सामान्यत: किसी भी शिक्षण संस्थान का कार्य है छात्रों को अच्छी से अच्छी शिक्षा देना, ताकि वे सभ्य नागरिक बन कर अपने देश की किसी न किसी रूप में सेवा कर सकें। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि नई दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय कन्वर्जन के लिए बदनाम होता जा रहा है। यहां कार्यरत हिंदू शिक्षकों, कर्मचारियों और अध्ययनरत हिंदू छात्रों पर मुसलमान बनने का दबाव डाला जाता है। दु:खद बात यह है कि यह दबाव वे लोग डालते हैं, जिन्हें ‘गुरु’ जैसी सम्मानजनक पदवी मिली है। जिनसे यह उम्मीद की जाती है कि वे एक छात्र को केवल शिष्य के रूप में देखें, न कि उसके धर्म या मजहब पर जाएं। लेकिन जामिया के कुछ अध्यापक गुरु-शिष्य परंपरा को भुलाकर कन्वर्जन के ‘खेल’ में शामिल हैं।
ऐसे ही दो शिक्षकों और एक अधिकारी के विरुद्ध 15 जुलाई की रात पौने 10 बजे एक प्रथम सूचना रपट (एफ.आई.आर.) दर्ज हुई है। यह एफ.आई.आर. जामिया के प्राकृतिक विज्ञान विभाग में सहायक के पद पर कार्यरत रामनिवास सिंह ने कराई है। जामिया नगर थाने में दर्ज इस एफ.आई.आर. में पूर्व कुलसचिव और वर्तमान में कुलपति के ओसीडी प्रो. नाजिम हुसैन अल-जाफरी, उप कुलसचिव एम. नसीम हैदर और विदेशी भाषा विभाग के अध्यक्ष प्रो. शाहिद तस्लीम पर कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। आरोपों में कन्वर्जन के लिए अनुचित दबाव डालना, जाति-आधारित गालियां देना और अमानवीय व्यवहार शामिल है।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 की धारा 3 (1) (पी) और 3(1) (क्यू) के तहत दर्ज इस एफ.आई.आर. में रामनिवास सिंह ने विश्वविद्यालय में अपने भयावह अनुभवों का विवरण दिया है। उन्होंने कहा है कि उन्हें लगातार जाति आधारित भेदभाव और मौखिक दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है। इससे भी अधिक परेशान करने वाली बात यह है कि उनके साथ हुए दुर्व्यवहार के समाधान के रूप में उन पर इस्लाम अपनाने का दबाव डाला गया। अपनी शिकायत में रामनिवास ने विशेष रूप से उल्लेख किया है, ‘‘प्रो. नाजिम हुसैन अल-जाफरी ने उनसे ‘ईमान’ यानी इस्लाम पर विश्वास करने के लिए कहा। अल-जाफरी ने वादा किया कि कन्वर्जन करने से रामनिवास को विश्वविद्यालय में दुर्व्यवहार और समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा। यही नहीं, अल-जाफरी ने रामनिवास को आश्वासन दिया कि यदि वे इस्लाम अपना लेंगे तो न केवल उनका कॅरियर सुधरेगा, बल्कि उनके बच्चों का भविष्य भी सुरक्षित हो जाएगा।’’
बता दें कि रामनिवास सिंह ने 30 मार्च, 2007 को जामिया में ‘अपर डिवीजन क्लर्क’ के रूप में नौकरी शुरू की थी। बीच में वे 1 दिसंबर, 2015 से 30 नवंबर, 2021 तक दिल्ली सरकार के मानव व्यवहार और संबद्ध विज्ञान संस्थान में सहायक के रूप में प्रतिनियुक्ति पर थे। उन्होंने 1 दिसंबर, 2021 को जामिया में फिर से कार्यभार संभाला। कुछ समय बाद उन्होंने जामिया प्रशासन से उच्च पदों के आवेदन करने के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र (एन.ओ.सी.) मांगा। इसके लिए उन्होंने कई बार तत्कालीन कुलसचिव प्रो. नाजिम हुसैन अल-जाफरी से अनुरोध भी किया, लेकिन उन्होंने उनके अनुरोधों को बिना किसी स्पष्ट कारण के बार-बार खारिज कर दिया। यही नहीं, उन्होंने प्रशासनिक कारणों का हवाला देते हुए रामनिवास को विश्वविद्यालय में कई बार स्थानांतरित किया, वह भी दो से तीन महीने के बाद ही।
अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहारों की शिकायत के लिए रामनिवास ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग से संपर्क किया। जैसे ही इसकी जानकारी प्रो. अल-जाफरी को इुई तो कथित तौर पर वे भड़क गए। उन्होंने रामनिवास को 13 अप्रैल, 2023 को अपने कार्यालय में बुलाया। एक कर्मचारी कनीज फातिमा के निर्देशानुसार रामनिवास दोपहर 12:30 बजे कुलसचिव के कार्यालय पहुंचे। कई घंटों के इंतजार के बाद उन्हें अल-जाफरी के कक्ष में बुलाया गया, जहां कई और अज्ञात व्यक्ति उपस्थित थे। उस दिन अल-जाफरी ने रामनिवास से शुरुआत में जो कहा, उसे उन्होंने एफ.आई.आर. में इन शब्दों में लिखा है, ‘‘रामनिवास साहब, आप कहां के इम्पलायी हैं? यहीं से आप रोटी भी खाते रहे हैं। यहीं के पैसे से आप और आपके बच्चे भी यहीं से पल रहे हैं। और पहली बात यह कि आप डायरेक्ट कमीशन भी नहीं जा सकते।’’
एफ.आई.आर. के अनुसार दो-ढाई मिनट के बाद बाकी लोग कमरे से चले गए और वहां केवल रामनिवास और अल-जाफरी रह गए। इस दौरान अल-जाफरी ने कथित तौर पर रामनिवास की ईमानदारी पर सवाल उठाया और उन्हें उच्चाधिकारियों से संपर्क न करने की चेतावनी दी। अल-जाफरी ने कथित तौर पर रामनिवास को जाति-आधारित गालियों का इस्तेमाल करके अपमानित किया और उन्हें नौकरी से निकालने के लिए झूठे यौन उत्पीड़न के मामले में फंसाने की धमकी दी। इस धमकी के बाद अल-जाफरी ने रामनिवास से जो कहा, उसे भी एफ.आई.आर. में इस तरह लिखा गया है, ‘‘तुम चमार,भंगी, नीच जाति से बिलोंग करते हो। और कहा कि तू भंगी है, भंगी बनकर रह। तुम लोगों को नौकरी रिजर्वेशन के बेसिस पर मिलती है, फिर भी तुम लोग औकात में नहीं रहते हो। और कहा कि जामिया एक मुस्लिम यूनिवर्सिटी है, ये मत भूलो। और तुम हिंदू चमार, भंगी की नौकरी हमारे रहमो-करम पर चल रही है।’’
रामनिवास को मानसिक रूप से कई महीने से प्रताड़ित किया जा रहा है। अपनी परेशानियों को दूर करने के लिए वे एक बार फिर से अल-जाफरी से मिले। इस बार अल-जाफरी ने सारी हदें पार कर दीं। उन्होंने रामनिवास से कहा, ‘‘ईमान ले आओ सब ठीक कर दूंगा। कलमा पढ़ लो सब कुछ ठीक चलेगा। तेरे बच्चों का कॅरियर बना दूंगा। क्या पाखंडवाद में घुसा है। देख जामिया ने सचिन को मोहम्मद अली बनाकर उसकी लाइफ सेट कर दी, उसको ड्राइवर की परमानेंट नौकरी दे दी है, क्योंकि वो अब ईमान ले आया है।’’
इन आरोपों के संदर्भ में इस संवाददाता ने प्रो. अल-जाफरी से उनका पक्ष जानने के लिए संपर्क किया तो उन्होंने साफ कहा कि वे कुछ बोलना नहीं चाहते हैं। वहीं, जामिया प्रशासन इन तीनों आरोपियों के बचाव में कूद गया है। उसने कहा है, ‘‘एफ.आई.आर. निराधार और झूठी है। शिकायतकर्ता आदतन वादी है, जिसने विश्वविद्यालय की अल्पसंख्यक स्थिति को चुनौती देने सहित कई मामले दर्ज किए हैं और विश्वविद्यालय के सुचारू संचालन में बाधा डालने की पूरी कोशिश कर रहा है। विश्वविद्यालय उचित कानूनी सहारा लेगा… और अपने कर्मचारियों को इस तरह की दबावपूर्ण रणनीति से बचाएगा।’’ वहीं रामनिवास ने कहा है कि क्या मैं विश्वविद्यालय का कर्मचारी नहीं हूं? फिर बिना जांच आरोपियों को आरोप से मुक्त क्यों किया जा रहा है? क्या यह मेरे साथ भेदभाव नहीं है।
