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ओलंपिक खेलों का स्वर्णिम इतिहास

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योगेश कुमार गोयल

प्राचीन ओलंपिक खेलों की शुरूआत 776 ईसा पूर्व ग्रीस में हुई मानी जाती है लेकिन सन् 393 में सम्राट थ्योडॉसियस द्वारा इन खेलों पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद ओलंपिक खेल बंद हो गए थे। उसके बाद आधुनिक ओलंपिक खेलों की शुरूआत हुई ग्रीस में 1896 में, जिसका श्रेय जाता है फ्रांस के शिक्षा शास्त्री पियरे द कुबर्तिन को। प्रथम आधुनिक ओलंपिक खेलों का उद्घाटन 5 अप्रैल 1896 को एथेंस (यूनान) में किंग जॉर्ज पंचम द्वारा किया गया था। पहले ओलंपिक खेल की प्रतियोगिताओं में महिलाओं के भाग लेने पर प्रतिबंध था किन्तु 1900 में दूसरे ओलंपिक में महिलाओं को भी ओलंपिक खेलों के जरिये अपनी प्रतिभा का परिचय देने का अवसर मिल गया।

1896 के ओलंपिक में जहां 13 देशों के करीब 300 खिलाडि़यों ने हिस्सा लिया था, वहीं 1900 के ओलंपिक में 25 देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले कुल 1226 एथलीटों ने 19 खेलों में 95 स्पर्धाओं में भाग लिया था। उस समय चूंकि ओलंपिक खेलों की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पब्लिसिटी नहीं हो पाई थी, अतः इसमें भाग लेने पहुंचे खिलाड़ी अपने-अपने राष्ट्रों द्वारों चयनित न होकर अपने-अपने खर्च पर पहुंचे थे। विचित्र बात यह थी कि प्रथम आधुनिक ओलंपिक में भाग लेने वाले कुछ खिलाड़ी तो ऐसे भी थे, जो उस वक्त एथेंस में पर्यटक के तौर पर पहुंचे थे।

1896 के बाद से ही ओलंपिक खेलों का आयोजन हर चार वर्ष बाद नियमित रूप से होता रहा है लेकिन प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के कारण 1916, 1940 तथा 1944 के ओलंपिक आयोजन रद्द करने पड़े थे। यूनान (ग्रीस), ब्रिटेन, स्विट्जरलैंड, आस्ट्रेलिया तथा फ्रांस ही पांच ऐसे देश हैं, जिन्होंने अब तक हर ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया है। ओलंपिक खेल दो प्रकार के होते हैं:- ग्रीष्मकालीन तथा शीतकालीन। ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों में सिर्फ वही खेल शामिल होते हैं, जो कम से कम 50 देशों में लोकप्रिय हों। शीतकालीन ओलंपिक में वो खेल शामिल होते हैं, जो 25 देशों में लोकप्रिय हों। अमेरिका के जेम्स बी. कोनोली को पहले आधुनिक ओलंपिक खेल में प्रथम ओलंपिक चैम्पियन बनने का गौरव हासिल है।

1900 में पेरिस में आयोजित हुए ओलंपिक में फुटबाल को भी शामिल किया गया। 1900 के ओलंपिक में चूंकि 1896 के मुकाबले बहुत ज्यादा खिलाडि़यों ने हिस्सा लिया था, अतः आयोजकों द्वारा किए गए सारे प्रबंध धरे के धरे रह गए थे। धावकों को ट्रैक पर दौड़ने के बजाय घास पर दौड़ना पड़ा था। डिस्कस थ्रो व हैमर थ्रो जैसी स्पर्द्धाओं में तो खिलाडि़यों को और भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था क्योंकि उनके सामने जगह की कमी की समस्या थी और उनके शॉट्स पेड़ों पर जाकर गिर रहे थे। तैराकी स्पर्द्धाओं को बहुत तेज पानी के बहाव वाली नदी में आयोजित किया गया था। 1904 में बॉक्सिंग को भी एक ओलंपिक खेल के रूप में प्रतियोगिता में शामिल कर लिया गया। 1904 में सेंट लुइस (यूरोप) में खेले गए ओलंपिक खेलों में कुल 681 खिलाडि़यों ने भाग लिया था, जिनमें करीब 100 खिलाड़ी ही ऐसे थे, जो अमेरिका से बाहर के थे और इनमें से ज्यादातर कनाडा से थे। इंग्लैंड, फ्रांस तथा स्वीडन के किसी भी खिलाड़ी ने इस ओलंपिक में हिस्सा नहीं लिया था।

