देहरादून जिले में विकासनगर क्षेत्र में UJVNL की सरकारी कालोनियों में बाहर से आए मुस्लिमों को बसाने उन्हें कब्जा दिलाने का खेल चल रहा है। डाक पत्थर लखवाड़ कॉलोनी सहित अन्य सरकारी कॉलोनियों में बड़े-बड़े मुस्लिम खनन ठेकेदारों ने अब उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड की सरकारी कॉलोनियों पर अवैध कब्जे कराने का अभियान शुरू किया है। उत्तराखंड में जनसंख्या असंतुलन की समस्या को समझना है तो विकास नगर क्षेत्र की जलविद्युत परियोजनाओं की कॉलोनियों को आकर देखा जा सकता है।
जानकारी के मुताबिक, यूजेवीएनएल की विकास नगर क्षेत्र में बड़ी बड़ी कई सरकारी कॉलोनियां बनी हुई है। कुल्हाल, ढाली पुर, ढकरानी, डाक पत्थर, छिप्रो, लखवाड़ कॉलोनियों का निर्माण जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण के दौरान काम करने वाले श्रमिकों और अधिकारियों के रहने के लिए किया गया था। इनमें सैकड़ों लोग रहते थे, परियोजना का काम पूरा होते ही बहुत से लोग यहां से चले गए। अब ये भवन खाली पड़े थे, जिनमें अब बाहर राज्यों के मुस्लिम लोगों को लाकर योजनाबद्ध तरीके से अवैध रूप से बसाया जा रहा है, ये अवैध कब्जे कोई और नहीं बल्कि स्थानीय मुस्लिम खनन ठेकेदार, आसपास के गांवों के ग्राम प्रधान करवा रहे हैं। यहां आ कर बसने वाले मजदूर नदियों में खनन, डंपर, और फल सब्जी दूध बेचने वाले मुस्लिम समुदाय के हैं जो असरदार लोगों के वोटबैंक के काम भी आते हैं।
इसे भी पढ़ें: उत्तराखंड में मुस्लिमों के कारण तेजी से हो रहा ‘डेमोग्राफी चेंज’, कार्बेट सिटी रामनगर बन रही ‘रहमत नगर’
ये वही ग्राम प्रधान है जिन्होंने पछुवा देहरादून की ग्राम सभाओं की जमीन खुर्दबुर्द करते हुए यूपी बिहार के मुस्लिम तबके को अपने यहां बसाया और अब ये यहां की सरकारी जमीनों और भवनों पर कब्जे करवा रहे हैं। जानकारी के अनुसार यूजेवीएनएल के ए बी सी डी टाइप के मकानों की यदि सर्वे जांच की जाए तो मालूम पड़ता है कि इनमें रह रहे लोगों का जल विद्युत परियोजनाओं से दूर दूर तक का वास्ता नहीं है। फिर ये लोग कौन है? ये कहां से आकर यहां बसे या बसाए गए है?
सूत्र बताते हैं कि इन कॉलोनियों में खाली पड़े खंडरनुमा डी टाइप कैटेगरी के वीरान भवनों सबसे पहले फल सब्जी और छोटे मोटे कारोबार करने वाले बाहर आकर अपनी दुकान लगाते हैं फिर ये योजनाबद्ध तरीके से इन खंडहर भवनों की मरम्मत करते है और अंदर जाकर काबिज हो जाते हैं। इन यूजेवीएनएल कॉलोनी में बिजली पानी का भुगतान नहीं करना होता। यहां इन कॉलोनियों में कौन रहेगा कौन नहीं ये तय करने का काम यूजेवीएनएल के प्रबंधन का होता है जो कि यहां बसाने वाले ठेकेदारों के प्रभाव में रहते हैं।
जानकारी के मुताबिक, यहां छोटे स्तर के लोगों के लिए डी कैटेगरी है उसके बाद सी कैटेगरी के जर्जर भवनों पर कब्जे कराने का खेल चला। सी कैटेगरी के सरकारी खंडर भवनों ने आलीशान कोठियों का रूप ले लिया है, इनमें प्रभावशाली लोग कब्जे कर बैठे हुए है।
इसे भी पढ़ें: उत्तराखंड: हल्द्वानी रेलवे की जमीन अतिक्रमण प्रकरण, रेलवे ने फिर शुरू किया सर्वे, 4365 लोगों को दिया जा चुका है नोटिस
सरकार ने हटाया था शक्ति नहर का अवैध कब्जा
पुष्कर सिंह धामी सरकार ने पिछले डेढ़ साल में दो बार ढकरानी शक्ति नहर किनारे करीब सात सौ भवनों का अतिक्रमण ध्वस्त किया गया था, यहां बाहर से आए लोगों ने पहले सरकारी जमीनों पर कब्जा कर पक्के निर्माण कर लिए थे। सरकार को यहां अब आगे सौर ऊर्जा के प्रोजेक्ट पर काम करना था इस लिए नहर किनारे से अतिक्रमण हटाया गया। बड़ा सवाल ये था कि यहां से भगाए गए लोग आखिरकार कहां गए? इस जवाब मिलता है कि उन्होंने उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड की कॉलोनियों के अंदर खाली जर्जर पड़े भवनों में कब्जे कर लिए, अतिक्रमण करने वाले लोगों को ठेकेदारों ने कब्जे करवाए और निगम के अधिकारियो से उन्हें संरक्षण दिया।
इसे भी पढ़ें: उत्तराखंड डेमोग्राफी चेंज : देहरादून के 28 हिंदू बाहुल्य गांवों में अल्पसंख्यक हुए हिंदू, तेजी से बढ़ गई मुस्लिम आबादी
क्या इस अतिक्रमण से या भवनों के कब्जों से निगम अधिकारी अंजान है? इन अधिकारियों के घरों में दूध फल सब्जी और अन्य सामान पहुंचाया जाता है और बदले में अधिकारी इन कब्जों पर आंखे मूंदे बैठे रहते हैं। इस अतिक्रमण में लखवाड जल विद्युत परियोजना से जुड़े एक बड़े अधिकारी की कथित तौर पर मिलीभगत सामने आई है। यूजेवीएनल के चेयरमैन मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने दो माह पहले इस बारे में यूजेवीएनएल के अधिकारियों को निर्देशित किया था कि अवैध कब्जा किए लोगों को तत्काल हटाएं, लेकिन दो बैठकों के बाद ये आदेश निर्देश उन्होंने ठंडे बस्ते में डाल दिए।
सीएम धामी ने कहा अतिक्रमण हटेगा
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बार बार ये कहते आए है कि अतिक्रमण हटाओ अभियान जारी रहेगा, अतिक्रमण करने वालो से सख्ती से निपटा जाएगा और जुर्माना भी वसूला जाएगा।
टिप्पणियाँ