दिल्ली में आज मंडी हाउस से लेकर जंतर-मंतर तक सड़कें केसरिया रंग के ध्वजों और एक मौन से पट गईं। वह मौन इसलिए था कि मौन का स्वर मीडिया के माध्यम से वहाँ तक पहुंचे, जहां इसे पहुंचना चाहिए। पीड़ाओं का जो अथाह संसार भारत का एक विभाजित अंग झेल रहा है, उन पीड़ाओं को मौन का स्वर देने के लिए ये महिलाएं सड़कों पर पहुंची थीं। हिंदुओं पर अत्याचार के खिलाफ वे सड़कों पर उतरीं।
नारी शक्ति फोरम के आह्वान पर ये महिलाएं दिल्ली के कोने-कोने से आई थीं। अपने बच्चों को स्कूल छोड़कर, नन्हे बच्चों को साथ लेकर एक स्वर में पीड़ाओं के विस्तार को थामने के लिए आई थीं। मंडी हाउस से लेकर जंतर मंतर तक सुबह 11 बजे से लेकर दोपहर के 2 बजे तक मानो जैसे एक ही मौन स्वर गूंज रहा था कि “बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बंद करो!”
वहाँ पर जो भी महिलाएं थीं, वे हर वर्ग की थीं। पुरुष भी थे, मगर वे सहायक की भूमिका में थे। साधु भी थे। मीडिया कर्मी भी थे और वे भी तमाम प्रश्नों के साथ थे। इस प्रदर्शन में आई हुई महिलाओं में से कई महिलाओं ने कहा कि वे हिन्दू होने के नाते यहाँ पर आई हैं। हिन्दू होने का अर्थ ही है सर्वे भवन्तु सुखिन:। एक महिला ने कहा कि यह हिन्दू ही है, जो यह कहता है कि सभी सुखी रहें और सभी का कल्याण हो। मगर सबसे अधिक दुख की बात यही है कि जो सर्व कल्याण की बात करता है, वही प्रताड़ित हो रहा है।
हिन्दू कट्टर नहीं हो सकता है। ऐसा वहाँ पर मौजूद तमाम महिलाओं ने कहा। उनका कहना था कि हिन्दू सभी को साथ लेकर चलता है, क्योंकि वह सभी का भला ही चाहता है। उनका कहना था कि हिन्दू जिस देश में रहता है, उस भूमि की उन्नति में ही प्रसन्न रहता है और बांग्लादेश तो फिर उनकी पुरखों की जमीन है, जहां पर उनके साथ यह सब हो रहा है।
वहाँ पर कई महिलाएं ऐसी भी थीं, जिनकी आँखें नम थीं। वे नम किसलिए थीं, यह अनुभव करना कुछ दुष्कर कार्य था। क्या वे चाह रही थीं कि उनकी पीड़ाएं भी सुनी जाएं, या फिर उनकी कोई साझा पीड़ा थी? यह पूछने का समय इसलिए नहीं था क्योंकि वह मौन विरोध प्रदर्शन था। तमाम जो वेदनाएं थीं, जो बंगभूमि से उपजी थीं, और यहाँ पर किसी प्रकार पहुंची थीं, वे मौन के माध्यम से ही विमर्श मे लानी थीं। हालांकि जब विरोध प्रदर्शन कर रही महिलाएं जंतर मंतर तक पहुंचीं तो वहाँ पर कुछ वक्ताओं द्वारा सम्बोधन था। जिनमें वरिष्ठ अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा सहित कई अन्य गणमान्य महिलाएं सम्मिलित थीं।
वहाँ पर मौजूद एक महिला ने कहा कि एक भी महिला के साथ बलात्कार के होने का अर्थ है पूरे परिवार और अंतत: समाज का नष्ट हो जाना। यदि एक लड़की की हत्या होती है तो सारा समाज पीड़ित हो जाता है। इसलिए जब हम महिला या लड़की को बचाने की बात करते हैं तो वह पूरे परिवार और समाज को बचाने की बात होती है और हमें परिवार को बचाने की बात करनी चाहिए।
एक महिला ने कहा कि यह मौन प्रदर्शन इसलिए आवश्यक है क्योंकि जिससे मीडिया के जरिए यह संदेश जाए कि आम महिलाएं भी इस विषय को समझती हैं, जानती हैं। वे पूरी दुनिया के अपने भाई-बहनों के लिए सड़क पर उतर सकती हैं। वे अपनी बहनों के लिए यदि आवाज उठा सकती हैं, तो चुप रहकर भी उस अन्याय को दुनिया के सामने ला सकती हैं।
एक महिला ने इस मार्च के आरंभ होने से पहले कहा कि ‘हिंदुओं का मौन ही बहुत प्रभावी होता है’। एक महिला का कहना था कि हमने कभी किसी पर न ही लड़ाई थोपी और न ही युद्ध। हम तो प्राचीन काल से ही प्रेम और करुणा का संदेश देने वाले लोग हैं। फिर हमारे साथ ही बांग्लादेश और पाकिस्तान में ऐसा क्यों हो रहा है?
हिंदुओं के लिए कार्य करने वाले कई संगठन भी इस विरोध प्रदर्शन में मौजूद थे। मगर कई बार प्रयास करने के बाद भी यह नहीं पता चला कि वे किस संगठन से हैं। पूछने पर यही कहा गया कि “हम बांग्लादेश के अपने हिन्दू भाइयों के लिए आवाज उठाने के लिए आए हैं। हमारी और कोई पहचान शेष है ही नहीं। हम केवल हिन्दू हैं!”
इस महिला मार्च में तमाम व्यवस्थाओं की पूर्ति के लिए पुरुष सहयोगी भी थे। कोई भी अभियान तभी सफल होता है, जब समाज के सभी अंग अपनी तमाम क्षमताओं के साथ यज्ञ में आहुति देते हैं। और साझी पीड़ा के इस अभियान में ऐसा कैसे हो सकता था कि पुरुष शक्ति अपना योगदान न दे। महिला और पुरुष पीड़ा अलग नहीं हैं, क्योंकि एक का विध्वंस दूसरे से अलग है ही नहीं और एक का सृजन दूसरे के सृजन से परे है ही नहीं।
आज दिल्ली में जो महिलाएं सड़क पर उतरी थीं, उनके हाथों में तमाम तस्वीरें थीं, वे तस्वीरें खौफ की थीं, दर्द की थीं और विस्थापन की थीं। उनके चेहरे या बाहों पर काली पट्टी थी। यह काली पट्टी प्रतिरोध की आवाज थी। इन महिलाओं का प्रश्न अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से भी था, कि वह इस घटना पर प्रतिक्रिया क्यों नहीं दे रहा है?
बांग्लादेश से कहने के लिए तो 5 अगस्त 2024 को शेख हसीना की सरकार गई है, परंतु चैन-सुकून और सुरक्षा की भावना हिंदुओं की चली गई है और लगातार हिंसा का सामना कर रहे हैं। आज उसे पीड़ा को दिल्ली की सड़कों पर मौन स्वर दिया गया था और वह भी आम महिलाओं द्वारा और उन महिलाओं को यह आशा है कि यह मौन काफी तेज मुखरित होगा।
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