वक्फ बोर्ड की मनमानी पर लगाम लगाने के लिए केंद्र सरकार ने संसद में प्रस्तुत किया वक्फ संशोधन (विधेयक)-2024। विपक्ष ने इस मामले पर भी झूठ फैलाने का किया प्रयास, सरकार ने भेजा संसदीय संयुक्त समिति के पास। जानकार कह रहे हैं कि इस विधेयक का पारित होना भारत और भारतीयता के लिए बहुत जरूरी है
गत 8 अगस्त को केंद्रीय संसदीय और अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने लोकसभा में वक्फ संशोधन (विधेयक)-2024 को प्रस्तुत किया। सरकार ने तर्क दिया कि इस विधेयक का उद्देश्य है वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन और संचालन करना। इसके बाद विपक्ष ने भारी हंगामा किया। कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल ने कहा, ‘‘यह संविधान से मिले मजहबी स्वतंत्रता का उल्लंघन है।’’ समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा, ‘‘भाजपा अपने हताश, निराश और कुछ कट्टर समर्थकों का तुष्टीकरण के लिए यह विधेयक ला रही है।’’
ऐसे ही तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, आम आदमी पार्टी जैसे विपक्षी दलों ने भी इस विधेयक का विरोध किया। वहीं जदयू नेता और केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने कहा, ‘‘यह (वक्फ बोर्ड) कानून से बंधी हुई संस्था है। इसको पारदर्शी बनाने के लिए कानून बनाया जा रहा है।’’ राजग की सहयोगी तेलगू देशम पार्टी (टी.डी.पी.) के जी.एम. हरीश ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘सुधार लाना और चीजों को सुव्यवस्थित करना सरकार की जिम्मेदारी है।’’ राजग की एक अन्य सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी ने कहा, ‘‘विधेयक में कुछ भी गलत नहीं है और यह मुसलमान विरोधी भी नहीं है। फिर भी बेहतर होगा कि संसद की समिति इस पर बारीकी से विचार करे।’’
यह वही जनशक्ति पार्टी है, जिसके सर्वेसर्वा केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान हैं। यानी सरकार को समर्थन देने वाले दल भी इस विधेयक पर व्यापक बहस चाहते हैं। यही कारण है कि इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया। इससे इस विधेयक को कानून बनने में थोड़ी देर अवश्य होगी, लेकिन इसको लेकर सरकार कितना गंभीर है, उसका अंदाजा भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी के उस बयान में मिलता है, जिसमें वे कहते हैं, ‘‘वक्फ में संशोधन वक्फ और वक्त दोनों की मांग है। इस संशोधन से हितधारक और पीड़ित दोनों को लाभ होगा और पारदर्शिता आएगी।’’
इस विधेयक के जरिए जो सबसे महत्वपूर्ण बदलाव करने का प्रस्ताव है, वह है ‘वक्फ अधिनियम-1995’ की धारा 40 में संशोधन करना। वास्तव में इस धारा को बहुत ही घातक माना जाता है। वक्फ संपत्ति से जुड़े अनेक मामलों पर बहस करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन के अनुसार, ‘‘वक्फ अधिनियम-1995 की धारा 40 के अनुसार कोई भी व्यक्ति वक्फ बोर्ड में एक अर्जी लगाकर अपनी संपत्ति वक्फ बोर्ड को दे सकता है। यदि किसी कारण से वह संपत्ति बोर्ड में पंजीकृत नहीं होती है तो भी 50 साल बाद वह संपत्ति वक्फ संपत्ति हो जाती है। इस कारण सैकड़ों अवैध मजारें और मस्जिदें वक्फ संपत्ति हो चुकी हैं। अवैध होने के कारण इन मस्जिदों/ मजारों के पास जमीन से संबंधित कागजात नहीं होते हैं। इसलिए इसके संचालक वक्फ बोर्ड में अर्जी लगाकर छोड़ देते हैं।’’
