पेरिस ओलंपिक-2024 कई मायनों में अन्य ओलंपिक आयोजनों से अलग रहा, विशेष रूप से इसमें उपजे विवादों की वजह से। ये विवाद उद्घाटन समारोह से लेकर अंत कर उभरते रहे। फ्रांस की राजधानी पेरिस में एक आस्ट्रेलियाई महिला के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ। अर्जेंटीना-मोरक्को के बीच फुटबॉल मैच के दौरान मोरक्को के समर्थकों ने अर्जेंटीना के खिलाड़ियों पर बोतलें फेंकीं और मैदान पर उतर आए। खेल को दो घंटे रोकना पड़ा। फ्रांस के ट्रेन नेटवर्क पर हमला हुआ। कई रेल मार्गों पर तोड़-फोड़ की गई। तारों को जला दिया गया। इससे ढाई लाख से अधिक यात्री प्रभावित हुए। ये वे घटनाएं हैं, जो पेरिस ओलंपिक-2024 से ठीक पहले फ्रांस में घटीं। पेरिस ओलंपिक भी खेल से अधिक एथलीटों से जुड़े विवादों के लिए ही जाना जाएगा। इस बार सबसे बड़ा विवाद अल्जीरियाई बॉक्सर इमान खलीफ को लेकर हुआ, जिसके लिए कहा गया कि ‘वह महिला भेष में पुरुष था।’ कुछ ने इमान खलीफ को ट्रांसजेंडर बताया।
विवाद तब शुरू हुआ, जब इमान खलीफ का इटली की बॉक्सर एंजेला कैरिनी से मुकाबला हुआ जिसे एंजेला ने चंद सेकंड में ही छोड़ दिया और रिंग से बाहर चली गईं। उनका कहना था कि इमान खलीफ में ‘पुरुषों जैसी शक्ति’ है। इमान खलीफ को महिला वर्ग में खिलाने पर दुनियाभर में ओलंपिक एसोसिएशन की आलोचना हुई, लेकिन न तो इमान खलीफ को स्पर्धा से बाहर किया गया और न कोई कार्रवाई हुई। आलोचनाओं के बावजूद इमान खलीफ ने 66 किलो भार महिला श्रेणी में स्वर्ण पदक जीता। एक विवाद मेजबान देश फ्रांस के एथलीट एंथनी अम्मीराती से भी जुड़ा, जिसकी दुनिया भर में चर्चा हुई। दरअसल, ऊंची छलांग के 21 वर्षीय खिलाड़ी अम्मीराती का एक वीडियो इंटरनेट पर वायरल हुआ, जिसमें क्रॉस बार से उनका शरीर का एक हिस्सा टकराया और वह डिसक्वालीफाई हो गए।
पेरिस ओलंपिक के दौरान आस्ट्रेलिया के हॉकी खिलाड़ी टॉम क्रेग को कोकीन खरीदने की कोशिश में गिरफ्तार किया गया। ओलंपिक खेलों के दौरान ड्रग्स खरीदते हुए किसी एथलीट के पकड़े जाने का संभवत: यह पहला मामला था। पराग्वे की महिला तैराक लुआना अलोंसो को इसलिए ओलंपिक खेलगांव से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, क्योंकि उनकी सुंदरता के कारण दूसरे खिलाड़ियों का ध्यान भटक रहा था। विवादों की शृंखला में भारत की पहलवान अंतिम पंघाल भी शामिल रहीं। अंतिम पंघाल ने गलत तरीके से अपनी बहन निशा पंघाल को ओलंपिक खेलगांव के भीतर प्रवेश कराने की कोशिश की।
नतीजा, उनकी मान्यता रद्द कर दी गई और उन्हें खेलगांव से बाहर निकाल दिया गया। इस ओलंपिक में पदकों की गुणवत्ता पर भी उंगली उठी। ब्रिटेन की कांस्य पदक विजेता यास्मीन हार्पर ने पदक का रंग उड़ने का आरोप लगाया और कहा कि पदक पीछे से टूटा हुआ है। इस ओलंपिक में भारतीय पहलवान विनेश फोगाट को लेकर भी विवाद हुआ। मात्र 100 ग्राम अधिक वजन होने पर विनेश को फाइनल मैच और मेडल, दोनों से वंचित कर दिया गया। हालांकि, उन्हें रजत पदक दिलाने के लिए भारत सरकार ने प्रयास किए, लेकिन सफलता नहीं मिली।
