मध्य प्रदेश में इन दिनों पुस्तकों को लेकर विरोध होता देखा जा रहा है और यह विरोध कांग्रेस समेत उन तमााम वामपंथियों का है, जिन पर अक्सर इतिहास के साथ छेड़छाड़ करने, सनातन संस्कृति की वैचारिकता को नष्ट करने और उसे अपमानित करने के आरोप लगते रहे हैं । अब वर्षों से राज्य में सत्ता भले ही इनकी ना हो, किंतु ये लोग ही बताना चाहते हैं कि विद्या केंद्रों में क्या पढ़ाया जाना चाहिए और क्या नहीं! ये डॉ. मोहन सरकार को गलत ठहरा रहे हैं! जबकि मुख्यमंत्री की मंशा अपने प्रदेश के विद्यार्थियों को सुसंस्कारित, विचारवान, श्रेष्ठ, योग्यतम् बनाने की है । कहना होगा, जिन किताबों को लेकर कांग्रेस एवं वामपंथी इतिहास बदल डालने का आरोप लगाकर मप्र की सरकार को घेर रहे हैं और यह प्रचारित कर रहे हैं कि यह तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े लोगों द्वारा लिखी पुस्तकें हैं, इसलिए ये छात्रों को नहीं पढ़ाई जाएं। तब इन सभी से जिन्हें सरकार के निर्णय और पढ़ाई जा रही पुस्तकों से आपत्ति है, यह जरूर पूछा जाना चाहिए कि 50 सालों तक कांग्रेस केंद्र की सत्ता में रही और आज भी कई राज्यों में सत्तासीन है, वहां उसने अब तक क्या किया? वह अभी भी झूठा इतिहास पढ़ाने का काम कर देश की वर्तमान और भावी पीढ़ियों के मन मतिष्क में जहर भरने का काम क्यों कर रही है?
आश्चर्य तो यह देखकर भी है कि कांग्रेस के कई नेता इस मामले में कोर्ट जाने की धमकी दे रहे हैं, कहते हैं, डॉ. मोहन यादव की सरकार ने अपना फैसला वापिस नहीं लिया और इन सभी किताबों को जिन्हें आरएसएस के लोगों ने लिखा है, मप्र की शिक्षा में बंद नहीं कराया तो न्यायालय से जीतकर आएंगे और इन तमाम किताबों का पढ़ना बंद करवा देंगे। वास्तव में यह कांग्रेस के नेताओं का दिवास्वप्न है ! जैसे कि इन्हें लगता है कि न्यायालय कुछ देखेगा ही नहीं, जो कांग्रेसी कहेंगे उसी आधार पर पक्ष में निर्णय सुना दिया जाएगा।
नालंदा विश्वविद्यालय को लेकर कांग्रेस-वामियों का अपराध
अभी इस घटना को हुए बहुत दिन नहीं बीते हैं, इन वामपंथी और कांग्रेसियों ने पुन: बाबा साहेब डॉ. भीमराव आम्बेडकर को नालन्दा विश्वविद्यालय जलाने के संदर्भ में गलत ठहराया है । इन्होंने बख्तियार खिलजी को इसके पीछे दोषी ठहराए जाने को ही सिरे से खारिज कर दिया, इनकी एक नई थ्यौरी सामने आई है, “नालंदा विश्वविद्यालय को ब्राह्मणों ने जलाया था!” हद तो यह है कि इस झूठ को चर्चा का केंद्र बिन्दु भी बनाने का प्रयास किया जा रहा है । जबकि डॉ. आम्बेडकर ने ‘राइटिंग एंड स्पीचेस’ के तीसरे संस्करण में स्पष्ट लिखा है कि ‘‘मुसलमान आक्रमणकारियों ने नालंदा, विक्रमशिला, जगद्दल, ओदंतपुरी जैसे बौद्ध विश्वविद्यालयों को लूटा। उन्होंने देश में मौजूद बौद्ध मठों को तहस-नहस कर दिया। हजारों की संख्या में भिक्षु नेपाल, तिब्बत और भारत से बाहर अन्य स्थानों पर भाग गए। उनमें से बहुत बड़ी संख्या में मुस्लिम सेनापतियों ने उन्हें मार डाला। मुस्लिम आक्रमणकारियों की तलवार से बौद्ध पुरोहितों का किस तरह नाश हुआ, इसका विवरण मुस्लिम इतिहासकारों ने खुद ही दर्ज किया है।’’
