दुनिया का कोई देश ऐसा नहीं जो अपने यहां अवैध घुसपैठ को स्वीकार करे। हर देश ने घुसपैठ को रोकने के लिए कानून बना रखे हैं और उन्हें वापस उनके देश भेज दिया जाता है। किंतु भारत में स्वाधीनता के बाद से घुसपैठ लगातार जारी है। अभी हाल ही में एक बांग्लादेशी यू-टयूबर ने अपनी एक रिपोर्ट के जरिए यह बताया कि कैसे बांग्लादेश से भारत में घुसपैठ की जाती है।
म्यांमार सीमा से भी बड़ी संख्या में घुसपैठिए भारत आ रहे
बांग्लादेश की तरफ से हजारों की संख्या में रोज भारत आ रहे घुसपैठियों की तरह ही म्यांमार की ओर से भी बहुत अधिक लोागों की घुसपैठ हो रही है। म्यांमार में वर्ष 2021 में हुए सैन्य तख्तापलट के बाद भारत में घुसपैठ करनेवाली की संख्या में अचानक तेजी आई, जोकि लगातार जारी है। यदि इन चार सालों में इस सीमा से भारत में आए घुसपैठियों की संख्या का अंदाजा लगाया जाएगा तो यह संख्या संभावित पचास हजार से भी ऊपर पहुंच चुकी है। इनमें से परिवार के साथ बढ़ते क्रम में इनकी संख्या सिर्फ चार साल में ही अनुमानित डेढ़ लाख पार हो चुकी है। यानी कि एक छोटा सा कस्बा एक जगह भारत में म्यांमार की सीमा से भारत में घुसे रोहिंग्याओं और अन्य घुसपैठियों से बसाया जा सकता है, जोकि देश में सर्वत्र फैल गए हैं। ये एक जगह से आनेवालों का आंकड़ा सिर्फ चार सालों का है, जबकि भारत में घुसपैठ की ये समस्या लगातार पिछले 70-75 सालों से चल रही है।
भारत और बांग्लादेश के बीच कई किलोमीटर की खुली सीमा
यही हाल बांग्लादेश से लगी भारतीय सीमा का है। यहां से जत्थे के जत्थे भारत की ओर चले आ रहे हैं। भारत और बांग्लादेश के बीच 4,095 किलोमीटर लंबी सीमा है, जिसमें से लगभग 1,116 किलोमीटर नदी से घिरा हुआ क्षेत्र है। बांग्लादेश तीन तरफ से पांच भारतीय राज्यों – पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा से घिरा हुआ है। भारत-बांग्लादेश सीमा पर काफी बड़े इलाके में बाड़ नहीं है, क्योंकि राज्य सरकार ने अभी तक जमीन नहीं दी है। अकेले दक्षिण बंगाल में भारत-बांग्लादेश की 913 किलोमीटर की सीमा में अधिकांश पर अभी तक बाड़ नहीं लगी है। इनमें कई इलाके में नदी की सीमा है, जोकि लगभग 372 किलोमीटर है, सिर्फ 404 किलोमीटर पर बाड़ लग सकी है।
स्वभाविक है ऐसे में बांग्लादेशी घुसपैठिये इनका लाभ उठाकर आसानी से भारत में प्रवेश कर जाते हैं। फिर भारत में प्रवेश करने वाले बांग्लादेशियों के पास भारतीय नागरिकता के प्रमाण जैसे आधार कार्ड, वोटर कार्ड और पैन कार्ड पहले से मौजूद रहते हैं। यहां तक कि बैंकों में अकाउंट तक होते हैं। ये देश के विभिन्न हिस्सों में ज्यादातर उन इलाकों में चले जाते हैं, जहां रोजगार के साधन अधिक हैं। ये प्रायः देश के हर बड़े शहर में रहते हैं और खुद को पश्चिम बंगाल का निवासी बताते हैं। ऐसे में इनकी पहचान करना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। जबकि भारतीय नागरिकता के लिए विधिवत नियम बने हुए हैं। जिनका अनुपालन करते हुए वैध तरीके से भी भारत की नागरिकता ली जा सकती है, लेकिन बांग्लादेशी किसी नियम से नहीं चलते, उसमें फिर जो एक गलत कदम तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उठाया, वह आज भारत के लिए एक बड़ा संकट बन गया है। इसकी गहराई में जाने के पूर्व हमें संविधान के आर्टिकल 11 को देखना होगा।
राजीव गांधी का एक गलत निर्णय, लाखों बांग्लादेशियों के भारत में प्रवेश का कारण बना
