अर्चना चिटनिस ने कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई ने कहा था, ‘‘ईश्वर ने मुझे जो जिम्मेदारी सौंपी है, उसे मुझे निभाना है। सत्ता के बल पर मैं जो भी करूंगी उसका जवाब ईश्वर के पास जाकर देना पड़ेगा। मैं जो दे रही हूं मुझे पता नहीं, उसे कैसे चुका पाऊंगी। अहिल्याबाई द्वारा बंगाल के एक मंदिर के लिए मूर्तियां भिजवाने पर 1849 के बंगाल गजट में लिखा गया है, ‘‘ वे ऐसी शासक हैं, जिनकी मूर्तियां एक दिन समाज बनाएगा और उनकी पूजा करेगा। वे अच्छी प्रशासक हैं, दृढ़ हैं। उनमें शौर्य और धैर्य है। जब उनके राज्य में डाकुओं का प्रभाव बढ़ा, तो लोकमाता ने घोषणा की, ‘‘जो डाकुओं के प्रभाव से उनके राज्य को मुक्त कर देगा, उसके साथ वह अपनी बेटी का विवाह कर देंगी। राजपरिवार से होते हुए भी उन्होंने जातिबंधन से बाहर जाकर ऐसा किया भी। उनमें नेतृत्व के गुण थे। देवी अहिल्याबाई के लोकमाता बनने के अनेक प्रसंग हैं। उनके राज्य के सैनिकों की विधवा सम्मान से अपना जीवन यापन कर सकें, इसके लिए महेश्वर में उन्हें हथकरघा का प्रशिक्षण देने की व्यवस्था करने के साथ वहां व्यवसाय केंद्र भी स्थापित किया। आज भी महेश्वरी कपड़ा विख्यात है। वहां बनने वाली साड़ियों की बिक्री की जिम्मेदारी भी उन्होंने ली थी। ’’
उन्होंने कहा, ‘‘जनता से सीधे जुड़ने का उनका तरीका अद्भुत था। अपने राज्य में महिला सशक्तिकरण के लिए अहिल्याबाई ने जो कदम उठाए, वे अनुकरणीय हैं। उन्होंने न सिर्फबेटियों की शिक्षा पर ध्यान दिया, बल्कि महिलाओं की सैन्य टुकड़ी भी तैयार की। महिलाओं को युद्ध कौशल की शिक्षा दी ताकि समय आने पर वे मातृभूमि की रक्षा के साथ अपने सम्मान की भी रक्षा कर सकें। लोकमाता अहिल्याबाई ने 9/11 नीति लागू की थी। इसमें यह प्रावधान किया गया था कि कोई 11 पेड़ लगाता है तो 2 पेड़ों के फल वह लेगा, जबकि 9 पेड़ों पर राज्य का अधिकार होगा। उनके राज्य में सरकारी जमीन पर खेती करने की छूट थी, बदले में व्यक्ति को गोचरन के लिए स्थान देना होता था। उनके राज्य में गंदगी फैलाने पर जुर्माना लगाया जाता था। चिटनिस ने कहा, ‘‘आज महिला सशक्तिकरण की बात कही जाती है, हमारे देश में जहां माता अहिल्या जैसी महिलाएं हुईं हैं, वह महिला सशक्तिकरण का सबसे बड़ा उदाहरण हैं।’’
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