केरल: मलयालम फिल्म इंडस्ट्री का काला सच उजागर, कई बड़े अभिनेताओं के खिलाफ यौन शोषण का केस
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केरल: मलयालम फिल्म इंडस्ट्री का काला सच उजागर, कई बड़े अभिनेताओं के खिलाफ यौन शोषण का केस

ये रिपोर्ट वर्ष 2017 में केरल की एक संस्था वूमेन इन सिनेमा कलेक्टिव (WCC) की एक याचिका के बाद बनी, जिसमें मलयालम फिल्म उद्योग में यौन शोषण और लिंगभेद से जुड़े मामलों के अध्ययन की मांग की गई थी।

by सुनीता मिश्रा
Aug 30, 2024, 12:38 pm IST
in केरल
Malyalam Industry Me Too
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केरल में मलयालम फिल्म इंडस्ट्री यानी मॉलीवुड को लेकर न्यायमूर्ति हेमा समिति की रिपोर्ट में किए गए खुलासों के बाद हंगामा मचा हुआ है। अभिनेत्रियों के साथ यौन शोषण, यौन दुर्व्यवहार और दुष्कर्म की शिकायतों के मामले में एक के बाद एक कई बड़े चेहरों से नकाब उतर रहे हैं। कई जानी मानी अभिनेत्रियों और महिला सदस्यों ने बड़े-बड़े अभिनेताओं और फिल्मकारों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। मीडिया इसे मलयालम इंडस्ट्री का ‘मी टू’ आंदोलन बता रही है। गुरुवार (29 अगस्त 2024) को तीन चर्चित अभिनेताओं पर दुष्कर्म व यौन उत्पीड़न के मामले दर्ज किए गए।

इसे भी पढ़ें: लव जिहाद, कन्वर्जन के खिलाफ राष्ट्र व्यापी अभियान चलाएगा विश्व हिन्दू परिषद

इनमें जाने माने अभिनेता और सत्तारूढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के विधायक एम. मुकेश, जयसूर्या और मनियानपिल्ला राजू शामिल हैं। मुकेश के खिलाफ दुष्कर्म का मामला दर्ज किया गया है। एक अभिनेत्री ने आरोप लगाया है कि मुकेश ने कई साल पहले उसका यौन उत्पीड़न किया था, जिसके आधार पर यह मामला दर्ज किया गया। अब तक यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार के संबंध में कुल 18 केस दर्ज किए जा चुके हैं। यह सिलसिला जारी है, इसलिए लगता है कि अभी कई चेहरों से नकाब और उतरेगा।

मोहनलाल सहित कई पदाधिकारियों ने दिया इस्तीफा

केरल में एसोसिएशन ऑफ मलयालम मूवी आर्टिस्ट्स (एएमएमए) के कई सदस्यों के खिलाफ विभिन्न यौन शोषण के आरोप लगाए गए हैं। आरोपों के मद्देनजर इसके अध्यक्ष और मशहूर अभिनेता मोहनलाल सहित सभी पदाधिकारियों ने मंगलवार (27 अगस्त 2024) को अपने पदों से इस्तीफा दे दिया।

296 पन्नों की रिपोर्ट, 80 शिकायतें

ये रिपोर्ट वर्ष 2017 में केरल की एक संस्था वूमेन इन सिनेमा कलेक्टिव (WCC) की एक याचिका के बाद बनी, जिसमें मलयालम फिल्म उद्योग में यौन शोषण और लिंगभेद से जुड़े मामलों के अध्ययन की मांग की गई थी। इस समिति में हाई कोर्ट की रिटायर्ड जज जस्टिस के हेमा, पूर्व अभिनेत्री शारदा और रिटायर्ड आईएएस अधिकारी केबी वलसला कुमारी शामिल थीं। हेमा समिति की रिपोर्ट 296 पन्नों की है, जिसमें कम से कम 80 महिलाओं की शिकायतें रिकॉर्ड की गई हैं। इनमें कई जानी मानी महिलाओं से लेकर जूनियर आर्टिस्ट तक शामिल हैं।

‘मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में यौन शोषण करना गलत नहीं’

बीते दिनों मलयाली अभिनेत्री सैंड्रा थॉमस ने एक मीडिया इंटरव्यू में केरल फिल्म निर्माता संघ (KFPA) के सामने अपमानित होने का अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि मलयालम फिल्म इंडस्ट्री पर बहुत शक्तिशाली ताकतों का शासन है। यहां खासतौर पर पुरुषों का दबदबा है, जहां यह माना जाता है कि महिलाओं का यौन शोषण और मानसिक उत्पीड़न करके अपनी शक्ति दिखाना उनका एक अधिकार है और उन्हें ऐसा करने में कुछ भी गलत नहीं लगता है। लेकिन कई एक्ट्रेसेस ने अब आगे आकर अपने साथ हुए गलत व्यवहार को बयां की हिम्मत दिखाई है।

