Bangladesh: क्या America, CIA और Soros का भी साजिश में हाथ!
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Bangladesh: क्या America, CIA और Soros का भी साजिश में हाथ!

बांग्लादेश में ‘तख्तापलट’ के पीछे बेशक जॉर्ज सोरोस जैसे अरबपतियों के पैसे और सीआईए की रणनीति का घातक मेल दिखाई देता है। इसकी शुरुआत शायद अमेरिका द्वारा बांग्लादेश में चुनाव नतीजों पर सवाल उठाने से हुई

by WEB DESK
Aug 7, 2024, 12:15 pm IST
in विश्व
बांग्लादेश में हुए या कराए गए इस तख्तापलट में अमेरिका का हाथ होने के भी कई प्रत्यक्ष कारण हैं

बांग्लादेश में हुए या कराए गए इस तख्तापलट में अमेरिका का हाथ होने के भी कई प्रत्यक्ष कारण हैं

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कहीं अमेरिका भारत के लिए दिक्कतें खड़ी करने की तो नहीं सोच रहा? यह सवाल भी महत्वपूर्ण है, विशेषकर तब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक उसी दौरान मॉस्को दौरे का कार्यक्रम बनाया था जब वाशिंगटन में अमेरिकी नेता नाटो की 75वीं सालगिरह का जश्न मना रहे थे।


बांग्लादेश में हुए या कराए गए इस तख्तापलट में अमेरिका का हाथ होने के भी कई प्रत्यक्ष कारण हैं। आरम्भ से ही अमेरिका शेख हसीना का विरोधी दिखाई दिया है। गत जनवरी में बांग्लादेश में हुए आम चुनावों में अमेरिकी दखल की कोशिश दिखी थी। खुद शेख हसीना ने इसे उजागर किया था। बताया जा रहा है कि संभव है सीआईए पर्दे के पीछे से बांग्लादेश के विपक्ष के साथ खड़ी थी।

अमेरिकी विशेष रूप से दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में दखल देना अपना हक समझते हैं। इतिहास बताता है कि अमेरिका शुरू से ही तानाशाही तंत्र के साथ कारोबार करने में सहूलियत महसूस करता रहा है। खुद को सबसे बड़ा लोकतंत्र बताने वाला अमेरिका लोकतांत्रिक देशों में मीन—मेख निकालता ही रहा है। भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था को लेकर कई अमेरिकी नेताओं की नकारात्मक सोच दिखती रही है। खुद को मानवाधिकारों का सबसे बड़ा हितैषी बताने वाला अमेरिकी सत्ता अधिष्ठान दूसरे देशों में मानवाधिकार के मामलों की ओर से मुंह मोड़े रखता है।

इसमें संदेह नहीं कि बांग्लादेश की निवर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना वहां एक सुलझी और देशहित की सोचने वाली संभवत: एकमात्र नेता थीं। उन्होंने हमेशा जिहादी सोच, कट्टर इस्लामवाद के आगे लोकतंत्र को रखा। बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों को हसीना से ही उम्मीदें बंधी थीं। गत 5 अगस्त के बाद हिन्दू व अन्य अल्पसंख्यकों पर बरपाए जा रहे इस्लामी कहर के दृश्य इस बात की पुष्टि करते हैं। हिंदुओं के घरों में जबरन घुसकर मारपीट करना, लड़कियों को उठा ले जाना और मंदिरों को जलाना क्या ‘सत्ता विरोधी क्रांति’ के किसी भी खांचे में फिट बैठता है?

दुनियाभर में लेफ्ट—लिबरल तत्वों को पैसे के दम पर उकसाने वाला अरबपति सोरोस

दक्षिण अमेरिका में सत्ता परिवर्तन (वर्तमान में वेनेजुएला में हुआ बदलाव) और यूक्रेन जैसी तमाम तरह के रंगों की ‘क्रांतियों’ की बात करें, तो बांग्लादेश में ‘तख्तापलट’ के पीछे बेशक जॉर्ज सोरोस जैसे अरबपतियों के पैसे और सीआईए की रणनीति का घातक मेल का हाथ दिखाई देता है। इसकी शुरुआत शायद अमेरिका द्वारा बांग्लादेश में चुनाव नतीजों पर सवाल उठाने से हुई। इसके विरोध में प्रदर्शनों को भड़काकर, उसमें चुनाव में हारे कट्टरपंथी इस्लामी तत्वों को जोड़कर आगे किया गया और बाद में शायद सीआईए ने उसे हवा देने का काम किया।

यहां सवाल उठता है कि बांग्लादेश से शेख हसीना को अपदस्थ करके अमेरिका आखिर क्या पाना चाहता है? अराजकता फैलाना ही अगर मकसद था उसे उसमें उसकी ऐसी भूमिका समझ में आती है। लेकिन इससे आगे कहीं अमेरिका भारत के लिए दिक्कतें खड़ी करने की तो नहीं सोच रहा? यह सवाल भी महत्वपूर्ण है, विशेषकर तब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक उसी दौरान मॉस्को दौरे का कार्यक्रम बनाया था जब वाशिंगटन में अमेरिकी नेता नाटो की 75वीं सालगिरह का जश्न मना रहे थे।

सोरोस की सोच मोदी विरोधी है, यह कोई छुना तथ्य नहीं है। यह देखते हुए यह समय भारत के लिए सावधान रहने का भी है। सीआईए अपनी टूलकिट तैयार कर रही होगी। भारत में ऐसे देशविरोधी तत्वों की कमी नहीं है जो मोदी विरोध के मद में देशविरोध की सीमा तक गिर चुके हैं। तथाकथित किसानों और दूसरे आंदोलन जीवी सीआईए का हस्तक बनने में देर नहीं करेंगे। बांग्लादेश प्रकरण से ऐसी ताकतों को ईंधन जरूर मिला है, यह उन तत्वों की सोशल मीडिया पोस्ट से साफ पता चलता है जो ‘क्रांति की सफलता’ का जश्न मना रही हैं।

Topics: Indiaciaबांग्लादेशSheikh HasinaGeorge SorosभारतplanअमेरिकासीआईएmodiBidenamericabangladeshcoup
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