भारत वीरों की जननी है और इन वीरों के पदचाप हिमालय भी सुनता है। वे जिस पथ पर चलते हैं वह त्याग का पथ है, बलिदान का पथ है। इस पथ पर कैप्टन मनोज पांडेय भी चले। उन्होंने बचपन से ही अपना रास्ता खुद बनाया और बड़ी लकीर खुद खींची।
सेना में जाना उनकी सोच थी। उनके अंदर साहस था, आत्मबल था। वे अपनी डायरी में लिखते हैं कि स्वयं को सिद्ध करने से पहले यदि मेरे कर्तव्य मार्ग पर मौत भी आती है तो मैं शपथ लेता हूं कि उसे भी मार दूंगा। कारगिल के खालूबार में पाकिस्तानी दुश्मनों की गोली उनके माथे पर लगी, इसके बावजूद उनके हाथ से छूटे ग्रेनेड ने पाकिस्तानी घुसपैठियों के बंकर को तबाह कर दिया था। रणभूमि में इस अदम्य वीरता के लिए भारत सरकार ने उन्हें परमवीर चक्र से अलंकृत किया।
मनोज पांडेय ने देश के लिए, समाज के लिए प्राणों का उत्सर्ग किया। उन्हें घर में रहने को मिला ही नहीं। सैनिक स्कूल में पांच साल रहे, तीन साल एनडीए में और एक साल देहरादून में। 24 साल की उम्र में बलिदान हो गए। वह कर्तव्य पथ पर आगे ही बढ़ते थे।
परमवीर चक्र है लक्ष्य
कैप्टन मनोज पांडेय का जन्म 25 जून 1975 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के कमलापुर के रूढ़ा गांव में हुआ था। एनडीए में चयन हुआ। फार्म भरते समय उसमें एक कॉलम में उन्होंने लिखा कि अंतिम लक्ष्य परमवीर चक्र है।
अवकाश लेने से कर दिया था मना
बतौर कमीशंड ऑफिसर गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन में भर्ती हुए। तैनाती कश्मीर घाटी में हुई। वह दुश्मनों को ढूंढ़-ढूंढ़कर मारते थे। कारगिल युद्ध से पहले सियाचिन भेजा गया। उनके और उनकी बटालियन के पास विकल्प था कि अवकाश ले सकते थे, लेकिन उन्होंने छुट्टी लेने से मना कर दिया था।
मनोज पांडेय का वह आखिरी खत
आदरणीय पिता जी सादर चरण स्पर्श मैं यहां प्रसन्न पूर्वक रहकर आप लोगों के मंगल की कामना करता हूं। कल ही सोनू का पत्र मिला, जानकर प्रसन्नता हुई कि वह ठीक है। यहां के हालात आप लोगों को पता ही हैं। आप लोग ज्यादा चिंता न करें कयोंकि हमारी पोजीशन उनसे अच्छी है। लेकिन दुश्मनों को हराने में कम से कम एक महीने का समय अवश्य लगेगा तब तक कुछ नहीं कहा जा सकता है। बस भगवान पर भरोसा रखना और प्रार्थना करना कि हम अपने मकसद में कामयाब हों।
सोनू से कहना कि वह पीसीएम की कोचिंग करना चाहे तो अच्छी बात है। पर उसके साथ लखनऊ विश्वविद्यालय में बीएससी में एडमिशन की भी कोशिश करे। एनडीए में हो जाता है तो बहुत अच्छा। अपना ख्याल रखना। कोई सामान की जरूरत हो तो बाजार से खरीद लेना। यहां काफी ठंड है, पर दिन में बर्फ न पड़ने से मौसम ठीक रहता है। आप लोग चिट्ठी अवश्य डालना, क्योंकि लड़ाई के मैदान में बीच में चिट्ठी पढ़ना कैसा लगता है शायद आप लोग इसका अनुभव नहीं कर सकते। मेरी चिंता मत करना।
– आपका बेटा मनोज
जब दुश्मनों की तरफ से होने लगी गोलियों की बौछार
मनोज पांडेय को कारगिल में निर्णायक युद्ध के लिए 2-3 जुलाई को भेजा गया। खालूबार फतह करने की जिम्मेदारी दी गई। ऊंचाई पर दुश्मनों के चार बंकर थे और नीचे जांबाज। रात में चोटी पर चढ़ाई की रणनीति बनाई। पाकिस्तानी दुश्मनों को पता चल गया और उन्होंने फायरिंग कर दी। कैप्टन मनोज पांडेय अपनी टीम को सुरक्षित जगह पर ले गए। टीम को दो टुकड़ी को बांटा। एक का खुद नेतृत्व किया। देखते ही देखते उन्होंने तीन बंकर ध्वस्त किए। गोलियों से जख्मी मनोज पांडेय जब चौथे बंकर के पास पहुंचे तो दुश्मनों की गोली उनके माथे पर लगी, लेकिन बलिदान देने से पहले उन्होंने उस बंकर को भी तबाह कर दिया था।
टिप्पणियाँ