ओलंपिक खेलों के दौरान पेरिस में प्रचंड गर्मी पड़ रही थी। मेजबान देश खिलाड़ियों को एयर कंडिशनर (एसी) तक उपलब्ध नहीं करा पाया। भारत सरकार ने अपने खर्चे से भारतीय खिलाड़ियों को एसी उपलब्ध कराए। चार साल में एक बार होने वाले ओलंपिक खेलों की तैयारी इतने निम्न स्तर की हो सकती है, वह भी विकसित देश फ्रांस में, यह आश्चर्य में डालने वाला विषय है। फ्रांस राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रहा है और इसकी छाया कहीं न कहीं पेरिस ओलंपिक खेलों के आयोजन पर पड़ी।
वैसे, 1896 में एथेंस से शुरू हुए ओलंपिक खेलों में विवाद कोई नई बात नहीं है। मानवाधिकार और समानता की वकालत करने वाले पश्चिमी देशों की पोल पहले भी ओलंपिक खेलों में खुलती रही है। एथेंस में प्रथम ओलंपिक खेलों में सिर्फ पुरुषों को भाग लेने दिया गया था। उस समय अधिकतर एथलीट ग्रीस के थे या जो ग्रीस यात्रा पर आए हुए थे।
1900 में भी पेरिस में ओलंपिक खेलों का आयोजन हुआ था। तब न तो ओलंपिक का उद्घाटन हुआ था और न समापन समारोह। विजेताओं को पदक भी नहीं दिए गए थे। आगे के कुछ और ओलंपिक भी ऐसे ही विवादों की भेंट चढ़े। ओलंपिक के स्तर का पता इस बात से भी चलता है कि 1904 में अमेरिका के मैराथन रनर फ्रेड लोर्ज ने स्पर्धा के दौरान अपने प्रशिक्षक की कार में लिफ्ट ले ली थी। विवाद हुआ तो लोर्ज का स्वर्ण पदक छीन लिया गया। 1908 के लंदन ओलंपिक में मैराथन रेस को एक किलोमीटर लंबा सिर्फ इसलिए किया गया ताकि राजघराने के सदस्य विंडसर कैसल में बैठकर दौड़ को देख सकें।
1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक तक महिलाओं को एथलेटिक्स और जिमनास्टिक में भाग लेने की मनाही थी। एम्सटर्डम ओलंपिक में 800 मीटर दौड़ में कई महिला धावक ट्रैक पर गिर गईं तो 200 मीटर से अधिक की स्पर्धाओं में महिला एथलीटों के भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया, जो 32 साल यानी 1960 के रोम ओलंपिक तक जारी रहा। ओलंपिक खेल राजनीतिक विवादों से भी अछूते नहीं रहे।
मेलबर्न ओलंपिक (1956) में सोवियत संघ और हंगरी के बीच वॉटरपोलो मैच के दौरान दोनों देशों के खिलाड़ी आपस में भिड़ गए। दोनों पक्ष के खिलाड़ी लहूलुहान हो गए। इस मैच को ‘ब्लड इन द वाटर’ की संज्ञा दी गई थी। 1980 में सोवियत संघ द्वारा अफगानिस्तान में सेना भेजने के विरोध में अमेरिका के 65 मित्र देशों ने मॉस्को ओलंपिक का बहिष्कार किया था। जवाब में 1984 में जब लॉस एंजिल्स में ओलंपिक का आयोजन हुआ तो 12 कम्युनिस्ट देशों ने उसका बहिष्कार किया। सबसे बड़ा विवाद 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में हुआ था। फिलिस्तीनी आतंकियों ने खेल गांव में इस्राएल के 11 खिलाड़ियों की हत्या कर दी थी। इसके बाद जर्मन सुरक्षाबलों को सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी थी।