संविधान का आर्टिकल 11 कहता है कि यह सरकार की ड्यूटी है कि वह नागरिकता देने और उसे किन्हीं विशेष परस्थितियों में वापस लेने के लिए कानून बनाए। सन् 1955 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस संबंध में कानून बनाया भी। राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए जो कार्य किया, उसने देश को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा दिया, इस एक निर्णय से भारत में लाखों की संख्या में अवैध घुसपैठ वैध हो गई। इसकी आड़ में अब तक घुसपैठ चल रही है।
हर देश भक्त फिर वह किसी भी दल का क्यों न हो, वह इस बात को ह्दय से स्वीकारता है कि भारत के सिटीजनशिप कानून में राजीव गांधी ने जो सेंध लगाई वह आज देश के लिए नासूर बन गई है। हो सकता है देश की जनता 1984 में राजीव गांधी की पार्टी कांग्रेस को 404 लोकसभा सीट जिताकर भारी बहुमत से विजयी नहीं बनाती तो वह 1985 में कभी ऐसा कानून संसद से पास ही नहीं करवा पाते, जिसके कारण से आज देश में अवैध घुसपैठ एक महाभयंकर समस्या बनकर उभरी है।
भारत में बांग्लादेशी घुसपैठियों को राजीव गांधी ने दोहरी नागरिकता देने का काम किया। आप देखें कि कैसे राजीव गांधी बड़ी चालाकी के साथ 1985 में देश के सिटिजनशिप एक्ट में बदलाव कर देते हैं। इसके लिए वे इस एक्ट में एक नई धारा 6ए का इजाफा करते हैं । जो यह कहती है कि 1971 तक जो लोग बांग्लादेश से असम में आ चुके हैं, वह सभी असम के निवासी और भारत के नागरिक हो जाएंगे। तत्कालीन समय में यह विशेष सुविधा असम के लिए लागू की गई, अब ध्यान रखिए बाकी और राज्यों के लिए 1947 तक का नियम है।यानी कि जो उस वक्त आए उन्हें भारत की नागरिकता रहेगी।
देखा जाए तो इस नई 6ए धारा का परिणाम यह हुआ कि राजीव गांधी के वक्त जो 60 लाख बांग्लादेशी घुसपैठिए भारत के असम क्षेत्र में आए वह तो भारत के नागरिक बने ही बने, साथ में उन्होंने जो देश में जनसंख्या बढ़ाने का काम भी किया, आज की तारीख में वे सब भारत के नागरिक हो गए। हालांकि कांग्रेस की सरकार में लागू की गई धारा 6ए के विरोध में मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है, इस पर फैसला आना अभी शेष है, किंतु इस 6ए धारा का वर्तमान संकट यह है कि अब भी जो बांग्लादेशी घुसपैठिए बड़ी तादात में भारत में घुसते हैं, उनमें से कई पहले अपने को असम में पंजीकृत करवाते हैं, जो रजिस्टर्ड नहीं हो पाते, तब भी वे यही बताने का प्रयास करते हैं कि वह और उनके पूर्वज 1971 के पहले ही भारत में आकर बस गए थे ।
असम और पश्चिम बंगाल की बदल गई डेमोग्राफी
असम में हालात किस तरह से दिनों दिन खराब हुए हैं, यह स्वयं मुख्यमंत्री हिमंत विस्वा सरमा के मुख से आज सुना जा सकता है, जिसमें वे बता रहे हैं कि बांग्लादेशी घुसपैठ मुस्लिम आबादी के कारण असम की डेमोग्राफी बदल गई है और कई जिलों में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं। जो 1951 में 12 फीसदी मुस्लिम थे, अब 40 फीसदी तक पहुंच गए हैं। यह जनसंख्या अवैध घुसपैठ के कारण से असम में देखने को मिल रही है।
पश्चिम बंगाल भाजपा के अध्यक्ष एवं केंद्रीय मंत्री सुकांत मजूमदार ने भी असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के बयान का समर्थन किया है, मजूमदार का कहना है कि असम में बायोलॉजिकल तरीके से डेमोग्राफी बदलाव नहीं हुआ है। यह बदलाव घुसपैठ का नतीजा है। उन्होंने बंगाल को भी इस समस्या से पीड़ित बताया और कहा, बंगाल में भी इसी तरह अवैध घुसपैठ कराकर डेमोग्राफी को बदला गया है।