MeToo अभियान का इतिहास

दक्षिण भारत ही नहीं, बॉलीवुड की भी कई अभिनेत्रियां और महिलाएं इस तरह का बयान दे चुकी हैं कि उनके साथ कभी न कभी गलत हुआ है या किसी ने कुछ गलत करने की कोशिश की है। ये बात सिर्फ फिल्मी दुनिया तक सीमित नहीं है, हर क्षेत्र में हम देख सकते हैं कि घृणित मानसिकता वाले पुरुषों की कुदृष्टि महिलाओं पर रहती है। तमिलनाडु का सेक्स के बदले डिग्री कांड तो सभी को याद होगा। वहीं, अमेरिकी-यूरोपीय समाज को महिलाओं की गरिमा और आजादी को सम्मान देने वाला माना जाता है। लेकिन हॉलीवुड (अमेरिकी फिल्म इंडस्ट्री) के चर्चित निर्माता, निर्देशक हार्वे वाइंस्टीन पर जब अक्टूबर-2017 में एक अभिनेत्री ने कास्टिंग काउच का आरोप लगाया तो फिर इस तरह के आरोपों का एक सिलसिला-सा चल पड़ा।

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एक के बाद एक, हार्वे वाइंस्टीन पर करीब तीन दर्जन अभिनेत्रियों ने आरोप लगाया कि उन्होंने उनके साथ भी कभी न कभी गलत काम करने की कोशिश की। इसके बाद हॉलीवुड के आठ निर्माता-निर्देशक और इस तरह के आरोपों की जद में आए। फिर तो अमेरिका से प्रारंभ होकर ‘मी टू’ नामक अभियान पूरी दुनिया में फैला, जिसमें अपने-अपने क्षेत्रों की कामयाब महिलाओं ने खुलकर बताया कि उनके साथ गलत हुआ, कब हुआ और किसने किया।

पद का दुरुपयोग जघन्य अपराध

केरल की गिनती देश के सबसे शिक्षित राज्यों में होती है, लेकिन मलयालम फिल्म उद्योग में काम करने वाली महिलाओं और अभिनेत्रियों की स्थिति पर आई हेमा समिति की रिपोर्ट ने वहां के समाज, खासतौर पर फिल्मों में काम करने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों की मानसिकता को उजागर किया है कि कैसे अभी भी वे महिलाओं को केवल उपभोग की वस्तु ही समझते हैं। आजादी के कई दशकों बाद भी हमारे देश की आधी आबादी आजादी मिलने का इंतजार कर रही है। हमारे देश में न महिला डॉक्टर सुरक्षित हैं, न स्कूल-कॉलेज जाने वालीं बच्चियां, न दफ्तरों में काम करने वाली महिलाएं और न ही फिल्मों में काम करने वाली अभिनेत्रियां। यह सच है कि जहां कुंठित प्रवृत्ति वाले पुरुष किसी निर्णायक ओहदे पर होते हैं तो वे अपनी शक्ति का दुरुपयोग भी करते हैं, फिर चाहे वह फिल्मी दुनिया हो या अन्य क्षेत्र। समाज की स्थिति यह है कि ज्यादातर पुरुष महिलाओं के प्रति ठीक नजरिया नहीं रखते। पद का दुरुपयोग किसी जघन्य अपराध से कम नहीं होता।

महिलाओं का आगे आना अच्छी खबर

खैर, यह बहुत अच्छी खबर है कि अब अपने देश में महिलाएं दैहिक उत्पीड़न के खिलाफ खुलकर बोलने लगी हैं। वह जमाना चला गया, जब महिलाएं बदनामी के डर से उत्पीड़न का कड़वा घूंट चुपचाप पी लेती थीं। धीरे-धीरे ही सही, लेकिन उनकी समझ में आने लगा है कि इज्जत, आबरू, अस्मत जैसे जुमले पुरुष वर्चस्ववादियों द्वारा गढ़े गए हैं, ताकि इनके नाम पर महिलाओं को चुप करा दिया जाए। वे समझने लगी हैं कि उनकी इज्जत उनकी प्रतिभा, उनकी कर्तव्यनिष्ठा में निवास करती है, शरीर के किसी अंग विशेष में नहीं। यह जागरूकता जिस अनुपात में बढ़ती जाएगी, महिलाएं उतनी ही मुखर होंगी। साथ ही वे चेहरे भी बेनकाब होंगे जिन्हें लोग अपना आदर्श मानकर पूजते हैं।

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