मलयालम फिल्म उद्योग इन दिनों यौन योषण, मानवाधिकार उल्लंघन और नशाखोरी का अड्डा बन गया है। हाल ही में जारी जस्टिस हेमा समिति की रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है। रिपोर्ट जारी होने के बाद से मलयालम फिल्म जगत में हंगामा मचा हुआ है। हर दिन कोई न कोई अभिनेत्री सामने आकर बता रही है कि किस तरह उसका यौन शोषण किया गया।
समिति की रिपोर्ट गत 19 अगस्त को जारी हुई थी। केरल उच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश हेमा के अलावा इस समिति में दक्षिण भारत की नामचीन अभिनेत्री सारदा और आईएएस अधिकारी व केरल की सेवानिवृत्त प्रमुख सचिव केबी वलसला कुमारी भी शामिल हैं। इस रिपोर्ट में मलयालम फिल्म उद्योग को लेकर कई चौंकाने वाले खुलासे किए गए हैं। भूचाल लाने वाली इस रिपोर्ट के आने के बाद मलयालम फिल्म उद्योग में 25 अगस्त को दो ऊंचे ओहदे वालों ने भारी दबाव में इस्तीफे दिए। फिल्म निर्देशक रंजीत ने केरल चलचित्र अकादमी के अध्यक्ष पद से और सुपरस्टार सिद्दिकी ने मलयालम मूवी आर्टिस्ट्स एसोसिएशन (एएमएमए) के महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया। रंजीत और सिद्दिकी पर यौन शोषण और बलात्कार के आरोपों में मुकदमे दर्ज किए गए हैं।
युवा अभिनेत्री रेवती संपत के गंभीर आरोप के बाद सिद्दिकी ने इस्तीफा दिया। उसकी जगह संयुक्त सचिव बाबूराज ने एएमएमए की बागडोर संभाली, लेकिन एक जूनियर अभिनेत्री के यौन शोषण के आरोप के बाद बाबूराज को भी इस्तीफा देना पड़ा। सिद्दिकी के पूर्ववर्ती एडावेलाबाबू पर भी यौन शोषण के आरोप लगे हैं। यही नहीं, कास्टिंग डायरेक्टर टेस जोसेफ ने एक अन्य सुपरस्टार और माकपा के विधायक मुकेश पर यौन शोषण का आरोप लगाया है। हालांकि टेस जोसेफ ने 2018 में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाली थी, जो अब वायरल हुई है। इसमें उन्होंने लिखा है कि जब उन्होंने अपने बॉस को मुकेश के गलत व्यवहार के बारे में बताया तो उन्होंने तत्काल उन्हें घर भेजने के लिए हवाई टिकट की व्यवस्था की थी, जिसके लिए उन्होंने अपने बॉस का धन्यवाद किया।
रंजीत का माकपा से गहरा नाता है। इस व्यक्ति ने पिछले वर्ष तिरुअनंतपुरम में फिल्म महोत्सव समारोह के दौरान मंच पर स्वीकार किया था कि छात्र जीवन में वे एक उत्साही एसएफआई कार्यकर्ता थे। संभवत: इन्हीं कारणों से केरल की वामपंथी सरकार रिपोर्ट आने के बाद भी कार्रवाई से कतरा रही थी।
क्यों बनी समिति?
