भारतीयों द्वारा मालदीव के बहिष्कार से धरती पर आए राष्ट्रपति मुइज्जू पिछले दिनों दुबई में जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी से मिले थे। बस, उसके बाद उनके व्यवहार में बदलाव झलकने लगा था।
इधर कुछ महीनों से भारत सरकार के आक्रोश के निशाने पर रही टापू देश मालदीव की मोहम्मद मुइज्जू सरकार शायद भारत के साथ संबंधों का महत्व जान कर अब अपनी गलती मान चुकी है। इसका कुछ संकेत मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह का न्योता स्वीकारने और नई दिल्ली आने से मिला था। और अभी दो दिन पहले मालदीव में भारत के राजदूत ने मुइज्जू से सौजन्य भेंट के बाद दोनों देशों के बीच संबंध बढ़ाने का बयान देते हुए एक प्रकार से बदलते मिजाज की पुष्टि की थी।
अब मालदीव की राजधानी माले से ताजा समाचार यह मिला है कि भारत ने कुछ महीनों पहले संबंधों पर जमा बर्फ को हटाते हुए चीन के पिट्ठू माने जाने वाले उस देश के 5 करोड़ डालर के कर्जे की मियाद आगे सरका दी गई है। इसकी घोषणा स्वयं राष्ट्रपति मुइज्जू द्वारा करना बहुत सी बातें साफ कर देता है।
मुइज्जू बहुत पहले से अपने भारत विरोधी नजरिए के लिए पहचाने जाते हैं। चीन के प्रति उनका झुकाव किसी से छुपा नहीं है। चुनाव से पहले प्रचार करते हुए उन्होंने ‘इंडिया आउट’ का नारा लगाया था और कसमें खाई थीं कि टापू देश से भारत के सलाह सैनिकों को वापस भेज देंगे। उनके ‘इंडिया आउट’ कैंपेन का मकसद ही था मालदीव से भारत के प्रभाव को कम करना। यह उन्होंने अपने भाषणों में कहा भी था। कुर्सी संभालते ही उन्होंने पहली विदेश यात्रा के लिए चीन को चुनकर अपना एजेंडा साफ दर्शाया था।
5 करोड़ डालर का कर्जा कोई छोटा नहीं होता। ऐसे में भारत ने मालदीव के प्रति दरियादिली दिखाते हुए उसकी मियाद बढ़ाई गई है तो उसके पीछे कुछ वजहें भी होंगी। इतना ही नहीं, भारत द्वारा मालदीव को भेजी जाने वाली खाद्य सामग्री की मादाद भी बढ़ा दी गई है।
26 जुलाई का दिन मालदीव का स्वतंत्रता दिवस होता है। यानी कल उस टापू देश ने अपना 59वां स्वतंत्रता दिवस मनाया था। इस मौके पर समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति मुइज्जू ने भारत के उक्त दोनों कदमों के बारे में खुलासा किया। मुइज्जू ने कहा कि खाद्य सामग्री के कोटे को भी भारत सरकार ने आगे दो साल के लिए बढ़ाया है।
अपने इस कार्यकाल की शुरुआत उनके और उनके मंत्रियों द्वारा भारत विरोध से करने के बाद, विश्व राजनीति में संभवत: भारत के कद को उन्होंने पहचानकर अपने तेवर नरम किए हैं। अभी तीन महीने पहले इन्हीं मुइज्जू ने भारत को मालदीव का निकट सहयोगी बताया था और कर्जे में ढील की अपील की थी। यहां बता दें कि साल 2023 के आखिरी महीने में मालदीव को भारत के लगभग 400 मिलियन डॉलर से ज्यादा चुकाने थे।
लेकिन अब शायद हालात बदले हैं। भारतीयों द्वारा मालदीव के बहिष्कार से धरती पर आए राष्ट्रपति मुइज्जू पिछले दिनों दुबई में जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी से मिले थे। बस, उसके बाद उनके व्यवहार में बदलाव झलकने लगा था। तब एक साक्षात्कार ने उन्होंने कहा था कि भारत ने मालदीव को कर्जा दिया है जो बहुत मायने रखता है। यह कर्जा उनकी इसे लौटाने की सामर्थ्य से बहुत ज्यादा है। इस चुकाने में हमें कुछ वक्त और मिल जाए इसके लिए भारत सरकार से उनकी बात चल रही है। अभी दो महीने पहले भी भारत की ओर से मालदीव को 5 करोड़ डॉलर का बजटीय सहयोग दिया गया था।
प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति की विशेषता ही यही है कि जरूरतमंद पड़ोसी की मदद में कोताही न की जाए। विशेष रूप से छोटे पड़ोसियों की जितनी सहायता हो, वह की जाए। भारत ने मुसीबत में फंसे श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल जैसे देशों की खुलकर मदद की है। मालदीव से भी भारत के ऐतिहासिक रूप से मधुर संबंध रहे हैं। लेकिन मुइज्जू की ‘पहले चीन’ नीति की वजह से उस देश ने भारत से संबंध बिगाड़कर कूटनीतिक भूल की थी। लेकिन अब उसे सद्बुद्धि आई दिखती है।
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