कांग्रेस का मुगलों के प्रति प्रेम जग जाहिर है और यह समय-समय पर दिखता रहता है। यह बहुत ही हैरानी वाली बात है कि भारत के हिन्दू इतिहास को या फिर भारत में मुस्लिम आत्तताइयों के खिलाफ लड़ने वाले हिन्दू राजाओं के प्रति निकृष्ट दृष्टिकोण को ही कांग्रेस में क्यों प्रोत्साहित किया जाता है? अब कांग्रेस के सांसद मोहम्मद जावेद ने कहा कि “मुगल भारत में 300 वर्ष रहे हैं, और भाजपा चाहकर भी उनका इतिहास नहीं मिटा सकती है।“
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यह सही है कि भारत में मुगल शासन औपचारिक रूप से 1857 को बहादुर शाह जफर के साथ समाप्त हुआ, मगर यह भी सत्य है कि भारत में कभी भी मुगलों का शासन न ही निष्कंटक रहा और न ही बिना हिंदुओं के विरोध के रहा। और तीन सौ वर्ष तक का तो शासन रहा ही नहीं है। यह अवधि मात्र डेढ़ सौ वर्षों की रही और उनमें भी मुगल या तो हिन्दू राजाओं से संधि करते रहे या फिर उनसे लड़ाई। बाबर और हुमायूँ तो भागते ही रहे थे। बाबर ने जब 1526 में पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहीम लोदी को हराकर भारत में मुगल वंश को आरंभ किया था, वह भी शासन भोगने के लिए अधिक समय तक जीवित नहीं रहा था और मात्र चार वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो गई थी।
उसके बाद उसका अफीमची बेटा हुमायूँ गद्दी पर बैठा था। हुमायूँ का शासन भी लड़ाई में बीता था। उसे इस सीमा तक अफीम की लत थी कि कहा जाता है कि वह दिन में भी अफीम के ही नशे में रहता था। हुमायूँ के बेटे अकबर की बहुत चर्चा होती है, मगर क्या यह पता है कि हुमायूँ को भागने की इतनी आदत थी कि वह चौसा के निर्णायक युद्ध में अपनी ही बेटी “अकीक बीवी” को नदी में ही छोड़कर जान बचाकर भाग गया था। और बादशाह को बहुत दुख था कि उसने अपनी बेटी को अपने सामने ही क्यों न मार डाला।
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उसका भी शासनकाल केवल कुछ ही वर्ष रहा। पहले वह 1530 से 1540 तक शासक रहा और फिर 1555 से 1556 तक उसका शासन रहा था। अकबर से लेकर शाहजहाँ तक का शासनकाल कुछ स्थिर कहा जा सकता है क्योंकि अकबर से लेकर शाहजहाँ तक कुछ सीमा तक सहिष्णु नीति अवश्य अपनाई गईं, परंतु अकबर के शासनकाल में ही महाराणा प्रताप, रानी दुर्गावती सहित कई हिन्दू राजाओं ने लोहा लिया था और अकबर के हाथ ही हजारों हिंदुओं के खून से रंगे हुए थे। बाबर के जमाने से हिंदुओं के सिरों की मीनारें बनने का सिलसिला आरंभ हुआ था, वह पानीपत के द्वितीय युद्ध तक चला था। अकबर ने हिन्दू शासक हेमू को पराजित करने के बाद हेमू का सिर ही नहीं काटा था, बल्कि हेमू के मरे हुए सैनिकों के सिरों की मीनारें बनवाई थीं। इतना ही नहीं अकबर ने हेमू को मारकर ही “गाजी” की उपाधि धारण की थी।
अकबर के सहिष्णु चेहरे के पीछे यह छिपा लिया जाता है कि यह अकबर ही था, जिसने मुगल हरम को संस्थागत रूप दिया अर्थात जो औरत एक बार हरम में आ गई, वह वापस नहीं जा सकती थी। इस्लामिक जिहाद, अ लीगेसी ऑफ फोर्स्ड कन्वर्शन, इम्पीरियलिज्म एंड स्लेवरी में (Islamic Jihad A Legacy of Forced Conversion‚ Imperialism‚ and Slavery) में एम ए खान अकबर के विषय में लिखते हैं “बादशाह जहांगीर ने लिखा है कि मेरे पिता और मेरे दोनों के शासन में 500,000 से 6,00,000 लोगों को मारा गया था। (पृष्ठ 200)
और इनमें निर्दोष किसान तक सम्मिलित थे, जिन्हें “सहिष्णु अकबर” ने चित्तौड़ में घेरकर मार डाला था। चित्तौड़ के दुर्ग में 8 हजार सैनिकों के साथ 40,000 किसान भी थे।
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ये आँकड़े कथित सहिष्णु बादशाहों के समय के हैं। औरंगजेब के समय तो हिंदुओं पर अत्याचार की हर सीमा पार हो गई थी। हालांकि यह भी सत्य है कि औरंगजेब के समय में भी हिंदुओं का विद्रोह निरंतर जारी था। गोकुल जाट, छत्रसाल, छत्रपति शिवाजी, गुरु तेगबहादुर सिंह, गुरु गोविंद सिंह आदि औरंगजेब से लोहा लेते रहे। औरंगजेब की सबसे बड़ी हार तो उसकी दक्कन में कब्र के रूप में सामने आती है। छत्रपति शिवाजी एवं उनके पुत्रों के निधन के उपरांत उसे लगा कि वह आसानी से हिंदुओं को परास्त कर सकता है और फिर उसने दक्कन पर चढ़ाई कर दी, परंतु वह सफल नहीं हो सका था और उसके शासनकाल के अंतिम 20 से अधिक वर्ष वहीं पर बीते।