डॉ. आम्बेडकर ने अपनी इस बात को सिद्ध करने के लिए ‘विन्सेंट आर्थर स्मिथ’ जो अंग्रेज काल में भारत में एक प्रशासनिक अधिकारी बनकर आए थे, उनके एतिहासिक शोध का भी संदर्भ लिया। वस्तुत: ‘विन्सेंट स्मिथ’ ने भारतीय इतिहास पर दो व्यापक खंड, ‘द अर्ली हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया’ और ‘द ऑक्सफ़ोर्ड हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया’ पुस्तकें लिखी थीं। उन्होंने नालंदा ध्वंस के विषय में जो लिखा, उससे भी यह स्पष्ट हो जाता है कि नालंदा विश्विविद्यालय का असली गुनहगार यदि कोई है तो वह ‘बख्तियार खिलजी’ है।
किताब “तबकत- ई-नसीरी” बताती है बख्तियार खिलजी के हिन्दू-बौद्ध अत्याचारों को
वस्तुत: इतिहासकार बी. एन. एस. यादव ने अपनी किताब में लिखा है, ‘तिब्बती किताब “पग सैम जोन ज़ांग” के बखानों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। यह तिब्बत की “डाउटफुल” ट्रेडिशन है।’ फिर ये किताब भी नालंदा की तबाही के 500 सालों के बाद अस्तित्व में आई। जबकि कुतुब-उद-ऐबक के समकालीन मिनहाज-उद-दीन की किताब “तबकत- ई-नसीरी” उस समय की सबसे प्रमाणिक किताब है, जब नालंदा तोड़ा जा रहा था और करोड़ों पुस्तकों को जलाया जा रहा था। इसमें बहुत स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि इख्तियार-उद-दीन मुहम्मद-बिन-बख्तियार खिलजी ने नालंदा पर हमला किया। हर भवन को तबाह किया और आग लगा दी। साथ ही छात्रों को जिंदा जला दिया। ये पुस्तक 1197 में लिखी गई, जबकि इसी समय में नालंदा पर आक्रमण हुआ था । क्या इन वामपंथी इतिहासकार डीएन झा को यह सत्य नहीं पता! जब बिना पढ़े लिखे यह बात जानते हैं कि नालंदा का गुनहगार इस्लामिक मजहबी मुसलमान मतान्ध बख्तियार खिलजी है तब क्या ‘झा’ हिन्दुओं को इसके नष्ट करने का असत्य कारण बताकर बौद्ध और सनातनी हिन्दुओं को आपस में लड़ाना नहीं चाह रहे?
इसके पहले के वामपंथी षड्यंत्र को देखिए; सत्ता कहने को कांग्रेस की रही, लेकिन राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) हो या कॉलेज, विश्वविद्यालय के तमाम विभाग, केंद्र एवं राज्यों के शिक्षा विभाग इनमें वर्षों तक कब्जा किसका रहा ? तो वह वामपंथियों और कांग्रेसियों का था । उन्होंने गधे को गाय लिखा तो वह गाय ही पढ़ा जाने लगा। कोई प्रश्न करें तो उसे यह कहकर नकार दिया जाता कि ये तो पुरानपंथी हैं, ये तो संघी हैं। इनका संबंध तो भगवा पार्टी से है, इसलिए ये ऐसी बातें करते हैं। यानी कि सही कोई बात करे तो उसे घेरो, व्यक्तिगत आक्षेप लगाओ और एक भ्रम की स्थिति पैदा करके उसे चुप कर दो और यदि फिर भी बात अपने पक्ष (वाम-कांग्रेस) में न बने तो विषय का विषयान्तर कर दो ।
इन्हीं वामपंथी इतिहासकारों ने फैलाया आर्यों का भारत पर आक्रमण करने का झूठ
अब रोमिला थापर को ही ले लो, उनका नाम आर्यों के आक्रमण की थ्योरी के साथ जुड़ा हुआ है। जबकि यह थ्योरी पूरी तरह से मनगढ़ंत, किसी के दिमाग की उपज साबित हो चुकी है। आर्यों ने भारत में बाहर से आकर यहां के पूर्व निवासियों को युद्धों में हराकर अपना राज्य स्थापित किया और हारे हुए लोगों को अपना दास बनाया। पिछली कितनी ही पीढ़ियों को यह झूठ पढ़ाया जाता रहा और यह बताने का प्रयास हुआ कि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ये सभी आर्य हैं शेष लोग भारत के मूल निवासी, आदिवासी हैं, इस एक धारणा बनाने और नैरेटिव सेट करने का आखिर इन वामपंथी इतिहासकारों का उद्देश्य क्या हो सकता है? यही कि भारत के लोगों को परस्पर जाति और नस्ल के आधार पर आपस में लड़ाना, जो कार्य स्वाधीनता के पूर्व अंग्रेज कर रहे थे, उसी को इन वामी इतिहासकारों ने आगे बढ़ाया।