उन्होंने यह भी बताया, ‘‘धारा 40 में यह भी प्रावधान है कि किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने से पहले उसके मालिक को सूचित करना जरूरी नहीं है। चुपके से वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया जाता है और बाद में असली मालिक वक्फ काउंसिल में मुकदमा लड़ता रहता है। देखा जाता है कि काउंसिल ज्यादातर मामलों में वक्फ बोर्ड का ही साथ देती है। इसलिए प्रस्तावित विधेयक में कहा गया है कि अब किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने से पहले उससे संबंधित लोगों को सूचित करना अनिवार्य है।’’
‘वक्फ अधिनियम-1995’ के अनुसार वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण के लिए सर्वेक्षण आयुक्त नियुक्त करने का प्रावधान है, लेकिन इस विधेयक में कहा गया है कि जिलाधिकारी या उप जिलाधिकारी ही सर्वे आयुक्त हो सकते हैं। इनसे नीचे के अधिकारी को यह दायित्व नहीं दिया जा सकता है।
प्रस्तावित विधेयक में वक्फ बोर्ड के ढांचे में बदलाव की बात कही गई है। अब वक्फ बोर्ड में मुस्लिम महिलाओं और गैर-मुसलमानों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाएगा। इसमें तीन केंद्रीय मंत्री,तीन सांसद, मुस्लिम संगठनों के तीन प्रतिनिधि, मुस्लिम कानून के तीन जानकार, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के दो पूर्व न्यायाधीश, एक प्रसिद्ध वकील, चार प्रसिद्ध लोग, भारत सरकार के अतिरिक्त या संयुक्त सचिव आदि रहेंगे। विपक्षी नेता इसी प्रावधान को लेकर अधिक शोर मचा रहे हैं।
ऐसे नेताओं को यह भी बता दें कि वक्फ अधिनियम-1995 की धारा 89 में व्यवस्था है कि वक्फ बोर्ड के विरुद्ध कोई भी दावा करने से पहले 60 दिन पूर्व नोटिस देना आवश्यक है। ऐसा कोई प्रावधान किसी हिंदू ट्रस्ट/मठ की संपत्ति के बारे में नहीं है। इस अधिनियम की धारा 90 के अनुसार वक्फ प्राधिकरण के समक्ष दाखिल संपत्ति पर कब्जा या मुतवल्ली (केयरटेकर) के अधिकार से संबंधित कोई वाद लाया जाता है तो प्राधिकरण उसी व्यक्ति के खर्चे पर बोर्ड को नोटिस जारी करेगा, जिसने वाद दायर किया है।
धारा 91 में यह व्यवस्था है कि यदि वक्फ बोर्ड की कोई जमीन सरकार द्वारा अधिगृहित की जानी है तो पहले वक्फ बोर्ड को बताया जाएगा। धारा 104 (बी.), जो कि 2013 में जोड़ी गई है, में व्यवस्था है कि यदि किसी सरकारी एजेंसी ने वक्फ संपत्ति पर कब्जा कर लिया है तो उसे बोर्ड या दावेदार को प्राधिकरण के आदेश पर छह महीने के अंदर वापस करना होगा।
