जब भी कारगिल युद्ध की बात आती है तो उत्तराखंड के रणबांकुरों की बात न हो, ऐसा मुमकिन नहीं है। यहां के हर घर में आपको एक फौजी मिलेगा। 25 साल पहले कारगिल में पाकिस्तान के साथ युद्ध हुआ था। उस जंग में भारतीय सेना के कई जवान बलिदान हो गए थे। उन्हीं में से एक हैं उत्तराखंड के अमर बलिदानी मंगत सिंह भण्डारी, जो 18 गढ़वाल राइफल यूनिट में तैनात थे। कारगिल युद्ध जब शुरू हुआ था, उस समय उनकी एक बेटी, एक बेटा और गर्भ में एक बेटी थी।
परिवार से अंतिम मुलाकात
बलिदानी मंगत सिंह भण्डारी का परिवार इस समय दिल्ली में रहता है। पाञ्चजन्य से बात करते हुए वीरांगना रेखा भण्डारी ने बताया कि उनसे अंतिम मुलाकात उनसे 24 दिसंबर 1998 में हुई थी। उसके बाद वे अपनी ड्यूटी पर चले गए और जाते समय बोले थे कि अब बहन की शादी में आऊंगा। उस समय फोन नहीं होते थे, तो 15-20 दिन पर एक पत्र आया करता था, जिसके माध्यम से उनसे बातचीत हो जाती थी। वे हर पत्र में यही लिखते थे कि जल्द ही आऊंगा। बहन की शादी का दिन नजदीक आ गया, तारीख थी 16-17 जून 1999। शादी की तारीख के कुछ दिन पहले उनका एक पत्र आया, जिसमें उन्होंने लिखा था कि मैं श्रीनगर जा रहा हूं, कुछ दिनों के लिए मेरी पोस्टिंग वहाँ हो गई है। शादी में नहीं आ पाऊंगा, छुट्टी कैंसल कर दी गई है। अब सीधा तुम्हारी डिलीवरी के समय आऊंगा।
युद्ध की जानकारी
उन्होंने उस पत्र में यह बात नहीं लिखी कि वे युद्ध के लिए जा रहे हैं फिर कुछ दिनों बाद एक और पत्र आया, जिसमें उन्होंने लिखा कि जम्मू कश्मीर के कारगिल में पाकिस्तानी सेना के साथ जंग हो रही है और मैं वहाँ पर आ गया हूं। चिंता मत करना, मैं युद्ध खत्म होते ही घर आने की कोशिश करूंगा। जब भी वे कोई पत्र भेजते थे तो उसमें यह वाक्य जरूर होता था कि मैं जल्द ही घर आने की कोशिश करूंगा।
संघर्ष और बलिदान
जब से पत्र में युद्ध की बात पढ़ी थी, मन में एक डर बैठ गया था। हमेशा एक डर सताता रहता था, लेकिन कुछ कर नहीं सकते थे। उस समय बस एक पत्र का सहारा था। रेखा भण्डारी आगे बताती हैं कि बहन की शादी अच्छे से बीत गई। फिर 10-12 दिन बाद सेना के कुछ जवान घर आए और बताया कि दुश्मनों की तरफ से लगातार गोलियों की वर्षा हो रही थी। इस बीच तोलोलिंग पहाड़ी पर अपनी बटालियन के साथ मंगत सिंह भण्डारी लगातार दुश्मनों के खेमे पर हमला करने के लिए आगे बढ़ रहे थे। इस दौरान उनके पैर में गोली लगी और उनके कदम लड़खड़ा गए, लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। वे फिर से खड़े हो गए और दुश्मनों पर टूट पड़े। अंतिम सांस तक वे दुश्मनों को जवाब देते रहे और वीरगति को प्राप्त हो गए।
परिवार की प्रतिक्रिया
रेखा भण्डारी कहती हैं कि यह बात सुनते ही मानो पैरों तले जमीन खिसक गई हो। उस समय कुछ समझ में नहीं आ रहा था। परिवारवालों और बच्चों ने काफी साथ दिया। उस समय उनकी छोटी बेटी गर्भ में थी, जो अपने पापा को देख नहीं पाई थी।
गर्व और स्मरण
बच्चे अपने पापा पर गर्व महसूस करते हैं कि उनके पापा उन चुनिंदा लोगों में से एक हैं, जिन्होंने देश की सुरक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। जब-जब उन्हें और उनके परिवार को किसी देशभक्ति कार्यक्रम में आमंत्रित किया जाता है, वह क्षण काफी भावनात्मक और गौरवान्वित होता है। अब उनकी यादें ही साथ रह गई हैं।
रेखा भण्डारी बताती हैं कि वे बचपन से ही सेना में जाना चाहते थे। उनका पूरा परिवार आर्मी में है। बचपन से ही उनमें देशभक्ति और सेवा का जज्बा कूट-कूट कर भरा था। अपने गांव और परिवार के साथ बड़े होते हुए, उन्होंने भारतीय सेना में शामिल होने का सपना देखा और उसे साकार करने के लिए कड़ी मेहनत की। सेना में शामिल होने के बाद, मंगत सिंह भण्डारी ने अपने अनुशासन, समर्पण और साहस के लिए ख्याति प्राप्त की। 26 मई 1986 में उनका फौज में चयन हुआ था। उनका परिवार उनकी एक-एक याद को सहेज कर रखे हुए है।
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