इस संबंध में हरियाणा के हिसार, राखीगढ़ी पर हुए शोध के निष्कर्षों पर प्रकाश डालते हुए प्रोफेसर वसंत शिंदे जो इस शोध टीम का नेतृत्व कर रहे थे अपने अध्ययन के वैज्ञानिक आधार को लेकर बताते हैं, भारत पर आर्यों के आक्रमण की कहानी पूरी तरह गलत और असत्य है। इस खुदाई से मिले हड़प्पाकालीन शवों के डीएनए परीक्षण से यह बात स्पष्ट हो गई है कि उत्तर और दक्षिण भारत ही नहीं, नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और श्रीलंका तक सभी हड़प्पाकालीन सभ्यता के वंशज एक हैं।
प्रख्यात पुरातत्वविद् प्रो. बी. आर. मणि कहते हैं, ‘आर्यों के बाहर से आने का कोई प्रमाण नहीं। गत शताब्दी में अफगानिस्तान में तोखारी भाषा एवं ग्रीक लिपि में प्राप्त एक अभिलेख में भारत के आर्य राजाओं का वर्णन मिलता है एवं अनेक साक्ष्य अब तक मिल चुके हैं जो यह बताते हैं कि आर्य का अर्थ श्रेष्ठ होने से है न कि किसी नस्ल से जैसा कि कुछ इतिहासकार यह सिद्ध करने में लगे हुए हैं कि वे भारत पर आक्रमण करनेवाले लोग थे। वास्तव में यह कहना पूरी तरह से गलत एवं भ्रामक है। आर्य भारत के ही मूल लोग हैं, जिन्होंने भारत के बाहर कई दिशाओं में अपने ज्ञान-विज्ञान का विस्तार किया था’ लेकिन वामपंथी इतिहासकार रोमिला थापर कभी यह नहीं स्वीकारती हैं, वे कल भी जूठ बोल रही थीं, और आज भी बोल रही हैं।
भारत में राजनीतिक लाभ के लिए इतिहास की पाठ्यपुस्तकों से की गई छेड़छाड़
अरुण शौरी ने अपनी पुस्तक, “प्रख्यात इतिहासकार” (Eminent Historians ) में मुख्य रूप से वामपंथी शिक्षाविदों (जैसे रोमिला थापर, इरफ़ान हबीब, सतीश चंद्र, बिपिन चंद्र) की छानबीन की है! एक तीखी टिप्पणी में, अरुण शौरी ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि किस हद तक हमारी इतिहास की पाठ्यपुस्तकों को राजनीतिक रूप से सही दिखाने के लिए छेड़छाड़ की गई है। प्रख्यात इतिहासकार चर्चा करते हैं कि कैसे भारतीय इतिहासकारों ने भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर), राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) और शिक्षा जगत और मीडिया के एक बड़े हिस्से जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों को नियंत्रित और उनका दुरुपयोग किया है।
रोमिला थापर और इरफान हबीब जैसे इतिहासकारों को निशाने पर लेते हुए, शौरी का तर्क है कि मार्क्सवादी इतिहासकारों ने महमूद गजनवी और औरंगजेब जैसे शासकों के अभिलेखों को सफेद कर दिया है। वे कहते हैं कि भारत में मार्क्सवादी इतिहासकार भारत या भारतीय राज्यों के महत्वपूर्ण व्यक्तियों का शायद ही कभी उल्लेख करते हैं, उनके लिए मानक सोवियत रूस और पश्चिम के विद्वान हैं, जिनकी काल्पनिक उड़ान को भी ये सच मानते हैं और समय के साथ आक्रमणकारियों और विदेशियों के प्रस्तुत तथ्यों को ही बढ़ावा देते हैं, जबकि भारतीय संस्कृति में दूर-दूर तक निहित भले ही इनकी आंखों के सामने सच हो, ये ऐसे किसी भी चीज़ का तिरस्कार कर देते हैं।
अकेले रोमिला थापर ने ही गढ़ दिए थे इतिहास लेखन में कई झूठ
