जयशंकर की बात का ही असर था कि ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री वोंग ने भी चीन का बिना नाम लिए, संकेत में कहा कि ‘संप्रभुता का सम्मान तथा प्रतिस्पर्धा का प्रबंधन जिम्मेदारी से करना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।’ उनका इशारा भी यही था कि चीन हिंद—प्रशांत क्षेत्र में अपनी हरकतों से बाज आए और सभी देशों की वहां बिना बाधा वहां से आवाजाही सुनिश्चित हो।
जापान में क्वाड विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने उद्घाटन भाषण से चीन को परेशान कर रखा है। साफ और बेलाग, दो टूक बोलने की अपनी छवि को सिद्ध करते हुए जयशंकर ने चीन का नाम लिए बिना उसे सचेत किया कि हिन्द—प्रशांत में वह अपनी हरकतों से बाज आए और शांति रहने दे।
एस. जयशंकर की इस साफगोई से बीजिंग तिलमिलाया जरूर होगा। जयशंकर का कहना था कि दुनिया के हित के प्रति क्वाड देशों की प्रतिबद्धता जगजाहिर है। इसका प्रभाव क्वाड सदस्य देशों के कहीं दूर तक जाता है।
क्वाड सदस्य देशों—भारत अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया—के विदेश मंत्रियों की इस महत्वपूर्ण बैठक में जयशंकर ने हिंद प्रशांत में चीन की थानेदारी की ओर संकेत करते हुए कहा कि क्वाड समूह के पास नियम पर केन्द्रित व्यवस्था को बनाए रखने के अलावा कई दायित्व हैं। यह समूह हिंद-प्रशांत के इलाके में आजादी और सुरक्षा कायम रख सकता है।
जयशंकर का आगे कहना था कि राजनीतिक लोकतंत्रों, बहुलतावादी समाजों तथा बाजार केन्द्रित अर्थव्यवस्थाओं के तौर पर जरूरी है कि नियम-आधारित व्यवस्था बनी रहे। क्वाड समूह का सहयोग यह पक्का करने में सक्षम है कि हिंद-प्रशांत का इलाका खुला, स्थिर, सुरक्षित तथा समृद्ध ही रहे। दुनिया के हित के प्रति हम सब प्रतिबद्ध हैं और इसका असर दूर तक दिखता है।
इस अंतरराष्ट्रीय समूह में विदेश मंत्री की यह बात बेहद महत्वपूर्ण मानी गई कि क्वाड सदस्य देशों की राजनीतिक सूझबूत और दमदार होनी चाहिए, सदस्य देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ने चाहिए, प्रौद्योगिकी में सहयोग आगे जाना चाहिए। इसके साथ ही सदस्य देशों के नागरिकों में आपसी सहजता विकसित हो।
जापान में इस बैठक में भारतीय विदेश मंत्री के साथ ही अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, जापान की विदेश मंत्री योको कामिकावा तथा ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वोंग ने सहभागिता की। इन सबके बीच जयशंकर ने आह्वान किया कि उनकी इस बैठक का यह स्पष्ट संदेश जाना जरूरी है कि क्वाड यहां रहते हुए काम करने तथा और आगे जाने के लिए है।
जयशंकर की बात का ही असर था कि ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री वोंग ने भी चीन का बिना नाम लिए, संकेत में कहा कि ‘संप्रभुता का सम्मान तथा प्रतिस्पर्धा का प्रबंधन जिम्मेदारी से करना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।’ उनका इशारा भी यही था कि चीन हिंद—प्रशांत क्षेत्र में अपनी हरकतों से बाज आए और सभी देशों की वहां बिना बाधा वहां से आवाजाही सुनिश्चित हो। हिंद—प्रशांत क्षेत्र रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है और अमेरिका भी हर तरह से इस कोशिश में है कि वहां से चीन की थानेदारी पर लगाम लगा सके। इस संबंध में अमेरिका, भारत, आस्ट्रेलिया और जापान में आपसी समझ बनी है और इस नाते सहयोग भी बढ़ा है।
बैठक के बाद एक साक्षा बयान जारी किया गया। इसमें चारों विदेश मंत्रियों ने कहा, “हम पूर्वी और दक्षिण चीन सागर की स्थिति को लेकर गंभीर रूप से चिंतित हैं और बल या दबाव के जरिए यथास्थिति को बदलने की कोशिश करने वाली किसी भी एकतरफा कार्रवाई के प्रति अपना कड़ा विरोध दोहराते हैं।” ध्यान रहे, इस बयान में चीन का सीधे तौर पर उल्लेख नहीं किया गया है।
बयान में मंत्रियों ने विवादित विशेषताओं के सैन्यीकरण और दक्षिण चीन सागर में जोर—जबरदस्ती और धमकी देने जैसे युद्धाभ्यासों को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है, जिसमें तट रक्षक और समुद्री मिलिशिया जहाजों का खतरनाक प्रयोग भी शामिल है।
उल्लेखनीय है कि इधर कुछ महीनों से चीन के जहाजों ने विवादित सेकंड थॉमस शोल पर अपने सैनिकों को रसद आपूर्ति के लिए गए फ़िलिपीन्स के जहाजों का रास्ता रोककर आक्रामक तेवर दिखाए हैं। यह और बात है कि इसी माह चीन और फिलिपीन्स में एक समझौता हुआ है, जो किया गया है सागर में तनाव को कम करने के लिए। लेकिन बीजिंग इसे लेकर कितना गंभीर रहेगा, उसे लेकर संदेह करने के स्वाभाविक कारण हैं।
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