मुसलमानों की मजहबी संपत्ति (मस्जिद, मजार, कब्रिस्तान आदि) की देखरेख के लिए पहली बार 7 मार्च,1913 को एक कानून बनाया गया। इसके बाद 5 अगस्त, 1923 को इसमें कुछ सुधार किया गया। यहां तक तो इनमें ऐसी कोई बात नहीं थी, जिससे किसी को कोई आपत्ति हो। इसके बाद 25 जुलाई, 1930 को इसमें और कुछ प्रावधान जोड़े गए। 7 अक्तूबर, 1937 को भी इसमें कुछ जोड़-घटाव किया गया। 21 मई, 1954 को इसमें और थोड़ा बदलाव किया गया। 1984 में भी इसमें कुछ परिवर्तन किए गए। 22 नवंबर, 1995 को इसे ज्यादा ताकतवर बनाया गया। इसके बाद सोनिया-मनमोहन सरकार ने 2014 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए 20 सितंबर, 2013 को वक्फ अधिनियम-1995 में कुछ संशोधन किए और बोर्ड को अपार शक्तियां दे दी गईं। वक्फ बोर्ड इन शक्तियों का इस्तेमाल जमीन कब्जाने के लिए कर रहा है। इसलिए आज वक्फ बोर्ड के पास रेलवे और सेना के बाद सबसे अधिक जमीन है।
इस अधिनियम की धारा 107 के अनुसार वक्फ संपत्ति वापस लेने के लिए कोई तय समय-सीमा नहीं है, जबकि हिंदू धार्मिक संपत्तियों को ऐसी छूट नहीं है। ऊपर से 1991 में पूजा स्थल विधेयक कानून पारित कर हिंदुओं से यह अधिकार ले लिया गया है कि 15 अगस्त, 1947 से पहले टूटे मंदिरों को वापस नहीं ले सकते हैं।
धारा 52 में लिखा है कि यदि किसी की जमीन, जो वक्फ में पंजीकृत है, पर किसी ने कब्जा कर लिया है तो वक्फ बोर्ड जिला दंडाधिकारी से जमीन का कब्जा वापस दिलाने के लिए कहेगा। नियमत: जिला दंडाधिकरी 30 दिन के अंदर जमीन वापस दिलवाएगा। यानी वक्फ बोर्ड अपनी संपत्ति की सुरक्षा के लिए अनेक कानूनों को लेकर बैठा है, लेकिन यदि वक्फ बोर्ड ने किसी जमीन पर कब्जा कर लिया तो उसे वापस लेना आसान नहीं होता है। धारा 101 (1) में व्यवस्था है कि सर्वे आयुक्त, वक्फ बोर्ड के सदस्यगण और वे सभी अधिकारी, जो बोर्ड के कार्यों को संपादित करने के लिए नियुक्त किए गए हैं, वे सभी आई. पी. सी. के तहत लोक अधिकारी (पब्लिक सर्वेंट) माने जाएंगे।
धारा 101(2) में यह व्यवस्था है कि प्रत्येक मुतवल्ली, वक्फ डीड के अनुसार नामित प्रबंध समिति के सदस्यगण और वे सभी पदाधिकारी, जो वक्फ के काम में लगे हैं, वे भी आई. पी. सी. के तहत लोक अधिकारी होंगे।
धारा 104 (बी.), जो कि 2013 में जोड़ी गई है, में व्यवस्था है कि यदि किसी सरकारी एजेंसी ने वक्फ संपत्ति पर कब्जा कर लिया है तो उसे बोर्ड या दावेदार को प्राधिकरण के आदेश पर छह महीने के अंदर वापस करना होगा। सरकार की कोई भी एजेंसी यदि जनहित के लिए कोई भी संपत्ति लेना चाहे तो उसका किराया या क्षतिपूर्ति बाजार दर पर प्राधिकरण द्वारा तय की जाएगी।
कह सकते हैं कि कांग्रेस ने वक्फ बोर्ड को ऐसा ‘भस्मासुर’ बना दिया है, जो किसी की भी संपत्ति पर अपना दावा ठोक देता है। कुछ समय पहले वक्फ बोर्ड ने श्रीकृष्ण की नगरी बेट द्वारका और तमिलनाडु के एक 1,500 वर्ष पुराने मणेंडियावल्ली चंद्रशेखर स्वामी मंदिर और उसके पास के गांव की 369 एकड़ जमीन पर दावा कर दिया था। बेट द्वारका के मामले में तो गुजरात उच्च न्यायालय ने वक्फ बोर्ड को फटकार लगाई थी। इसके बाद यह मामला शांत है, जबकि मणेंडियावल्ली मंदिर के मामले पर अभी तक कोई खास प्रगति नहीं हुई है। वहां के लोग अपनी ही जमीन के लिए लड़ रहे हैं। यही कारण है कि कई संगठन इस ‘भस्मासुर’ के पर काटने की मांग वर्षों से कर रहे हैं। केंद्र सरकार अभिनंदन की पात्र है कि उसने लोगों की पुकार सुनकर वक्फ संशोधन (विधेयक)-2024 को संसद में प्रस्तुत किया है।
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