पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार रुकने का नाम नहीं ले रहे। कभी ईशनिंदा के नाम तो पर कभी किसी और कारण से अल्पसंख्यक समुदाय के लोग लगातार निशाने पर हैं। उनकी मामूली-सी बात पर हत्या कर दी जाती है, नाबालिग लड़कियों का अपहरण कर उनका कन्वर्जन कराकर जबरन निकाह कर लिया जाता है। हिंदू युवतियों के साथ बलात्कार किया जाता है, बर्बरता की जाती है। वहां की अदालतें भी अल्पसंख्यकों को लेकर निष्पक्षता नहीं रखतीं।
पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून का अक्सर दुरुपयोग किया जाता है, खास तौर पर ईसाई, हिंदू, अहमदिया और शिया मुसलमानों को निशाना बनाकर। उनके विरुद्ध झूठे आरोप व्यक्तिगत प्रतिशोध, सांप्रदायिक घृणा, पेशेवर प्रतिद्वंद्विता, व्यक्तिगत दुर्भावना और भूमि विवाद से उत्पन्न होते हैं। इनके गंभीर परिणाम होते हैं, जिसमें सामाजिक बहिष्कार, आर्थिक कठिनाइयां और यहां तक कि हिंसक हमले भी। उदाहरण के लिए, 2014 में, शमा और शहजाद मसीह नामक एक ईसाई जोड़े को ईशनिंदा के झूठे आरोपों के बाद भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था। पाकिस्तान में न्यायिक प्रणाली भय और धमकी से अत्यंत प्रभावित है, जो निष्पक्ष सुनवाई और उचित प्रक्रिया में बाधा डालती है।
हाल ही में पाकिस्तान की एक गैर सरकारी संस्था ने ईशनिंदा कानून के दुरुपयोग पर रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के अनुसार, न्यायाधीश, वकील और पुलिस अधिकारी अक्सर धमकियों और संभावित हिंसा के कारण ईशनिंदा के मामलों में कार्रवाई करने से बचते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कई आरोपी व्यक्ति बच जाते हैं। पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने भी स्वीकार किया है कि ईशनिंदा के कई आरोप व्यक्तिगत या राजनीतिक लाभ के लिए लगाए जाते हैं।
ईशनिंदा कानून क्या है?
पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून पाकिस्तान दंड संहिता की धारा 295-298 में निहित हैं। ये कानून मजहब का अपमान करने वाले कार्यों को आपराधिक मानते हैं। उदाहरण के लिए, धारा 295-बी कुरान को अपवित्र करने के लिए आजीवन कारावास का प्रावधान करती है, जबकि धारा 295-सी पैगंबर मुहम्मद के बारे में किसी भी अपमानजनक टिप्पणी के लिए मृत्युदंड या आजीवन कारावास का आदेश देती है। इसके अतिरिक्त, ये कानून अहमदिया समुदाय की मजहबी प्रथाओं को आपराधिक बनाते हैं।
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर होने वाले अत्याचारों की घटनाओं पर बारीकी से नजर रखने वाली गैर सरकारी संस्था ‘वायस आफ पाकिस्तान माइनॉरिटी’ ने हाल में ‘ए स्पेशल रिपोर्ट आन पाकिस्तान्स सरगोदा ब्लासफेमी इनसीटेंड’ शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में इसे विस्तार से समझाने का प्रयास किया गया है कि कैसे पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को ईशनिंदा की आड़ में तबाह किया जा रहा है और इस षड्यंत्र में न्यायपालिका से लेकर सभी सरकारी संस्थान तक सहभागी हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना के बावजूद पाकिस्तान में ईशनिंदा कानूनों को सख्ती से लागू किया जाता है। वैश्विक मानवाधिकार संगठनों और कई देशों ने इन कानूनों को निरस्त करने या सुधारने का आह्वान किया है, बावजूद इसके ये कानून अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न का साधन बने हुए हैं।
25 मई, 2024 को एक हिंसक भीड़ ने सरगोधा के मुजाहिद कॉलोनी इलाके में एक ईसाई फैक्ट्री मालिक नजीर मसीह और उनके परिवार पर हमला किया। यह हमला झूठी अफवाह फैलाने के चलते किया गया। ऐसी अफवाह फैलाई गई थी कि मसीह ने कुरान के पन्ने जलाए हैं। उन्मादी भीड़ ने मसीह पर बेरहमी से हमला किया, उसे सड़क पर घसीटा और उसके घर और जूते के कारखाने को आग लगा दी। इस हमले के लिए मसीह के पड़ोसी अयूब गोंडल ने लोगों को भड़काया था, अयूब मसीह की व्यावसायिक सफलता से ईर्ष्या करता था। घटना से कुछ दिन पहले, दोनों परिवारों के बच्चों के बीच हुए विवाद ने तनाव को और बढ़ा दिया था। जब गोंडल ने देखा कि परिवार पुराने और बेकार कागजात जला रहा है, तो उसने मसीह पर कुरान जलाने का झूठा आरोप लगाकर हिंसा भड़का दी। हिंसा के बाद, ईसाई नेता और पंजाब के पूर्व एमपी ताहिर नवीद चौधरी ने पुष्टि की कि कुरान के किसी भी पन्ने को नहीं जलाया गया और परिवार केवल कचरे का निपटान कर रहा था।
पुलिस और प्रशासन की भूमिका
