प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी तुलसी शोध संस्थान, चित्रकूट द्वारा 11 और 12 अगस्त को तुलसी जयंती मनाई गई। संतोषी अखाड़ा के पूज्यस्वामी रामजीदास ने समारोह का उद्घाटन किया।
उन्होंने कहा कि तुलसी के रूप में वाल्मीकि का रूप प्रकट हुआ है, क्योंकि वाल्मीकि अपने जीवनकाल में रामभक्ति को व्याख्यायित करने में अपने को पूर्ण नहीं पाते।
मुख्य वक्ता प्रो. अवधेशप्रसाद पांडे ने तुलसी के कठिन जीवन की चर्चा के साथ ही रामचरितमानस के लेखन के बारे में बताया। सांस्कृतिक संध्या में ‘रामायण’ नाटिका का मंचन कथक नाद, जबलपुर के कलाकारों ने किया। दूसरे दिन यानी 12 अगस्त को रांची से पधारे डॉ. जंगबहादुर पांडेय ने ‘मानस और बौद्धिक शुचिता’ विषय पर व्याख्यान दिया।
इसके बाद श्वेता गुंजन जोशी एवं उनके साथी कलाकरों ने ‘तुलसी के विशिष्ट पदों’ का संगीतमय गायन किया और अजय कुमार पटेल एवं सहायक कलाकारों द्वारा बघेली बोली में राम लोकगीतों की प्रस्तुति की गई।
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