नई दिल्ली, (हि.स.)। दिल्ली हाई कोर्ट ने पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर में एक खुले नाले में गिरकर मां और बच्चे की मौत के मामले पर सुनवाई के दौरान दिल्ली नगर निगम को कड़ी फटकार लगाई। कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने दिल्ली नगर निगम से कहा कि अगर आप खुद कार्रवाई नहीं करते हैं तो हम आपके अधिकारियों को निलंबित करना शुरू कर देंगे। कोर्ट ने कहा कि यह उचित मामला है, जहां कोर्ट सरकार से एमसीडी को भंग करने के लिए कह सकता है।
गाजियाबाद के खोड़ा कालोनी में रहने वाली 22 वर्षीय महिला तनुजा और उसका तीन साल का बेटा प्रियांश 31 जुलाई को गाजीपुर से गुजर रहे थे। काफी बारिश की वजह से गाजीपुर नाले से पानी ओवरफ्लो हो रहा था। महिला अपने बच्चे के साथ नाले में गिर पड़ी और दोनों की मौत हो गई।
हाई कोर्ट ने इस प्रकरण के आधार पर दायर याचिका की सुनवाई करते हुए दिल्ली नगर निगम को फटकार लगाते हुए कहा कि ऐसा लगता है आपके अधिकारी काम करने को गुनाह मानते हैं। हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि खुले नाले के आसपास तुरन्त बैरिकेडिंग की जाए और वहां पर पड़े मलबे को हटाया जाए। हाई कोर्ट ने जांच अधिकारी से रिपोर्ट तलब करते हुए पूछा कि घटनास्थल की ऑडियो वीडियोग्राफी की गई या नहीं।
हाई कोर्ट ने नाले की तस्वीर देखने के बाद कहा कि यह बहुत परेशान करने वाली तस्वीरें है। चिकनगुनिया, डेंगू जैसे बीमारियां भी शहर में हैं और नालों का यह हाल है। क्या नगर निगम काम कर रहा है। ऐसा लगता है वह काम नहीं करता है। वहां पर साल भर से मलबा पड़ा हुआ है। हाई कोर्ट ने कहा कि दिल्ली में इतने खुले नाले क्यों हैं। किसी प्राधिकार को यह क्यों नहीं पता है कि वह किसके अधिकार क्षेत्र में आता है। हाई कोर्ट ने कहा कि वहां पर मलबा इस तरह से नहीं रह सकता है। वहा कौन उसकी सफाई कर रहा है। जिससे आप सफाई करवा रहे है वह सही ढंग से काम नही कर रहा है। हाईकोर्ट ने कहा कि मानसून चल रहा है अभी भी तेज़ बारिश हो सकती है इस तरह की घटना दोबारा भी हो सकती है।
सुनवाई के दौरान दिल्ली नगर निगम ने कहा कि जो नाला कवर है वह डीडीए के अंदर था और जो खुले थे उसको नगर निगम कवर करने का काम कर रहा है। वहां पर रेगुलर बेस पर सफाई होती है। तब हाईकोर्ट ने दिल्ली नगर निगम के वकील को टोकते हुए कहा कि ऐसा मत बोलिये क्योंकि वहां पर मलबा साल भर से पड़ा हुआ है। वहा रेगुलेर बेस पर सफाई नहीं होती है। हाई कोर्ट ने कहा कि लोकल कमिश्नर को वहां पर भेजिए। इसके लिए ज़िम्मेदार अधिकारी के खिलाफ तुरंत एक्शन लीजिए।
उल्लेखनीय है कि 5 अगस्त को सुनवाई के दौरान डीडीए ने कहा था कि जिस नाले की ये घटना है वो डीडीए का नहीं है बल्कि दिल्ली नगर निगम का है। उसके बाद याचिकाकर्ता के वकील ने कहा था कि उन्होंने दिल्ली नगर निगम को पक्षकार बनाने के लिए अर्जी दाखिल कर दिया है। उन्होंने कहा कि याचिका दायर करते समय स्थानीय लोगों का कहना था कि वो नाला डीडीए का है। उसके बाद कोर्ट ने कहा था कि अगर आप नहीं जानते हैं तो आप दिल्ली नगर निगम को भी पक्षकार बनाइए। याचिका झुन्नु लाल श्रीवास्तव ने दायर किया है।
याचिका में मांग की गई है कि इस मामले में दिल्ली पुलिस को एफआईआर दर्ज कर महिला और उसके बच्चे की मौत की जांच शुरु करने का दिशानिर्देश जारी किया जाए। याचिका में कहा गया है कि इस घटना की जिम्मेदारी तय की जाए। अभी तक दिल्ली पुलिस और डीडीए ने किसी की जिम्मेदारी तय नहीं की है। याचिका में मांग की गई है कि नाले का निर्माण करनेवाले ठेकेदार पर कार्रवाई की जाए और दिल्ली में नालों के निर्माण की विस्तृत आडिट करायी जाए ताकि ऐसी घटना भविष्य में दोबारा नहीं हो। याचिका में मांग की गई है कि दिल्ली में बारिश जैसे हालात से निपटने के लिए योजना तैयार की जाए और दिल्ली के सभी खुले नालों को ढकने का आदेश दिया जाए। इसके अलावा आम जनता को साईन बोर्ड के जरिये जागरुक किया जाए ताकि वे नालों से दूर रहें।
याचिका में कहा गया है कि इस मामले में डीडीए के 26 फरवरी 1986 के सर्कुलर नंबर 135 का खुलेआम उल्लंघन हुआ है जिसमें कहा गया है कि गहरे नाले को खाली नहीं छोड़ा जाए और कोई मेनहोल बिना कवर का नहीं हो ताकि किसी दुर्घटना से बचा जा सके। दिल्ली में बाढ़ प्रबंधन की कमी और नालों को खुला छोड़ने से दिल्लीवासियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, क्योंकि ये जीने के अधिकार से जुड़ा हुआ मामला है।
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