1908 के ओलंपिक में मोटर बोटिंग को अधिकारिक खेल के रूप में शामिल किया गया था। उसी वर्ष हॉकी प्रतियोगिता का भी पहला आयोजन हुआ था, जिसमें मेजबान इंग्लैंड की टीम विजेता रही। 1912 में स्टॉकहोम में हुए ओलंपिक खेलों में पहली बार तैराक और गोताखार महिलाएं स्वीमिंग पूल में नजर आई थी लेकिन उन्हें तब रेशम से बने स्वीमिंग सूट के नीचे लंबी नेकर पहननी होती थी और मैच शुरू होने से कुछ क्षण पहले तक एक लंबा ओवरकोट पहने रहना होता था। 1920 तक ओलंपिक खेल इस विवाद में भी घिरे रहे कि इन खेलों का आयोजन रविवार के दिन भी होना चाहिए या नहीं। दरअसल ईसाई मान्यताओं के अनुसार रविवार ‘आराम का दिन’ होता है। रविवार को भी ओलंपिक खेल कराए जाने के विरोध में 1908 में लंदन ओलंपिक के दौरान एक अमेरिकी बाधा धावक फॉरेस्ट स्मिथसन ने अपने एक हाथ में बाइबिल लेकर प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था। 1924 में ब्रिटिश एथलीट एरिक लिडेल तथा हैराल्ड अब्राहम ने भी अपने हाथ में बाइबिल लेकर प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था। बाद में इस घटना पर एक फिल्म ‘चैरियॉट ऑफ द फायर’ भी बनाई गई थी।

पदक जीतकर 10 मिनट बेहोश रहा खिलाड़ी

भारत ने ओलंपिक हॉकी में पहली बार 1928 में शिरकत की और स्वर्ण पदक हासिल किया। 1928 से लेकर 1956 तक भारत ने लगातार 6 स्वर्ण पदक प्राप्त किए लेकिन 1960 में भारत को फाइनल में पाकिस्तान की टीम ने पराजित कर दिया किन्तु 1964 में टोकियो ओलंपिक में भारत ने फिर स्वर्ण पदक जीतकर अपना झंडा ऊंचा कर दिया। तत्पश्चात् 1980 में मॉस्को ओलंपिक में भारत ने स्वर्ण पदक जीता। उसके बाद से अब तक भारत को ओलंपिक हॉकी में कोई स्वर्ण पदक नहीं मिल पाया है। 1952 में हेंसिकी ओलंपिक में भारत के खाशाबा जाधव ने कुश्ती में व्यक्तिगत तौर पर कांस्य पदक जीतकर भारत का प्रथम ओलंपिक विजेता होने का गौरव हासिल किया था। टेनिस का आयोजन ओलंपिक में 1924 तक होता रहा लेकिन उसके बाद ओलंपिक में 1988 में ही टेनिस खेला जा सका।

ओलंपिक में ‘पोलो’ सिर्फ 1900, 1908, 1920, 1924 तथा 1936 में ही खेला गया। ओलंपिक खेलों में बॉस्केटबॉल को 1936 में शामिल किया गया। उस साल पुरूषों की बॉस्केटबॉल प्रतियोगिता की शुरूआत हुई जबकि महिलाओं को ओलंपिक में उस खेल की अनुमति 1976 में पहली बार मिली। ओलंपिक में जूडो की शुरूआत 1964 के टोक्यो ओलंपिक से हुई।

1996 के अटलांटा ओलंपिक में तीन नए खेल बीच वॉलीबॉल, महिला फुटबॉल और सॉफ्टबॉल भी शामिल किए गए। 1924 के पेरिस ओलंपिक में डा. बेंजामिन स्पॉक नामक एक ऐसे शख्स ने रोविंग में ओलंपिक पदक जीता था, जो बाल विशेषज्ञ एवं बाल स्वास्थ्य पुस्तकों के लेखक थे। 1968 में मेक्सिको ओलंपिक में बॉब बीमॉन ने 8.9 मीटर की ऊंची छलांग लगाकर नया विश्व रिकार्ड बनाकर अन्य सभी को तो हैरत में डाला ही था, खुद भी वह अपनी इस उपलब्धि पर इस कदर आश्चर्यचकित हुआ था कि भावनाओं में बहकर घुटनों के बल गिर पड़ा और करीब 10 मिनट तक बेहोश रहा।

