भोपाल के कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में आयोजित पाञ्चजन्य के सुशासन संवाद कार्यक्रम के ‘सीधी बात’ सत्र में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर ने विभिन्न विषयों पर बातचीत की। प्रस्तुत हैं उसके प्रमुख अंश-
प्रदेश में गुरु पूर्णिमा, गुड़ी पड़वा या रक्षा बंधन आदि पर सामाजिक उत्साह दिखने लगा है। आपने उसे उत्सव बना दिया है। हमारे इन त्योहारों की महत्ता को कैसे देखते हैं?
समाज से जुड़े सभी पक्षों में ऐसे अवसर आते हैं। इसमें हमें समाज को दृष्टि देने वाला पक्ष देखना चाहिए। जैसे जन्माष्टमी हमारे लिए सौभाग्य का उत्सव है। मध्य प्रदेश से भगवान कृष्ण का रिश्ता शिक्षा के कारण है। उन्होंने कंस को मारने जैसा पराक्रम किया। हम शिक्षा की बात ही तो कर रहे हैं। इससे बेहतर अवसर और क्या होगा? इसलिए हमें जन्माष्टमी को धूमधाम से मनाना ही चाहिए। 5,000 वर्ष पहले भगवान कृष्ण का द्रौपदी के साथ भाई-बहन का रिश्ता बना था। यह इतिहास हमारे लिए गौरवशाली है। आक्रांताओं के हमलों के कारण भय से त्योहार घरों के अंदर मनाने की परंपरा बन गई, नहीं तो, पूरे समाज के साथ त्योहार मनाने की परंपरा थी। मुझे याद है हमारी माताजी गाय, घर के द्वार, शस्त्र, सबको राखी बांधती थीं। आज भी यह परंपरा है। रक्षाबंधन केवल भाई-बहन का नहीं, सबको साथ लेकर चलने की संस्कृति का पर्व है। गुरु पूर्णिमा की तो बात ही अलग है। गुरु वह होता है जो दूसरों को शिक्षा देकर आनंद महसूस करे। पहले कुलपति की जगह कुल-गुरु शब्द का प्रयोग होता था। कुल-गुरु का मतलब है, अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला। आज रूस, अमेरिका जैसे देश दुनिया में अपनी प्रभुसत्ता स्थापित करना चाहते हैं। दूसरे देशों को दबाना चाहते हैं। केवल भारत ही अच्छी बातें सिखा रहा है। यही तो विश्व गुरु भारत की परंपरा है।
उज्जैन की काल गणना धार्मिक, वैज्ञानिक, खगोलीय और भू-राजनीतिक दृष्टि से कितनी महत्वपूर्ण है? ग्रीनविच मीन टाइम उतना प्रभावी क्यों नहीं है?
उज्जैन प्राचीन काल से काल गणना का केंद्र रहा है। यहां एक यंत्र है, जिससे पता चलता है कि पृथ्वी अपने अक्ष पर 23.26 अंश झुकी हुई है। हालांकि यह 20-25 वर्ष पुराना ही है। मध्याह्न काल से सूर्योदय व सूर्यास्त में एक घंटे का अंतर होना चाहिए। लेकिन ग्रीनविच मानक समय की बात करें तो वहां गर्मी में रात 10 बजे तक सूर्य चमकता है, फिर वह समय का केंद्र कैसे हो सकता है? इस पर डॉ. वाकणकर जी ने काम भी किया था। उज्जैन में एक स्थान है डोंगला, उसे चिह्नित कर विकसित किया गया है। प्रदेश में एक आधुनिक वेधशाला और बड़ा शोध केंद्र है, जहां छात्र और वैज्ञानिक शोध कर सकते हैं।
21 जून और 22 दिसंबर साल में ये दो दिन आते हैं, जब सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन और दक्षिणायन से उत्तरायण होता है, तब दिन में 12:17 बजे हम सूर्य के इस कक्षा परिवर्तन को अपनी आंखों से देख सकते हैं। वैसे हैरानी की बात है किभौगोलिक और मौसम की दृष्टि से 21 जून को कुछ बदला ही नहीं!
आप बहुत पहले से आगे के अवसरों की तैयारी शुरु कर देते हैं। अभी कुंभ आया नहीं है, लेकिन उत्तर प्रदेश में इसकी तैयारियां ही चल रही हैं। उसी तरह आपने भी सिंहस्थ कुंभ की तैयारी शुरू कर दी है। ऐसा क्यों?
