1985 के किसी रिकॉर्ड को उद्धृत करते हुए रिपोर्ट में लिखा है कि रक्षा मंत्रालय द्वारा पीएसी के निर्देशों का ठीक से पालन नहीं किया गया। उत्पादन विभाग ने भी काम सही नहीं किया। सेना अवसंरचनाओं की जांच से यह बात सामने आई थी कि खरीद के कायदों को भी नहीं माना गया। खरीद तथा अनुबंध अपने मनचाहे ठेकेदारों के जरिए कराई गई।
पड़ोसी इस्लामी देश यूं तो आतंकवाद की नर्सरी के नाते दुनिया भर में बदनाम है, लेकिन भ्रष्टाचार भी वहां सिर चढ़कर बोलता है। हर पार्टी के नेता आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे पाए गए हैं। एक ओर जहां जिन्ना का देश कर्जे में डूबा दो जून की रोटी का मोहताज है तो वहीं दूसरी ओर राहत सामग्री—राशि और चीन और अरब के भेजे अरबों रुपए की ‘भीख’ का एक हिस्सा नेताओं के हिस्से जाने के चर्चे आम हैं। अब एक घोटाला फौज से सामने आया है।
पाकिस्तान की फौज के खर्चे की आडिट रिपोर्ट से पता चला है कि अनेक मद में पैसा खाया गया है। इस बात की जानकारी किसी और ने नहीं, खुद ऑडिटर जनरल ने दी है। आडिट रिपोर्ट बताती है कि रक्षा विभाग को बजट अनुदान दिया जाता है, इस अनुदान को आगे रक्षा उत्पादन, सर्विस हेडक्वार्टर, इंटर सर्विस आर्गेनाइजेशन तथा युद्धक योजना बनाने वाले प्रकोष्ठों को बांटा जाता है।
लेकिन इस पैसे की बंदरबांट की बात सार्वजनिक होना पाकिस्तान के पहले से ही कालिख पुते चेहरे को और मलिन बना रहा है। ऑडिटर जनरल की यह रिपोर्ट रक्षा सेवाओं में पैसे की बहुत ही ज्यादा अनियमितता, मनमानी खरीद तथा गलत तरीके से व्यय करने की बात करती है। इस रिपोर्ट में 2023-24 के लिए रक्षा सेवा खातों की बाबत अन्य कई खुलासे हैं। 300 से अधिक पृष्ठों की इस रिपोर्ट के सामने आने पर सेना के अफसर बगलें झांकते देखे जा रहे हैं।
रक्षा ऑडिट में 566.29 अरब रुपए का व्यय देखा गया था। यानी 2022-23 ऑडिट के दूसरे चरण में 335.63 अरब का तो 2023-24 ऑडिट के पहले चरण में 230.66 अरब रु. रुपए का। पाकिस्तान के सुप्रसिद्ध अंग्रेजी दैनिक द डॉन के अनुसार, रिपोर्ट यहां तक कहती है कि काम पूरा हुआ नहीं, उससे पहले ठेकेदारों को पैसा बांट दिया गया। इतना ही नहीं, किराए और बाकी के शुल्क न वसूले जाना, करों में कायदे के हिसाब से कमी न होना, पब्लिक परचेज के कायदे तोड़ना, जमीन से जुड़ी नीति की अनदेखी करना जैसे कई विषय घपलों की कहानी कहते हैं।
इसी ऑडिट रिपोर्ट में गत 40 साल के दौरान जो भी ऑडिट ने आपत्तियां दर्ज कराईं उनका पूरी तरह जवाब नहीं दिया गया या पालन ही नहीं किया गया। यानी जो जैसा चलता आ रहा था उसे वैसा ही चलाए जाता रहा। खातों के बारे में भी कई सवाल हैं। 1985 के किसी रिकॉर्ड को उद्धृत करते हुए रिपोर्ट में लिखा है कि रक्षा मंत्रालय द्वारा पीएसी के निर्देशों का ठीक से पालन नहीं किया गया। उत्पादन विभाग ने भी काम सही नहीं किया। सेना अवसंरचनाओं की जांच से यह बात सामने आई थी कि खरीद के कायदों को भी नहीं माना गया। खरीद तथा अनुबंध अपने मनचाहे ठेकेदारों के जरिए कराई गई।
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