भले ही रामनिवास के मामले में जामिया कुछ भी कहे, लेकिन पड़ताल से यह पता चला कि जामिया में रामनिवास से पहले भी अनेक हिंदुओं पर मुसलमान बनने का दबाव डाला गया है। जामिया के अल्पसंख्यक संस्थान के दावे को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती देने वाले सामाजिक कार्यकर्ता विजय शर्मा कहते हैं, ‘‘जामिया में जो हिंदू लड़कियां पढ़ने आती हैं, उन्हें नौकरी का लालच देकर मुसलमान बनाने की कोशिश होती है। दुर्भाग्य से कुछ लड़कियां उनके छलावे में आ भी रही हैं।’’ इसका सटीक उदाहरण हैं सानिया चौहान (परिवर्तित नाम)। अभी ये जामिया में वरिष्ठ पद पर नौकरी कर रही हैं।
सूत्रों ने बताया कि इनकी पढ़ाई जामिया में ही हुई है। इनके पिता हिंदू हैं, लेकिन शौहर मुसलमान है। जामिया में हो रही हरकतों को नजदीक से जानने वाले कई लोगों ने बताया कि यहां ऐसे लोगों की नौकरी आसानी से लग जाती है, जो हिंदू से मुसलमान बने हैं। इनमें एक नाम है प्रभा मिश्रा (परिवर्तित नाम) का। ये लगभग एक वर्ष से जामिया में नौकरी कर रही हैं। इनके शौहर भी जामिया में बड़े पद पर हैं और मुसलमान हैं। इन दोनों की दो बेटियां हैं, जिनके मुस्लिम नाम हैं। लेकिन प्रभा की ‘सेवा पुस्तिका’ में इनका धर्म हिंदू लिखा गया है। (पाञ्चजन्य के पास इसके कागजात हैं)। जामिया में 2005 से कार्यरत और इस समय एसोसिएट प्रोफेसर का दायित्व निभाने वाली डॉ. श्वेता सलूजा (परिवर्तित नाम) के पति भी प्रोफेसर हैं और मुसलमान हैं।
डॉ. श्वेता की ‘सेवा पुस्तिका’ में उन्हें हिंदू बताया गया है। (पाञ्चजन्य के पास इसके कागजात हैं)। पंजाबी मूल की विजिता कौशिक (परिवर्तित नाम) 18 वर्ष से जामिया में नौकरी कर रही हैं। इस समय एसोसिएट प्रोफेसर हैं। इनके पति भी मुसलमान हैं और दोनों बच्चे भी इस्लामी रीति-रिवाज को मानते हैं। लेकिन इनकी ‘सेवा पुस्तिका’ में इन्हें हिंदू बताया गया है। (पाञ्चजन्य के पास इसके कागजात हैं)। केवला धमीजा (परिवर्तित नाम) भी 18 वर्ष से जामिया में पढ़ा रही हैं। इनकी उच्च शिक्षा जामिया में ही हुई है। इनके पति भी जामिया में ही हैं और बेशक मुसलमान हैं।
2011 से आरक्षण बंद
इन दिनों कुछ नेता संसद से लेकर सड़क तक आरक्षण को लेकर बहस कर रहे हैं, जाति जनगणना पर जोर दे रहे हैं, लेकिन ये लोग जामिया के मामले में चुप हैं। जामिया में 2011 से ही नामांकन और नियुक्ति में अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग को आरक्षण नहीं मिल रहा है। पहले यहां आरक्षण लागू था। इस कारण जामिया में हिंदू छात्र, शिक्षक और अन्य कर्मचारी भी अच्छी संख्या में होते थे। अब यहां हिंदू छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों की संख्या बहुत ही कम है और जो हैं उन्हें कन्वर्ट करने का प्रयास हो रहा है।
निष्पक्ष जांच हो
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) की जामिया इकाई के अध्यक्ष अभिषेक श्रीवास्तव और मंत्री नासिर खुर्शीद ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि श्री रामनिवास सिंह द्वारा लगाए गए आरोप बेहद गंभीर हैं। ऐसी घटनाओं को गंभीरता से लेना चाहिए। उन्होंने मांग की है कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती है, तब तक संबंधित अधिकारियों को उनके पद से हटाया जाए, ताकि वे जांच को प्रभावित न कर सकें।