उनके अनुसार ऐसा सिर्फ असम और बंगाल में ही नहीं, बल्कि पूरे पूर्वी भारत हुआ है, खासकर सीमा से सटे राज्यों में स्वतंत्रता के 70 से 75 सालों में बड़ा डेमोग्राफिक परिवर्तन देखने को मिला है। ये बायोलॉजिकल तरीके से आबादी नहीं बढ़ाई गई है, योजनाबद्ध तरीके से डेमोग्राफी चेंज हुई है। वे कहते हैं, कि इसकी योजना देश के बाहर कहीं से हो रही है। पश्चिम बंगाल में स्वतंत्रता के पूर्व और स्वाधीनता बाद भी तीन जिले मुस्लिम बहुल थे। लेकिन आज यह संख्या नौ जिलों की है। “ये कहाँ से हो रहा है? कैसे हो रहा है? इतनी जनसंख्या कैसे बढ़ रही है? प्राकृतिक तरीके से इतनी जनसंख्या नहीं बढ़ सकती है।”
घुसपैठिए छीन रहे नागरिकों के आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक अधिकार
सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर जोगिंदर सिंह 2014 में इस बात को तथ्यों के साथ कहा था कि देश में लगभग पांच करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठ कर बैठे हुए हैं। यदि आंकड़ों के आधार पर अनुमान लगाए तो लगभग पांच हजार लोग हर दिन बांग्लादेश से भारत आते हैं। महीने में करीब डेढ़ लाख लोग। अब पिछले 70-75 सालों में कितनों ने घुसपैठ कर ली होगी, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। इसलिए ही स्थानीय असमिया लोगों के लिए घुसपैठ एक बड़ा मुद्दा है।
उनका कहना भी है कि बांग्लादेश मूल के मुसलमान और अब तो रोहिंग्या भी आ रहे हैं, ये सभी स्थानीय लोगों के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक अधिकार छीन रहे हैं। हमारे रोजगारों पर कब्जा जमा रहे हैं। मुख्यमंत्री हिमांता विस्वा सरमा बिल्कुल सही कह रहे हैं। सरकार तो इन्हें अपने स्तर पर रोकने की कोशिश करती है, लेकिन जो पूर्व से बांग्लादेश से आकर असम में बसे हैं, वे घुसपैठियों को चुपके से अपने यहां रख लेते हैं और अपना पूरा संरक्षण देते हैं। मदरसों का रोल इसमें सबसे अहम है। पूरा तंत्र देश भर में मदरसों और मस्जिदों का काम करता है, जो न सिर्फ घुसपैठियों के कागजात तैयार करवाते हैं बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों में भेजने तक की व्यवस्था करते हैं, इसलिए इनकी पहचान कर इन्हें पकड़ना आसान नहीं होता।
घुसपैठ के चलते असम के नौ जिले हुए मुस्लिम बहुल
आंकड़ों में देखें तो असम के कुल 33 जिलों में से 9 जिलों में इस वक्त मुस्लिम आबादी 50 से 80 फीसदी तक हो गई है। ये जिले-बारपेटा, करीमगंज, दारंग, मोरीगांव, नौगांव, बोंगाईगांव, धुबरी, लाकांडी और गोलपाराबतौर हैं। इन नौ जिलों के अलावा कामरूप, कछार और नलबाड़ी में भी मुसलमानों की आबादी करीब 40 फीसदी आंकी गई है। कुल मिलाकर देश के इस एक अकेले असम राज्य में बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण से 45 विधानसभा सीटों पर फैसला मुस्लिम वोटरों के हाथों में चला गया। 2021 के विधानसभा चुनाव में 31 मुसलमान विधायक चुने गए, जिनमें 16 कांग्रेस और 15 ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट जिसे एआईयूडीएफ और सर्व भारतीय संयुक्त गणतांत्रिक मोर्चा के नाम से भी जाना जाता है के हैं। इस दल को लेकर कहना चाहिए कि इसकी पूरी राजनीति बांग्लादेशी घुसपैठियों और अन्य मुसलमानों की बदौलत चल रही है। इसका निशान भी हरा है और इसके संस्थापक भी मौलाना बदरुद्दीन अजमल हैं। भाजपा इन मुस्लिम बहुत क्षेत्रों से जीतती नहीं, क्योंकि वह घुसपैठियों के खिलाफ मुखर है।
पश्चिम बंगाल में ले रहे वेलफेयर स्कीमों का लाभ
