भारत ने शांति का संदेश दिया तो धर्म की स्थापना के लिए युद्ध भी लड़े। भारत वीरों की भूमि है। वे अपने माथे पर विजय का तिलक लगाते हैं। ये तिलक कैप्टन विजयंत थापर ने भी लगाया था। उनका नाम भारतीय सेना के गौरवशाली टैंक विजयंत के नाम पर रखा गया था और उनका हौसला भी फौलादी था। पाकिस्तान के साथ कारगिल की लड़ाई में उन्होंने तोलोलिंग चोटी पर तिरंगा लहराकर भारत को पहली जीत दिलाई थी।
महज 22 साल की उम्र में चांदनी रात में भी नॉल पहाड़ी पर दुश्मनों के नापाक इरादों को नेस्तनाबूद कर दिया था। विजयंत ने तोलोलिंग पर विजय दिलाई। यह कारगिल और ऑपरेशन विजय में उनकी यूनिट 2 राजपूताना राइफल्स की पहली जीत थी। विजयंत ने पाकिस्तानी पोस्ट बर्बाद बंकर पर कब्जा किया था। यहां से छिपकर दुश्मन सीधे भारतीय सेना को भारतीय सैनिकों को आपूर्ति होने वाली रसद को निशाना बना रहा था, इसलिए यह जीत बहुत अहम थी। भारत सरकार ने इस अमर बलिदानी को वीर चक्र से अलंकृत किया। उनके माता-पिता नोएडा के सेक्टर-29 में रहते हैं। पिता भी सेना को समर्पित रहे।
कर्नल (रिटायर्ड) वीएन थापर कहते हैं कि जब विजयंत लड़ाई के आखिरी पड़ाव में नॉल पहाड़ी पर गए तो वहां बहुत ज्यादा बमबारी हो रही थी। भारत की तरफ से 120 तोपें गरज रहीं थीं तो इतनी ही तोपें पाकिस्तान की तरफ से भी। एक छोटे से क्षेत्र में इतनी ज्यादा गोलाबारी दुनिया में किसी युद्ध में नहीं हुई होगी। एक गोला विजयंत की टुकड़ी पर गिरा। विजयंत घायलों को लेकर सुरक्षित जगह पर पहुंचे। इसके बाद 19 लोगों के साथ तोलोलिंग नाले की तरफ से दुश्मनों के पीछे गए और फिर उनके बीच से निकलकर अपनी कंपनी से मिले। सूबेदार मानसिंह के गंभीर रूप से घायल होने के बाद नॉल पहाड़ी पर नेतृत्व का जिम्मा विजयंत ने संभाला। विजयंत ने 28-29 जून 1999 की दरम्यानी रात में नॉल पहाड़ी पर तिरंगा लहरा दिया। तिरंगा लहराने के बाद आगे बढ़े तो दुश्मनों की मशीनगनें चल रहीं थीं। विजयंत एक बार कदम बढ़ा देते थे तो आगे ही बढ़ते थे। इसी दौरान एक गोली विजयंत के माथे पर लगीं और वह हवलदार तिलक सिंह की बांहों में गिर गए। जहां वह बलिदान हुए वहां उनके साथियों ने मंदिर बनाया। जहां वॉर मेमोरियल बना, वहां के हेलीपैड का नाम विजयंत हेलीपैड रखा गया।
मां तृप्ता थापर कहती हैं कि कर्नल थापर की वजह से घर में अनुशासन था और यह जीवन में एक लक्ष्य की ओर ले जाता है। विजयंत ने भी अपना लक्ष्य तय कर लिया था। मेरा बेटा जितना वीर था उतना दयालु भी। अपनी पॉकेटमनी गरीबों को दे देता था। वह सच्चा देशभक्त था। खेल और पढ़ाई दोनों में अव्वल रहता था। तैराकी भी जबर्दस्त थी। आइएमए में तैराकी में स्वर्ण पदक जीता था। प्यार से हम उसे रॉबिन कहकर पुकारते थे। उन्हें खीर बहुत पसंद थी और मां तृप्ता थापर आज भी विजयंत के जन्मदिन पर खीर जरूर बनाती हैं।
विजयंत के लिए एक बार अमेरिका से टीशर्ट आई थी। उसमें अमेरिका का नक्शा बना था। विजयंत ने उसे पहनने से मना कर दिया था। उन्हें जब भी कोई पुरस्कार मिलता था तो उस पर मेरा भारत महान लिखा होता था। तृप्ता थापर कहती हैं कि देश की सीमा की रक्षा करने वाले ही तो असली नायक हैं और आज के बच्चे उन्हें यह एहसास जरूर कराते रहें। विजयंत की यह करुणा ही थी कि कुपवाड़ा में बच्ची रुखसाना का ख्याल रखने का वादा लिया था। उसके पिता को आतंकियों ने मार दिया था।
विजयंत थापर और विक्रम बत्रा ने एक ही स्कूल से की थी पढ़ाई
विजयंत ने बारहवीं चंडीगढ़ के उसी डीएवी स्कूल से की थी, जहां से कारगिल शहीद और परमवीर चक्र विजेता विक्रम बत्रा ने भी पढ़ाई की थी। विक्रम बत्रा उनसे दो साल सीनियर थे। विजयंत ने स्नातक (बीकॉम) दिल्ली विश्वविद्यालय के खालसा कॉलेज से किया।
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