गत जुलाई को पटना स्थित राजभवन में गुरु पूर्णिमा उत्सव मनाया गया। इसका उद्घाटन राज्यपाल श्री राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने किया। इस अवसर पर केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी, राज्यपाल के मुख्य सचिव रॉबर्ट एल. चौग्थू आदि उपस्थित रहे।
इन लोगों ने महर्षि वेदव्यास के तैलचित्र पर पुष्प अर्पित करने के बाद वाद्ययंत्र एवं ग्रंथों का भी पूजन किया। उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए श्री राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने कहा कि अध्यापकों और विद्यार्थियों दोनों को पूर्ण समर्पण भाव से अपना काम करना चाहिए।
अध्यापक शिक्षण के प्रति समर्पित भाव से विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करें और विद्यार्थी भी श्रद्धा और समर्पण के साथ ज्ञानार्जन करें। समर्पण का यह भाव शिक्षा, समाज, राष्ट्र, परिवार, शिक्षक एवं विद्यार्थी सबके प्रति होना चाहिए। अपने कार्य के प्रति समर्पित होने पर ही अध्यापक विद्यार्थियों को कुछ नया दे सकते हैं।
उन्होंने महर्षि वेदव्यास का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्हें स्मरण करने का अभिप्राय अपने भीतर समर्पण का भाव लाना है। प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी ने कहा कि तथ्य को जानने वाला तथा अपने शिष्य के हित के लिए निरंतर उद्यमशील रहने वाला ही गुरु होता है।
उपदेश आसान होता है, किंतु उसका अनुपालन कठिन होता है। गुरु-शिष्य परंपरा को दृढ़ बनाने के लिए श्रोता और वक्ता अर्थात् विद्यार्थी और अध्यापक के बीच के संबंध महत्वपूर्ण होते हैं। इस अवसर पर पटना विवि एवं पाटलिपुत्र विवि के कुलपतिगण, शिक्षकगण एवं छात्र-छात्राएं आदि उपस्थित रहे।
टिप्पणियाँ