हमारे यहां चार अवसर खगोलीय घटनाओं पर आधारित हैं। इनमें से एक कुंभ है। कुुंभ में 14-15 करोड़ लोग आएंगे। उनके ठहरने, आने-जाने के लिए रास्ते, पुल, स्नान के लिए घाट आदि की व्यवस्था करनी है। शासन का मुखिया होने के नाते सारी व्यवस्था समय पर हो, स्वाभाविक रूप से हमें उसकी चिंता तो करनी ही पड़ेगी। आने-जाने के रास्ते, पुल, नहाने के घाट, रुकने के प्रबंध। बार-बार होने वाले अतिक्रमण को देखते हुए हमने उज्जैन को हरिद्वार की तर्ज पर एक स्थायी तीर्थ के रूप में विकसित करने का संकल्प लिया है। हजारों वर्ष से उज्जैन की पहचान एक धार्मिक शहर की रही है। उज्जैन को अवंतिका भी कहते हैं। यह चिरंतन नगरी है। इसलिए हम अभी से कुंभ की तैयारियों में जुटे हुए हैं। मुझे लगता है कि इस बार कुंभ में आनंद आएगा।
हमारी सरकार को सत्ता में आए अभी 7-8 महीने ही हुए हैं। लेकिन सरकार बनने के दो माह के अंदर ही हमने उज्जैन में निवेशक सम्मेलन किया था। इंदौर प्रदेश का बड़ा और आर्थिक शहर है। इसका तो विकास होना ही चाहिए। उज्जैन, जबलपुर जैसे और भी नगर हैं। इसी 28 अगस्त को ग्वालियर, फिर सागर और रीवा में भी ऐसे आयोजन किए जाएंगे। पूरे प्रदेश में सभी प्रकार के उद्योगों को निवेश से समृद्ध होना चाहिए। न केवल संभाग केंद्र, बल्कि इसमें आने वाले छोटे-छोटे जिले भी। हम लक्ष्य के साथ काम कर रहे हैं। हम उन जगहों पर जा रहे हैं और रोड शो कर रहे हैं, जहां से निवेश आने की संभावना है। इसलिए मुंबई, कोयंबतूर, बेंगलुरु के बाद में कोलकाता जाऊंगा। हमें अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है।
इस बार राज्य का बजट अब तक का सबसे बड़ा तीन लाख करोड़ का था। आप उससे भी आगे सात लाख करोड़ से अधिक के बजट की बात कर रहे हैं। सात लाख करोड़ तक पहुंचने के लिए रोडमैप क्या है? इस राह में क्या-क्या चुनौतियां हैं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 वर्ष के अंदर देश को दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित कर दिया है। उनसे ही सीख कर हमने बजट को 7 लाख करोड़ रु. करने का लक्ष्य रखा है। अभी हमारा बजट लगभग 3 लाख 10 हजार करोड़ रु. का है। यदि हम एक वर्ष में लगभग 17-18 प्रतिशत भी बढ़ेंगे तो 5 वर्ष में लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे। मुझे संतोष है कि हमने जो सोचा था, उसके करीब पहुंच गए। कांग्रेस के कई नेता कह रहे थे कि हमारी सरकार बनेगी तो सारी योजनाएं बंद कर देंगे। हम कोई योजना बंद नहीं करेंगे, बल्कि अर्थव्यवस्था को इतना मजबूत करेंगे कि नई योजनाएं शुरू हो सकें।
हर व्यक्ति की आर्थिक स्थिति बेहतर हो, उसके पास पैसे हों, इसके लिए हम प्रयासरत हैं। हम दो तरह से काम कर रहे हैं। पहला है-औद्योगीकरण। लेकिन भारी उद्योग आने पर बड़ी-बड़ी मशीनों से ही काम लिया जाए, यह नहीं चलेगा। बेरोजगारों को रोजगार मिले, इसके लिए सभी क्षेत्र के उद्योगपतियों को इंसेंटिव भी दे रहे हैं। दूसरा है- लघु, कुटीर और हॉर्टिकल्चर उद्योग। प्रदेश में कृषि और पशुपालन भी बड़े स्तर पर होता है। हमने दूध उत्पादन दोगुना करने का लक्ष्य रखा है। जिस प्रकार हम गेहूं और दूसरी फसलों पर बोनस देते हैं, दूध उत्पादन पर भी बोनस देंगे।
पुस्तकालयों में राष्ट्रीय विचारों की पुस्तकें होंगी और अवैध मदरसों के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी। आप ये ‘दर्द बढ़ाने वाले काम’ कब तक करते रहेंगे?
