गद्दी पर आने के सात दिन के अंदर ही ओली ने साफ कर दिया है कि उनकी सरकार किस नीति पर चलने वाली है। और इस नीति में चीन की कितनी दखल रहने वाली है। कम्युनिस्ट नेता ओली तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं। अपने पिछले कार्यकाल में भी उन्होंने भारत विरोधी दृष्टिकोण ही दर्शाया था।
हिमालयी देश नेपाल के नए प्रधानमंत्री बने केपी शर्मा ओली ने अपनी शुरुआती बोली ही भारत के विरुद्ध बोली और सीमा का मुद्दा तनावपूर्ण बना दिया। प्रधानमंत्री ओली ने सीमा के निकट के भारत के हिस्सों को अपना बताकर न सिर्फ ऐतिहासिक तथ्यों की अनदेखी की है बल्कि उनको गलत तरह से अपने देश के नक्शे में दर्शाने की पैरवी की है।
ओली ने जिस सुगौली संधि का हवाला देते हुए लिम्पियाधुरा, कालापानी तथा लिपुलेख को और महाकाली नदी के पूर्वी हिस्से को नेपाल के अंदर बताया है वह तथ्यात्मक रूप से गलत है। गद्दी पर आने के सात दिन के अंदर ही ऐसे बयान देकर ओली ने साफ कर दिया है कि उनकी सरकार किस नीति पर चलने वाली है। और इस नीति में चीन की कितनी दखल रहने वाली है। कम्युनिस्ट नेता ओली तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं। अपने पिछले कार्यकाल में भी उन्होंने भारत विरोधी दृष्टिकोण ही दर्शाया था।
सांसदों से बात करते हुए ओली यह कहना नहीं भूले कि इस संबंध में वह कूटनीतिक रास्ते से भारत से बात करके मुद्दे को सुलझाएंगे। प्रचंड को अपदस्थ करके संसद में बहुमत साबित कर चुके चीन की तरह झुकाव वाले के.पी. शर्मा ओली भारत के साथ सीमा विवाद से संबंधित प्रश्नों के जवाब देते हुए उक्त तीनों क्षेत्रों को अपना बताते रहे। उन्होंने यह भी कहा कि नेपाल खुद की अंतरराष्ट्रीय सीमा को लेकर किसी दुविधा में नहीं है, वह इस मुद्दे पर ‘स्पष्टता तथा दृढ़ता’ रखता है।
प्रधानमंत्री ओली ने इसके पीछे जिस 1816 की सुगौली संधि का हवाला दिया उसके अनुसार भी लिम्पियाधुरा, कालापानी तथा लिपुलेख भारत के हिस्से माने जाते हैं। इतना ही नहीं, महाकाली नदी के पूर्वी इलाके भी नेपाल के नहीं हैं। ओली ने 2020 में अपनाए नए राजनीतिक नक्शे की आड़ लेते हुए कहा कि नेपाल ने जो नया मानचित्र अपनाया है, उसे 2017 में संविधान के दूसरे संशोधन के रास्ते बताया गया था, उसके अनुलग्न पैरा नंबर तीन में यह बात साफ बताई गई है। उन्होंने कहा कि नेपाल में उनकी अंतरराष्ट्रीय सीमा के बारे में ठोस राष्ट्रीय सहमति बनी हुई है।
नेपाल के प्रधानमंत्री का कहना है कि नेपाल तथा भारत के बीच प्रधानमंत्रियों के दौरों के दौरान इस विषय पर काफी चर्चाएं हुई हैं। दोनों ही पक्ष इस मुद्दे को कूटनीतिक रास्ते से सीमा संबंधी मुद्दों को सुलझा लेने को लेकर सहमत हैं। नेपाल के प्रधानमंत्री ने तो यहां तक उल्लेख किया कि इस साल 4 जनवरी को नेपाल-भारत विदेश मंत्री स्तर की सातवीं बैठक हुई थी। इसमें सीमा से जुड़े मुद्दे भी चर्चा में आए थे।
नेपाल ने जब 2020 में नया राजनीतिक नक्शा सार्वजनिक किया था तब भारत ने उस पर तीखा विरोध जताया था और उसे अमान्य किया था। दोनों देशों के आपसी रिश्तों में तल्खी आई थी। नेपाल ने उस नक्शे में भारत के हिस्से लिम्पियाधुरा, कालापानी तथा लिपुलेख को अपने देश के हिस्से दर्शाया था। लेकिन भारत ने फौरन प्रतिक्रिया करते हुए उसे अमान्य किया था। भारत ने साफ कहा था कि वह नक्शा ऐतिहासिक तथ्यों अथवा साक्ष्यों पर आधारित नहीं है।
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