जज की कुर्सी पर बैठे व्यक्ति से हर कोई न्याय मिलने की उम्मीद करता है। लेकिन, उस पद पर बैठा व्यक्ति यदि प्रताड़ित को ही अपमानित करने लगे, वह भी खुले तौर पर तब फिर वह सारी अवमाननाएं और सम्मान की भावनाएं पीछे छूट जाती हैं, जिसके बंधन, डर और श्रद्धा में कोई भी किसी न्यायालय के निर्णय और न्याय की कुर्सी पर बैठे व्यक्ति के विरोध में जाकर आवाज बुलंद नहीं करता है। लेकिन, मध्य प्रदेश के इंदौर में एक लव जिहाद की शिकार रेप पीड़िता के साथ न्यायालय में जो घटा, उसके बाद जैसे हर डर और असमंजस को बाहर निकालकर स्त्री शक्ति न्याय की कुर्सी पर बैठे जज के विरोध में सड़क पर उतर पड़ीं, जहां एक ओर जमकर इस जज के विरोध में नारे लगे, वहीं उन्होंने राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपकर अपनी मंशा स्पष्ट की है कि इस तरह का कदाचरण भविष्य में किसी अन्य बेटी के साथ न घटे।
दरअसल, ये पूरी घटना दो दिन पूर्व ही सामने आई, कोर्ट रूप में घटा मामला कुछ इस तरह का था कि अनायास ही फिल्म दामिनी याद आ जाती है। लव जिहाद की शिकार हुई इस दुष्कर्म पीड़िता के साथ इंदौर की कोर्ट में जज द्वारा इतने अधिक अर्मादित एवं अपमानित करने जैसी भाषा में सवाल-जवाब किए गए कि पीड़िता ने राष्ट्रपति तथा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी लिखकर न्याय देने या फिर आत्महत्या करने की अनुमति देने तक की मांग कर डाली। इसी से समझा जा सकता है कि कोर्ट रूप में महिला पर कितना अधिक मानसिक अत्याचार हुआ होगा।
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मामले में एक पीड़िता से अपनी पहचान छिपाते हुए मुस्लिम युवक अशरफ मंसूरी ने आशु बनकर दोस्ती की फिर उसका शारीरिक शोषण किया। आरोपी ने उस पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाया और रुपयों का लालच भी दिया, इस काम में अशरफ मियां का भाई बुरकान मंसूरी भी उसका साथ दे रहा था। जब आशु का असली चेहरा और नाम सामने आ गया तो उक्त महिला पुलिस के पास गई और मामले में पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर आरोपितों को जेल में डाल दिया। आगे इस प्रकरण में जब न्यायालय में युवती से क्रॉस एग्जामिनेशन किया गया तो वहां जज द्वारा कुछ ऐसी बातें बोलीं गईं कि वह शर्मसार हो गई। इसके बाद युवती ने राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर न्याय दिलवाने या नहीं दिलवा सकने की स्थिति में इच्छामृत्यु की अनुमति दे देने की गुहार लगा दी।
कोर्ट में जो घटा उसके बारे में पीड़िता ने बताया कि ऐसा लगा जैसे मेरे चरित्र का सरेआम हनन हो रहा है। न्यायालय में मेरे बयान चल रहे थे और लोग ठहाके लगा रहे थे। दुष्कर्म पीड़िता से बंद कमरे में कुछ जिम्मेदार लोगों के बीच बयान दर्ज करने के स्थान पर दरवाजा खोलकर सभी के सामने बयान लिए गए। जज ने पूछा कि गाड़ी में कैसे कोई बलात्कार कर सकता है? ट्रायल के दौरान जिस तरह से बातें पूछी गईं, उससे लगा कि उनके साथ न्याय नहीं होगा। जज साहब ने कहा-मैं भी जिंस और टी-शर्ट पहनकर निकलूंगा तो इस प्रकार की लड़कियां मेरे साथ भी घूमने निकल जाएंगी। आजकल इस प्रकार की बाजारू लड़कियों का कोई चरित्र नहीं बचा है। यह लड़कियां मात्र रुपए लेने की नीयत से झूठे प्रकरण दर्ज करवाती हैं। जज साहब ने मुझसे पूछा, क्या तुमने रुपये प्राप्त कर लिए ?
