“समय आ गया है”- स्टार एथलीट नीरज चोपड़ा ने पेरिस ओलंपिक के खेलगांव में पहुंचने के बाद यही पहला संदेश लिखा था भारतीय दल के लिए। नीरज को पता था कि उनकी स्पर्धा अभी शुरू नहीं हुई है, उन्हें यह भी आभास था कि बैडमिंटन और मुक्केबाजी जैसी स्पर्धाओं में भारत को निराशा ही हाथ लगी थी, फिर भी विश्वास इतना था कि भारतीय दल में मनु भाकर जैसे भी कुछ खिलाड़ी हैं जो ऐतिहासिक सफलता हासिल करने का माद्दा रखते हैं। ओलंपिक समाप्त होने के बाद अंदाजा लगा कि कितना सही विश्वास था चैंपियन खिलाड़ी का। हम भले ही 2020 टोक्यो ओलंपिक के कुल पदकों की संख्या (एक स्वर्ण सहित सात) से एक कदम पीछे रह गए, लेकिन जो छह पदक जीते उनमें से हर एक पदक ने इतिहास रचा। ऐसा पहली बार देखने को मिला कि विश्व खेल पटल पर भारत की दावेदारी को पूरी गंभीरता से लिया गया और विपक्षियों ने माना कि भारतीय खिलाड़ी या टीम उसके हकदार हैं। उसके अलावा जो छह पदक चौथे स्थान पर रहते हुए मिलीमीटर से या बेहद नजदीकी मुकाबले में चूके, उन्हें हम एक झटके में खारिज कैसे कर सकते हैं ?
यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है क्योंकि कई खेलप्रेमी या खेल विशेषज्ञों ने पेरिस ओलंपिक में देश की सफलता पर खुशियां मनाने की जगह विलाप किया कि इतनी बड़ी आबादी वाला देश पिछले टोक्यो ओलंपिक के पदकों की संख्या तक को पीछे नहीं छोड़ पाया या हम एक भी स्वर्ण पदक नहीं जीत सके। यह दुखद है। भारतीय खेल जगत की स्थिति और इतिहास का गहन अध्ययन करने से पहले कांग्रेस या ममता बनर्जी की तरह विलाप करते हुए आलोचनाओं का दौर शुरू कर देना कतई उचित नहीं है। बड़ी ही विनम्रता के साथ सवाल है कि ओलंपिक खेलों में सेकेंड के सौवें हिस्से से पदक चूक कर चौथे स्थान पर रहने वाले भारतीय एथलीटों में मिल्खा सिंह और पी टी ऊषा के अलावा अन्य किस एथलीट का उन्हें नाम याद है ? शायद उन तमाम हाय-तौबा मचाने वाले को याद नहीं होगा। लेकिन सिर्फ पेरिस ओलंपिक में छह-छह भारतीय खिलाड़ी या टीम अंतिम क्षणों में बेहद नजदीकी मुकाबले में पदक से चूक गए। ओलंपिक इतिहास के पदक विजेताओं की सूची में शामिल होने की दहलीज पर आकर वो पदक से चूक गए।
किसी ओलंपियन, किसी विशेषज्ञ से पूछिए – ये बहुत बड़ी उपलब्धि है। ओलंपिक खेलों में अगर जिन 217 देशों के खिलाड़ियों ने भाग लिया, उनमें से 86 देशों के खिलाड़ी पदक जीतने में सफल रहे। वो सारे पदक विजेता विश्व के श्रेष्ठ तीन स्थानों के लिए हाड़तोड़ प्रतिद्वंद्विता कर रहे थे। ओलंपिक में पदक जीतना हर खिलाड़ी का अंतिम सपना होता है। उनमें से अगर आप चौथे स्थान पर रहते हैं तो ऐसा नहीं है कि राह चलते कोई भी आपकी मेहनत, प्रतिभा, संकल्प, त्याग या इच्छाशक्ति पर सवाल उठाना शुरू कर दे। खेलप्रेमियों को याद होगा कि 1980 मास्को ओलंपिक (जिसका अमेरिका सहित शीर्ष देशों ने बहिष्कार किया था) में एकमात्र हॉकी का स्वर्ण पदक जीतने के अलावा भारतीय दल ओलंपिक खेलों से खाली हाथ लौटने की परंपरा का निर्वहन कर रहा था। 1952 हेलसिंकी ओलंपिक में के डी सिंह जाधव के कुश्ती में जीते कांस्य पदक के अलावा सिर्फ हॉकी से आस रहती थी, वो भी 1978 में एस्ट्रो टर्फ आने के बाद धूमिल होती चली गयी। अंततः 1992 बार्सिलोना ओलंपिक में भारतीय दल के हमेशा की तरह खाली हाथ लौटने पर महान एथलीट मिल्खा सिंह सहित तमाम खेलप्रेमियों ने आवाज उठानी शुरू कर दी कि महज भागीदारी के लिए भारतीय दल को ओलंपिक खेलों में भेजे जाने पर रोक लगा देनी चाहिए।
