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होम मत अभिमत

मणिपुर में शांति की पहल

मैं 2012 से 2014 तक ब्रिगेडियर के रैंक पर असम राइफल्स के मणिपुर रेंज के कमांडर के रूप में तैनात था। उन दिनों भी झूठे आख्यानों का सामना करना पड़ता था।

by लेफ्टिनेंट जनरल एम के दास,पीवीएसएम, बार टू एसएम, वीएसएम ( सेवानिवृत)
Aug 12, 2024, 04:12 pm IST
in मत अभिमत, मणिपुर
मणिपुर में शांति बहाली के लिए किए जा रहे हैं उपाय

मणिपुर में शांति बहाली के लिए किए जा रहे हैं उपाय

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मणिपुर सरकार ने हाल ही में एक झूठी ऑडियो क्लिप के बारे में बयान जारी किया है। यह फर्जी ऑडियो क्लिप मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की आवाज में है और सोशल मीडिया में प्रसारित किया जा रही है। ऑडियो क्लिप में कथित तौर पर एक समुदाय के खिलाफ कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियां हैं और इसके जरिये हिंसा प्रभावित राज्य में शांति पहल को पटरी से उतारने का प्रयास किया जा रहा है। मुझे मणिपुर में अपनी सैन्य सेवा की याद आ गई जब मैं 2012 से 2014 तक ब्रिगेडियर के रैंक पर असम राइफल्स के मणिपुर रेंज के कमांडर के रूप में तैनात था। उन दिनों भी झूठे आख्यानों का सामना करना पड़ता था। उग्रवाद के उन दिनों में, 30 से अधिक उग्रवादी समूहों से निपटते हुए इम्फाल और आसपास की पहाड़ियों की पूरी घाटी की देखभाल की । इस क्षेत्र में लगभग 60% बसावट है। इम्फाल घाटी मैतेई बहुल थी और तलहटी में कुकी-ज़ो आबादी थी।

मैतेई और कुकी के बीच एक बार फिर संघर्ष 3 मई 2023 से शुरू हुआ। इसका एक कारण मणिपुर उच्च न्यायालय द्वारा मैतेई समुदाय को एसटी जनजाति की सिफारिश करने का आदेश था। हालांकि अदालत के इस आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी लेकिन तब तक राज्य संघर्ष और हिंसा में घिर चुका था। अब जब हिंसा के स्तर में एक साल से अधिक समय के बाद कमी आई है और स्थिति को बहुत बेहतर तरीके से संभाला जा रहा है। सभी शांति पहलों को गंभीरता से शुरू करने और समर्थन करने का समय आ गया है।

संघर्ष की गतिशीलता को जानने के लिए मणिपुर के भूगोल को समझना होगा। राज्य का क्षेत्रफल 22,327 वर्ग किमी है और घाटी का तल सिर्फ 2000 वर्ग किमी है। इसकी आबादी 30 लाख से कुछ अधिक है, जिसमें लगभग 55% हिंदू मैतेई, 20% नागा और 16% कुकी हैं। शेष जनसंख्या मुस्लिम और अन्य समुदायों की है। राजधानी शहर इम्फाल है जो घाटी में स्थित है। एकमात्र हवाई अड्डा भी यहाँ है और 2000 वर्ग किमी के क्षेत्र में लगभग 60% आबादी घने रूप से बसी हुई है । मैतेई समुदाय कुकी-ज़ो समुदाय के समान एसटी दर्जे की मांग कर रहा है ताकि वे पहाड़ियों में जमीन खरीद सकें क्योंकि घाटी पूरी तरह से संतृप्त है। जाहिर है, कुकी-ज़ो समुदाय जो काफी हद तक ईसाई है, खतरा महसूस कर रहा है। नगा समुदाय कुल मिलाकर राज्य के ऊपरी पहाड़ी क्षेत्र में रहता है और राज्य में अशांति के दौरान उनकी कोई खास भूमिका नहीं रही है।

