बांग्लादेश से हिंदुओं पर हो रही हिंसा पर भयावह वीडियो निकलकर आ रहे हैं। यह बहुत ही स्तब्ध करने वाली और दिल दहला देने वाली घटना है और जैसे-जैसे तस्वीरें और वीडियो सामने आ रहे हैं, आतंक की ऐसी फिल्म उभरकर आ रही है कि दरिंदगी भी शरमा जाए। मगर फिर भी भारत में और विदेशों में कुछ ऐसे लोग हैं, जिन्हें यह सब न ही दिखाई दे रहा है और न ही सुनाई। और यदि दबाव के कारण वे कुछ सुन पा रहे हैं, तो वे इसे एकदम नकारने वाली शैली में लिख रहे हैं।
इसी क्रम में सबसे पहले नंबर आता है न्यू यॉर्क टाइम्स का। खुद को अभिव्यक्ति की आजादी का मसीहा मानने वाला पश्चिमी औपनिवेशिक समाचारपत्र बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे इस अत्याचार को कम करके दिखाने में व्यस्त है। इसने अपनी एक रिपोर्ट में बांग्लादेश के हिंदुओं पर हो रहे हमलों को सही ठहराते हुए उन्हें “रीवेन्ज अटैक” अर्थात बदले में किए जा रहे हमले बताया।
किसी भी जीनोसाइड को अनदेखा करने का सबसे बड़ा माध्यम यही होता है कि उस विनाश को देखने का दृष्टिकोण ही बदल दिया जाए। बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले केवल उनकी धार्मिक पहचान के कारण ही हुए हैं और हो रहे हैं। यदि मामला राजनीतिक होता तो मंदिरों पर हमले क्यों होते? क्यों लड़कियों के साथ बलात्कार होते? क्यों सार्वजनिक रूप से हिंदुओं का अपमान होता? मगर ऐसा हो रहा है। ऐसा लगातार हो रहा है।
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यह सही है कि अवामी लीग के मुस्लिम नेताओं और कार्यकर्ताओं को मारा जा रहा है, परंतु उन्हें मारने के साथ ही उनके धार्मिक स्थलों को तो नहीं जलाया जा रहा है? और यह भी सत्य है कि अवामी लीग के प्रति गुस्सा इसी कारण है क्योंकि वे हिंदुओं के प्रति कुछ सहानुभूति रखते हैं और कुछ उदारवादी दृष्टिकोण उनका रहता है। तो उन्हें भी कथित उदारता वाली छवि के चलते ही मारा जा रहा है।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने हिंदुओं के साथ हो रहे धार्मिक कत्लेआम को बदले में हुए हमला बताते हुए लिखा “hindus in Bangladesh face revenge attacks after Prime Minister’s Exit” अर्थात प्रधानमंत्री के जाते ही बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले शुरू”। इसमें लिखा कि आम तौर पर हिंदुओं को अवामी लीग का समर्थक माना जाता है, इसलिए उन पर हमले शुरू हो गए।
लेकिन ऐसा नहीं है कि केवल अवामी लीग का समर्थन करने वाले हिन्दू ही भीड़ का शिकार बने। डेली खोबोर पत्र के साथ काम करने वाले पत्रकार प्रदीप कुमार भौमिक की भी इस भीड़ ने हत्या कर दी, जबकि प्रदीप कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ बांग्लादेश के सदस्य थे।
सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि यदि राजनीतिक हत्याएं हैं तो मंदिरों पर हमला क्यों और अवामी लीग के मुस्लिम नेताओं के धार्मिक स्थलों पर हमला क्यों नहीं? मंदिरों पर हमले से यह बात पूरी तरह से स्पष्ट है कि हिंदुओं और शेष अल्पसंख्यक समुदायों पर जो हमले किए जा रहे हैं, वह कोई बदले की भावना से किए गए हमले नहीं है, बल्कि वे केवल और केवल उनकी धार्मिक पहचान के कारण किए जा रहे हैं। हालांकि बाद में जब न्यूयॉर्क टाइम्स की आलोचना हुई तो उसने यह शीर्षक बदला और रीवेन्ज शब्द हटा दिया।
मगर ऐसा नहीं है कि केवल न्यूयॉर्क टाइम्स ने ही यह किया था। प्रोपेगेंडा पोर्टल अल जज़ीरा ने तो बांग्लादेश की घटनाओं को नकारते हुए उन्हें भारत में इस्लामोफोबिया फैलाने का षड्यन्त्र बता दिया।