पुलिस को स्थिति के बारे में पता चला और उसने तुरंत कार्रवाई की। सरगोधा शहरी पुलिस स्टेशन से इंस्पेक्टर शाहिद इकबाल और उनकी टीम घटनास्थल पर सबसे पहले पहुंचने वालों में से थी। भीड़ को तितर-बितर करने और नजीर मसीह को बचाने के उनके प्रयासों के बावजूद, स्थिति तेजी से बिगड़ गई। पुलिस उन्हें जलते हुए घर से बचाने में कामयाब रही, लेकिन भीड़ ने उन्हें पुलिस से छीन लिया और उनकी पिटाई जारी रखी। दंगाइयों को नियंत्रित करने की कोशिश करते हुए 10 पुलिसकर्मी घायल हो गए। इसके बाद, पुलिस ने हमले में शामिल 26 लोगों को गिरफ्तार किया और 44 नामजद संदिग्धों और 300 से 400 अज्ञात दंगाइयों के खिलाफ मामला दर्ज किया। भीड़ द्वारा की गई पिटाई के चलते मसीह को आंतरिक चोटें आई थीं। उन्हें बचाने के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन 3 जून, 2024 की सुबह उनकी मृत्यु हो गई।
अदालत भी निष्पक्ष नहीं
पाकिस्तान की यह कोई इकलौती घटना नहीं है। इस साल जून के महीने में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार, हत्या, हमले जैसे गंभीर अपराध के 27 मामले सामने आए, जिसमें कुछ मामलों में आरोपियों के विरुद्ध थाने में प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की गई। एक रिपोर्ट के अनुसार, इस्लामी कट्टरवादियों के दबाव के चलते पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के विरुद्ध होने वाले अपराधों को शासन-प्रशासन गंभीरता से नहीं लेता। अदालतों का रवैया भी निष्पक्ष नहीं है।
यदि सोशल मीडिया पर पाकिस्तानी अल्पसंख्यकों के अत्याचारों वाली घटनाओं से संबंधित वीडियो पर नजर डाली जाए तो रोंगटे खड़े हो जाएंगे। पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों के खिलाफ चलने वाले अभियानों की निगरानी करने वाले सोशल मीडिया प्लेट फॉर्म ‘वॉयस आफ पाकिस्तान माइनॉरिटी’ ने अपने एक्स हैंडल पर 10 जुलाई को एक वीडियो साझा किया था। इसमें एक हिंदू लड़की के हाथ-पैर बांधकर, उसे जमीन पर पटक कर चाकू से उसकी नाक काटते दिखाया गया है।
वीडियो के साथ जो विवरण दिए गए हैं, उससे पता चलता है कि यह घटना पाकिस्तान के डेरा गाजी की है। इसमें बताया गया है कि जफर लाशारी नामक एक मुस्लिम गुंडे ने अपने साथियों के साथ मिलकर एक हिंदू लड़की का अपहरण कर लिया। पहले उसके साथ दुष्कर्म किया गया। फिर उसकी नाक काट दी गई। इस दिल दहलाने वाली घटना की शिकार हिंदू युवती कौन है, वीडियो साझा करने वाले ने इसका खुलासा नहीं किया। न ही यह बताया है कि इस घटना के बाद युवती और बदमाशों का क्या हुआ। इसी तरह कराची के एक ईसाई, क्रिस्टोफर की 15 वर्षीया बच्ची जैस्मिन को भी कुछ दिन पहले घर से उठा लिया गया। बाद में लाहौर की एक अदालत से उसके परिजनों को यह सूचना मिली कि जैस्मीन ने कन्वर्जन कर निकाह कर लिया है और वह कराची की अख्तर कॉलोनी में रह रही है।
क्रिस्टोफर का आरोप है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों द्वारा 15 साल की नाबालिग उम्र में शादी करने पर पाबंदी है। बावजूद इसके अदालत ने जैस्मीन की शादी को मान्यता दे दी और आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाए उन्हें संरक्षण प्रदान किया। जैस्मिन के पिता का कहना है कि उन्होंने अपनी बेटी की बरामदगी के लिए अदालतों, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री और पादरियों से भी संपर्क किया, पर हर ओर से उन्हें निराशा ही हाथ लगी।
पत्नी-बच्चों के सामने मार डाला
पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों के लिए पिछला जुलाई महीना भी अच्छा संदेश लेकर नहीं आया। इस महीने में भी अल्पसंख्यकों के खिलाफ अनेक घटनाएं सामने आईं। जुलाई के दूसरे सप्ताह में लाहौर में मार्शल मसीह को उसके मुस्लिम पड़ोसियों ने उसकी पत्नी और बच्चों के सामने मार डाला। उसे 16 गोलियां मारी गईं।
29 वर्षीय मार्शल अपने बुजुर्ग माता-पिता, पत्नी और अपने बच्चों का इकलौता सहारा था। उसका बड़ा बेटा 10 वर्ष का और छोटा 18 महीने का है। मार्शल की बहन गोशी याकूब कहती हैं, ‘‘कुछ दिन पहले उसके भाई ने पुलिस में मुहल्ले के कुछ मुसलमान लड़कों के खिलाफ ईसाई महिलाओं से छेड़खानी की शिकायत दर्ज कराई थी। वे ईसाई महिलाओं को परेशान करते थे ओर उन्हें डराने के लिए हवाई फायरिंग किया करते थे।’’
पुलिस ने उसके भाई की शिकायत पर उन लोगों को गिरफ्तार कर उनसे अवैध हथियार बरामद किए थे। लेकिन अगले दिन ही उन्हें रिहा कर दिया गया जिसका बदला उन लड़कों ने उनके भाई की हत्या कर के लिया। इसके बाद कई बार ईसाई समुदाय के लोग पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री के कार्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं पर अभी तक किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। गोशी का कहना है, ‘‘उसके पिता एक सेवानिवृत्त सफाई कर्मचारी हैं। उनकी उम्र 75 वर्ष से अधिक हो चुकी है। हृदय की बाईपास सर्जरी कराई है। मसीह की हत्या के बाद परिवार के सामने जीवन यापन का संकट खड़ा हो गया है।’’
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