बात 2017 की है। प्रदेश में उस समय आईएएस केबी वलसला कुमारी की नियुक्ति हुई थी। कुछ दिन बाद फरवरी 2017 में कोच्चि में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई। फिल्म उद्योग के एक चालक और उसके साथियों पर एक मलयालम सुपरस्टार ने यौन शोषण का आरोप लगाया था। आरोपियों ने त्रिशूर से कोच्चि आते समय चलती गाड़ी में इस घटना को अंजाम दिया था। इसकी साजिश कथित तौर पर एक मलयाली सुपरस्टार ने रची थी, जो इस मामले में 8वां आरोपी है।
इस घटना के बाद मई 2017 में मलयालम सिनेमा में काम करने वाली महिलाओं ने ‘वीमेन इन सिनेमा कलेक्टिव’ (डब्यूसीसी) नाम से एक समूह बनाया और मुख्यमंत्री से फिल्म उद्योग में महिलाओं के यौन शोषण व भेदभाव की शिकायत की। इसके बाद राज्य सरकार ने 16 नवंबर, 2017 को जस्टिस हेमा के नेतृत्व में एक तीन सदस्यीय समिति गठित की, जिसका उद्देश्य फिल्म उद्योग में महिलाओं की स्थिति, उनके कामकाजी माहौल का अध्ययन करना तथा उनकी समस्याओं का समाधान सुझाना था।
यानी समिति को महिलाओं की स्थिति, उनकी सुरक्षा, सेवा शर्तें और पारिश्रमिक आदि पर रिपोर्ट तैयार करनी थी। साथ ही, यह कि सिनेमा से जुड़े सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं। काम के सिलसिले में अभिनेत्रियों को बाहर रहना पड़ता है, तो उन्हें प्रसव, बच्चों की देखभाल या स्वास्थ्य संबंधी किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है? उनका क्या समाधान हो सकता है? सिनेमा के कंटेंट में लैंगिक समानता कैसे सुनिश्चित की जाए? फिल्म निर्माण क्षेत्र से जुड़ी 30 प्रतिशत महिलाओं को कैसे प्रोत्साहित किया जाए?
भोजन के लिए भी यौन शोषण!
रिपोर्ट में कहा गया है कि उचित भोजन के लिए भी यौन शोषण किया जाता है। यह मानवाधिकार का उल्लंघन है। इसके अलावा, बिना सहमति फिल्माए गए दृश्यों को हटाने के बहाने भी अभिनेत्रियों पर ‘यौन समझौते’ का दबाव डाला जाता है। ऐसे ही एक मामले में डबिंग के समय एक अभिनेत्री ने फिल्म से अपना नग्न दृश्य हटाने को कहा तो उसे ‘यौन समझौता’ करने को कहा गया। रिपोर्ट के अनुसार, अभिनेत्रियों को सेट पर जब कपड़े बदलने होते हैं तो सहकर्मी उनके लिए परदा करते हैं। उन्हें पीने के लिए पानी भी नहीं दिया जाता। कुल मिलाकर महिलाओं को अमानवीय स्थिति में काम करना पड़ता है। इसे देखते हुए समिति इस निष्कर्ष पर पहुंची कि ‘फिल्म उद्योग में एक महिला सिर्फ एक वस्तु जैसी है।’ भारतीय महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष एवं अधिवक्ता निवेदिता सुब्रमण्यम ने कहा कि यौन शोषण माफिया के प्रभाव के कारण हेमा आयोग की रिपोर्टको ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। आश्चर्य है कि सरकार दोषियों को बचाने में जुटी हुई है। क्या यही सरकार की जिम्मेदारी है?
समिति की सिफारिशें