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पीड़िता ने कहा कि न्यायपीठ से आती इस तरह की बातों ने मुझे गहरे अंदर के घाव दिए हैं, इसलिए आहत होकर मैंने राष्ट्रपति, उच्च न्यायालय सहित महिला आयोग में उन जज साहब की शिकायत की है। वहीं, इस संबंध में जैसे ही सामाजिक संगठनों समेत नारि विमर्श व स्त्री शक्ति के लिए काम करने वाले संगठनों को पता लगा वे भी इस महिला को न्याय दिलाने सड़कों पर उतर पड़े। जिसमें कि स्त्री विमर्श के क्षेत्र में कार्य करने वाले संगठन दामिनी मां अहिल्या की नगरी में स्त्री सम्मान, स्त्री स्वावलंबन और स्त्री के विचारों को आयाम देने वाला संगठन दामिनी आगे आया है।
इस दामिनी संस्थान ने राष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधिपति ,उच्चतम न्यायालय, नई दिल्ली, मुख्य न्यायाधिपति, उच्च न्यायालय,जबलपुर, प्रशासनिक न्यायाधिपति,इन्दौर पोर्टफोलियो न्यायाधिपति, इन्दौर जिला न्यायाधीश, महिला आयोग, नई दिल्ली न्यायिक अधिकारी संघ,जबलपुर के अध्यक्ष एवं सचिव के नाम ज्ञापन सौंपा है। जिसमें मांग यही की गई है कि इस प्रकार का निर्णय देने वाले न्यायाधीश के निलंबन एवं समस्त संबंधित जिम्मेदारों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही अतिशीघ्र की जाए।
इसमें कहा गया है कि एक दुष्कर्म पीड़ित बहन द्वारा अशरफ एवं अन्य के विरुद्ध आपराधिक प्रकरण दर्ज कराया था। वर्तमान में जिसकी सुनवाई न्यायाधीश देवेन्द्र प्रसाद मिश्रा के समक्ष हो रही है। उक्त प्रकरण में पीड़िता का प्रति परीक्षण जो न्यायालय कक्ष के दरवाजे बंद करके किए जा रहे थे, लेकिन न्यायधीश मिश्रा द्वारा आरोपी गण के अभिभाषक को प्रति परीक्षण से यह कहकर रोकते हुए कि ‘इस प्रकार की लड़कियों का प्रति परीक्षण तो मैं स्वयं ही करता हूं’ यह कहते हुए उन्होंने न्यायालय के दरवाजे खुलवा दिये एवं स्त्रीयोचित्त मर्यादा का ध्यान न रखते हुए अत्यन्त अभद्र शब्दों का प्रयोग करते हुए कई प्रश्न ऐसे किये गये, जिसका जवाब उस बहन के लिये खुले न्यायालय में देना संभव नहीं था। खुले न्यायालय में ही न्यायाधीश द्वारा उस बहन हेतु ‘बाजारू’ व ‘रूपये अर्जित करने हेतु कृत्य करने’ जैसे शब्दों का सम्बोधन करते हुए प्रश्न पूछे गये जिससे पीड़ित बहन मानसिक रूप से भी प्रताड़ित हुई है। जिसके बाद इस संबंध में उसके द्वारा संविधानिक पदों पर बैठे सभी प्रमुखों के समक्ष न्याय की गुहार की गई है। साथ ही न्याय न मिलने की स्थिति में इच्छा मृत्यु मांगी है। न्याय प्रिया मां अहिल्या की नगरी में यह घटना अत्यंत विचलित करने वाली है।
दामिनी संस्था से जुड़ी महिलाओं ने कहा है कि न्यायाधीश देवेन्द्र प्रसाद मिश्रा द्वारा पीड़िता के साथ किया गया उक्त व्यवहार उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रतिपादित न्याय सिद्धांत के विपरीत किया गया आचरण तो है ही साथ ही यह सभ्य समाज पर प्रश्न चिन्ह भी खड़ा कर रहा है। उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रतिपादित न्याय सिद्धांत में स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि दुष्कर्म पीड़िता का चरित्र चित्रण व उत्पीड़न नहीं होना चाहिए एवं पीड़िता का नाम, पहचान एवं न्यायालयीन कार्यवाही गोपनीय रखना चाहिए तथा ऐसे मामले पूर्णतः कैमरा प्रोसीडिंग, वीडियो कान्फ्रेंसिंग से होना चाहिए। न्यायाधीश को किसी भी प्रकरण में पीड़िता के साथ प्रति परीक्षण करने का अधिकार नहीं है। आरोपित के अभिभाषक द्वारा पीड़िता के साथ जब प्रति परीक्षण किया जाता है तब अभिभाषक की भाषा अत्यंत सयंमित एवं संतुलित होना आवश्यक है। इस पूरे प्रकरण में न्याय संगत व्यवहार के इतर न्यायाधीश द्वारा सभी मानवीय मूल्यों को ताक पर रखकर स्त्री अस्मिता की धज्जियां उड़ाई गई हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना अत्यंत चिंतनीय है।