यही हाल पश्चिम बंगाल का है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की जीत में सबसे बड़ी भूमिका बांग्लादेशी घुसपैठिए निभाते हैं, जिसके कई साक्ष्य मीडिया में मौजूद हैं। भाषा से कोई उन्हें नहीं पकड़ सकता। वह बांग्ला बोलते हैं । दिखने में भी पश्चिम बंगाल के रहवासी की तरह ही हैं । वे भारत आकर यहां की सभी सोशल वेलफेयर स्कीमों और भारत के आम टैक्सपेयर के पैसे से मिलने वाली सहूलियतों पर कब्जा कर रहे हैं। इसके अलावा ये बहुत बड़े पैमाने पर स्लीपर सैल के तौर पर काम कर रहे हैं। अब तक कई आतंकी संगठनों के कनेक्शन राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को पश्चिम बंगाल से मिले हैं, जो सीधे बांग्लादेश से जाकर जुड़ते हैं । देश विरोधी हर काम में ये घुसपैठिए लिप्त पाए जा रहे हैं ।
झाारखण्ड में बांग्लादेशी घुसपैठ से संथाल परगना की डेमोग्राफी बदली
इस संबंध में यह तथ्य भी बताना उचित होगा कि जब भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में पुलिस ने अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों के खिलाफ़ कार्रवाई शुरू की तो कई चौकानेवाली जानकारियां सामने आईं । पता चला कि ये घुसपैठिए देश के कोने-कोने में फैले हैं। इनके पास अपने को भारत का नागरिक प्रमाणित करने के लिए सभी दस्तावेज हैं। कई राज्यों से इन बांग्लदेशियों की गिरफ्तारियां भी हो चुकी हैं। असम, पश्चिम बंगाल की तरह ही झाारखण्ड में बांग्लादेशी घुसपैठ से संथाल परगना की डेमोग्राफी बदल गई है। यहां स्थिति इतनी भयानक हो गई कि न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा है। झारखंड हाईकोर्ट ने संथाल प्रमंडल के सभी उपायुक्तों को आपसी सामंजस्य से बांग्लादेश से आने वाले घुसपैठियों को चिह्नित कर वापस भेजने की कार्ययोजना तैयार करने के लिए कहा है। अदालत ने कहा है कि यह अति गंभीर मामला है, इसे सिर्फ राज्य सरकार नहीं संभाल सकती। इसलिए केंद्र सरकार को भी राज्य सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहिए।
झारखंड, जिहाद खंड बनता जा रहा
झारखंड प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने राज्य के संथाल परगना इलाके में बांग्लादेशी घुसपैठ के मामले पर राज्य सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा है कि बांग्लादेशी घुसपैठ सिर्फ क्षेत्रीय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है। बांग्लादेशी घुसपैठिए इस राज्य के आदिवासी भाई-बहनों की जमीन और संसाधनों पर कब्जा जमा कर झारखंड को जिहाद खंड बनाना चाहते हैं। राज्य सरकार न सिर्फ इस संवेदनशील मामले पर चुप्पी साधे है, बल्कि अवैध घुसपैठियों को बसाने में भी मदद कर रही है। जेएमएम और कांग्रेस की गठबंधन सरकार इस मामले में हाई कोर्ट के आदेश की लगातार धज्जियां उड़ा रही है। बांग्लादेशी घुसपैठिए झारखंड के गरीब आदिवासियों का हक़ छीनने का प्रयास कर रहे हैं। जेएमएम-कांग्रेस सरकार के संरक्षण में घुसपैठियों का नाम मतदाता सूची और राशन कार्ड में भी जोड़ा जा रहा है। घुसपैठ के चलते झारखंड की माटी और बेटी पर भी संकट मँडरा रहा है। आदिवासियों के हक़ अधिकार की रक्षा के लिए राज्य सरकार बांग्लादेश घुसपैठ की रोकथाम के लिए अतिशीघ्र ठोस कदम उठाए।
कुल मिलाकर देश भर में कई राज्यों में आज ये घुसपैठिए पहुंच चुके हैं। भारत के संसाधनों का भरपूर उपभोग कर रहे हैं। खूब रुपया बनाकर विदेश भेज रहे हैं। दूसरी ओर भारत का आम नागरिक है जिसके हक का रोजगार ये छीन ले रहे हैं। ऐसे में सोचना अब स्थानीय भारत के आम नागरिक, विशेषकर मुसलमानों को है कि इन विदेशियों को सहयोग देकर उन्हें भारत में बसाकर वह आखिर किसका भला कर रहे हैं । देखा जाए तो जो भारत उन्हें सब कुछ देता है वे आज उसी देश से गद्दारी कर रहे हैं, रोहिंग्या एवं बांग्लादेशी घुसपैठियों की मदद करनेवालों को यह समझना होगा कि यह इनकी मदद कर देश को हर मोर्चे पर कमजोर करने का कार्य ही कर रहे हैं ।
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