देहरादून: राइट टू एजुकेशन (आरटीई) के तहत बच्चों को मदरसों में क्यों भर्ती किया जा रहा है? इस सवाल का जवाब पाने के लिए उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने शिक्षा महानिदेशक को पत्र लिख कर 5 सितंबर तक जवाब देने को कहा है।
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बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डा गीता खन्ना के द्वारा भेजे गए पत्र में कहा गया है कि आरटीई एक्ट धारा 1 की उपधारा 5 में मदरसा अथवा वैदिक पाठशाला को शिक्षण संस्थान की तरह संचालित नहीं किया जा सकता। ऐसे में शिक्षा विभाग इन संस्थाओं को मान्यता कैसे दे सकता है और आरटीई के तहत यहां बच्चों को शिक्षा कैसे दिला सकता है?
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डा खन्ना के मुताबिक, इससे भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है। इस मामले में शिक्षा विभाग को अपना पक्ष स्पष्ट करना चाहिए क्योंकि ये बच्चों की शिक्षा अधिकार से जुड़ा मामला है। उन्होंने कहा कि शिक्षा महनिदेशक से इस मामले में 5 सितंबर तक जवाब देने को कहा है।
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उल्लेखनीय है कि हरिद्वार जिले में कुछ माह पहले मदरसे में हिंदू बच्चों को आरटीई के जरिए पढ़ाने के लिए भेजा गया था। ऐसे अन्य मामले देहरादून जिले में भी आए थे। जिसपर बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने संज्ञान लिया था। आयोग का तर्क है कि मदरसों को स्कूल की मान्यता नहीं दी जा सकती क्योंकि वो इस्लामिक धार्मिक शिक्षा देते है। आयोग ने राज्य में चल रहे अवैध मदरसों में हो रहे बच्चों के शोषण का भी संज्ञान लिया हुआ है।
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