रोमिला थापर एक नैरेटिव और गढ़ती हैं कि भारत में मंदिरों को हिन्दू राजाओं ने ही समय-समय पर तोड़ा यानी कि मुस्लिमों ने जो किया, वह कोई नई बात नहीं थी, इस तरह से यहां भी एक झूठ को पूरी वामी इतिहासकारों की मंडली ने बहुत होशियारी से परोसने का काम किया। ताकि उलटे हिन्दू राजाओं को ही शक के घेरे में खड़ा किया जा सके और जिस मतान्धता एवं कट्टता का परिचय इस्लाम ने दिया, उससे उसे मुक्त करना आसान हो जाए। वस्तुत: सनातन हिंदू धर्म को बौना करने की साजिश में इन्होंने इस्लाम की लंबी लकीर खींचने की कोशिश की। महमूद गजनवी से लेकर पूरा इस्लामिक काल इनके लिए भारत का असली स्वर्णिम समय है । भगवान श्रीराम के अस्तित्व को काल्पनिक मानने वाली रोमिला थापर को अन्य इतिहासकारों में एन. राजाराम और कोटा वेंकटचलम जैसे योग्य इतिहासकारों से सही जवाब मिला, उन्होंने एक-एक विषय पर एतिहासिक दस्तावेज प्रस्तुत करते हुए रोमिला थापर के इतिहास लेखन पर प्रश्न खड़े करते हुए उसे पूरी तरह से नकारा है, उस पर ये वामपंथी इतिहासकार आज तक कोई भी जवाब देने की हिम्मत नहीं जुटा सकी हैं ।
नीरज अत्री और मुनीश्वर सागर ने अपनी पुस्तक ‘ब्रेनवाश्ड रिपब्लिक’ में अत्यंत ही तार्किक विधि द्वारा एनसीईआरटी की पुस्तकों में जान-बूझकर भारतीय इतिहास को अपने संकीर्ण राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए उपयोग करने के तथ्य दिए हैं और युवा मस्तिष्कों में भ्रांतियां डालने वाले एक बड़े षड्यंत्र का पर्दाफाश किया है। इस पुस्तक के आने के बाद वामपंथियों के मुंह से इसमें उठाए गए विषयों पर बोलते नहीं बन रहा है।
आप यदुनाथ सरकार, , गौरीशंकर हीराचंद ओझा, रमेशचन्द्र मजुमदार, , विश्वनाथ काशिनाथ राजवाड़े, रामशरण शर्मा, बिपिन चन्द्रा, रामचंद्र गुहा, दामोदर धर्मानंद कोसंबी, राधाकुमुद मुखर्जी, सव्यसाची भट्टाचार्य, सुमित सरकार, इरफान हबीब, रोमिला थापर, इन सभी के लिखे को पढ़ लीजिए । इन्होंने जो पी-एचडी और अन्य शोध आलेख अपने छात्रों से लिखवाए उनका अध्ययन करलीजिए, सभी की टोन एक जैसी है, और वह है भारत को कमजोर दिखाने का प्रयास करना। यानी इन्होंने अब तक देश भर में जो भी इतिहासकारों की एक बहुत बड़ी खेप तैयार की हैं, उन्हें अकादमिक संस्थानों में नियुक्त कराया वे सभी एक सांचे भी ढले हुए हैं और आज भी भारतीय सभ्यता और संस्कृति को लेकर विष वमन कर रहे हैं। इनके अधिष्ठाता कार्ल मार्क्स के अनुसार भारत का कोई इतिहास ही नहीं था। जिस प्रकार मार्क्स ने 1853 के अपने लेखों में भारतीय संस्कृति, समाज और रीति-रिवाजों पर अपमानजनक टिप्पणियां की थीं, उन्हीं टिप्पणियों से इनकी मानसिकता भी ग्रस्त है।
मॉर्क्स ने जो नकारात्मक बातें कभी भारत के लिए बोलीं, भारत में उन्हें ही इतिहास में आगे बढ़ाया गया
एतिहासिक संदर्भों में देखें तो 22 जुलाई, 1853 के लेख में ‘मॉर्क्स’ इस बात को स्थापित करते दिखाई दिए कि ‘‘भारतीय समाज का कोई इतिहास ही नहीं है……जिसे हम उसका इतिहास कहते हैं, वह वास्तव में निरंतर आक्रांताओं का इतिहास है, जिन्होंने अपने साम्राज्य उस निष्क्रिय और अपरिवर्तनीय समाज के ऊपर बिना विरोध के बनाए। अत: प्रश्न यह नहीं है कि क्या इंग्लैंड को भारत को जीतने का अधिकार था, बल्कि हम इनमें से किसको वरीयता दें, कि भारत को तुर्क जीतें, फारसी जीतें या रूसी जीतें, या उनके स्थान पर ब्रिटेन।’’ इसी प्रकार के अन्य लेखों में भी ‘मॉर्क्स’ ने भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़े किए थे, यही कार्य उनके अनुयायी भारत में करते दिखते हैं, उनके लिए राष्ट्रीय चेतना का कोई महत्व नहीं, इसलिए वे एक राष्ट्र के रूप में सदैव से भारतीय जन के मन में भ्रम पैदा कर रहे हैं, वे एतिहासिक संदर्भ में भारत को राष्ट्र मानने को तैयार नहीं, इस बात को लगातार नकारते हैं। ऐसे एक नहीं अनेक उदाहरण मौजूद हैं। कमाल की बात यह है कि इन वामियों के हाथ सत्ता में रहकर और सत्ता के बाहर होकर विपक्ष में बैठकर कांग्रेस खेलती नजर आती है। जैसा कि अभी हम मध्य प्रदेश में होता देख रहे हैं ।
डॉ. मोहन यादव सरकार का लक्ष्य राज्य के विद्यार्थी योग्य और श्रेष्ठतम बनें
आखिर इन किताबों को पढ़वाने का उद्देश्य उच्च शिक्षा विभाग का यही है कि राज्य के विद्यार्थी योग्य और श्रेष्ठतम बनें। इसीलिए ही प्रत्येक कॉलेज में भारतीय ज्ञान परंपरा प्रकोष्ठ बनाए जाने पर काम हो रहा है। अभी जिन 88 किताबों पर वामपंथी एवं कांग्रेस इनका रा.स्व.संघ से जुड़ी होने का आरोप लगाकर हल्ला मचा रहे हैं। जिनमें कि सुरेश सोनी, दीनानाथ बत्रा, डी. अतुल कोठारी, देवेन्द्र राव देशमुख जैसे नामों का उल्लेख किया जा रहा है, इसमें भी ये होशियारी दिखा रहे हैं। इस सूची में वेद प्रताप वैदिक का नाम है। एक नाम एस. अब्दुल नजीर साहब का भी है। ऐसे ही अन्य तमाम नाम हैं, जिनका कि रा.स्व.संघ से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। फिर यदि किसी का नाता है भी तो इसमें क्या बुराई हो सकती है, जब न्यायालय को इससे कोई एतराज नहीं है। अभी हाल ही में आए एक निर्णय में साफ कह दिया गया है कि सरकारी कर्मचारी भी शाखा जा सकते हैं, जब न्यायालय को किसी के संघ स्वयंसेवक होने पर अपत्ति नहीं,तब कांग्रेस और वामपंथी किस आधार पर संघ स्वयंसेवकों द्वारा लिखी पुस्तकों पर एतराज जता रहे हैं ।
कहना होगा कि ये सभी पुस्तकें उन सभी के द्वारा लिखी गई हैं जोकि अपने राष्ट्र को अपार प्रेम करते हैं। इनमें संघ के स्वयंसेवक भी हैं एवं अन्य समाज जीवन के विद्वतजन भी। कांग्रेस को समझना होगा कि सिर्फ वामपंथी ही योग्यता का अकादमिक मापदंड पूरा नहीं करते। अन्य भी हैं, जो बहुत विद्वान हैं। इस सूची में ऐसे कई प्रकाशक शमिल किए गए हैं जिन्होंने भारत की दृष्टि और ज्ञान परंपरा पर गहरा कार्य किया है। सभी पुस्तकें नई शिक्षा नीति 2020 के अनुसार ही तय पाठ्यक्रम पर आधारित हैं ।
आप स्वयं देखें और विचार करें, जो पुस्तकें मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्रत्येक महाविद्यालय में भारतीय ज्ञान परंपरा प्रकोष्ठ बनाकर पढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है, उनके विषय क्या-क्या हैं।
पुस्तक सूची में नाम हैं पूर्णांक की ओर, स्वभाषा लाओ-अंग्रेजी हटाओ, अंग्रेजी माध्यम का भ्रमजाल, भारतीय न्याय व्यवस्था की उपनिवेशवाद से मुक्ति, पर्यावरण अध्ययन विद्यालयीन पाठ्यक्क्रम, पर्यावरण प्रेमी भारतीय दृष्टि, उच्च शिक्षा भारतीय दृष्टि:, अटल बिहारी वाजपेयी-शिक्षा संवाद, शिक्षा में भारतीयता- एक विमर्श, राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020-भारतीयता का पुनरुत्थान, लीलावती भास्कराचार्य, एकाग्रता का रहस्य, कृष्णा जी शंकरा पटवर्धन, स्वामी पुरुषोत्तमानन्द, दिवास्वपन, हमारी सांस्कृतिक विचारधारा के मूल स्रोत, शिक्षा भारतीय परिप्रेक्ष्य, देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलो (डी.