वक्फ बोर्ड की बदमाशी फिर सामने आई है। उसने पटना जिले के एक हिंदू गांव को अपना बताया है। जब उच्च न्यायालय ने बोर्ड से कागज मांगे तो कहा कि नहीं है ।
जो नेता संसद में वक्फ कानून में संशोधन के लिए लोकसभा में प्रस्तुत विधेयक का विरोध कर रहे हैं, उन्हें पटना जिले के एक मामले को जरूर देखना चाहिए। यह घटना पटना सचिवालय से सिर्फ 35 किलोमीटर दूर फतुहा के गोविंदपुर गांव की है। विष्णु भगवान या गोविंद के नाम पर बसे इस गांव पर सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने दावा किया है कि गांव हमारा है। आनन फानन में वक़्फ़ बोर्ड ने एक महीने के अंदर गांव को खाली करने का नोटिस भी दे दिया है।
बोर्ड के इस तुगलकी फरमान से ग्रामवासी स्तब्ध हैं। इस गांव में 95 प्रतिशत हिन्दू आबादी है। गांव के पीछे एक छोटी सी मजार है। बोर्ड का मानना है कि मजार से शुरू होकर आसपास की पूरी जमीन कब्रिस्तान की है। गांव के लोगों का कहना है कि शुरू से ही यहां कब्रिस्तान कभी नहीं रहा है। अगर कब्रिस्तान होता तो कोई क्यों घर बनाता?
स्थानीय लोगों ने बताया कि कुछ समय पहले गोविंदपुर के पास बाजार समिति बन रही थी। इसके लिए सरकार ने जमीन का अधिग्रहण किया था। इसमें इस गांव की जमीन का भी कुछ हिस्सा अधिग्रहित किया गया था, जिस पर वक़्फ़ ने दावा ठोका है। सरकार ने जमीन अधिग्रहण के एवज में उसका मुआवजा भी स्थानीय लोगों को दिया था।
गोविंदपुर के लोगों ने परेशान होकर जमीन के मालिकाना हक की जांच के लिए पटना जिलाधिकारी के पास आवेदन दिया। इसके जवाब में जिलाधिकारी ने लिखित जवाब दिया है कि जमीन रैयत है। इसका तात्पर्य है कि जमीन का मालिकाना हक वक़्फ़ का नहीं बल्कि वहां रहने वाले लोगों का है। इसके बाद यह मामला पटना उच्च न्यायालय में पहुंचा। पटना उच्च न्यायालय ने भी वक़्फ़ से जमीन का कागज दिखाने को कहा। वक़्फ़ के पास संतोषजनक जवाब नहीं था। इसके बाद हाईकोर्ट ने वक़्फ़ के आदेश पर रोक लगा दी है।
इस मामले में सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष मो. इरशादुल्लाह का कहना है कि पहले मौखिक रूप से जमीन का भी वक़्फ़ होता था। बिहार में वक़्फ़ की बहुत बड़ी संपत्ति है। ऐसे में हर जमीन का कागज प्रस्तुत करना संभव नहीं है।
पटना उच्च न्यायालय के वरीय अधिवक्ता ब्रजेश पांडे ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में सदन में वक़्फ़ कानून संशोधन बिल प्रस्तुत किया गया है। हालांकि सदन में सहमति नहीं बन पाने के बाद इसे संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया है। केंद्र सरकार के कानून में संशोधन के बाद ऐसे विवादों को सुलझाने में मदद मिलेगी।
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