एक ओर जहां सरकारों तथा बुद्धिजीवियों द्वारा मुस्लिम समाज में आधुनिक शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है, वहीं इसी मुस्लिम समाज के नुमाइंदे लगातार टकराव के रास्ते पर आगे बढ़ते हुए अपने ही समाज के लोगों को गुमराह करते रहे हैं। कुछ ही दिनों पहले आधुनिक शिक्षा की कथित पैरोकारी करने वाली मुस्लिम संस्था ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ भी इसी दिशा में आगे बढ़ती नजर आई थी, जब जमीयत मुख्यालय में जमीयत उलेमा-ए-हिंद की प्रबंधन समिति के दो दिवसीय अधिवेशन के अंतिम दिन एक प्रस्ताव पारित करते हुए स्कूलों में सरस्वती वंदना, धार्मिक गीतों और सूर्य नमस्कार जैसी गतिविधियों को अधार्मिक बताते हुए मुस्लिम छात्रों से इनका बहिष्कार और विरोध करने का आह्वान किया गया था। प्रस्ताव में मुस्लिम अभिभावकों से यह भी कहा गया था कि वे अपने बच्चों में तौहीद (एकेश्वरवाद) के प्रति विश्वास पैदा करें और शैक्षणिक संस्थानों में किसी भी बहुदेववादी प्रथाओं में भाग लेने से बचें। यदि जबरदस्ती की जाए तो उसका विरोध करें और कानूनी कार्रवाई करें। अधिवेशन के पहले दिन जमीयत के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने मुस्लिम युवाओं से आधुनिक शिक्षा के माध्यम से देश की सेवा करने का आह्वान किया था लेकिन अगले ही दिन उनके सुर पूरी तरह बदल गए थे, जब उन्होंने कहा कि हम आधुनिक शिक्षा के विरोध में तो नहीं है लेकिन हमारा स्पष्ट मानना है कि नई पीढ़ी को बुनियादी धार्मिक शिक्षा प्रदान किए बिना स्कूल की ‘शिर्क’ वाली शिक्षाओं पर आधारित पाठ्यक्रम न पढ़ाया जाए।
केवल और केवल हिंदू धर्म तथा गौरवशाली भारतीय संस्कृति के विरोध का झंडा बुलंद करने के लिए ही ऐसी संस्थाएं और मुस्लिम समाज के नुमाइंदे अपने ही समाज के बच्चों को आधुनिक शिक्षा की ओर आगे बढ़ने के बजाय उन्हें गुमराह कर पिछड़ेपन की ओर ही पीछे धकेल रहे हैं। हिंदू धर्म को लेकर इनके दिलोदिमाग में नफरत इस कदर छाई रहती है कि कई मुस्लिम शिक्षक ही स्कूलों में भारत माता और विद्या एवं बुद्धि की देवी मां सरस्वती का ही खुलकर विरोध करते दिखते रहे हैं। हाल ही में ऐसा ही एक मामला झारखंड के गढ़वा जिले के धंगरडीहा में स्थित एक सरकारी स्कूल ‘उत्क्रमित मध्य विद्यालय’ में भी सामने आया, जहां पदस्थापित एक मुस्लिम सहायक शिक्षक शेख तौहीद ने छात्रों को विद्यालय में सुबह की प्रार्थना के दौरान न केवल सरस्वती वंदना करने से रोका बल्कि कुछ बच्चों के नहीं मानने पर साउंड सिस्टम भी तोड़ डाले और फिर स्वयं ही धार्मिक नारे लगाए। जेहादी मानसिकता वाले शेख तौहीद नामक इस उर्दू शिक्षक और विद्यालय के अन्य शिक्षकों के बीच इस दौरान तीखी नोक-झोंक भी हुई।
मामले की शुरूआत उस समय हुई, जब 31 जुलाई की सुबह झारखंड के इस सरकारी विद्यालय में सभी छात्र एकत्रित होकर रोज की तरह सुबह की प्रार्थना करते हुए सरस्वती वंदना कर रहे थे, तभी दनदनाता हुआ इसी विद्यालय का शिक्षक शेख तौहीद वहां पहुंचा और उसने प्रार्थना में मौजूद सभी छात्र-छात्राओं से कहा कि इस विद्यालय में मेरे रहते सरस्वती वंदना तो क्या, किसी भी हिंदू देवी-देवता की वंदना नहीं होगी। जब बच्चों ने उसकी बातों को अनसुना कर सरस्वती वंदना जारी रखी तो उक्त शिक्षक ने विद्यालय के साउंड सिस्टम को ही जमीन पटक दिया। यह सब देखकर जब एक सहयोगी शिक्षक निशीथ यादव ने उन्हें यह सब करने से रोकने का प्रयास किया तो शेख तौहीद ने उनके साथ धक्का-मुक्की करते हुए ‘अल्लाह हू अकबर’, ‘नारे तकबीर’ जैसे धार्मिक नारे लगाने शुरू कर दिए और बच्चों पर भी ये नारे लगाने के लिए दबाव बनाने लगा। आखिरकार मामले को बढ़ता देख विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने तुरंत इसकी सूचना प्रशासन तथा स्थानीय थाने को दी।
मामले की सूचना मिलते ही विश्व हिंदू परिषद तथा बजरंग दल के सदस्यों ने विद्यालय पहुंचकर शिक्षक के प्रति आक्रोश जताया और समाज में धार्मिक उन्माद फैलाने वाले शिक्षक को अविलंब बर्खास्त करने की मांग की। विद्यालय के प्रधानाध्यापक प्रेम कुमार यादव ने भी शिक्षक पर विद्यालय में धार्मिक उन्माद फैलाने का आरोप लगाते हुए कार्रवाई के लिए पुलिस को आवेदन दिया। किसी अप्रिय घटना की आशंका को देखते हुए थाना प्रभारी कृष्ण कुमार तुरंत विद्यालय पहुंचे तथा उक्त शिक्षक को हिरासत में ले लिया गया। बता दें कि यह वही आरोपी शिक्षक है, जिस पर वर्ष 2015 से ही विद्यालय में धार्मिक भावना भड़काने के कई आरोप लगते रहे है। 2017 में पुलवामा में आतंकवादियों के हमले में शहीद हुए जवानों के बलिदान पर जश्न मनाने के संगीन आरोप भी इस पर लग चुके हैं।
बताया जाता है कि उस समय इसी शिक्षक ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति देने वाले वीर जवानों को लेकर आपत्तिजनक शब्द बोलते हुए विद्यालय में बच्चों के बीच मिठाईयां बांटी थी लेकिन हैरानी की बात है कि तब इसे लेकर हंगामा होने के बाद भी उसके विरुद्ध किसी प्रकार की कोई विभागीय कार्रवाई नहीं की गई थी। यही कारण था कि उसके हौंसले इतने बुलंद हो रहे थे कि वह शिक्षा के मंदिर में ही छात्र-छात्राओं को प्रायः प्रार्थना एवं सरस्वती वंदना करने से रोकने और विभिन्न अवसरों पर विद्यालय में विद्या की देवी सरस्वती की पूजा का विरोध करता रहता था।
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