1556 को अकबर द्वारा दूसरी बार स्थापित मुगल वंश 1707 में औरंगजेब की मौत के बाद ही समाप्त हो गया। हालांकि औपचारिक रूप से यह 1857 को समाप्त हुआ, मगर 1707 के बाद से लेकर 1857 तक मुगल वंश के किसी भी शासक का कोई महत्वपूर्ण उल्लेख नहीं मिलता है।
और जैसा कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू Glimpses of World History, 1982 में बाबर का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि 1526 से 1707 तक मुगल वंश रहा। अर्थात वे स्वयं ही इसे 181 वर्ष तक सीमित करते हैं।
परंतु यह भी सत्य है कि उसमें भी बाबर का शासनकाल केवल चार साल रहा और हुमायूँ का शासनकाल भी स्थिर नहीं था। वह भारत में लड़ता रहा और शेरशाह सूरी से पराजित होकर भाग गया था। बाद में 1556 में पानीपत के द्वितीय युद्ध के बाद लगभग डेढ़ सौ वर्ष तक के शासन की नींव पड़ी थी। इसलिए यह कहना कि तीन सौ वर्षों तक मुगल शासन रहा है, अपने आप में भ्रामक है, झूठ है और पूरी तरह से झूठे गौरव से भरा हुआ बयान है। 1556 से लेकर 1707 तक का भी जो शासनकाल रहा, वह हिंदुओं के साथ अत्याचारों और हिंदुओं के संघर्ष का काल रहा है।
जहां वे संघर्ष करते रहे, और उसके साथ ही सामना करते रहे और अपने इतिहास की रक्षा करते रहे। मुगल दक्षिण में नहीं अपना साम्राज्य स्थापित कर पाए थे और न ही वे असम मे शासन कर पाए थे। जब मध्यकालीन भारत की बात होगी तो ऐसा कैसे हो सकता है कि असम के ओहम साम्राज्य को छोड़ दिया जाए, या फिर जीजाबाई एवं रानी अहल्याबाई के इतिहास को छोड़ दिया जाए या फिर चोल साम्राज्य आदि के इतिहास को छोड़ दिया जाए।
कॉंग्रेस के सांसद का यह कहना कि मुगलों को इतिहास से नहीं मिटाया जा सकता है, यह पूरी तरह से सत्य है। जब तक ऐसी मस्जिदें भारत में मौजूद हैं, जिन्हें मुगलों ने तोड़कर मस्जिद बना लिया, जैसे अयोध्या में श्रीरांम मंदिर, काशी में ज्ञानवापी परिसर और हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय से आया निर्णय कि मथुरा में हिन्दू पक्ष की अपील पर सुनवाई हो सकती है।
यूं तो भारत के हर जिले में हिन्दू मंदिरों पर बनी हुई मस्जिदें दिख जाती हैं और वहाँ पर यह लिखा भी होता है कि अमुक मस्जिद कब बनी और किनके अवशेषों पर बनी। फिर ऐसे में यह तो लिखित इतिहास है और सांस्कृतिक और धार्मिक ध्वंस का इतिहास है, इसे कौन मिटा पाएगा।
जब जब ज्ञानवापी का उल्लेख होगा, तब तब यह बताया जाएगा कि कैसे औरंगजेब ने इसलिए इस मंदिर पर हमला किया क्योंकि शिवाजी उसकी आगरा की कैद से बाहर निकलने में सफल हुए थे। औरंगजेब ने मथुरा और काशी के हिन्दू आस्था के इतने बड़े प्रतीकों पर हमला कराया था? और अकबर ने तो हिंदुओं के सबसे बड़े तीर्थ स्थल “प्रयागराज” का नाम बदलकर “अल्लाहाबाद” कर दिया था।
अकबर ने तो हिंदुओं के इतने महत्वपूर्ण तीर्थ जिसका उल्लेख रामायण में है, जिसका उल्लेख महाभारत में है और उस पवित्र स्थान का पूरा इतिहास अल्लाहाबाद जो कालांतर में इलाहाबाद हो गया, के माध्यम से मिटाने का प्रयास किया। यह मात्र शहर का नया नामकरण नहीं था, बल्कि यह तो रामायण काल से चला आ रहा हिंदुओं का इतिहास मिटाने का असफल प्रयास था।
यह सत्य है कि मुगल बादशाहों के ऐसे-ऐसे कुकृत्य भारत की आत्मा पर हैं कि उन्हें वास्तव में लोगों की चेतना से नहीं मिटाया जा सकता, क्योंकि यह हिंदुओं को हमेशा स्मरण रहेगा कि कैसे हिंदुओं के प्रति वास्तविक सहिष्णु दृष्टि रखने वाले “दाराशिकोह” की हत्या औरंगजेब ने कर दी थी और उसका सिर थाल में सजाकर अपने अब्बा शाहजहाँ को भेजा था।
उस कटे सिर को कभी भी भारत की चेतना नहीं भूल सकेगी, हेमू के कटे सिर को भारत की चेतना कभी नहीं भूल सकेगी, चित्तौड़ की घेराबंदी कभी भी नहीं भूल सकेगी, क्योंकि उसीसे पता चलता है कि मुगल दरअसल भारत के विषय में वास्तविक सोच क्या रखते थे। ये पीड़ा इतिहास में हमेशा रहेगी, हिन्दू चेतना, हिन्दू जन, हिन्दू मंदिरों, हिन्दू स्त्रियों और हिन्दू युवाओं के इतिहास में वेदना हमेशा रहेगी।
ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि आखिर कॉंग्रेस को इस वेदना देने वाले, हत्यारे मुगलों से इस सीमा तक प्रेम क्यों है?
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