जस्टिस हेमा समिति ने कुछ महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए हैं। समिति का कहना है कि महिलाओं की शिकायतें दूर करने और उनकी समस्याओं के निराकरण के लिए एक न्यायाधिकरण का गठन किया जाए। महिला जिला जज को इसका अध्यक्ष बनाया जाए, जिसे पांच वर्ष का अनुभव हो। न्यायाधिकरण के फैसलों में संशोधन का अधिकार केवल उच्च न्यायालय को हो। इसके अलावा, न्यायाधिकरण को जांच आयोग गठित करने का भी अधिकार दिया जाना चाहिए। सेवा शर्तों और पारिश्रमिक के संबंध में कहा गया है कि अभिनेत्रियों और फिल्म निर्माताओं के बीच उचित अनुबंध हो, यह सुनिश्चित करने का अधिकार न्यायाधिकरण को हो। बिना किसी उचित कारण के अभिनेत्रियों को फिल्म से निकालने से रोकने के सख्त कानून बनाने और फिल्म सेट पर बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने जैसे सुझाव भी दिए गए हैं।
लंबी कानूनी लड़ाई
हालांकि समिति ने 31 दिसंबर, 2019 को ही सरकार को रिपोर्ट सौंप दी थी, लेकिन इसे जारी नहीं किया गया। कुछ लोग रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से रोकने के लिए अदालत चले गए थे। दूसरी तरफ, कुछ लोग रिपोर्ट जारी करने की मांग कर रहे थे। इसी क्रम में 2020 में केरल राज्य सूचना आयोग के समक्ष एक आवेदन आया, लेकिन यह बहाना बना कर उसे खारिज कर दिया गया कि रिपोर्ट में ‘निजी मामले’ हैं। रिपोर्ट आने के अगले दिन 20 अगस्त, 2024 को मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने मीडिया को बताया कि जस्टिस हेमा ने 10 फरवरी, 2020 को सरकार को पत्र भेजकर रिपोर्ट जारी नहीं करने को कहा था। समिति की सदस्य और वरिष्ठ अभिनेत्री सारदा ने भी कथित तौर पर यही अनुरोध किया था।
खैर, बाद में सूचना आयोग अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष रिपोर्ट जारी करने की मांग आई। सुनवाई के बाद अपीलीय प्राधिकार ने 5 जुलाई, 2024 को गोपनीयता का हवाला देते हुए रिपोर्ट के कुछ हिस्सों को छोड़कर शेष रिपोर्ट को जारी करने का आदेश दिया। लेकिन वरिष्ठ अभिनेत्री रेंजिनी इसके विरुद्ध उच्च न्यायालय चली गईं। 24 जुलाई को रिपोर्ट जारी होनी थी, लेकिन ठीक एक घंटा पहले एक फिल्म निर्माता की याचिका पर उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने रिपोर्ट पर रोक लगा दी। बाद में 13 अगस्त को सुनवाई के बाद पीठ ने याचिका खारिज करते हुए रिपोर्ट जारी करने को कहा। इसके बाद रेंजिनी ने 17 अगस्त को उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच का रुख किया। रेंजिनी उन गवाहों में से एक हैं, जिन्होंने समिति के समक्ष बयान दर्ज कराया है। बहरहाल, डिवीजन बेंच ने रेंजिनी की अपील को खारिज कर उन्हें एकल पीठ के समक्ष जाने को कहा। लेकिन एकल पीठ ने भी उनकी याचिका खारिज कर दी। इस तरह, साढ़े पांच वर्ष की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार 19 अगस्त को राज्य के सांस्कृतिक विभाग ने रिपोर्टजारी की।
क्या है रिपोर्ट में?
रिपोर्ट के अनुसार, मलयालम फिल्म उद्योग माफिया और ड्रग तस्करों के कब्जे में है। इसमें यौन शोषण, मानवाधिकार उल्लंघन और मादक पदार्थों का सेवन जैसे सामान्य बात है। यौन शोषण में अभिनेता, निर्माता-निर्देशक और तकनीशियन भी शामिल हैं। समूचे फिल्म जगत को 15 लोगों का एक ‘शक्ति समूह’ नियंत्रित करता है। फिल्म उद्योग की चमक-दमक पर रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि ‘‘आप जो देखते हैं, उस पर भरोसा न करें, क्योंकि नमक भी चीनी जैसा दिखता है!’’ यौन शोषण उस स्याह सच का एक हिस्सा है, जो वर्षों से हो रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, फिल्म उद्योग में बड़े पैमाने पर ‘कास्टिंग काउच’ होता है। प्रोडक्शन कंट्रोलर भी यौन शोषण करते हैं। काम पाने के लिए अभिनेत्रियों को ‘समझौते’ करने पड़ते हैं। ये काम बिचौलियों के माध्यम से होते हैं। उनसे कोई नहीं लड़ सकता। जो उनके विरुद्ध आवाज उठाता है, उसे उद्योग से बाहर कर दिया जाता है। यही नहीं, महिलाओं से भेदभाव भी किया जाता है। उनसे उम्मीद की जाती है कि वे चुपचाप अत्याचारों को सहती रहें। 233 पन्नों की रिपोर्ट की कुछ चौंकाने वाली बातों पर ध्यान देना जरूरी है-
- शूटिंग स्थलों, वाहनों और आवासों पर होता है अभिनेत्रियों का यौन शोषण
- रात को दरवाजा खटखटाया जाता है। दरवाजा नहीं खोलने पर उसे बेतहाशा पीटते हैं
- विरोध करने वाली अभिनेत्रियों को अपमानित किया जाता है, उन्हें ‘सजा’दी जाती है। सोशल मीडिया पर भी ट्रोल किया जाता है
- समझौता करने वाली अभिनेत्रियों के लिए कूट शब्द ‘सहयोगी कलाकार’ का प्रयोग किया जाता है
- स्टूडियों में महिलाओं के लिए न तो शौचालय होते हैं, न कपड़े बदलने की सुविधा
- अभिनेत्रियां लग्जरी बसों में, कभी-कभी झाड़ियों या पेड़ों के पीछे छिपकर कपड़े बदलती हैं
- कपड़े बदलते समय उन्हें छिपे कैमरे का डर रहता है, क्योंकि वीडियो क्लिप का इस्तेमाल यौन शोषण में किया जाता
- शिकायत करने पर अभिनेत्रियों और उनके परिवार के सदस्यों को जान का खतरा हो सकता है
- महिलाओं को उचित पारिश्रमिक नहीं दिया जाता है
- निर्माता-निर्देशक अभिनेत्रियों पर लिप-लॉक और न्यूड सीन के लिए दबाव डालते हैं। ‘समझौता’ नहीं करने पर ऐसे दृश्य के लिए बार-बार रीटेक देने पड़ते हैं। ऐसे ही एक मामले में एक अभिनेत्री को एक ही शॉट 17 बार देना पड़ा
- एक अभिनेत्री को उस अभिनेता की पत्नी की भूमिका निभानी पड़ी, जिसने उसका यौन शोषण करने का प्रयास किया था
- फिल्म जगत में अभिजात्य वर्ग का पतन हो गया है। वरिष्ठ अभिनेता नई अभिनेत्रियों को ‘यौन समझौते’ के लिए मजबूर करते हैं
- फिल्म उद्योग में सभी महिलाएं ‘कम्प्रोमाइज’ और ‘अंडरस्टैंडिंग’ जैसी शब्दावली से भली-भांति परिचित होती हैं
रिपोर्ट के अनुसार, कुछ पुरुष कलाकारों ने भी ‘कास्टिंग काउच’ की शिकायत की है। अभिनेत्रियों और जूनियर कलाकारों ने वीडियो, आडियो क्लिप और तस्वीरों के साथ समिति के समक्ष बयान दर्ज कराए हैं। अधिकांश अभिनेत्रियों ने बयान ही नहीं दिए। रिपोर्ट में बयान दर्ज कराने वालों की पहचान को गुप्त रखा गया है।
विशेष जांच दल का गठन
रिपोर्ट जारी होने के बाद राज्य सरकार आरोपियों के विरुद्ध कार्रवाई करने में आनाकानी करती रही। राज्य के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और उनके करीबी व वरिष्ठ माकपा नेता एके बालन कहते रहे कि किसी ने अभी तक शिकायत नहीं की है, इसलिए प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती। शिकायत मिलने पर ही प्राथमिकी दर्ज की जाएगी। पिनराई तो यह कहकर मामले को टालने में लग गए कि सरकार सिनेमा नीति का मसौदा बनाएगी। इसके लिए एक बड़ा सम्मेलन किया जाएगा, जिसमें वरिष्ठ अभिनेता-अभिनेत्रियों से लेकर प्रोडक्शन ब्वॉय तक को आमंत्रित किया जाएगा। विश्व प्रसिद्ध मलयालम फिल्म निर्माता शाजी एन. करुण के नेतृत्व में एक समिति गठित की गई है। लेकिन किसी को विश्वास नहीं हो रहा है कि इस तरह के सम्मेलन से फिल्म जगत में कोई सकारात्मक बदलाव आएगा। वकीलों के अनुसार, पॉक्सो के तहत जानकारी छिपाना अपने आप में अपराध है। ऐसे में शिकायत नहीं मिलने का बहाना पीड़ितों के कंधे पर जिम्मेदारी डालने जैसा है। कुछ मामलों में तो पॉक्सो के तहत मुकदमा दर्ज करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य हैं।
