'स्‍वयंसेवकों को मूर्तिकार की तरह निखार देते थे वरिष्‍ठ प्रचारक बालकृष्‍णजी'
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‘स्‍वयंसेवकों को मूर्तिकार की तरह निखार देते थे वरिष्‍ठ प्रचारक बालकृष्‍णजी’

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्‍ठ प्रचारक बालकृष्‍णजी के स्‍मरण में श्रद्धांजलि सभा का हुआ आयोजन

by WEB DESK
Aug 28, 2024, 09:24 pm IST
in उत्तर प्रदेश
श्रद्धांजलि सभा में उपस्थित गणमान्य लोग

श्रद्धांजलि सभा में उपस्थित गणमान्य लोग

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लखनऊ  राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के पूर्व अखिल भारतीय सह व्‍यवस्‍था प्रमुख एवं पूर्व प्रांत प्रचारक (अवध प्रांत) स्‍व. बालकृष्‍णजी के स्‍मरण में गोमतीनगर के विशाल खण्‍ड स्थित सीएमएस स्‍कूल के सभागार में बुधवार की शाम 5 बजे श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। इसमें संघ के राष्‍ट्रीय स्‍तर के प्रचारकों सहित विभिन्‍न क्षेत्रों में कार्यरत स्‍वयंसेवकों ने उपस्थित होकर अपनी भावांजलि अर्पित की। बुधवार की सुबह राजेंद्रनगर स्थित भारती भवन में  शांति पाठ एवं हवन कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया था। इस अवसर पर उपस्थित समस्‍त अतिथियों ने कहा कि बालकृष्‍णजी जीवन पर्यन्‍त स्‍वयंसेवकों को निखार कर उन्‍हें देशसेवा के लिए प्रेरित करने का कार्य करते रहे।

वरिष्‍ठ प्रचारक बालकृष्‍णजी ने 20 अगस्‍त, 2024 को अपना नश्‍वर शरीर त्‍याग दिया था। वे संघ में विभिन्‍न पदों पर रहते हुए राष्‍ट्रनिर्माण में अहम भूमिका निभाते रहे। बालकृष्ण जी पांच भाइयों में दूसरे क्रम पर 5 मार्च, 1937 को जन्मे थे। उनका पैतृक निवास कानपुर देहात की बिल्हौर तहसील के शिवराजपुर ब्लॉक के कंठीपुर ग्राम पंचायत में था।  बालजी ने कानपुर के तत्कालीन विभाग प्रचारक स्व. अशोक सिंहल जी की प्रेरणा से नौकरी छोड़कर वर्ष 1962 में संघ का प्रचारक बनने का संकल्‍प लिया था। इसके बाद वे तहसील प्रचारक बिल्हौर, नगर प्रचारक कानपुर, जिला प्रचारक, विभाग प्रचारक, प्रांत शारीरिक प्रमुख, सह प्रांत प्रचारक, प्रांत प्रचारक अवध प्रांत, संयुक्त क्षेत्र सम्पर्क प्रमुख, उ.प्र. व उत्तराखंड तथा अखिल भारतीय सह व्यवस्था प्रमुख आदि दायित्वों पर रहे। आपातकाल के समय कानपुर में भूमिगत होकर सक्रिय रूप से काम किया। वर्तमान में उनका केन्‍द्र लखनऊ स्थित भारती भवन में था। इस अवसर पर अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वान्त रंजन जी, अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य प्रेम कुमार जी, सह क्षेत्र प्रचार प्रमुख पूरब क्षेत्र मनोजकान्‍त जी, वरिष्ठ प्रचारक रामजी भाई, क्षेत्र बौद्धिक प्रमुख मिथिलेश जी, अवध क्षेत्र के प्रान्त प्रचारक कौशल जी सहित मंत्री स्‍वतंत्रदेव सिंह सहित संघ के कई दायित्वधारी कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

स्‍वान्‍त रंजन जी, अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख ने कहा कि  बालजी के साथ लम्‍बे समय तक रहने का मुझे अवसर मिला। मैं उनको लेकर वाराणसी और लखनऊ के चौक की गलियों में स्‍कूटर से संघ की शाखाओं में ले जाया करता था। गलती होने पर वे डॉंटते थे मगर उनकी डॉंट में भी अथाह प्रेम होता था। वे स्‍वयंसेवकों के लिये जितने कोमल हृदय के थे, उतने ही स्‍वयं के प्रति कठोर। वे  उत्‍कृष्‍ट घोष वादक भी थे। उनमें देश के प्रति समर्पण का भाव कूट-कूटकर भरा था।

उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री, बृजेश पाठक ने  कहा कि बालकृष्‍णजी का जीवन देश के लिए समर्पित रहा। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्‍होंने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। वह  जीवन भर सिद्धांतों के प्रति अडिग रहे। ऐसे महापुरुष को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूँ।

वरिष्‍ठ पत्रकार एवं लेखक नरेंद्र भदौरिया ने कहा कि वे परिस्थितियों को हराकर आदर्शों पर जीना पसंद करते थे। प्रचारक स्‍वयंसेवकों को गढ़ने का कार्य करते हैं। 1972 में मैं उनके सम्‍पर्क में आया। स्‍वयंसेवकों को निखारने वालों में बालकृष्‍णजी का जीवन अनूठा रहा है। वे स्‍वयंसेवकों की सहायता और उनकी चिंता के लिये सदैव तत्‍पर रहते थे।

वरिष्‍ठ प्रचारक , ओमपाल जी ने कहा कि मृत्‍यु, जीवन का उत्‍तर है। मनुष्‍य की जीवन यात्रा एक प्रश्‍न है। आरएसएस की यात्रा में कई प्रचारक निकले। प्रचारक बनने से पूर्व मन में कई सवाल उठते हैं। बालजी ऐसे ही न जाने कितने स्‍वयंसेवकों के लिए उत्‍तर बने। उनका स्‍वभाव नारियल जैसा था। उनका जीवन सबके लिये आदर्श है।

माधवेंद्र जी ने कहा कि मैं महानगर का शारीरिक प्रमुख होता था। संघ में ध्‍वज का रोपण और रोहण करने का कार्य मुझे सौंपा गया था। इस काम को करने में प्रयोग में लाई जाने वाली बारीकियों को उन्‍होंने ही मुझे सिखाया। वे गलती देखने के बाद उसे उसी वक्‍त सुधार करवाते थे। वे हर स्‍वयंसेवक का ध्‍यान रखते थे। वे उनके सामाजिक और पारिवारिक समस्‍याओं तक पर चर्चा करते थे। उसका समाधान करते थे। वे सबकी बहुत चिंता करते थे।

पूर्व मुख्‍यमंत्री, डा. दिनेश शर्मा ने कहा कि स्‍व. बालकृष्‍णजी हर स्‍वयंसेवक के घर और उनके चूल्‍हे तक की चिंता किया करते थे। मेरे पिताजी के साथ उनका लम्‍बा सानिध्‍य रहा। उनकी बीमारी की अवस्‍था में एक बार मैं उनसे मिलने गया। मैंने उन्‍हें ढाँँढस देने का प्रयास किया। इस पर वह मुस्‍काते हुए बोले, ‘न तो मैं डॉक्‍टर की दवा से ठीक होऊँगा और न ही आपकी सांत्‍वना से। विधि का जो विधान होगा, उसे सबको जीना ही होगा।’ आदरणीय बालजी इस तरह जीते थे। उन्‍होंने हजारों स्‍वयंसेवकों को प्रेरणा देने का कार्य किया है।

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