‘कुछ भी करूं, किसी कानून का पालन नहीं करूं, खुद को व्यवस्थाओं से जोड़कर भी चलूं और बहुसंख्यक समाज पर राज करूं’, मैं ऐसी मंशा रखने वाले लोगों को माफ नहीं करता। कानून सबके लिए समान है। अगर बहुसंख्यक भाई-बहन कानून का पालन करते हैं तो बाकी लोगों को भी इसका पालन करना पड़ेगा। किसी को विशेष छूट नहीं दी जाएगी। ध्वनि के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने जो मानक तय किए हैं, उससे अधिक नहीं होनी चाहिए। कुछ भी कर लो, यह सोच नहीं चलेगी। घर-महल बना रहे हैं, लेकिन अनुमति नहीं ले रहे हैं। गुंडागर्दी कर रहे हैं और कह रहे हैं कि ‘नगर निगम से कोई नोटिस नहीं मिलेगा’। नोटिस तो आएगा, अगर मकान बिना नक्शे के बना है तो वह उस लायक नहीं रहेगा। मजहब विशेष से ज्यादती करना हमारा स्वभाव नहीं है।
प्रदेश में अनुसूचित जनजाति की 17 प्रतिशत आबादी है। सरकार उन्हें हर तरह के अवसर प्रदान कर रही है। इसलिए हमने अपनी पहली कैबिनेट बैठक रानी दुर्गावती के नाम पर जबलपुर में की थी। जनजातीय क्षेत्र में रानी दुर्गावती बहुत बड़ा नाम है, जो विकास के साथ सुशासन के लिए जानी जाती हैं। संयोग से उनकी 500वीं जयंती भी चल रही है। हमारा तो ध्येय वाक्य ही ‘सबका साथ, सबका विकास’ है।
आपने मध्य प्रदेश में चार मिशन चलाने की घोषणा की है। वे मिशन क्या हैं? उनसे प्रदेश को क्या लाभ होगा?
प्रधानमंत्री श्री मोदी की स्पष्ट धारणा है कि युवा, महिला, किसान, गरीब, इन चार वर्गों के बीच काम करना है। इन वर्गों के लिए हमने मिशन मोड में योजना बनाई है। हमारी अर्थव्यवस्था बढ़ेगी, आर्थिक विकास होगा तो स्वाभाविक रूप से गरीबों को उसका लाभ मिलेगा। खासकर, युवाओं को रोजगार मिले, इस पर हम लगातार काम कर रहे हैं। बहनों को लेकर हमारी धारणा बहुत स्पष्ट है। उद्योगों की बात करें तो आजादी से पहले अकेले उज्जैन स्थित उद्योगों में 15,000-20,000 मजदूर काम करते थे। लेकिन तकनीक पुरानी होती गई और उद्योग खत्म हो गए। अब हम दोबारा पुराने स्थान पर उद्योग लगवा रहे हैं। अकेले बेस्ट इंटरप्राइजेज की रेडीमेड गारमेंट उत्पादन इकाई में 4,000 बहनें काम कर रही हैं। इसी तरह, दूसरा कारखाना प्रतिभा सेंटेक्स का है, जिसमें 7,000 महिलाएं काम करती हैं। महिलाओं को रोजगार देने के लिए हर प्रकार की सुविधाएं दे रहे हैं। किसानों के हित के लिए भी कार्य किए जा रहे हैं। केन-बेतवा के माध्यम से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में बदलाव आएगा और हम पंजाब को पीछे छोड़ देंगे।
राजस्थान के साथ 20 वर्ष से पानी-विवाद चल रहा था। चंबल, काली सिंध और पार्वती हमारी तीन बड़ी नदियां हैं। इन्हें ‘नदी जोड़ो अभियान’ से जोड़ेंगे। इससे पश्चिम मध्य प्रदेश और बुंदेलखंड के किसानों को लाभ तो होगा ही, राजस्थान को भी पर्याप्त पानी मिलेगा। इसी तरह से तकनीक, आधुनिक संसाधनों का उपयोग करते हुए और नीति आयोग का लाभ लेते हुए सुशासन भी लाएंगे। अतीत की सरकार ने जो मध्य प्रदेश की भूमि हमें सौंपी थी, हमारा संकल्प इसे उससे आगे ले जाने का है।
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