प्रश्न यह है कि सुनवाई पूरी हुए बगैर तथ्य और प्रमाण सामने लाए बगैर न्यायाधीश इस तरह के निष्कर्ष पर कैसे पहुंचे? वे पीड़ित महिला को सार्वजनिक रूप से बाजारू महिला के रूप में संबोधित कर उसके मनोबल को तोड़ने का प्रयास क्यों कर रहे थे? यह सर्व विदित है कि इस तरह की घटना होने के बाद पीड़ित महिला भय एवं लोक लाज के कारण रिपोर्ट ही नहीं कर पाती हैं। न्यायाधीश के इस व्यवहार के कारण भविष्य में भी दुराचार पीड़ित महिलाएं अपनी बात कहने में भी घबराएंगी? न्यायालय तक तो आने का विचार भी नहीं करेंगी। ऐसा प्रतीत होता है कि न्यायधीश महोदय ने बलात्कारियों को फ्री हैंड देने का प्रयास किया है। जबकि भारत जैसे देश में जहां स्त्री सम्मान को सर्वोच्च प्राथमिकता है, उसके लिए असंख्य के संघर्ष और बलिदान हुए हैं। जहां न्यायालय को न्याय का मंदिर कहा जाता हो वहां स्त्री के साथ इस तरह का अपमान जनक व्यवहार निंदनीय ही नहीं दंडनीय होना चाहिए! दामिनी का मत है कि माननीय न्यायाधीश ने दुष्कर्म से भी अधिक बुरा आचरण किया है।
संभायुक्त कार्यालय में एकत्र आई इस संगठन की महिलाओं ने कहा कि सम्पूर्ण समाज का अटूट विश्वास न्यायालय पर हैं। किंतु इस प्रकार के घटनाक्रम न्यायप्रिय मां अहिल्या देवी की नगरी में होने से समाज का विश्वास न्यायालय के प्रति कमजोर हो गया है। आम आदमी जो न्यायालय को अपने अधिकारों के रक्षक के रूप में देखता है इस घटना से उसमें भी रोष व्याप्त हैं। ऐसे में निवेदन यही है कि विषय की गंभीरता को संज्ञान लेते हुए न्यायाधीश देवेन्द्रप्रसाद मिश्रा के निलंबन एवं समस्त संबंधित जिम्मेदारों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही अतिशीघ्र की जानी चाहिए। ताकि इस प्रकार के घटनाक्रम की भविष्य में पुनरावृत्ति न हो सके।
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संगठन की ये हैं प्रमुख मांगें –
1. यौन उत्पीड़न तथा दुष्कर्म के केस में पृथक न्यायालय स्थापित हो जिसमें महिला न्यायधीश के माध्यम से सुनवाई हो।
2. इस प्रकार के केस की सुनवाई अत्यधिक संवेदनशीलता के साथ हो।
3. ऐसे मामलों में केस इन कैमरा प्रोसिडिंग्स ही चलें। यह न होने की स्थिति में कड़ी सजा का प्रावधान हो।
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में सबसे अधिक लव जिहाद के मामले इंदौर से ही सामने आ रहे हैं । दरअसल, मिनी बॉम्बे के नाम से अपनी पहचान रखने वाले इस शहर में एक ओर प्रदेश के कई जिलों से लोग रोजगार और अच्छी शिक्षा, प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने के लिए पहुंचते हैं तो दूसरी तरफ देश भर से यहां आने वालों की तादात भी बड़ी संख्या में है। फिर मालवा के इस क्षेत्र का प्राकृतिक वातावरण भी कुछ ऐसा ही कि यहां न अधिक गर्मी हाती है और न हीं सर्दी। इसलिए अधिकांश लोग एक बार यहां आ गए तो यहीं हमेशा के लिए बस जाते हैं। इस क्षेत्र में मुसलमानों की भी बड़ी तादात है, जिनमें कि योजना से इनके बीच के युवा अपना हिन्दू नाम रखकर यहां तक कि दिखाने के लिए जूठे पहचान पत्र तक बनाकर अपने पास रखते हैं और हिन्दू युवतियों को अपने प्रेम जाल में फंसाकर उन्हें लव जिहाद का शिकार बना रहे हैं। हालांकि मप्र में लव जिहाद के खिलाफ कानून है, मध्य प्रदेश सरकार ने मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 2021 पारित किया है जिसका उद्देश्य गैरकानूनी पांथिक रूपांतरणों पर रोक लगाकर मत (धर्म) की स्वतंत्रता प्रदान करना है। किंतु इस काम में लगे मुस्लिम युवकों को किसी कानून का कोई भय नहीं होना ही बार-बार सामने आ रहा है।
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