मेरठ की बेटी प्रीति पाल, जिनका नाम आज हर भारतीय के दिल में गर्व से गूंज रहा है, प्रीति पाल ने पैरालंपिक खेलों में भारत का नाम रोशन किया है। उनकी यह अद्वितीय उपलब्धि न केवल खेल जगत में, बल्कि समाज के हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो किसी न किसी रूप में चुनौतियों का सामना कर रहा है। प्रीति की कहानी साहस, संघर्ष, और अदम्य इच्छाशक्ति की एक प्रेरणादायक यात्रा है, जो यह दिखाती है कि दृढ़ संकल्प और समर्पण से कोई भी बाधा पार की जा सकती है।
उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर ने हमेशा से ही खेलों के सामान की उत्कृष्टता के लिए ख्याति प्राप्त की है, लेकिन इस शहर ने विश्व स्तरीय खिलाड़ियों को तैयार करने में भी अपनी अलग पहचान बनाई है। इसी गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, मेरठ की बेटी प्रीति पाल ने पेरिस पैरालंपिक 2024 में महिलाओं की 100 मीटर (T35) रेस में भारत के लिए कांस्य पदक जीतकर देश का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया है। उन्होंने यह दौड़ 14.21 सेकंड में पूरी की।
2001 में मेरठ में जन्मी प्रीति पाल का जीवन एक साधारण परिवार में शुरू हुआ, लेकिन उनकी कड़ी मेहनत, लगन, और अटूट इच्छाशक्ति ने उन्हें सफलता की ऊँचाइयों तक पहुँचाया। प्रीति ने न केवल अपने परिवार का, बल्कि पूरे देश का मान बढ़ाया है। एथलेटिक्स के ट्रैक इवेंट में मेडल जीतकर प्रीति ने इतिहास रच दिया। वह इस उपलब्धि को हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं, जिन्होंने न केवल भारत बल्कि दुनिया भर में भारतीय खेल जगत का गौरव बढ़ाया है।
प्रीति का सफर आसान नहीं था। एक छोटे से गाँव से आकर उन्होंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए अथक परिश्रम किया। उनके संघर्ष की कहानी प्रेरणादायक है, जहाँ उन्होंने न केवल शारीरिक चुनौतियों का सामना किया बल्कि सामाजिक और मानसिक बाधाओं को भी पार किया। प्रीति का यह सफर उस अडिग जज़्बे की मिसाल है, जो बताता है कि अगर हौसले बुलंद हों, तो कोई भी चुनौती असंभव नहीं होती।
प्रीति पाल सेरेब्रल पाल्सी नामक एक गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं। यह बीमारी मस्तिष्क को प्रभावित करती है, जिससे चलने, सीखने, सुनने, देखने और सोचने जैसी कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं। लेकिन प्रीति ने कभी हार नहीं मानी और जीवन में कुछ बड़ा हासिल करने का संकल्प लिया। यह उनके दृढ़ संकल्प और साहस का ही परिणाम है कि उन्होंने इस बीमारी को अपनी कमजोरी बनने नहीं दिया, बल्कि इसे अपनी ताकत में बदल दिया।
अपने पहले पैरालंपिक में हिस्सा लेते हुए, प्रीति ने एथलेटिक्स के ट्रैक इवेंट में शानदार प्रदर्शन किया। उनकी मेहनत और तैयारी ने उन्हें इस मुकाम तक पहुँचाया। उन्होंने न केवल पदक जीता, बल्कि भारत को गर्व का एक और कारण दिया। उनके इस ऐतिहासिक प्रदर्शन ने भारतीय एथलेटिक्स में एक नया अध्याय जोड़ा है और उनके इस प्रदर्शन ने एक नई पीढ़ी को प्रेरित किया है।
प्रीति की इस उपलब्धि ने देश भर में दिव्यांग खिलाड़ियों को एक नई दिशा दी है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि अगर इरादे मजबूत हों, तो शारीरिक बाधाएँ कभी मायने नहीं रखतीं। उनकी सफलता ने भारत में पैरालंपिक खेलों की ओर ध्यान आकर्षित किया है और अन्य युवा खिलाड़ियों को भी प्रेरित किया है। प्रीति की कहानी हमें यह सिखाती है कि कठिनाइयाँ केवल एक चुनौती हैं, जिन्हें पार करने से हम और भी मजबूत बनते हैं।
प्रीति की इस सफलता के पीछे उनके परिवार, कोच और समाज का भी महत्वपूर्ण योगदान है। उनके कोच ने उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। परिवार के सहयोग और समाज के समर्थन ने प्रीति को आत्मविश्वास और हौसला दिया, जिससे वे इस मुकाम तक पहुँच सकीं।
पेरिस पैरालंपिक से पहले, प्रीति ने इसी साल मई में जापान के कोबे में आयोजित विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। उन्होंने 200 मीटर स्पर्धा में 30.49 सेकंड का व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ समय देकर यह पदक जीता, जिससे वे विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बन गईं। उनकी इस सफलता ने उन्हें पेरिस पैरालंपिक गेम्स का कोटा दिलाया।
इसके अलावा, बेंगलुरु में आयोजित छठवीं इंडियन ओपन पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी प्रीति ने शानदार प्रदर्शन करते हुए दो गोल्ड मेडल जीते। उनके इस प्रदर्शन ने न केवल उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई, बल्कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी अपनी छाप छोड़ने का अवसर दिया।
प्रीति पाल की यह कहानी केवल एक खिलाड़ी की सफलता की दास्तान नहीं है, बल्कि यह उन सभी के लिए प्रेरणा है जो जीवन में बड़ी उपलब्धियाँ हासिल करना चाहते हैं। प्रीति की सफलता ने यह साबित कर दिया है कि सच्ची मेहनत और समर्पण के साथ किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। उनकी यात्रा हमें यह सिखाती है कि यदि हम ठान लें, तो दुनिया की कोई भी चुनौती हमें रोक नहीं सकती।
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