1968 में शुरू हुआ ओलंपिक में शुभंकर का प्रयोग

ओलंपिक खेलों में शुभंकर (चिन्ह) का प्रयोग 1968 के मैक्सिको ओलंपिक से शुरू हुआ। उस समय ‘पलोमा’ (कबूतर) को शुभंकर बनाया गया था। उसके बाद से ही आयोजक देश औपचारिक चिन्ह के साथ अपने देश में सर्वाधिक पाए जाने वाले और लोकप्रिय जानवर को ओलंपिक में शुभ चिन्ह के रूप में निश्चित करता है। शुरू के कुछ आधुनिक ओलंपिक खेलों में एक ग्रीक सिपाही ‘फेईडिपाइड्स’ के नाम आयोजित की गई मैराथन दौड़ की दूरी करीब 28 मील रखी गई थी। दरअसल 490 ई.पू. यह ग्रीक सिपाही पर्सियन्स द्वारा ग्रीस पर चढ़ाई किए जाने के बाद एथेंसवासियों को युद्ध के परिणामों की जानकारी देने के लिए भागकर मैराथन से एथेंस की करीब 25 मील की दूरी तय करके पहुंचा था।

मैराथन से एथेंस तक का सारा रास्ता उबड़-खाबड़, पथरीला, पहाड़ी और दुविधाओं से भरा था, इसलिए जब फेईडिपाइड्स एथेंस पहुंचा तो वह बहुत थका हुआ था और उसके पैर लहुलूहान थे। एथेंस के लोगों को ग्रीस की सफलता का समाचार सुनाते ही वह जमीन पर गिर पड़ा था और वहीं उसके प्राण निकल गए थे। यही वजह थी कि फेईडिपाइड्स की याद में बिल्कुल उतनी ही दूरी की मैराथन दौड़ रखी गई, जितनी दूरी फेईडिपाइड्स ने मैराथन से एथेंस तक भागकर तय की थी। 1908 में ब्रिटिश रॉयल परिवार ने ओलंपिक के आयोजकों से अनुरोध किया था कि मैराथन दौड़ को विंडसर कैसल से शुरू किया जाए ताकि रॉयल परिवार के बच्चे भी इसके साक्षी बन सकें। विंडसर कैसल से ओलंपिक स्टेडियम की कुल दूरी थी 42195 मीटर (26 मील से कुछ अधिक)। 1924 में मैराथन दौड़ की लम्बाई इतनी ही निर्धारित कर दी गई और तब से मैराथन दौड़ इतनी ही लंबी आयोजित होती रही है।

‘सिटियस, अल्टियस, फोर्टियस, कम्युनिटर है ओलंपिक खेलों का आदर्श वाक्य

ओलंपिक का आधिकारिक ध्वज 1914 में आधुनिक ओलंपिक के जनक पियरे द कुबर्तिन द्वारा तैयार किया गया था। इस ओलंपिक ध्वज में श्वेत पृष्ठभूमि पर परस्पर जुड़े हुए पांच विभिन्न रंगों (नीला, पीला, काला, हरा व लाल) के पांच छोटे गोले बनाए गए थे। इन रंगों का चयन इस आधार पर किया गया था कि इनमें से कम से कम एक रंग दुनिया के लगभग हर देश के राष्ट्रीय ध्वज में शामिल हो। ध्वज के पांच गोले पांच महाद्वीपों (यूरोप, एशिया, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया तथा अमेरिका) की एकता एवं खेलों में सहभागिता के प्रतीक हैं। गोलों का आपस में जुड़ा होना मित्रता की भावना को दर्शाता है, जो ओलंपिक की सभी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धाओं के जरिये कायम हो सकती है। ओलंपिक ध्वज का ध्वजारोहण प्रथम बार 1920 में एंटवर्प (बेल्जियम) में आयोजित ओलंपिक में हुआ था।