वी.डी.), जड़ से उखड़े हुए, भारतीय शिक्षाविदों के चिन्तन का वर्तमान उच्च शिक्षा में समावेश, शिक्षा विकल्प एवं आयाम, शिक्षा विकल्प एवं आयाम, शिक्षा का भारतीयकरण, शिक्षा में स्वायत्तता, भारतीय शिक्षा का स्वरूप, शिक्षा परीक्षा मूल्यांकन की त्रिवेणी, विविध शिक्षा के बहुआयामी लेख, शिक्षा में त्रिवेणी, भारतीय शिक्षा तथा भारतीयकरण, नए भारत का निर्माण ।
नई किताबें विद्यार्थियों को आत्म गौरव से भर देनेवाली हैं
इनके अलावा इस सूची में भारत में विज्ञान की उज्जवल परंपरा, बाल हृदय की गहराइयां, भारत में प्रशासनिक सेवा परीक्षा मिथक एवं यथार्थ, ऋगवेद में दार्शनिक तत्व, भारतीय शिक्षा मनोविज्ञान के आधार, भारत क्या है?, भारत का धार्मिक इतिहास, परमात्मा स्वरूप, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के चार अध्याय, आचार्य जगदीश चन्द्र बोसु, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस, वैदिक चिन्तन की धारायें, भारतीय इतिहास चिन्तन तथा लेखन, भारत के प्रमुख विज्ञानाचार्य, विद्यानय गतिविधियों का आलय, चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व के समग्र विकास का पाठ्यक्रम, मूल्य परक शिक्षा की अवधारणा एवं शिक्षकों का प्रशिक्षण, आचार्य का आचार्यत्व जागे, आचार्यों के प्रेरक प्रसंग, शिक्षा जीवन मूल्यों का सृजन, आत्मवत सर्वभूतेषु, मां का आह्वान, पूजा हो तो ऐसी, भूले न भुलाये, आत्मतत्व का विस्तार, संयम एवं सदाचार, शिक्षा, व्यक्तित्व का विकास, मन की शक्तियां तथा जीवन गठन की साधनायें, वैदिक गणित प्रणेता- स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ, वैदिक गणित अतीत, वर्तमान एवं भविष्य, वैदिक गणित विहंगम दृष्टि, भारत के प्रमुख गणिताचार्य, वैदिक गणित निर्देशिका, श्रीनिवास रामानुजन, इसी प्रकार की अन्य वैदिक गणित का ज्ञान देनेवाली पुस्तकें पढ़ने के लिए कहा गया है।
भाषायी तौर पर कुछ पुस्तकें सूची में अंग्रेजी में भी हैं। Personality Development, History of Science and Scientific Method, Science And Scientist in India, The Concept of Values Based Education and Training of Teachers, Great Mind of India?, Science and Art of Happy Living, Higher Education Bharatiya Perspective, Know Your India, An Alernative Prespective on Education।
अंत में यही कि जो देशहित में है, वही आचरण हमें करना चाहिए, फिर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम अपने जीवन यापन के लिए कौन सी दिशा एवं कार्य चुनते हैं। वामपंथी इतिहासकारों का भारत के संदर्भ में जो आज सबसे बड़ा अपराध दिखता है वह यही है कि वे सत्य प्रकट करने का इतिहास में ढोंग जरूर कई जगह करते हैं, किंतु वास्तविकता में कई सत्य घटनाओं को छिपा जाते हैं । फिर कई बार उन्हें गलत ढंग से प्रस्तुत करते हैं। दूसरी ओर यह सब जानते हुए भी कांग्रेस, वामपंथियों को अपने साथ रखने एवं उन्हें हर संभव पोषित करने के प्रयास करती है, ऐसे में निश्चित ही यह आचरण अंतत: भारत को कमजोर करनेवाला है, जिससे हर देश भक्त को एतराज है।
(ये विचार लेखक के निजी विचार हैं)
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