मणिपुर में 2012-14 के कठिन समय में सेवा करने के अपने अनुभव के आधार पर, मैं इस खूबसूरत और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य में सामान्य स्थिति लाने के लिए कुछ उपायों के बारे में बता सकता हूं। संघर्षग्रस्त राज्य में सबसे महत्वपूर्ण शांति पहल महिलाओं की ओर से की जानी चाहिए। मणिपुर में समाज पर महिलाओं का काफी प्रभाव है, विशेष रूप से दैनिक जीवन और उनके कबीले की भलाई के मामलों में। जबकि पुरुषों के पास राजनीतिक शक्ति हो सकती है, मणिपुर की महिलाएं निर्णय लेने को प्रभावित करती हैं। चाहे वह मैतेई की प्रभावशाली मीरा पैबी (महिला मशाल वाहक) जैसे संगठन हों या कूकी महिला संघ, उन्हें इस कलह को भूलना और माफ करना होगा और दोनों समुदायों को एक साथ लाने का बीड़ा उठाना होगा। राज्य की पांच महिला विधायकों द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा सकती है। सत्तारूढ़ भाजपा में तीन महिला विधायक हैं और पार्टी उनकी सेवाओं का अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग कर सकती है ताकि राज्य और राष्ट्रीय हित में कबीले की आत्मीयता से ऊपर उठकर मरहम लगाया जा सके। इस संघर्ष में महिलाओं और बच्चों को सबसे अधिक नुकसान हुआ है और राज्य में सामान्य स्थिति लाने के लिए महिलाओं को यहां नेतृत्व करना होगा।

ऐसे हालात में असम राइफल्स सहित अन्य सुरक्षा बलों के समक्ष एक कठिन काम है। पुलिस शस्त्रागार से लूटे गए हथियारों सहित उग्रवादी समूहों ने इतने सारे हथियार जमा कर लिए हैं कि उन्हें निहत्था करने का कार्य श्रमसाध्य है। मानव खुफिया नेटवर्क को भी सुदृढ़ करना होगा। राज्य की 398 किलोमीटर भारत-म्यांमार सीमा पर जल्द से जल्द बाड़ लगाने की जरूरत है।

संघर्ष के दौरान बहुत सारे बुनियादी ढांचे नष्ट हो गए हैं। केंद्र सरकार निश्चित रूप से मणिपुर को आवश्यक वित्तीय सहायता प्रदान करेगी। सबसे महत्वपूर्ण विस्थापितों के लिए आवास का निर्माण होगा। इम्फाल स्मार्ट शहरों की सूची में भी शामिल है। इसके अलावा, एक आकर्षक सरेंडर पॉलिसी भी मदद कर सकती है। मणिपुर में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं और राज्य में पर्यटकों के लिए अच्छी मात्रा में बुनियादी ढांचे का निर्माण किया जा सकता है, जिस तरह से जम्मू-कश्मीर के लिए किया गया है। आने वाले समय में, सभी समुदायों की आर्थिक भलाई सामान्य स्थिति सुनिश्चित करने का सबसे अच्छा तरीका हो सकता है।

मीडिया भी रिपोर्टिंग में पक्षपाती रहा है और सच्ची रिपोर्टिंग दुर्लभ रही है, जैसा कि छेड़छाड़ किए गए ऑडियो क्लिप प्रकरण से स्पष्ट है। मीडिया प्रहरी को स्थिति की संवेदनशीलता के अनुसार तथ्यात्मक और बारीक रिपोर्टिंग सुनिश्चित करने के लिए मणिपुर में जल्दी से उतरना होगा। झूठे आख्यानों के लिए सोशल मीडिया को भी रोकना होगा। मीडिया में राज्य में शांति और समृद्धि के प्रति नफरत और कटुता से लोकप्रिय राय को प्रभावित करने की क्षमता है। भड़काऊ अभियान चलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।

मणिपुर राज्य में सेवा करने का व्यक्तिगत अनुभव होने के कारण, मैं दृढ़विश्वास के साथ कह सकता हूं कि राज्य को संघर्ष के दोनों पक्षों के पीड़ितों के घावों को भरने के लिए एक संवेदनशील स्पर्श की आवश्यकता है। सशस्त्र आतंकियों के साथ सख्त होना और आम नागरिकों का वास्तविक ख्याल रखना। आइए हम सब मणिपुर में स्थायी शांति के लिए सभी शांति पहलों का समर्थन करें और राज्य के विकास को आगे बढ़ाने के लिए हाथ मिलाएं।

(नोट – उपरोक्त लेख में विचार लेखक के निजी विचार हैं।)

Topics: मणिपुर हिंसामणिपुर में शांतिकुकीमैतेई
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