक घंटा 20 मिनट तक चले बेहद रोमांचक मुकाबले में 21-14, 18-21, 23-21 से हराकर स्वर्ण पदक अपने नाम किया। पूरे मैच के दौरान पैरा-बैडमिंटन एथलीट नितेश जबरदस्त लय में दिखे और आखिरकार बेथेल को हराकर पैरालंपिक में भारत के खाते में बड़ी जीत दर्ज करने में सफल रहे। नितेश के तीखे रिवर्स हिट, नाजुक ड्रॉप शॉट और शानदार नेट प्ले ने बेथेल को पूरे मैच में थकाये रखा। इस स्वर्णिम जीत के साथ ही नितेश पैरालंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले तीसरे भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी बन गए हैं।
तीन साल पहले टोक्यो पैरालंपिक में पैरा-बैडमिंटन का डेब्यू हुआ था और तब प्रमोद भगत ने एसएल3 स्पर्धा में ही स्वर्ण पदक जीता था जबकि कृष्णा नागर भी टोक्यो पैरालंपिक में एसएच6 श्रेणी में गोल्ड जीतने में कामयाब रहे थे। अपने अविश्वसनीय कौशल और दृढ़ता के लिए जाने जाने वाले नितेश कुमार के लिए यह पदक इसीलिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि पैरालंपिक का यह मुकाबला दुनिया के दो सर्वश्रेष्ठ माने जाने वाले पैरा-बैडमिंटन खिलाड़ियों के बीच था और दो शीर्ष वरीयता प्राप्त खिलाड़ी स्वर्ण पदक के लिए भिड़े थे। पैरालंपिक खेलों में नितेश का यह पहला स्वर्ण पदक है।
हालांकि, पैरालंपिक जैसी दुनिया की सबसे बड़ी खेल प्रतियोगिता में नितेश का स्वर्ण पदक जीतने तक का सफर शुरू से ही कठिन चुनौतियों से भरा रहा है। एक नौसेना अधिकारी के बेटे नितेश का कभी अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए सुरक्षा बल में एक अधिकारी के रूप में शामिल होने का ही सपना था, लेकिन 2009 में विशाखापत्तनम में हुई एक रेल दुर्घटना ने उनके तमाम सपनों को चकनाचूर कर दिया। उस रेल दुर्घटना में नितेश ने अपना बायां पैर हमेशा के लिए खो दिया था, लेकिन जिंदगी को झकझोर देने वाले उस हृदयविदारक हादसे ने भी नितेश के हौंसलों को नहीं टूटने दिया। दुर्घटना के बाद लंबे समय तक बिस्तर पर पड़े रहने के बाद उन्होंने कॉलेज में पढ़ाई के दौरान खेलों में कैरियर बनाने का निश्चय किया। पुणे में कृत्रिम अंग केंद्र की यात्रा के दौरान जब उन्होंने युद्ध के मैदान में घायल हुए सैनिकों को अपनी गंभीर चोटों के बावजूद अपनी सीमाओं से आगे बढ़ते देखा तो उनके मन में चुनौतियों से निपटने का दृढ़ संकल्प जागा और उच्च शिक्षा हासिल करने का निर्णय लिया। 2013 में उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी में दाखिला लिया। आईआईटी मंडी से इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री के साथ ही उन्होंने शिक्षा और खेल में उत्कृष्टता हासिल की। संस्थान में अपने खाली समय के दौरान उन्होंने बैडमिंटन में अपनी रूचि विकसित की और पैराएथलीट बनने का निर्णय लिया।
पैरा-बैडमिंटन में नितेश के कैरियर की शुरूआत 2016 में हुई, जब उन्होंने हरियाणा टीम के हिस्से के रूप में पैरा नेशनल चैंपियनशिप में भाग लिया और कांस्य पदक जीतने में सफल हुए। 2017 में नितेश ने आयरिश पैरा-बैडमिंटन इंटरनेशनल में अपना पहला अंतरराष्ट्रीय खिताब जीता। उसके बाद उन्होंने बीडब्ल्यूएफ पैरा-बैडमिंटन वर्ल्ड सर्किट और एशियाई पैरा गेम्स सहित कई अंतरराष्ट्रीय खिताब जीते। 2019 में उन्होंने खेल और युवा मामलों के विभाग के लिए वरिष्ठ खेल कोच के रूप में काम करना शुरू किया, साथ ही अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भाग लेना भी जारी रखा। नितेश की घरेलू सफलता का शिखर 2020 के राष्ट्रीय खेलों में तब आया, जहां उन्होंने टोक्यो पैरालंपिक पदक विजेता प्रमोद और मनोज को हराकर स्वर्ण पदक हासिल किया। वह पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतने से पहले 2019, 2022 और 2024 में विश्व चैंपियनशिप में दो रजत और एक कांस्य सहित तीन पदक जीत चुके हैं। उन्होंने एशियाई पैरा खेलों में भी चार पदक जीते हैं, जिसमें 2018 जकार्ता एशियाई पैरा खेलों में कांस्य पदक के अलावा 2022 हांगझोऊ एशियाई पैरा खेलों में तीन पदक (एक स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य) शामिल हैं। 14 जून 2022 को एसएल3 श्रेणी में वह दुनिया के नंबर 3 खिलाड़ी बने थे।
इसे भी पढ़ें: शीतल देवी: पिता किसान, बकरियां चराती हैं मां, बिना हाथों के तीरंदाजी में रचा इतिहास
वर्तमान में नितेश पुरुष एकल एसएल3 श्रेणी में विश्व में नंबर 1 रैंक पर हैं। फिलहाल, वह हरियाणा में खेल और युवा मामले विभाग के लिए वरिष्ठ बैडमिंटन कोच के रूप में कार्यरत हैं। किसी भी पैरा-एथलीट का सबसे बड़ा सपना होता है पैरालंपिक खेलों में देश के लिए पदक जीतना और वर्षों की कड़ी मेहनत एवं दृढ़ता के परिणामस्वरूप पेरिस पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के साथ ही नितेश का यह सपना साकार हो गया है। बहरहाल, नितेश और अवनि जैसे पैरालंपिक में पदक जीत रहे तमाम पैरा खिलाड़ी देश के तमाम लोगों के लिए बहुत बड़ी मिसाल हैं, जिन्होंने अपनी विकट शारीरिक बाधाओं के बावजूद जिंदगी से हार मानने के बजाय बुलंद हौंसलों के चलते अपने भीतर कुछ ऐसा विशेष कर दिखाने का सामर्थ्य पैदा किया, जिसके चलते पूरी दुनिया में भारत को गर्व से सीना चौड़ा करने का अवसर मिला।
(लेखक 34 वर्षों से पत्रकारिता में निरंतर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं)
टिप्पणियाँ