भारतकेन्द्रित अध्ययन राष्ट्रीय शिक्षा नीति का केन्द्रीय विषय रहा है। भारतीय ज्ञान परम्परा में रसायन विज्ञान एक आधारभूत शाखा के रूप से वैदिक काल से लेकर आधुनिक समय तक विद्यमान रही है। वैदिक काल में अथर्ववेद में प्राप्त विविध रसायनों के निर्माण को क्रमबद्ध तरीके से लिपिबद्ध करके उसे प्रकाशित करने का श्रेय जिस भारतीय विद्वान को प्राप्त है वे हैं आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र रे। आचार्य रे का सबसे महत्वपूर्ण योगदान उनकी पुस्तक ‘ द हिस्ट्री ऑफ हिन्दू केमिस्ट्री ‘ रसायन शास्त्र के भारतीय स्वरूप का आधारभूत ग्रंथ है।आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र रे का जन्म 2 अगस्त 1861 को हुआ था।आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र रे केवल एक रसायनशास्त्री मात्र नहीं थे, इसके अतिरिक्त उनकी उपलब्धि एक रसायन उद्योग के नीव के पत्थर के रूप में भी है।
रसायन शास्त्र के आधुनिक स्वरूप तक पहुंचने की प्रक्रिया एक चरणबद्ध प्रक्रिया है।पहले चरण में वैदिक काल का रसायन शास्त्र है, जिसके अंतर्गत ऋग्वेद से अथर्ववेद तक में वर्णित रसायनों का वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक के प्रस्तावना के प्रथम अध्याय में Alchemical Ideas in the Vedas शीर्षक में किया है । अगले चरण में वैशेषिक दर्शन के तत्व मीमांसा एवं तांत्रिक काल के रसायन शास्त्र का वर्णन किया है। उससे आगे चरक और सुश्रुत के चिकित्सा शास्त्र में प्रयुक्त रसायनशास्त्र का वर्णन तथा इसके अनंतर आधुनिक रसायनशास्त्र के वैज्ञानिकों का वर्णन किया है।
आचार्य रे का यह नित नूतन चिर पुरातन विचार कहीं पर भी रसायन के मूलभूत नियमों से च्युत नहीं होता। रसायनशास्त्र का प्रारम्भ ऋग्वैदिक काल से होता आ रहा है, इस कथन में अनेक प्रमाण प्रदर्शित करते हुए उन्होंने चिकित्सा विज्ञान, धातुकर्म (Metallurgical operations) जैसी प्रक्रियाओं के उल्लेख के साथ साथ ऋग्वेद में वर्णित अश्विनी कुमारों का उल्लेख किया है। ऋग्वैदिक मंत्रों में रसायनों का मानवीकरण करने की बात कहकर उन्होंने वैदिक मन्त्रों के रसायन शास्त्रीय व्याख्या का प्रतिपादन किया है। उसके बाद उन्होंने चरक एवं सुश्रुत कालीन रसायनशास्त्र को जनसामान्य को समझाने हेतु उसके आधारभूत द्रव्य गुण के शास्त्र वैशेषिक दर्शन का तत्व शास्त्र अपनी पुस्तक में उद्धृत किया है। वैशेषिक दर्शन के मूल 6 पदार्थ, 24 गुणों का रसायन शास्त्रीय विवेचन प्रस्तुत कर उनका 6 रसों से सम्बंध स्थापित करके चरक एवं सुश्रुत के चिकित्सा सम्बंधी रसायन विश्लेषण को बड़ी गंभीरता पूर्वक विश्लेषित किया है। दर्शन जैसे विषय को चिकित्सा जैसे विषय का आधारभूत विज्ञान बताना स्वयं में एक उपलब्धि है।
आयुर्वेद काल के वर्णन में सूक्ष्म एवं स्थूल तत्वों की गणना के क्रम में सांख्य दर्शन का तन्मात्र और महाभूत विभाग, वैशेषिक दर्शन का परमाणु सिद्धान्त अणु, द्वयणुक,त्र्यणुक एवं चतुरणुक का वर्णन , वैशेषिक दर्शन के गुणों रूप, रस, गन्ध इत्यादि का वर्णन करते हुए उनकी चिकित्सा शास्त्र में उपयोगिता सिद्ध करना आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र रे की मानसिक परिपक्वता का द्योतक है।आचार्य चरक और सुश्रुत के रसायन विज्ञान को समझाते हुए विशुद्ध रसायन विज्ञान के नामकरण को प्रयोग करना उनकी सनातन मेधा का द्योतक है। क्षारीय तत्व (Alkali) , पारद (Mercury), यशद (Copper), कज्जली (Black Sulphide of Mercury) प्राचीन नामकरण को आधुनिक नामकरण के साथ रख देना उनकी अंतरवैषयिक प्रतिभा का द्योतक है। वृंदा एवं चक्रपाणि जैसे भारतीय रसायन शास्त्रीय के प्रयोगों का उल्लेख उनके वास्तविक सन्दर्भों के साथ प्रदर्शित करना , आचार्य रे की अलौकिक प्रतिभा का परिचायक है। अभ्रक (Mica) और पारद/पारा (Mercury) को हर(शिव) और पार्वती (गौरी) के समतुल्य रखकर उनके मिश्रण को अमृततुल्य बताकर , रसायनों के मानवीकरण का सिद्धांत प्रतिपादित किया है। The combination of the two , O goddess , is destructive of death and Poverty
आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र रे ने न केवल प्राचीन रसायनशास्त्र के सिद्धांतों को प्रतिपादित किया अपितु अनेक प्राचीन यंत्रों का भी उल्लेख अपने ग्रंथ में किया जैसे दोलायंत्र, स्वेदनी यंत्र, अधस्पातन यंत्र, ढेकी यंत्र, वालुका यंत्र आदि। उपरोक्त विषयों के माध्यम से यह अनुमान किया जा सकता है कि आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र रे का अध्ययन कितना व्यापक एवं गम्भीर था। भारतीय ज्ञान परम्परा के पुरोधा आचार्यों में प्रफुल्ल चन्द्र रे का अध्ययन अपरिहार्य है।
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