1921 में पियरे द कुबर्तिन ने ओलंपिक खेलों का एक आदर्श वाक्य बनाया ‘सिटियस, अल्टियस, फोर्टियस’, जिसका अर्थ है अधिक तेज, अधिक ऊंचा, अधिक शक्तिशाली। यह आदर्श वाक्य पियरे कुबर्तिन ने खिलाडि़यों को प्रतिस्पर्द्धाओं में अधिक से अधिक तेज दौड़ने, अधिक ऊंचा कूदने और अपनी पूरी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से बनाया था। कुबर्तिन ने यह आदर्श वाक्य अपने एक मित्र फादर हेनरी डिडोन के एक लेटिन वाक्य खंड से लिया था। 20 जुलाई 2021 को ओलंपिक के आदर्श वाक्य को ‘फास्टर, हायर, स्ट्रोंगर’ से बदलकर ‘फास्टर, हायर, स्ट्रोंगर, टुगैदर’ कर दिया गया, जिसका लैटिन संस्करण ‘सिटियस, अल्टियस, फोर्टियस, कम्युनिटर’ है। पियरे द कुबर्तिन ने ओलंपिक खेलों में भाग लेने वाले खिलाडि़यों के लिए एक शपथ भी लिखी थी।

हर ओलंपिक के उद्घाटन समारोह के अवसर पर ओलंपिक में भाग लेने वाले सभी खिलाडि़यों की ओर से कोई एक खिलाड़ी यह शपथ लेता है। प्रथम बार यह शपथ 1920 में बेल्जियम के विक्टर बोइन नामक खिलाड़ी ने ली थी। कुबर्तिन ने यह शपथ 1908 के ओलंपिक में बिशप ईथलबर्ट टेलबोट द्वारा ओलंपिक विजेताओं को संबोधित करते हुए दिए गए एक भाषण से प्रेरित होकर लिखी थी। टेलबोट ने कहा था कि ओलंपिक खेलों में सबसे अहम बात जीतना ही नहीं है बल्कि इसमें भाग लेना है, ठीक उसी प्रकार जैसे विजय का उत्सव मनाना ही जिंदगी नहीं है बल्कि संघर्ष का नाम जिंदगी है। जरूरी चीज जीतना नहीं है बल्कि अच्छे से अच्छा खेलना है।

सूर्य की किरणों से प्रज्जवलित होती है ओलंपिक मशाल

ओलंपिक मशाल प्रथम बार 1928 में एम्सटर्डम में आयोजित ओलंपिक में जलाई गई, जिसे प्राचीन और आधुनिक ओलंपिक खेलों का सेतु माना गया। ओलंपिक मशाल शुद्धता, सफलता के लिए कड़ा परिश्रम तथा ऐसी ही कई अन्य बातों को प्रतिबिम्बित करती है। ओलंपिक मशाल को ओलंपिक के उद्गम स्थल ओलम्पिया में प्राचीन किस्म के गाउन पहनकर महिलाओं द्वारा उत्तल लैंस के जरिये सूर्य की किरणों से प्रज्जवलित किया जाता है। ओलम्पिया के इस प्राचीन स्थल पर मशाल प्रज्जवलित करने के बाद धावकों के अनेक हाथों से गुजरती हुई यह मेजबान शहर के ओलंपिक स्टेडियम में पहुंचती है, जहां यह खेलों के समापन तक निरन्तर प्रज्जवलित रखी जाती है। ओलंपिक मशाल की दौड़ (ओलंपिक टॉर्च रिले) का आज जो स्वरूप है, उसकी शुरूआत 1936 की ओलंपिक आयोजन समिति के चेयरमैन कार्ल डीम के सुझावों पर हुई थी। 1936 में बर्लिन में हुई पहली आधुनिक ओलंपिक टॉर्च रिले में ओलम्पिया से बर्लिन तक 3422 टॉर्च बीयरर्स ने 8 दिन में 3422 किलोमीटर की यात्रा तय की थी।

विजेताओं को दिए जाने वाले ओलंपिक मैडल्स हर ओलंपिक आयोजन के लिए अलग रूप में डिजाइन किए जाते हैं, जिनका डिजाइन मेजबान शहर की आयोजन समिति के निर्देशों के अनुरूप ही तैयार होता है। प्रत्येक मैडल की मोटाई न्यूनतम 3 मिलीमीटर तथा व्यास 60 मिलीमीटर होना अनिवार्य है। नियमानुसार गोल्ड मैडल में सोने की मात्रा 6 ग्राम तथा सिल्वर मैडल में चांदी की मात्रा 92.5 प्रतिशत होनी चाहिए। ओलंपिक खेलों के उद्घाटन के समय स्टेडियम में सबसे पहले ग्रीस की टीम प्रवेश करती है। उसके बाद मेजबान देश की भाषानुसार वर्णमाला के क्रम से एक-एक करके दूसरे देशों की टीमें स्टेडियम में प्रवेश करती हैं जबकि मेजबान देश की टीम सबके बाद स्टेडियम में पहुंचती है।

