झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार अपने आपको जनजातीय समाज की सरकार कहती है, लेकिन जब जनजातीय समाज हक की आवाज उठाने की कोशिश करे, अपनी संस्कृति और जमीन बचाने की कोशिश करे, तो उनकी आवाज को लाठियों के सहारे कुचलने का प्रयास किया जाता है। सवाल यह उठता है कि आखिर जनजातीय समाज कब तक अपनी अस्मिता खोकर सरकार की मनमानी झेलता रहेगा? कब तक तुष्टिकरण की वजह से संथाल समाज सहित अन्य जनजाति समाज घुसपैठियों द्वारा लव जिहाद और जमीन जिहाद का शिकार होता रहेगा? आज प्रदेश के पाकुड़, दुमका, साहिबगंज, राजमहल आदि क्षेत्रों में बांग्लादेशी घुसपैठियों का प्रकोप और जनजातीय समाज के अत्याचार दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। इसका विरोध करने पर पुलिस उन पर बेतहाशा अत्याचार भी कर रही है।
ताजा मामला पाकुड़ जिला मुख्यालय अंतर्गत केकेएम कॉलेज के छात्रावास का है। जनजातीय समाज की घटती जनसंख्या और लूटती जमीन के विरोध में 27 जुलाई को पाकुड़ में केकेएम कॉलेज के छात्र एक रैली निकालने वाले थे। लेकिन एक रात पहले यानी 26 जुलाई की मध्य रात्रि को छात्रों पर जानलेवा हमला किया गया, जिसमें कई छात्र गंभीर रूप घायल हो गए। छात्रों के अनुसार यह हमला वहाँ के पुलिस वालों ने किया था, जबकि पुलिस का कहना है कि छात्रों की तरफ से ही हमला हुआ था।
आदिवासी छात्र संघ के नेताओं के अनुसार यह आक्रोश रैली पूर्व से ही निर्धारित थी। इसी रैली को रोकने के लिए 26 जुलाई को रात करीब साढ़े दस बजे एक पुलिस पदाधिकारी और एक चालक छात्रावास में आये और आक्रोश रैली रोकने की बात कही। यह सुनने के बाद छात्रों ने इसका कड़ा विरोध किया तो पुलिस पदाधिकारी वहां से चले गये। इसके बाद मध्य रात्रि में करीब एक सौ पुलिस पदाधिकारी और जवान लाठी डंडे लेकर फिर छात्रावास पहुंचे और छात्रों की बेरहमी से पिटाई की। उन्होंने बताया कि पुलिस की पिटाई में 10 छात्र घायल हो गये। सभी घायलों को इलाज के लिए सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
वहीं दूसरी ओर इस मामले में अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी डीएन आजाद के अनुसार बीती रात एक अपहरण की सूचना मिली थी। उसकी मोबाइल लोकेशन के जरिए जांच की जा रही थी, मोबाइल लोकेशन कॉलेज के पास का मिला था। इसी आधार पर सब इंस्पेक्टर नागेंद्र कुमार को जांच के लिए भेजा गया था, तभी वहां मौजूद कुछ युवकों ने पुलिस पर हमला कर दिया। इसमें हमारे अधिकारी और एक अन्य व्यक्ति भी घायल हो गए। इसके बाद आक्रोशित युवकों को हटाने और शांत करने के लिए हल्का बल प्रयोग किया गया। थाना प्रभारी ने बताया कि इस मामले में दो अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज की गई है।
हालांकि इस घटना के अगले दिन 27 जुलाई को हजारों की संख्या में छात्रों ने जिला मुख्यालय के सामने पुलिस और सोरेन सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। उन्होंने दोषी पुलिस वालों पर कार्रवाई करने की मांग की है। विरोध कर रहे छात्रों का कहना है कि सरकार की तुष्टिकरण की नीति से पूरे संथाल वासी परेशान हो चुके हैं। पूरे क्षेत्र में जनजातियों की बहू—बेटियों को झूठे प्रेम जाल में फंसाया जा रहा है और उनकी जमीन को लूटा जा रहा है। इधर जब हम लोग इसका विरोध करते हैं तो हमारी आवाज को बंद करने के लिए तरह—तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।
एक तरफ बांग्लादेशी घुसपैठ और दूसरी तरफ छात्रों की पिटाई का मामला अब तूल पकड़ने लगा है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरंडी ने कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठिए झारखंड की अस्मिता और अस्तित्व के लिए खतरा बने हुए हैं। उहोने हेमंत सरकार से पूछा कि घुसपैठ के खिलाफ आवाज उठाने वाले युवा छात्रों पर अत्याचार और बाहरियों पर इतना प्रेम बरसाने की वजह क्या है? इसके साथ ही उन्होंने पाकुड़ के उपायुक्त को इस घटना में संलिप्त सभी पुलिसवालों के विरुद्ध मुक़दमा दर्ज कर कठोर कारवाई करने की बात कही है।
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इस मामले को गंभीरता से लेते हुए 28 जुलाई को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग द्वारा झारखंड के मुख्य सचिव, डीजीपी अनुराग गुप्ता, पाकुड़ के उपयुक्त मृत्युंजय कुमार बर्नवाल और पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार को सम्मन जारी करते हुए इस मामले पर की गई कार्रवाई के तथ्य और जानकारी इस नोटिस की प्राप्ति के 03 दिन के भीतर प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है।
हालांकि अब तक प्राप्त जानकारी के अनुसार 26 जुलाई की रात्रि में आदिवासी छात्रावास में पुलिस और छात्रों के बीच हुए विवाद के बाद अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी डीएन आजाद के जांच प्रतिवेदन के आधार पर थाना प्रभारी अनूप रौसान भेंगरा और सब इंस्पेक्टर नागेंद्र कुमार को तत्काल प्रभाव से लाइन हाजिर कर दिया गया है। अब देखना ये है कि इसके बाद भी छात्रों को कितनी जल्दी न्याय मिल पाता है।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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