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अल जजीरा ने लिखा कि जो भी भारतीय मीडिया में खबरें आ रही हैं, वह झूठ हैं और केवल दो ही हिंदुओं की हत्या हुई है और केवल उन्हीं हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं, जो अवामी लीग से जुड़े हुए थे और भारत में भी उसने राय लेने के लिए सिद्धार्थ वरदराजन को चुना, जो प्रोपेगेंडा वेबसाइट द वायर के संस्थापक संपादक हैं। सिद्धार्थ के अनुसार, यह सच है कि बांग्लादेश में दो दर्जन जिलों में हिंदुओं के घरों और प्रतिष्ठानों पर हमले किए जा रहे हैं, मगर भारतीय मीडिया उसके बारे में बहुत बढ़-चढ़कर बता रहा है।
‘Islamophobic, alarmist’: How some India outlets covered Bangladesh crisis https://t.co/KxF3ZzZgAN
— Al Jazeera English (@AJEnglish) August 8, 2024
वहीं हिंदुओं के प्रति एकतरफा रिपोर्टिंग करने वाले scroll में भी हिंदुओं पर हो रहे हमलों को सही ठहराया गया है। इस पूरे लेख में भी हिंदुओं के प्रति हो रहे हमलों को राजनीतिक ही बताया गया है और यह लिखा गया है कि चूंकि हसीना सरकार द्वारा छात्रों के साथ किए गए दुर्व्यवहार के कारण छात्रों के प्रति लोगों की सहानुभूति थी और यही कारण है कि हसीना सरकार के समर्थकों आदि पर शेख हसीना के देश से बाहर जाते ही हमले होने लगे। इनमें हिन्दू भी शामिल थे। हिंदुओं को शेख हसीना का समर्थक माना जाता है।
इसमें लिखा गया कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस्लामिस्ट समूहों का एक बड़ा वर्ग, जिनमें जमात-ए-इस्लामी और हिफाजत-ए-इस्लाम और अन्य “दक्षिणपंथी तत्व शामिल हैं, वे मौके का लाभ उठायाने की कोशिश कर रहे हैं। और वे राजनीतिक आंदोलनों में खुद को सम्मिलित करना चाहते हैं। इसमें यह भी कहने का पूरा प्रयास किया गया है कि हिंदुओं पर हमला केवल अवामी लीग के समर्थक होने के कारण किया जा रहा है।
मगर इन सभी लेखों में एक बात का उत्तर कोई नहीं दे रहा है कि यदि हिंदुओं पर हमला अवामी लीग का समर्थक होने के नाते किया जा रहा है, तो फिर ऐसे में उनके मंदिरों पर हमला क्यों किया जा रहा है? अवामी लीग के मुस्लिम समर्थकों के धार्मिक स्थलों पर तो किसी भी प्रकार से कोई हमला नहीं किया जा रहा है?
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यही एक प्रश्न है, जिसका उत्तर हर उस प्रोपोगैंडा का उत्तर है कि हिंदुओं पर हमले राजनीतिक हैं धार्मिक नहीं। हिन्दू कार्यकर्ताओं पर ही मात्र हमले होते या फिर यदि शेख हसीना का समर्थन करने वाले या राजनीतिक कार्यकर्ता दोषी हैं तो उनकी सूची बनाकर उन्हें बांग्लादेश के कानून से दंड दिया जाता, (यदि वे दोषी हैं तो) तो कहा जा सकता है कि राजनीतिक विरोध है। मगर किसी पार्टी का समर्थन करने को कैसे ऐसा दोष माना जा सकता है कि आप पूजा स्थलों को जला दें, उनके प्रतिष्ठानों को जला दें और लड़कियों को अपनी हवस पूरी करने का माध्यम बनाएं। और वह भी मात्र धार्मिक पहचान के आधार पर?
यह विशुद्ध धार्मिक हमला है, जिसे नकारने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि कम्युनिस्ट और इस्लामिस्ट मीडिया ने यह पहली बार किया है। भारत में अभी तक हिंदुओं पर और मंदिरों पर जो भी हमले किए हैं, उन्हें हमेशा धार्मिक नहीं राजनीतिक बताया जाता रहा है।
मगर वे यह बताना भूल जाते हैं कि घृणा उन्हें हिंदुओं के ही अस्तित्व से थी, नहीं तो मुस्लिम मुल्कों के आपसी युद्ध में कोई अपने धार्मिक स्थल को नुकसान क्यों नहीं पहुंचाता है? इसी प्रश्न पर प्रोपेगेंडा हार जाता है।
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