ओलंपिक में भारत

वर्ष 2004 में एथेंस में हुए 28वें ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों में कुल 202 देशों के 10500 खिलाडि़यों ने हिस्सा लिया था। 28वें ओलंपिक खेलों में खिलाडि़यों को कुल 301 स्वर्ण पदक, 301 रजत पदक तथा 301 कांस्य पदक दिए गए थे। इन खेलों में प्रथम स्थान पर अमेरिका ने कब्जा जमाया था, जिसने कुल 35 स्वर्ण, 34 रजत तथा 29 कांस्य पदक जीते थे जबकि 32 स्वर्ण, 17 रजत तथा 14 कांस्य पदक जीतकर चीन दूसरे स्थान पर रहा था और तीसरे स्थान पर रूस ने कब्जा जमाया था। 28वें ओलंपिक खेलों में भारत महज एक रजत पदक जीतकर बामुश्किल अपनी लाज बचाने में ही सफल हुआ था।

भारत के लिए शूटिंग के डबल ट्रैप मुकाबले में राज्यवर्द्धन सिंह राठौर एकमात्र पदक जीतने वाले खिलाड़ी थे। 2008 में 8 अगस्त से 24 अगस्त तक चीन के बीजिंग में ‘एक विश्व, एक स्वप्न’ नारे के साथ आयोजित हुए ओलंपिक में कुल 10942 खिलाड़ियों ने 28 खेलों की 302 प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा लिया था, जिसमें एक स्वर्ण और दो कांस्य पदक सहित कुल 3 पदक जीतने में सफल हुआ था। 2012 में ओलंपिक 27 जुलाई से 12 अगस्त के बीच यूके के लंदन महानगर में आयोजित हुए थे और लंदन आधिकारिक तौर पर तीन आधुनिक ओलंपिक खेलों का आयोजन करने वाला पहला शहर बना था।

2012 के ओलंपिक में 206 राष्ट्रीय ओलंपिक समितियों के 10568 एथलीटों ने 302 प्रतिस्पर्धाओं में भाग लिया था। उस ओलंपिक में भारत को 2 रजत और 4 कांस्य सहित कुल 6 पदक मिले थे। 2016 में 31वें आधुनिक ओलंपिक का आयोजन ब्राज़ील के रियो द जेनेरियो शहर में 5 से 21 अगस्त के बीच हुआ था। उस ओलंपिक में 207 राष्ट्रीय ओलंपिक समितियों के 11238 एथलीटों ने 306 प्रतिस्पर्धाओं में भाग लिया था। 2016 के ओलंपिक में भारत को 1 रजत और 1 कांस्य सहित कुल 2 पदकों से संतोष करना पड़ा था। 32वें ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों का आयोजन आधिकारिक तौर पर 2020 में 24 जुलाई से 9 अगस्त के बीच जापान के टोक्यो में होना था लेकिन कोरोना महामारी के कारण उसे एक वर्ष के लिए टाल दिया गया था।

2020 के ओलंपिक का आयोजन एक साल के स्थगन के बाद टोक्यो में 23 जुलाई से 8 अगस्त 2021 के बीच हुआ। टोक्यो ओलंपिक में 33 खेलों में 339 इवेंट का आयोजन हुआ था, जो ओलंपिक इतिहास में सर्वाधिक था। उस ओलंपिक में 206 राष्ट्रीय ओलंपिक समितियों के 11420 एथलीटों ने 339 प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा लिया था और भारत 1 स्वर्ण, 2 रजत और 4 कांस्य सहित कुल 7 पदक जीतने में सफल हुआ था। 1900 से लेकर अभी तक भारत ने 24 ओलंपिक खेलों में कुल 35 पदक जीते हैं और उम्मीद की जानी चाहिए कि 2024 के 33वें ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ी पदकों का नया रिकॉर्ड बनाकर देश को गौरवान्वित करेंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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