जमानत पर जेल से बाहर आए हेमंत सोरेन ने चंपई सोरेन को बिना पूछे उन्हें हटाने का फैसला ले लिया और आनन फानन में ऐसी स्थिति पैदा की गई कि उन्हें इस्तीफा देना पड़ गया। इस बात को पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन अपना अपमान मान रहे हैं। हालांकि कई दिनों की चुप्पी के बाद उन्होंने अपना दर्द सोशल मीडिया पर एक पत्र जारी करते हुए साझा किया है। सिर्फ इतना ही नहीं उन्होंने सोशल मीडिया हैंडल और अपने घर की छत से झामुमो का झंडा भी हटा दिया है। इन्हीं बातों को देखते हुए लोग सवाल पूछ रहे हैं कि झामुमो से अपमानित होने के बाद क्या चम्पाई सोरेन भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लेंगे?
कौन हैं चम्पाई सोरेन?
चम्पाई सोरेन ने अलग झारखंड राज्य आंदोलन में लंबी लड़ाई लड़ी थी। झारखंड मुक्ति मोर्चा में कई बार विभाजन के बाद भी वो झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के साथ डटे रहे थे। पहली बार साल 1991 में उन्होंने निर्दलीय विधायक के रूप में सरायकेला से जीत दर्ज की थी बाद में वो जेएमएम में शामिल हो गए। वर्ष 2000 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था लेकिन 2005 के बाद से वो लगातार जीतते रहे हैं। पहली बार भजपा और झारखंड मुक्ति मोर्चा गठबंधन की सरकार में वो मंत्री बने थे। बाद में वो हेमंत सोरेन के पहले कार्यकाल में भी मंत्री बने। साल 2019 के चुनाव में कोल्हान क्षेत्र में जेएमएम की अच्छी जीत में भी उनका बड़ा योगदान माना जाता है।
क्या होगा अगर चम्पाई सोरेन चले जाते हैं भाजपा में ?
भाजपा में चम्पाई सोरेन के जाने के बाद झारखंड की राजनीति में भी एक बहुत बड़ा उलटफेर देखने को मिल सकता है। राजनीतिक पंडित मान रहे हैं कि चम्पाई सोरेन के भाजपा में शामिल होने से भाजपा को जनजातीय सीटों पर फायदा होगा। उदाहरण के तौर पर कोल्हान क्षेत्र में कुल मिलाकर 14 सीटें आती है जिसमें एक सीट सरयू राय के पास है बाकी 13 सीटें आज भी गठबंधन के पास ही है। इस कोल्हान क्षेत्र में चम्पाई सोरेन का अच्छा खासा दबदबा है।
झामुमो से चम्पाई का मोह भंग होने का क्या है कारण?
पिछले 5 महीनों में चम्पाई सोरेन अपने क्रियाकलापों से काफी लोकप्रियता हासिल कर चुके थे। इसी लोकप्रियता को देखते हुए हेमंत सोरेन के जेल से वापस आने के तुरंत बाद उन्हें सम्मानजनक विदाई के बगैर गद्दी से उतार दिया गया। दिन था हूल दिवस का और उनके कई जगह सार्वजनिक कार्यक्रम भी थे। इन कार्यक्रमों में पीजीटी शिक्षकों का नियुक्ति पत्र वितरण भी था। जमानत पर जेल से बाहर आए हेमंत सोरेन के निर्देशानुसार 3 जुलाई को विधायक दल की बैठक बुलाई गई और उन्हें तब तक मुख्यमंत्री के तौर पर किसी भी कार्यक्रम में जाने से रोक दिया गया। उन्होंने अपने पत्र में भी लिखा कि वर्षों से पार्टी के केंद्रीय कार्यकारिणी की बैठक नहीं हो रही है और एक तरफ आदेश पारित किए जाते हैं तो यह तकलीफ वह किसे बताते? जो पार्टी के सुप्रीमो है वह भी स्वास्थ्य कारणों की वजह से सक्रिय नहीं हो पा रहे हैं, तो उनके पास कोई विकल्प भी नही था।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि श्री चम्पाई की बढ़ती लोकप्रियता से हेमंत सोरेन घबरा चुके थे। उन्हें यह लगने लगा था कि ज्यादा समय तक अगर चम्पाई सोरेन मुख्यमंत्री रह गए तो अगली बार झामुमो वाले उन्हे अपना नेता भी ना मानें। सिर्फ इतना ही नहीं चम्पाई के गद्दी से हटते ही उनकी कई योजनाओं को या तो लागू नहीं किया गया या फिर उनके नाम बदल दिए गए। उदाहरण स्वरूप मुख्यमंत्री बहन बेटी स्वावलंबन योजना का नाम बदलकर माइयाँ योजना कर दिया गया इसके साथ ही पंचायत सहायकों के सहयोग के लिए मानदेय की योजना लाना चाहते लेकिन उसपर रोक लगा दी गई।
जनजातियों के लिए सदैव आवाज उठाने वाले चम्पाई सोरेन की आवाज दबा दी गई!
संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा जनजातियों की जमीन लूटे जाने की खबर से भी चम्पाई सोरेन काफी आहत थे। उन्होंने एक प्रेस वार्ता के दौरान यह भी कहा था कि अगर सरकार पर इस तरह के आरोप लग रहे हैं तो उसे सिरे से खारिज करने के बजाय इन विषयों की जांच करनी चाहिए उसके बाद ही कोई बयान देना चाहिए। हालांकि चम्पाई के इस सुझाव का झामुमो के अंदर कोई असर नहीं दिखाई दिया। इसके उलट जब बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा संथाल परगना में लव जिहाद और जमीन जिहाद से पर बोलने के बजाय हेमंत सोरेन से लेकर कांग्रेस के भी कई नेता बांग्लादेशी घुसपैठियों की तुलना प्रदेश के अंदर दूसरे राज्यों के निवासियों से कर रहे थे।
अब क्या होगा झारखंड की राजनीति का समीकरण ?
कई मीडिया संस्थानों की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 2024 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सरकार बनाने जा रही है। वहीं अब चंपई सोरेन के भाजपा में आने के बाद इसमें कहीं कोई संदेह नहीं कि भाजपा और भी अधिक मजबूत दिखाई दे रही है। बता दें कि जनजातीय समाज के लिए पूरे झारखंड प्रदेश में लगभग 28 सीटें आरक्षित हैं। वर्ष 2024 के लोकसभा में पांच जनजातीय सीटों पर भाजपा को काफी नुकसान झेलना पड़ा था। इसी नुकसान की भरपाई के लिए भारतीय जनता पार्टी ने इस बार जो दाव चला है, इसका काट झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस गठबंधन के पास दिखाई नहीं दे रहा है। जनजातीय समाज के बीच चंपई सोरेन की एक बेहद ईमानदार और काम करने वाले नेता की छवि बनी हुई है। चम्पाई सोरेन जनजातीय समाज के प्रसिद्ध नेताओं में से एक है।
इसके उलट झारखंड मुक्ति मोर्चा के बारे में कहा जाता है कि यह अब सिर्फ एक परिवार की पार्टी बनकर रह चुकी है। इसमें भी सिर्फ हेमंत सोरेन और उनके परिवार के लिए ही जगह है। हालांकि हेमंत के ही बड़े भाई दुर्गा सोरेन की पत्नी को भी उचित सम्मान ना मिल पाने की वजह से वह झारखंड मुक्ति मोर्चा को अलविदा कह कर भाजपा का दामन थाम चुकी हैं।
सवाल अब ये उठता है कि क्या हेमंत सोरेन और झामुमो का अंत समय आ चुका है? ऐसा इसीलिए कहा जा रहा है क्योंकि उनकी पार्टी के सभी ईमानदार और कर्मठ नेता उनके एकतरफा निर्णय और कार्यशैली से नाराज हैं। ऐसी स्थिति में या तो वे भितरघात करेंगे या फिर भाजपा में शामिल हो जाएंगे, और अगर ऐसा होता है तो अगले चुनाव में झामुमो झारखंड की सबसे कमजोर पार्टी के तौर पर नजर आ सकती है।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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