विश्व में बढ़ रही तिरंगे की शान
पिछले कुछ ओलंपिक खेलों में भारतीय एथलीटों ने अच्छा प्रदर्शन किया है। पेरिस ओलंपिक में भले ही भारतीय एथलीट टोक्यो ओलंपिक के बराबर पदक नहीं जीत सके, पर 6 इवेंट ऐसे रहे, जिनमें भारत चौथे स्थान पर रहा। इस बार 117 सदस्यीय दल पेरिस गया था। इनमें 72 खिलाड़ियों ने पहली बार ओलंपिक में हिस्सा लिया। इन्होंने कुल 16 खेलों में भाग लिया और 11 खेलों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। नीरज चोपड़ा, मनु भाकर, स्वप्निल कुसाले, अमन सहरावत और भारतीय हॉकी टीम पदक जीतने में सफल रही।
खासतौर से मनु भाकर एक ही ओलंपिक में दो पदक जीतने वाली भारत की पहली खिलाड़ी बन गई हैं। वे निशानेबाजी में तीसरा पदक मात्र 0.1 अंक से चूक गईं। वहीं, नीरज चोपड़ा ने लगातार दूसरे ओलंपिक में पदक जीता। हालांकि वे स्वर्ण पदक से चूक गए। अमन सहरावत का कांस्य पदक जीतना भी महत्वपूर्ण रहा। महज 21 वर्ष की उम्र में ओलंपिक में पदक जीतने वाले अमन देश के सबसे युवा पहलवान बन गए हैं। उन्होंने बजरंग पूनिया और रवि दहिया जैसे दिग्गज पहलवानों को हराते हुए पेरिस ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया था। भारतीय हॉकी टीम ने 52 वर्ष बाद लगातार दो ओलंपिक में पदक जीत कर बड़ी उपलब्धि हासिल की है। इससे पहले भारत ने 1968 और 1972 ओलंपिक में लगातार दो कांस्य पदक जीते थे।
सरकार ने ओलंपिक खिलाड़ियों पर 470 करोड़ रुपये खर्च किए। नीरज चोपड़ा पर सर्वाधिक 5.72 करोड़ रुपये, एथलीटों पर 96.08 करोड़, मनु भाकर पर 1.68 करोड़ और बैडमिंटन खिलाड़ियों पर 72 करोड़ रुपये खर्च किए गए। नरेंद्र मोदी सरकार खेलों और खिलाड़ियों को न केवल प्रोत्साहन दे रही है, बल्कि उन्हें हर सुविधा भी दे रही है। भारत में 2014 से पहले खेलों को लेकर सरकारें गंभीर नहीं थीं, बस रस्म अदायगी होती थी। खिलाड़ी को स्वयं अपने प्रदर्शन को लेकर जूझना होता था। ओलंपिक में खिलाड़ियों को कोई भी विशेष सपोर्ट स्टाफ नहीं मिलता था।
लंदन ओलंपिक (2012) में भारतीय एथलीटों को एक कोच और फिजियो मिला था। लेकिन केन्द्र में मोदी के नेतृत्व वाली सरकार बनने के बाद सब कुछ बदल गया। 2016 से ओलंपिक में एथलीटों को तीन-तीन कोच उपलब्ध कराए गए हैं, जिनमें दिमागी सेहत के कोच भी शामिल हैं। साथ ही, खिलाड़ियों को विदेशों में प्रशिक्षण और उनकी पसंद के कोच भी उपलब्ध कराए गए। सरकार ने देश के बेहतरीन चिकित्सकों को खिलाड़ियों के दल के साथ भेजा। अब भारत 2036 में ओलंपिक की मेजबानी के लिए प्रयासरत है। इसकी तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई मंचों पर इसका जिक्र भी कर चुके हैं।
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