ऐसे में ये सवाल उठने लगे कि रिपोर्ट में 15 लोगों के जिस ‘शक्ति समूह’ का जिक्र किया गया है, उस पर सरकार चुप क्यों है? वे कौन लोग हैं जो मलयालम फिल्म उद्योग को अपने इशारे पर चला रहे हैं? बिना राजनीतिक संरक्षण के क्या यह संभव है? फरवरी 2017 में चलती कार में जिस अभिनेत्री का यौन शोषण हुआ, उसमें अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? किसके इशारे पर अभिनेत्री का यौन शोषण किया गया? ऐसे मामलों की सुनवाई फास्ट ट्रैक अदालतों में क्यों नहीं की जा रही है? राज्यपाल डॉ. आरिफ मोहम्मद खान भी कह चुके हैं कि यदि समिति की रिपोर्ट कहती है कि एक मंत्री का 15 सदस्यीय ‘पावर ग्रुप’ है, तो सरकार को इसकी जांच करानी चाहिए। इसकी सार्वजनिक चर्चा शर्मनाक है।
बहरहाल, एक हफ्ते की जद्दोजहद के बाद राज्य सरकार ने 25 अगस्त को आईजी स्पर्जन कुमार के नेतृत्व में सात सदस्यीय विशेष जांच टीम का गठन किया, जिसमें चार वरिष्ठ महिला आईपीएस अधिकारी भी हैं। टीम के कामकाज की निगरानी का जिम्मा क्राइम ब्रांच के एडीजीपी एच वेंकटेश को सौंपा गया है। जांच दल अभिनेत्रियों के यौन शोषण के आरोपों की जांच करेगा।
अब तक 17 मामले
रिपोर्ट आने के बाद मलयालम फिल्म उद्योग में जैसे यौन शोषण के मामलों की बाढ़-सी आ गई है। पीड़िताओं ने एएमएमए के वरिष्ठ सदस्यों को भी आरोपी बनाया है। अभी तक 17 अभिनेत्रियों ने यौन शोषण की शिकायत की है। अभिनेत्री सोनिया मल्हार ने विशेष जांच टीम के समक्ष दर्ज शिकायत में कहा है कि 2013 में एक फिल्म के सेट पर एक अभिनेता ने उनके साथ छेड़छाड़ की थी। 26 अगस्त को अभिनेत्री मुनीर ने मीडिया से कहा कि कई अभिनेताओं ने उनसे यौन दुर्व्यवहार किया। उन्होंने सुपरस्टार मुकेश और माकपा विधायक मुकेश, एएमएमए से जुड़े एक बड़े अभिनेता एडावेला बाबू और मनियनपिल्ला राजू और जयसूर्या का नाम लिया था। अब उन्हें धमकी दी जा रही है।
मुनीर का आरोप है कि फिल्म ‘कैलेंडर’ (2009) और ‘नाडकमे उलेकम’ (2011) की शूटिंग के दौरान एक अभिनेता ने एक होटल में उनके साथ मारपीट करने की भी कोशिश की। वह अभिनेता उनके कमरे में आया और यह कहते हुए बिस्तर पर खींच लिया कि बेहतर मौके पाने के लिए उन्हें ‘समझौता’ करना होगा। उससे पहले एक व्यक्ति ने रात को उनका दरवाजा खटखटाया था। बकौल मुनीर, तीसरे अभिनेता ने 2008 में शूटिंग के दौरान उन्हें गलत इरादे से पकड़ा और चूमा। किसी तरह वह बचकर भागी। यही नहीं, मुनीर ने 2013 में एएमएमए की सदस्यता के लिए आवेदन-पत्र भरने के लिए जब एक अभिनेता से फोन पर संपर्क किया तो उसने उन्हें अपने फ्लैट पर बुलाया। फ्लैट पर आवेदन-पत्र भरने के दौरान उसने उनके साथ दुर्व्यवहार की कोशिश की तो वह तत्काल बाहर निकल गईं। उन्हें एएमएमए की सदस्यता नहीं मिली।