भारतीय खिलाड़ियों के पदक के दावेदारों की सूची में भी न आना शर्मनाक स्थिति थी। भारतीय खेल जगत पर लगते प्रश्नचिन्ह का असर अगले 1996 अटलांटा ओलंपिक में ही दिख गया जब लिएंडर पेस ने टेनिस में कांस्य पदक जीत पदकों का सूखा समाप्त किया। अब स्थिति यह है कि 1996 के बाद हर ओलंपिक खेलों में भारत के खिलाड़ी किसी न किसी स्पर्धा में पदक जीतने में जरूर सफल रहे हैं। और सबसे बड़ी बात यह रही कि हर पदक भारतीय ओलंपिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ता आया। उन ऐतिहासिक उपलब्धियों का दौर 2024 पेरिस ओलंपिक में भी जारी रहा। उस स्थिति में “नया भारत” के नए नायकों का हमें सम्मान करना चाहिए क्योंकि उन्हीं की बदौलत विश्व खेल पटल पर अलग-अलग स्पर्धाओं में नित नया आयाम स्थापित किया जा रहा है। रातों-रात अमेरिका, चीन, जापान, आस्ट्रेलिया या जर्मनी जैसी खेल महाशक्तियों को पछाड़कर भारतीय खिलाड़ी शीर्ष पर नहीं आ सकते हैं। इसके लिए सतत प्रयास और अथक परिश्रम की जरूरत पड़ती है। भारतीय खेल जगत निरंतर विकास की ओर अग्रसर है। समस्या ये है कि भारतीय सरकार इन शीर्ष देशों को टक्कर देते हुए ओलंपिक पोडियम पर पहुंचने के लिए अपने खिलाड़ियों को जितना प्रोत्साहन, आर्थिक मदद और सुविधाएं दे रही है, उस दौरान विकसित खेल महाशक्ति खेलों का स्तर थोड़ा और ऊंचा उठा देती है। इसका सीधा सा तात्पर्य है कि खेल महाशक्तियों से साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए भारतीय खेल जगत निरंतर प्रयासरत है और दिन-ब-दिन विकास की राह पर अग्रसर है। इसलिए पेरिस ओलंपिक में भारत को मिली सफलता और निरंतर विकास व विस्तार की ओर कदम बढ़ाए जाने की सराहना करनी चाहिए। ओलंपिक ऑर्डर का सम्मान पाने वाले स्टार शूटर अभिनव बिंद्रा ने भी कहा – “पेरिस ओलंपिक के दौरान मैंने सभी भारतीय खिलाड़ियों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने का जो जुनून देखा वह अद्भुत है। परिणाम के साथ प्रयासों को देखा जाए तो भारतीय दल का प्रदर्शन सराहनीय रहा। यहां तक कि टोक्यो ओलंपिक से भी बेहतर।” ओलंपिक खेलों में देश के लिए पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिंद्रा अगर भारतीय खेल जगह के बढ़ते कदम की सराहना करते हैं तो बखूबी समझा जा सकता है कि ओलंपिक खेलों में देश के लिए दूसरा व्यक्तिगत स्वर्ण पदक विजेता नीरज चोपड़ा ने पूरे विश्वास के साथ क्यों कहा था – “समय आ गया है।”
ओलंपिक में भारत के पदक विजेता
नाम -स्पर्धा पदक वर्ष
केडी सिंह जाधव कुश्ती कांस्य 1952 हेलसिंकी
लिएंडर पेस टेनिस कांस्य 1996 अटलांटा
कर्णम मल्लेश्वरी भारोत्तोलन कांस्य 2000 सिडनी
राज्यवर्धन राठौर शूटिंग रजत 2004 एथेंस
अभिनव बिंद्रा शूटिंग स्वर्ण 2008 बीजिंग
सुशील कुमार कुश्ती कांस्य 2008 बीजिंग
विजेंदर सिंह मुक्केबाजी कांस्य 2008 बीजिंग
सुशील कुमार कुश्ती रजत 2012 लंदन
विजय कुमार शूटिंग रजत 2012 लंदन
गगन नारंग शूटिंग कांस्य 2012 लंदन
योगेश्वर दत्त कुश्ती कांस्य 2012 लंदन
सायना नेहवाल बैडमिंटन कांस्य 2012 लंदन
एम सी मैरीकॉम मुक्केबाजी कांस्य 2012 लंदन
पी वी सिंधू बैडमिंटन रजत 2016 रियो
साक्षी मलिक कुश्ती कांस्य 2016 रियो
नीरज चोपड़ा एथलेटिक्स स्वर्ण 2020 टोक्यो
रवि दहिया कुश्ती रजत 2020 टोक्यो
मीराबाई चानू भारोत्तोलन रजत 2020 टोक्यो
पी वी सिंधू बैडमिंटन कांस्य 2020 टोक्यो
बजरंग पूनिया कुश्ती कांस्य 2020 टोक्यो
लवलीना बोर्गोहेन मुक्केबाजी कांस्य 2020 टोक्यो
पुरुष टीम हॉकी कांस्य 2020 टोक्यो
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