जामिया प्रशासन के विरोध में धरना-प्रदर्शन
गत 4 अगस्त को नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर वाल्मीकि चौधरी सरपंच कमेटी, दिल्ली प्रदेश के नेतृत्व में सर्व समाज और वाल्मीकि महापंचायत ने जामिया के विरोध में धरना-प्रदर्शन किया। इसमें शामिल लोगों ने मांग की कि प्रो. नाजिम हुसैन अल-जाफरी, मोहम्मद नसीम हैदर एवं शाहिद तस्लीम को तुरंत निलंबित किया जाए। यह भी मांग की गई कि इन तीनों की अविलंब गिरफ्तारी हो और इनके विरुद्ध आवश्यक कार्रवाई हो। महापंचायत ने जामिया के उच्चाधिकारियों पर आरोप लगाया कि उनकी शह पर विश्वविद्यालय में कार्यरत दलित, शोषित एवं वाल्मीकि समाज के लोगों के साथ वर्षों से घोर अत्याचार और अन्याय हो रहा है। अब तो बात जबरन इस्लाम कबूलवाने तक आ चुकी है इसलिए हम सबको जागना होगा। वाल्मीकि समाज के लोगों ने यह भी कहा कि यह आंदोलन तब तक चलेगा जब तक कि उक्त तीनों को उनके पद से नहीं हटाया जाता और गिरफ्तार किया जाता, क्योंकि पीड़ित को भय है कि जब तक ये लोग पद पर हैं, वे किसी भी गलत मामले में उन्हें फंसा सकते हैं।
उपरोक्त सभी महिलाओं के पति मुसलमान हैं। बच्चे मुसलमान हैं। इसके बावजूद इनकी सेवा पुस्तिकाओं में इनके लिए हिंदू लिखा गया है। शायद ऐसा इसलिए किया गया है कि यदि कोई सरकारी दस्तावेजों को देखे तो उसे पता चले कि ये सभी हिंदू हैं, लेकिन वास्तव में वे हिंदू नहीं रह गई हैं। इसे छल कह सकते हैं। विजय शर्मा ने एक बात और बताई, ‘‘जामिया में नौकरी करने वाले हिंदू कर्मचारियों और अध्यापकों को समय पर पदोन्नति नहीं दी जाती है। ऐसे ही जिन हिंदुओं की नौकरी अस्थाई है, उन्हें स्थाई भी जल्दी नहीं किया जाता है। इसके पीछे मंशा वही रहती है कि मुसलमान बनो, सब ठीक हो जाएगा।’’
विजय की यह बात निराधार भी नहीं है। इसके लिए सचिन का उदाहरण दिया जा सकता है। (वही सचिन जिसके लिए प्रो. अल-जाफरी ने रामनिवास से कहा था, ‘देख, जामिया ने सचिन को मोहम्मद अली बनाकर उसकी लाइफ सेट कर दी, उसको ड्राइवर की परमानेंट नौकरी दे दी है, क्योंकि वो अब ईमान ले आया है।’) सूत्रों से पता चला कि कुछ वर्ष पहले सचिन (पिता किशन सिंह) ने जामिया में एक चालक के रूप में अस्थाई नौकरी शुरू की थी। सचिन को स्थाई नौकरी का प्रलोभन दिया गया। इसके बाद वह मोहम्मद अली बन गया और उसकी पक्की नौकरी भी हो गई।
31 वर्ष से जामिया में पढ़ाने वाले अर्जुन कुमार (परिवर्तित नाम) भी मुसलमान बन गए हैं या बना दिए गए हैं। यही नहीं, उनके बच्चों को भी मुसलमान बना दिया गया। इनके दो बच्चों के नाम परिवर्तन की जानकारी जामिया प्रशासन ने 2011 में संबंधित विभागों को दी थी। (पाञ्चजन्य के पास इसके कागजात हैं)।
प्रश्न उठता है कि आखिर जामिया में हिंदू शिक्षक या छात्र ही मुसलमान क्यों बन रहे हैं? यहां कोई मुसलमान हिंदू क्यों नहीं बनता है? इनका उत्तर विजय शर्मा देते हैं। वे जामिया को कन्वर्जन की ‘फैक्ट्री’ कहते हैं। उनका यह भी कहना है कि जब से जामिया के संचालकों ने इसे अल्पसंख्यक संस्थान घोषित किया है, तब से वहां कन्वर्जन की घटनाएं ज्यादा हो रही हैं। जामिया केंद्रीय विश्वविद्यालय है। भारत सरकार के पैसे से ही यह विश्वविद्यालय चलता है। इस नाते केंद्र सरकार का दायित्व है कि वह उसकी हरकतों पर लगाम लगाए।
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