केरल पुलिस ने श्रीलेखा मित्रा की शिकायत पर केरल चलचित्र अकादमी के पूर्व अध्यक्ष रंजीत पर गैर-जमानती धाराओं में मुकदमा दर्ज किया है। मित्रा के अनुसार, रंजीत ने 2009 में फिल्म ‘पलेरी मनिक्यम’ के प्री-प्रोडक्शन के दौरान उनसे दुर्व्यवहार किया था। इसी तरह, एक अभिनेत्री ने डीजीपी से ईमेल पर सिद्दिकी की शिकायत की है। आरोप है कि सिद्दिकी ने जनवरी 2016 में मस्कट के एक होटल में उसका यौन शोषण किया था। अपनी फिल्म ‘सुखमायीरिकत्ते’ का प्रीव्यू शो खत्म होने के बाद सिद्दिकी ने उन्हें ‘मोल’ (मलयालम में बेटी) पुकारा था। बाद में उन्हें मस्कट होटल में चर्चा के लिए बुलाया और यौन शोषण किया। तब वह 21 वर्ष की थीं। उन्होंने कई लोगों से इसकी शिकायत की, लेकिन किसी ने मदद नहीं की।
अभिनेत्री ने सिद्दिकी को ‘नंबर वन क्रिमिनल’ बताया है। इससे पूर्व रेवती संपत भी सिद्दिकी को अपराधी करार दे चुकी हैं। सिद्दिकी ने अपने ऊपर लगे आरोपों को झूठ और षड्यंत्र बताते हुए यौन उत्पीड़न के आरोपों को खारिज कर दिया है। उन्होंने भी जवाब में शिकायत दर्ज कराई है। कुछ वर्ष पूर्व नशे में धुत एक 60 वर्षीय अभिनेता ने एक जूनियर कलाकार का सोते समय यौन शोषण करने की कोशिश की थी। एक महिला तकनीशियन ने भी उस पर अश्लील हरकत करने और अभद्र तरीके से घूरने का आरोप लगाया था। वामपंथी मुखौटा लगाने वाले अभिनेता एलेंशिया ने लगभग 5 वर्ष पूर्व रा.स्व.संघ और भाजपा के विरुद्ध केवल अंत:वस्त्र पहनकर प्रदर्शन किया था। केरल महिला आयोग ने एक पत्रकार के साथ दुर्व्यवहार के आरोप में उसके खिलाफ स्वत: संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज किया था। लेकिन कुछ नहीं हुआ और वह आज भी फिल्मों में अभिनय कर रहा है।
रिपोर्ट जारी होने के बाद दिवंगत अभिनेता तिलकन की बेटी सोनिया तिलकन ने कहा कि कुछ कड़वे सच उजागर करने के कारण उनके पिता को फिल्म उद्योग से दूर कर दिया गया था। बाद में अभिनेता (अब भाजपा सांसद) सुरेश गोपी की सिफारिश पर उन्हें काम मिला। सोनिया ने कहा कि अलेंशियर ने फोन कर उन्हें अपने घर बुलाया ताकि वे उनके पिता के साथ किए गए व्यवहार के लिए माफी मांग सके। अभिनेता ने उन्हें ‘मोल’ कहा, लेकिन सोनिया ने यह कहकर मना कर दिया कि फोन पर भी माफी मांगी जा सकती है।
दरअसल मलयालम फिल्म अभिनेत्रियां लंबे समय से यौन शोषण और भेदभाव के आरोप लगा रही हैं। लेकिन आरोपियों के विरुद्ध कभी कार्रवाई नहीं की गई, क्योंकि बड़े सितारों के राजनीतिक दलों से संबंध हैं और वे चुनावों में उनके लिए प्रचार करते हैं। अब इस मामले में एलडीएफ विधायकों और एक मंत्री का नाम सामने आने के बाद सरकार को दवाब में जांच टीम गठित करनी पड़ी है। इसी तरह, फरवरी 2017 में जिस अभिनेता के इशारे पर चलती कार में एक अभिनेत्री का यौन शोषण हुआ, वह एएमएमए का सदस्य था। लेकिन एएमएमए ने उसके खिलाफ कोई गंभीर कार्रवाई नहीं की। हंगामा मचने के बाद मास्टरमाइंड ने इस्तीफा दे दिया, लेकिन जमानत मिलते ही उसे फिर से सदस्य बना दिया गया। लेकिन अब साहस कर अभिनेत्रियां सामने आ रही हैं और आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा रही हैं। जांच का परिणाम क्या निकलेगा, यह बाद की बात है। अभिनेताओं, निर्माता-निर्देशकों, राजनीति, माफिया और ड्रग तस्करों के गठजोड़ की कलई खुलने के बाद इस मामले की लीपापोती पिनराई सरकार के लिए आसान नहीं होगी।
टिप्पणियाँ